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2017 |
हर साल की तरह आज भी पूरी दुनिया में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस उत्साह और उमंग के साथ मनाया जा रहा है। आज मेरी माँ का फ़ोन नहीं आया, अब आएगा भी नहीं। अब किसी भी महिला दिवस पर उनका संबोधन, भाषण एवं चर्चा नहीं सुन पाऊँगी। अतीत में उनके द्वारा दी गई बधाईयों, शुभकामनाओं और उनके साथ जिए पलों की यादों के साथ मेरा आज का यह महिला दिवस बीतेगा।
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मम्मी का हस्तलिखित (लिखने में असमर्थ हो चुकी थी) |
22 नवम्बर 1972 ईसवी में मेरी माँ बिहार महिला समाज की सदस्य और फिर भागलपुर ज़िला की सचिव बनी। बाद में वे राज्य सचिव बनी। वे छः बार भारतीय महिला फेडरेशन की राष्ट्रीय परिषद की सदस्य रही हैं।
भागलपुर में महिलाओं के हित के लिए बनाये गए संगठन 'महिला कोषांग' में नियमित रूप से जाती रही और महिलाओं की समस्याओं को सुलझाने का प्रयत्न करती रही। 31 दिसम्बर 2008 ईसवी को मोक्षदा बालिका इंटर स्कूल, भागलपुर से प्राचार्या के पद से रिटायर हुईं। अवकाश प्राप्ति के बाद अस्वस्थ रही लेकिन जब तक संभव हुआ तब तक अपने सभी कार्यों का सम्पादन एवं निर्वहन सुचारू रूप से करती रही। उनकी बहुत इच्छा थी कि जब तक जीवित रहे तब तक महिलाओं के लिए कार्य करती रहे। लेकिन शारीरिक अस्वस्थता ने उनकी क्रियाशीलता को अंतिम 2 साल के लिए विराम दे दिया।
सामाजिक कार्यों में विशेषकर स्त्री-अधिकार के लिए वे सदैव संघर्षरत रही।
व्यक्तिगत जीवन में भी उन्हें संघर्षों का काफ़ी सामना करना पड़ा; इसके बावजूद वे अपनी राह पर अडिग रही। कम उम्र की विधवा और उसपर से समाज सेवी महिला के साथ समाज का व्यवहार बहुत अनुचित होता है; और मेरी माँ के साथ भी यह होता रहा। परन्तु समाज में ऐसे भी लोग हैं जो इस कड़वी सच्चाई को जानते समझते हुए सदैव सहयोग का हाथ बढ़ाते हैं। भारतीय महिला फेडरेशन, भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी, शिक्षक संघ, पेंशनर समाज, समाज सेवी संगठनों, सहकर्मियों, मित्रों का साथ और सहयोग माँ को मिलता रहा; जिससे वे प्राचार्या के साथ-साथ समाज सेवा के कार्य में अनवरत जुटी रही।
1972 से ही मेरी भी सहभागिता भारतीय महिला फेडरेशन से रही; भले ही उन दिनों मुझे इसकी समझ नहीं थी। जब भी महिला समाज की गोष्ठी, सम्मेलन, धरना, प्रदर्शन होता था, हमेशा अपनी माँ के साथ मैं जाती थी। विवाहोपरांत मेरी उपस्थिति काफ़ी कम हो गई, लेकिन जब भी मौक़ा मिला मैं सम्मिलित होती रही। 8 मार्च 2017 ईसवी में मैं अंतिम बार अपनी माँ के साथ अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर शामिल हुई थी। अब यह सब यादें बनकर मेरे साथ आजीवन रहेंगी।
आज महिला दिवस पर न सिर्फ़ मुझे या परिवार के सदस्यों को बल्कि उनके उन तमाम साथियों को उनकी अनुपस्थिति खलेगी जिनके साथ उन्होंने कई दशकों तक कार्य किया है और महिला दिवस मनाया है।
मम्मी! तुम जहाँ जा चुकी हो; जानती हूँ मेरी आवाज़, मेरी पुकार, मेरी पीड़ा, मेरा अवसाद, मेरी ख़ुशी, मेरी बधाई, मेरी शुभकामना तुम तक नहीं पहुँचेगी। तुम्हारे कार्यों और संघर्षों को यादकर दुनिया की सभी महिलाओं को तुम्हारी तरफ़ से महिला दिवस की बधाई और शुभकामना देती हूँ। तुमको अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की बधाई मम्मी! ![]() |
मैं (2017) |
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मैं (दिल्ली) |
- जेन्नी शबनम (8. 3. 2021)
(अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस)
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13 comments:
माँ का साथ हो तो बड़े-बड़े से दुरूह काम आसान हो जाते हैं
माँ की गहरी यादों में लिपटी आपकी पोस्ट भाव विह्वल कर गयी मन को
शुभकामनाएं आपको भी दिवस विशेष की
मार्मिक , हृदयस्पर्शी
आप वो मशाल वैचारिक रूप से ही सही, पकड़े हैं, पकड़ी रहें। बड़ों को हम उनके आदर्शों और विचारधारा में ही समाज और अपने अंदर सदा जीवित रख सकते हैं। नमन और नारी शक्ति दिवस पर बधाई और शुभकामनाएँ ।
बहुत सुन्दर।
महिला दिवस की बधाई हो आपको।
आपकी इन अनूठी यादों ने हमें अपनी माँ की याद भी दिला दी
हृदयस्पर्शी रचना वैचारिक रूप से साथ होना भी बहुत मायने रखता है और वह इस तरह से हमेशा आपके साथ रहेंगी इससे बड़ी और अच्छी बात भला क्या हो सकती है।
ए दिदिया! माई के असीस के शक्ति सदा संंग रहली ...
प्रतिभा जी के प्रतिभा के उत्तराधिकारी बाड़ेन नू!
ई हय शक्ति के निरंतरता बा । पार्थिव शरीर ना रहला से कवनो ढेर अंतर नइ खे परत ...शक्ति अमर ह ।
महिला दिवस की शुभकामनाएं. मां की याद तो हमेशा ही आती है , मगर कुछ खास मौकों पर ज्यादा ही.
शुभ कामनाएं. मां की याद हमेशा ही आती है
जेन्नी जी, माँ कलम की ताकत बनकर हमेशा आपके साथ हैं।
माँ जहाँ भी होंगी वहीँ से आपको अपना आशीर्वाद देती रहेंगी | उनकी सक्रियता और कर्मठता के बारे में जान कर बहुत अच्छा लगा | मन भीग भी गया |
उनको मेरी विनम्र श्रद्धांजलि...|
आपने तो रुला दिया । माँ जैसा सच में ही कोई नहीं होता ।
आदरणीय जैनी जी' हमने धरती पर ईश्वर को तो नहीं देखा है लेकिन माँ उस सत्ता की बहुत बड़ी ताकत है। वो हमें जिंदगी की हर पहचान से अवगत कराती है और उससे हमें अपनी पहचान बनाने में ताकत देती है।
मैं तो उसे हर छन सिर झुका करके सलाम करता हूँ।
अशोक आंद्रे
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