Sunday, April 10, 2011

22. नाथनगर के अनाथ - 2


श्री लखन लाल झा जो इस अनाथालय के अधीक्षक हैं से बातें हो रही थी तभी एक छोटा लड़का पापा पापा करते हुए आया और उनकी गोद में बैठ गया, मैं पूछी ''ये आपका बेटा है''? लखन जी जो पितातुल्य हैं बड़े गर्व से कहते हैं ''मैडम, मैं यहाँ इन सबका पिता हूँ, सभी बच्चे मुझे पापा हीं कहते हैं''| उन्होंने बताया कि यहाँ जो सेविका है उसे बच्चे ''माँ'' कहते हैं और ये परंपरा शुरू से हीं है| हम सभी के चेहरे पे संतोष की लहर सी दौड़ गई| मन ख़ुश हुआ कि यहाँ कोई बच्चा अनाथ नहीं है| सभी बच्चों का नामकरण ये ख़ुद हीं करते हैं और सभी के नाम के साथ ''भारती'' लिख जाता है क्योंकि ये सभी भारत  की संतान हैं| उन्होंने बताया कि यहाँ जो भी बच्चे आते हैं किसी की जाति या धर्म का पता नहीं होता| जब जो मिल गया उसे हम लोग रख लेते हैं, थाना में इतिल्ला कर आवश्यक कारवाई पूरी कर दी जाती है| बच्चों की शिक्षा स्थानीय सरकारी स्कूल और कॉलेज में होती है| बड़े होकर जबतक कुछ कमाने न लगे या विवाह न हो जाए तब तक वो यहीं रहते हैं|


एक दिन मैं यूँ हीं अनाथालय पहुँची तो देखी कि कुछ महिलायें इकत्रित हैं, और एक शिशु को गोद में लिए हुए प्यार कर रही है| देखकर हीं लगा कि ये कोई बाहरी है, लेकिन प्यार करने के तरीके से लगा कि जैसे इनका अपना हीं बच्चा है| जिज्ञासावश मैं उनतक गई| पता चला कि वो पिछले 4 महीने से दौड़ रही हैं एक कन्या को गोद लेने केलिए| अभी जिसे पसंद किया है संभावना है कि वो मिल जाए| कानूनी कारवाई की लम्बी प्रक्रिया के कारण इससे पहले वाली बच्ची उन्हें न मिल सकी थी क्योंकि बच्ची बड़ी हो गई थी, और इन्हें बहुत छोटी कन्या हीं चाहिए थी| मैं अचंभित... आज जब सभी बालक चाहते पर ये सिर्फ कन्या| मन में कहीं एक गर्व सा महसूस हुआ कि आज भी कुछ लोग तो हैं जो स्त्री को इतना महत्व देते| अन्यथा दुनिया इतनी भी न बची होती|


मेरी बेटी के जन्मदिन पर यहाँ पर भोज का आयोजन की थी| बच्चों के साथ पहुँची तो करीब 20 साल का एक लड़का तेज़ी से आया और अभिवादन किया| उसके एक हाथ में बड़ा सा एल्बम और दूसरे हाथ में एक स्मृति-चिन्ह था| एल्बम जबरदस्ती मेरे हाथ में पकड़ा दिया, और वो स्मृति चिन्ह भी| मैं भौंचक, समझ हीं नहीं आया कि वो कौन है और क्यों दे रहा मुझे| पूछने पर बस मुस्कुराता रहा मूंह से कुछ बोल हीं नहीं रहा था| मुझे असमंजस में देख वो बिना कुछ बोले एल्बम खोल कर तस्वीर दिखाने लगा| मैं आश्चर्यचकित, राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से पुरस्कार लेते हुए सभी तस्वीर| मेरे मित्र ने बाद में बताया कि उदय भारती बचपन से यहीं पला है और वह मूक-बधिर भी है| उसे स्काउट केलिए राष्ट्रपति से पुरस्कार मिला था| मैं बहुत ख़ुश हुई, उसे शब्दों द्वारा बधाई दी, वो समझ नहीं पाया कि मैं क्या बोली, या शायद मेरी बात समझ गया हो, बस मुस्कुराता रहा और गर्व से सभी को एल्बम और पुरस्कार-चिन्ह दिखाता रहा|


अनाथालय में रंगाई पुताई चल रहा था| पता चला कि सुषमा का विवाह राजकुमार शर्मा से जो स्थानीय एयरटेल की कंपनी में काम करता है, के माता पिता की इच्छा से हो रही है| सुषमा चहकती सी सामने आई और पूछने पर लजा गई| शादी में निमंत्रण भी आया पर जा नहीं सकी, क्योंकि उस समय मैं दिल्ली आ चुकी थी, अपने स्टाफ से उपहारस्वरूप कुछ धनराशी भेज दी, ताकि अपनी पसंद और ज़रूरत से जो चाहे वो ले ले| सन 1955 से 2011 तक 30 लड़कियों का विवाह अनाथालय द्वारा किया जा चुका है|  

