अक्सर सोचती हूँ कि बापू सच में कैसे दिखते होंगे? वे कैसे रहते होंगे? उनके सोच ऐसे कैसे हुए होंगे? जबकि वे भी तो आम भारतीय ही थे। काश! मैं सच में एक बार बापू को देख पाती। यूँ बचपन में प्रोजेक्टर पर गाँधी जी को देखती थी। न जाने क्यों सदैव उनकी तरफ़ एक खिंचाव महसूस होता रहा। शायद पिता के जीवन यापन का तरीक़ा मेरे सोच पर प्रभावी हुआ होगा। उम्र और ज़रूरत ने मेरे सोच को अपना न रहने दिया। बापू को अपने जीवन में उतार न सकी, इसका दुःख अक्सर सालता है। बापू को पूर्णतः अपनाने के लिए एक साहस चाहिए जो मुझमें नहीं है। पर यह ज़रूर है कि मेरे मस्तिष्क में एक क्षीण काया का वह वृद्ध व्यक्ति अक्सर मेरे साथ होता है और मुझे क़दम-क़दम पर टोकता है, जिसने दिश को आज़ादी दिलाई थी।
तारा जी और मैं |
मुझे याद है पिछले साल एक दिन मैं अपने किसी परिचित के कार्यक्रम (जहाँ उनकी किताब का विमोचन होना था) में गई थी। वहाँ एक बहुत बुज़ुर्ग महिला आईं, जो शुद्ध खादी के वस्त्रों में थीं और सबसे अलग दिख रही थीं। बहुत जिज्ञासा हुई जानने की कि वे कौन हैं? किसी परिचित से पता चला कि वे तारा गाँधी भट्टाचार्या हैं, महात्मा गाँधी के सबसे छोटे बेटे देवदास गाँधी की पुत्री। उनको देखकर मेरे मन इतना रोमांचित हुआ कि जाकर उनसे बात किए बिना न रह सकी। बहुत सरल हृदय की हैं वे। उन्होंने कहा भी कि जब भी चाहो घर पर आओ। सन 2014 में मैंने अपने पिता की पुस्तक 'सर्वोदया ऑफ़ गाँधी' का पुनर्प्रकाशन करवाया था। उस पुस्तक के विमोचन में तारा जी के आने की बात हुई थी, परन्तु अस्वस्थ होने के कारण वे नहीं आ सकी थीं। मैंने यह सब उन्हें बताया, तो वे बहुत खुश हुईं सुनकर। उनसे मिलकर मुझे इतनी ख़ुशी हुई कि लगा मानो बापू से न मिल सकी परन्तु उनके अंश से तो मिल ली। बापू के बारे में सोचकर मन एक अजीब से रोमांच से भर जाता है।
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मेरे पिता की पुस्तक |
बापू के जीवन के सिद्धांत या नियम इतने सहज, सरल और मानवीय हैं कि अगर कोई मन से चाहे तो अवश्य अपना सकता है।
एक सुसभ्य, सम्मानित और आत्मनिर्भर व्यक्ति तथा समाज के निर्माण के लिए बापू की जीवन शैली अपनाना ही एक मात्र तरीका है।
हमारा राष्ट्र अगर बापू के विचार का कुछ अंश भी हमारे कायदे कानून में सम्मिलित कर दे, तो निःसंदेह एक सुन्दर समाज की कल्पना साकार हो सकती है। बापू के विचार समाज में समूल परिवर्तन कर एक आदर्श स्थिति को लाने में बेहद कारगार हो सकते हैं, जैसे कि आज़ादी की लड़ाई में गाँधी ने किया था।
आज गाँधी जी की जयन्ती पर सरकार और समाज से यही उम्मीद है कि गाँधी को पढ़ें, समझें, और फिर अपनाएँ! बापू को सादर प्रणाम!
-जेन्नी शबनम (2.10.2019)
(महात्मा गाँधी की 150वीं जयन्ती पर)
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