श्री लखन लाल झा जो इस अनाथालय के अधीक्षक हैं से बातें हो रही थी तभी एक छोटा लड़का पापा पापा करते हुए आया और उनकी गोद में बैठ गया, मैं पूछी ''ये आपका बेटा है''? लखन जी जो पितातुल्य हैं बड़े गर्व से कहते हैं ''मैडम, मैं यहाँ इन सबका पिता हूँ, सभी बच्चे मुझे पापा हीं कहते हैं''| उन्होंने बताया कि यहाँ जो सेविका है उसे बच्चे ''माँ'' कहते हैं और ये परंपरा शुरू से हीं है| हम सभी के चेहरे पे संतोष की लहर सी दौड़ गई| मन ख़ुश हुआ कि यहाँ कोई बच्चा अनाथ नहीं है| सभी बच्चों का नामकरण ये ख़ुद हीं करते हैं और सभी के नाम के साथ ''भारती'' लिख जाता है क्योंकि ये सभी भारत की संतान हैं| उन्होंने बताया कि यहाँ जो भी बच्चे आते हैं किसी की जाति या धर्म का पता नहीं होता| जब जो मिल गया उसे हम लोग रख लेते हैं, थाना में इतिल्ला कर आवश्यक कारवाई पूरी कर दी जाती है| बच्चों की शिक्षा स्थानीय सरकारी स्कूल और कॉलेज में होती है| बड़े होकर जबतक कुछ कमाने न लगे या विवाह न हो जाए तब तक वो यहीं रहते हैं|

अनाथालय में रंगाई पुताई चल रहा था| पता चला कि सुषमा का विवाह राजकुमार शर्मा से जो स्थानीय एयरटेल की कंपनी में काम करता है, के माता पिता की इच्छा से हो रही है| सुषमा चहकती सी सामने आई और पूछने पर लजा गई| शादी में निमंत्रण भी आया पर जा नहीं सकी, क्योंकि उस समय मैं दिल्ली आ चुकी थी, अपने स्टाफ से उपहारस्वरूप कुछ धनराशी भेज दी, ताकि अपनी पसंद और ज़रूरत से जो चाहे वो ले ले| सन 1955 से 2011 तक 30 लड़कियों का विवाह अनाथालय द्वारा किया जा चुका है|
अनाथालय के स्टाफ ने आकर बताया कि अनाथालय के ठीक सामने गुरुकूल जो एक सरकारी स्कूल है के गेट पर आज हीं एक छोटी बच्ची मिली है जिसकी उम्र कुछ महीनों की होगी| देखरेख करने वाली आया उसे गोद में लेकर बैठी थी| बहुत प्यारी बच्ची थी, आश्चर्य होता कैसे कोई यूँ लावारिस छोड़ जाता है| पर इतना सुकून ज़रूर मिला कि कमसे कम ये जीवित तो है और सुरक्षित यहाँ पहुँच गई|
कई बार मैं इस अनाथालय में आई हूँ| कभी होली के मौके पर कभी बच्चों के जन्मदिन के अवसर पर| मन में अक्सर लगता था कि ऐसा क्या किया जाए जो सिर्फ सुस्वादू भोजन या फिर वस्त्र वितरण से बढ़कर हो| घर में विचारविमर्श कर ये फ़ैसला ली कि क्यों न इनकी शिक्षा का उत्तम प्रबंध किया जाए ताकि भविष्य ज्यादा सुरक्षित हो| इस अनाथालय के सचिव अशोक मेहरा जी ये जानकार बहुत ख़ुश हुए और आनन फानन में सब तय हो गया|
नर्सरी से लेकर कक्षा 2 तक के बच्चों का चयन किया गया क्योंकि बड़ी कक्षा के छात्र का हिंदी से अंग्रेजी माध्यम में पढ़ना मुश्किल है| कोमल भारती और रानी भारती ''नर्सरी'', मोनी भारती और आकाश भारती ''प्रेप'', लाल भारती ''कक्षा-1'', रोशनी भारती और अभिषेक भारती ''कक्षा-2'', यानी कूल 7 बच्चों का मेरी संस्था ''संकल्प'' द्वरा डी.पी.एस. भागलपुर में सत्र 2011-2012 में नामांकन कराया गया| नामांकन शुल्क, वार्षिक शुल्क, अन्य शुल्क के साथ हीं पुस्तक एवं अन्य शिक्षण सामाग्री, स्कूल ड्रेस, मध्यान्ह भोजन, परिवहन आदि का खर्च ''संकल्प'' के द्वारा किया जा रहा है| प्रति वर्ष जितने भी बच्चे इन कक्षाओं के लिए उपयुक्त उम्र के होंगे पूर्ण तहकीकात के बाद उन्हें ''संकल्प'' द्वारा डीपीएस भागलपुर में 12 वीं तक पढ़ाया जाएगा|
उम्मीद है कि ये बच्चे समाज के आम बच्चों की तरह शिक्षा ग्रहण कर उच्च पद हासिल करेंगे और ये स्वयं को अनाथ या फिर ख़ुद को किसी से कमतर नहीं आकेंगे| इन बच्चों को जब पहले दिन एक सादे समारोह में बुलाकर कुर्सी पर बिठाकर स्कूल ड्रेस और पुस्तक का वितरण किया गया, इन बच्चों की ख़ुशी और उत्साह का ठिकाना नहीं था| थोड़ी झिझक भी थी उनमें पर ख़ास होने का एहसास उनके चेहरे से दिख रहा था| बिना बताये ये बच्चे सभी का पाँव छूकर आशीर्वाद ले रहे थे| सभी को तो नहीं पर कुछ को तो हम अच्छी ज़िन्दगी दे सकते| उम्मीद और आशा इनके साथ है, ये अब अनाथ नहीं हैं, यूँ पहले भी नहीं थे, क्योंकि अनाथालय में इनकी माँ और पापा हैं, जो शायद उतना हीं प्रेम करते हैं जितना इनके सगे माँ बाप करते|
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