अनाथालय के स्टाफ ने आकर बताया कि अनाथालय के ठीक सामने गुरुकूल जो एक सरकारी स्कूल है के गेट पर आज हीं एक छोटी बच्ची मिली है जिसकी उम्र कुछ महीनों की होगी| देखरेख करने वाली आया उसे गोद में लेकर बैठी थी| बहुत प्यारी बच्ची थी, आश्चर्य होता कैसे कोई यूँ लावारिस छोड़ जाता है| पर इतना सुकून ज़रूर मिला कि कमसे कम ये जीवित तो है और सुरक्षित यहाँ पहुँच गई|



कई बार मैं इस अनाथालय में आई हूँ| कभी होली के मौके पर कभी बच्चों के जन्मदिन के अवसर पर| मन में अक्सर लगता था कि ऐसा क्या किया जाए जो सिर्फ सुस्वादू भोजन या फिर वस्त्र वितरण से बढ़कर हो| घर में विचारविमर्श कर ये फ़ैसला ली कि क्यों न इनकी शिक्षा का उत्तम प्रबंध किया जाए ताकि भविष्य ज्यादा सुरक्षित हो| इस अनाथालय के सचिव अशोक मेहरा जी ये जानकार बहुत ख़ुश हुए और आनन फानन में सब तय हो गया|


नर्सरी से लेकर कक्षा 2 तक के बच्चों का चयन किया गया क्योंकि बड़ी कक्षा के छात्र का हिंदी से अंग्रेजी माध्यम में पढ़ना मुश्किल है| कोमल भारती और रानी भारती ''नर्सरी'', मोनी भारती और आकाश भारती ''प्रेप'', लाल भारती ''कक्षा-1'', रोशनी भारती और अभिषेक भारती ''कक्षा-2'', यानी कूल 7 बच्चों का मेरी संस्था ''संकल्प'' द्वरा डी.पी.एस. भागलपुर में सत्र 2011-2012 में नामांकन कराया गया| नामांकन शुल्क, वार्षिक शुल्क, अन्य शुल्क के साथ हीं पुस्तक एवं अन्य शिक्षण सामाग्री, स्कूल ड्रेस, मध्यान्ह भोजन, परिवहन आदि का खर्च ''संकल्प'' के द्वारा किया जा रहा है| प्रति वर्ष जितने भी बच्चे इन कक्षाओं के लिए उपयुक्त उम्र के होंगे पूर्ण तहकीकात के बाद उन्हें ''संकल्प'' द्वारा डीपीएस भागलपुर में 12 वीं तक पढ़ाया जाएगा| 
उम्मीद है कि ये बच्चे समाज के आम बच्चों की तरह शिक्षा ग्रहण कर उच्च पद हासिल करेंगे और ये स्वयं को अनाथ या फिर ख़ुद को किसी से कमतर नहीं आकेंगे| इन बच्चों को जब पहले दिन एक सादे समारोह में बुलाकर कुर्सी पर बिठाकर स्कूल ड्रेस और पुस्तक का वितरण किया गया, इन बच्चों की ख़ुशी और उत्साह का ठिकाना नहीं था| थोड़ी झिझक भी थी उनमें पर ख़ास होने का एहसास उनके चेहरे से दिख रहा था| बिना बताये ये बच्चे सभी का पाँव छूकर आशीर्वाद ले रहे थे| सभी को तो नहीं पर कुछ को तो हम अच्छी ज़िन्दगी दे सकते| उम्मीद और आशा इनके साथ है, ये अब अनाथ नहीं हैं, यूँ पहले भी नहीं थे, क्योंकि अनाथालय में इनकी माँ और पापा हैं, जो शायद उतना हीं प्रेम करते हैं जितना इनके सगे माँ बाप करते|

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Monday, April 4, 2011

21. नाथनगर के अनाथ

वो दो छोटी लडकियां बड़ी बड़ी आँखों से मुझे एक टक देख रही थी, शरीर बिल्कुल शांत जैसे कि मृतप्राय, सिर्फ आँखें हीं जीवित लेकिन वो भी स्थिर, मानो पथरा गई हो| जाने क्या था उन ख़ामोश नज़रों में कि मेरी नसों में अजीब सी सिहरन दौड़ गई, मानो जीवित लाश देख लिया हो मैंने| सिर चकराने लगा और मैं जल्दी से दरवाज़े को पकड़ ली, मेरे मित्र भी घबरा गए कि अचानक क्या हो गया मुझे| वो लोग जल्दी से मुझे लेकर बाहर निकले और सामने कुर्सी पर बिठाया| फ़रवरी 2010 के होली के समय की घटना है ये, लेकिन मैं उस ठंड के दिन में भी पसीने पसीने हो गई| मेरी आँखें जैसे उन्ही दोनों पर ठहर गई थी या कि मेरा पीछा कर रही थी, और मैं चारो तरफ अजीब सी भयभीत होकर देखने लगी| मैं होश खो चुकी थी, घबराहट इतनी होने लगी कि एक शब्द भी बोल न पायी, महज़ इशारा कर सकी कि मैं ठीक हूँ|


