Wednesday, October 2, 2019

68. इतना मैं गाँधी को जानती हूँ

आज महात्मा गाँधी की 150वीं जयन्ती है आज फिर से वह गीत याद आ रहा है जिसे सुन-सुनकर मैं बड़ी हुई हूँ। - ''सुनो-सुनो ऐ दुनिया वालो बापू की ये अमर कहानी, वो बापू जो पूज्य है इतना जितना गंगा माँ का पानी...।'' मोहम्मद रफ़ी साहब द्वारा गया हुआ यह गीत अब भी मेरी कानों में गूँजता रहता है। इस गाने के साथ मेरा बचपन जुड़ा हुआ है। मेरे पिता यह गाना रिकॉर्ड प्लेयर पर हमेशा बजाते थे। इतना ज़्यादा कि इसके बोल याद हो गए मुझे। अक्सर सोचती हूँ काश! मेरा जन्म आज़ादी के आन्दोलन से पहले हुआ होता, तो अवश्य ही मैं बापू के साथ जुड़ जाती। बापू मेरे हृदय में बसे हुए हैं, क्योंकि मेरे पिता गाँधीवादी विचार के थे और उसी परिवेश में पली-बढ़ी होने के कारण ख़ुद को उनके बहुत क़रीब पाती हूँ। हालाँकि तमाम कोशिशों के बावजूद अपने पिता या बापू की जीवन शैली मैं अपना न सकी, इसका मुझे हमेशा अफ़सोस रहेगा। 
अक्सर सोचती हूँ कि बापू सच में कैसे दिखते होंगे? वे कैसे रहते होंगे? उनके  सोच ऐसे कैसे हुए होंगे? जबकि वे भी तो आम भारतीय ही थे। काश! मैं सच में एक बार बापू को देख पाती। यूँ बचपन में प्रोजेक्टर पर गाँधी जी को देखती थी। न जाने क्यों सदैव उनकी तरफ़ एक खिंचाव महसूस होता रहा। शायद पिता के जीवन यापन का तरीक़ा मेरे सोच पर प्रभावी हुआ होगा। उम्र और ज़रूरत ने मेरे सोच को अपना न रहने दिया। बापू को अपने जीवन में उतार न सकी, इसका दुःख अक्सर सालता है। बापू को पूर्णतः अपनाने के लिए एक साहस चाहिए जो मुझमें नहीं है। पर यह ज़रूर है कि मेरे मस्तिष्क में एक क्षीण काया का वह वृद्ध व्यक्ति अक्सर मेरे साथ होता है और मुझे क़दम-क़दम पर टोकता है, जिसने दिश को आज़ादी दिलाई थी।  
तारा जी और मैं 

तारा जी और मैं 














मुझे याद है पिछले साल एक दिन मैं अपने किसी परिचित के कार्यक्रम (जहाँ उनकी किताब का विमोचन होना था) में गई थी। वहाँ एक बहुत बुज़ुर्ग महिला आईं, जो शुद्ध खादी के वस्त्रों में थीं और सबसे अलग दिख रही थीं। बहुत जिज्ञासा हुई जानने की कि वे कौन हैं? किसी परिचित से पता चला कि वे तारा गाँधी भट्टाचार्या हैं, महात्मा गाँधी के सबसे छोटे बेटे देवदास गाँधी की पुत्री। उनको देखकर मेरे मन इतना रोमांचित हुआ कि जाकर उनसे बात किए बिना न रह सकी। बहुत सरल हृदय की हैं वे। उन्होंने कहा भी कि जब भी चाहो घर पर आओ। सन 2014 में मैंने अपने पिता की पुस्तक 'सर्वोदया ऑफ़ गाँधी' का पुनर्प्रकाशन करवाया था। उस पुस्तक के विमोचन में तारा जी के आने की बात हुई थी, परन्तु अस्वस्थ होने के कारण वे नहीं आ सकी थीं। मैंने यह सब उन्हें बताया, तो वे बहुत खुश हुईं सुनकर। उनसे मिलकर मुझे इतनी ख़ुशी हुई कि लगा मानो बापू से न मिल सकी परन्तु उनके अंश से तो मिल ली। बापू के बारे में सोचकर मन एक अजीब से रोमांच से भर जाता है।   
मेरे पिता की पुस्तक 

मेरे पिता की पुस्तक 
महात्मा गाँधी की जीवन शैली और उनके द्वारा किए गए सत्य के प्रयोग के कारण उनकी काफ़ी आलोचना होती है। यूँ तो मैं भी गाँधीवाद को जितना जान पाई हूँ अपने पिता के जीवन से जाना है। लेकिन इस बात को लेकर बिल्कुल विश्वास रखती हूँ कि गाँधीवाद न सिर्फ़ आज की ज़रूरत है बल्कि समाज के सकारात्मक उत्थान के लिए आवश्यक है। आज समाज में भ्रष्टाचार, दुराचार, असहनशीलता, अकर्मण्यता, दुराभाव, द्वेष, हिंसा, बलात्कार, मॉब लिंचिंग इत्यादि बढ़ते जा रहे है। इस स्थिति में न सरकार प्रभावी हो पा रही है न सामजिक संस्थाएँ कुछ कर पा रही है। ऐसे में सभी समस्याओं का समाधान गाँधीवाद को केंद्र में रखकर निकाला जा सकता है। लेकिन यह ज़रूरी है कि न केवल आम जनता बल्कि सत्ता और नौकरशाही भी गाँधी को जाने और उनको आत्मसात करे। यूँ बचपन से सभी को स्कूल में अच्छी शिक्षा मिलती है, लेकिन कुछ तो कमी रह जाती है जिससे समाज ऐसा होता चला जा रहा है। जीवन शैली और शिक्षा पद्धति में एक बहुत बड़े बदलाव की सख्त ज़रूरत है।   
बापू के जीवन के सिद्धांत या नियम इतने सहज, सरल और मानवीय हैं कि अगर कोई मन से चाहे तो अवश्य अपना सकता है। एक सुसभ्य, सम्मानित और आत्मनिर्भर व्यक्ति तथा समाज के निर्माण के लिए बापू की जीवन शैली अपनाना ही एक मात्र तरीका है। हमारा राष्ट्र अगर बापू के विचार का कुछ अंश भी हमारे कायदे कानून में सम्मिलित कर दे, तो निःसंदेह एक सुन्दर समाज की कल्पना साकार हो सकती है। बापू के विचार समाज में समूल परिवर्तन कर एक आदर्श स्थिति को लाने में बेहद कारगार हो सकते हैं, जैसे कि आज़ादी की लड़ाई में गाँधी ने किया था।   

आज गाँधी जी की जयन्ती पर सरकार और समाज से यही उम्मीद है कि गाँधी को पढ़ें, समझें, और फिर अपनाएँ! बापू को सादर प्रणाम!   

महात्मा गाँधी एवं लाल बहादुर शास्त्री जी को उनकी जयन्ती पर हार्दिक नमन!   

-जेन्नी शबनम (2.10.2019)   
(महात्मा गाँधी की 150वीं जयन्ती पर)
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