ये नाथनगर का अनाथालय है, जहां दोनों बच्ची कुछ दिन पूर्व हीं लाई गई थी, कोई इन्हें भागलपुर रेलवे स्टेशन की पटरियों पर फेंक गया था| दोनों लड़कियाँ लगभग 3-4 साल की थी लेकिन अवस्था के मुताबिक़ महज़ 2 साल की लग रही थी| जब ये लाई गई तो बिल्कुल मरणासन्न अवस्था में थी, और जाने कब से भूखी थी कि रो भी नहीं पा रही थी| जैसे हीं मैं इन्हें देखी तो सोचने लगी कि अगर उस दिन कोई न देखता तो ये दोनों आज यहाँ नहीं बल्कि इनका शरीर ट्रेन से कटा हुआ वहाँ पड़ा होता| उफ्फ्फ्फ़… ये सब दिमाग में इतनी तेजी से आया और साथ हीं उस दृश्य की कल्पना कि ये दोनों वहाँ ट्रेन से कटी पड़ी होती, मेरा दिमागी संतुलन बिगड़ गया था| सोचती रही कि कैसे कोई माँ 9 महीना कोख़ में रखकर और 3-4 साल परवरिश कर यूँ मरने केलिए छोड़ गई होगी| अगर ये दोनों मर जाती तो उसकी माँ पर क्या बीता होता? हो सकता है दूर के किसी गाँव से उसकी माँ से छुपाकर बच्ची को यहाँ ला कर मरने के लिए कोई रख गया हो? अगर मार देना नहीं चाहा होता तो किसी मन्दिर या अस्पताल या किसी सार्वजनिक जगह रख गया होता जहाँ वो सुरक्षित होती? यूँ पटरी के पास छोड़ दिया ताकि रात के अँधेरे में कोई ट्रेन इन्हें ख़त्म कर दे| शायद इनकी तकदीर से ट्रेन लेट थी सो सुबह तक कोई ट्रेन नहीं गुजरी उस पटरी से, अन्यथा… सोचकर देह सिहर जाता है... ओह्ह्हह्ह! 


'हिन्दू अनाथालय', नाथनगर, भागलपुर, की स्थापना श्री कैलाश बिहारी लाल ( एम.पी) ने सन 1925 में की| पहले इसका नाम 'हिन्दू अनाथालय' था| सन 1930 में भागलपुर के देश भक्त नेता श्री दीपनारायण सिंह ने अपनी स्वर्गीय पत्नी श्रीमती रामानन्दी देवी की स्मृति में अनाथालय को 250 रुपये प्रतिमाह चंदास्वरूप देने का स्थायी प्रबंध किया इस कारण इसका नाम परिवर्तित कर 'रामानन्दी देवी हिन्दू अनाथालय' कर दिया गया| चंदे की ये राशि आज भी नियमित रूप से उनके स्थायी कोष से अनाथालय को मिल रही है| अब तक यहाँ पर 2200 बच्चों का भरण पोषण और शिक्षा का प्रबंध हो चुका है| यहाँ से शिक्षित होकर सेना, वकालत, अध्यापन, अन्य नौकरी इत्यादि में यहाँ के छात्र जा चुके हैं| बच्चों को यहाँ कंप्यूटर, गौशाला और खेती का भी प्रशिक्षण दिया जाता है| अबतक 30 लड़कियों की शादी यहाँ से की जा चुकी है| नौकरी और विवाह के उपरान्त इसे अपना घर मान ये सभी कभी कभी आते रहते हैं| पूर्वी बिहार की ये एकमात्र लाइसेंस प्राप्त संस्था है जो बच्चों को गोद देने केलिए अधिकृत है| अबतक 20 बच्चों को निःसंतान दंपत्ति को गोद दिया जा चूका है|
अभी यहाँ के सचिव श्री अशोक मेहरा हैं तथा अधीक्षक हैं श्री लखन लाल झा, ऑफिस स्टाफ हैं श्री दिवाकर चौधरी और प्रीतम जी, तथा 4 सेविका और 3 रसोइया है| यहाँ सभी उम्र के 55 लड़के- लड़कियाँ हैं, जिनमें 10 बच्चे स्थानीय कॉलेज में पढ़ रहे हैं और 35 बच्चे स्कूल जाते हैं तथा 10 बच्चे बहुत हीं छोटे हैं| सभी बच्चों का लालन पालन, भोजन, शिक्षा, आवास, वस्त्र, चिकित्सा इत्यादि की व्यवस्था अनाथालय करता है| अनाथालय के पास 6 बीघा कृषि योग्य भूमि है, जहाँ सब्जी उपजाई जाती है| परिसर में हीं गौशाला है ताकि बच्चों को शुद्ध दूध मुहैया कराया जा सके| अनाथालय की अपनी ज़मीन है, और पूरा मकान साफ़ सुथरा पक्के का है, सिर्फ खाना जहाँ पकता है उसकी छत फूस की है| यह अनाथालय एक ट्रस्ट के माध्यम से चलता है और इसे कोई सरकारी मदद नहीं मिलती, धन का एक मात्र स्रोत चन्दा हीं है|
… जारी
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