Friday, February 21, 2020

70. फाँसी की फाँस


वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह का बयान कि जैसे सोनिया गाँधी ने राजीव गाँधी के हत्यारे को माफ़ किया है, वैसे ही निर्भया की माँ निर्भया के बलात्कारियों को माफ़ कर दें एक स्त्री होकर वकील साहिबा ऐसा कैसे सोच सकी? राजीव गाँधी की हत्या और निर्भया के बलात्कार का अपराध एक श्रेणी में कैसे माना जा सकता है? मानवीय दृष्टि से किसी की मौत के पक्ष में होना सही नहीं है। परन्तु बलात्कार ऐसा अमानवीय अपराध है जिसमें पीड़ित स्त्री के जीवन और जीने के अधिकार का हनन हुआ है, ऐसे में बलात्कारी के लिए मानवीय दृष्टिकोण हो ही नहीं सकता है इस अपराध के लिए सज़ा के तौर पर शीघ्र मृत्यु दंड से कम कुछ भी जायज़ नहीं है। 
  
निर्भया के मामले में डेथ वारंट जारी होने के बाद फाँसी में देरी कानूनी प्रावधानों का ही परिणाम है किसी न किसी नियम और प्रावधान के तहत फाँसी का दिन बढ़ता जा रहा है अभी चारो अपराधी जेल में हैं, ढेरों सुरक्षाकर्मी उनके निगरानी के लिए नियुक्त हैं, उनकी मानसिक स्थिति ठीक रहे इसके लिए काउन्सिलिंग की जा रही है, शरीर स्वस्थ्य रहे इसके लिए डॉक्टर प्रयासरत हैं, उनके घरवालों से हमेशा मिलवाया जा रहा हैआखिर यह सब क्यों? जेल मैनुअल के हिसाब से दोषी का फाँसी से पहले शारीरिक और मानसिक रूप से पूर्णतः स्वस्थ होना ज़रूरी है यह कैसे संभव है कि फाँसी की सजा पाया हुआ मुजरिम बिल्कुल स्वस्थ हो? भले ही जघन्यतम अपराध किया हो परन्तु फाँसी की सज़ा सुनकर कोई सामान्य कैसे रह सकता है? बलात्कारी की शारीरिक अवस्था और मानसिक अवस्था कैसी भी हो फाँसी की सज़ा में कोई परवर्तन या तिथि को आगे बढ़ाना अनुचित है निर्भया के बलात्कारियों को अविलम्ब फाँसी पर लटका देना चाहिए    

ऐसा नहीं है कि बलात्कार की घटनाएँ पहले नहीं होती थी। परन्तु विगत कुछ वर्षों से ऐसी घटनाओं में जिस तरह से बेतहाशा वृद्धि हुई है, बेहद अफसोसनाक और चिंताजनक स्थिति है। क़ानून बने, सामजिक विरोध बढ़े परन्तु स्थिति बदतर होती जा रही है कुछ लोगों का विचार है कि आज की लड़कियाँ फैशनपरस्त हैं, कम कपड़े पहनती हैं, शाम को अन्धेरा होने पर भी घर से बाहर रहती हैं, लड़कों से बराबरी करती हैं आदि-आदि; इस लिए छेड़खानी और बलात्कार जैसे अपराध होते हैं इनलोगों की सोच पर हैरानी नहीं होती है बल्कि इनकी मानसिक स्थिति और सोच पर आक्रोश होता हैअगर यही सब वजह है बलात्कार के, तो दुधमुही बच्ची या बुज़ुर्ग स्त्री के साथ ऐसा कुकर्म क्यों होता है?   

अगर सिर्फ स्त्री को देखकर कामोत्तेजना पैदा हो जाती होती तो हर बलात्कारी को अपनी माँ बहन बेटी में रिश्ता नहीं बल्कि उनका स्त्री होना ही नज़र आता और वे उनके साथ भी कुकर्म करते परन्तु ऐसा नहीं है 
कोई बलात्कारी अपनी माँ बहन बेटी के साथ बलात्कार होते हुए सहन नहीं कर सकता है हालाँकि ऐसी कई घटनाएँ हुई हैं जब रक्त सम्बन्ध को भी कुछ पुरुषों ने नहीं छोड़ा है वैज्ञानिकों के लिए यह खोज का विषय है कि दुष्कर्मी में आख़िर ऐसा कौन-सा रसायन उत्पन्न हो जाता है जो स्त्री को देखकर उसे वहशी बना देता है ताकि अपराधी मनोवृति पर शुरूआत में ही अंकुश लगाया जा सके    

हमारी न्यायिक प्रक्रिया की धीमी गति और इसके ढेरों प्रावधान के कारण अपराधियों में न सिर्फ भय ख़त्म हुआ है बल्कि मनोबल भी बढ़ता जा रहा है यह सही है कि क़ानून हर अपराधी को अधिकार देता है कि वह अपने आप को निरपराध साबित करने के लिए अपना पक्ष रखे तथा अपनी सज़ा के खिलाफ याचिका दायर करे समस्त कानूनी प्रक्रियाओं के बाद जब सज़ा तय हो जाए, और सज़ा फाँसी की हो, तब ऐसे में दया याचिका का प्रावधान ही गलत है दया याचिका राष्ट्रपति तक जाए ही क्यों? ऐसा अपराधी दया का पात्र हो ही नहीं सकता है सरकार का समय और पैसा इन अपराधियों के पीछे बर्बाद करने का कोई औचित्य नहीं है सज़ा मिलते ही 10 दिन के अन्दर फाँसी दे देनी चाहिए कानूनविदों को इस पर विचार-विमर्श एवं शोध करने चाहिए ताकि न्यायिक प्रक्रिया के प्रावधानों की आड़ में कोई अपराधी बच न पाए मानवीय दृष्टिकोण से सभी वकीलों को बलात्कारी का केस न लेने का संकल्प लेना चाहिए। अव्यावाहारिक और लचीले कानून में बदलाव एवं संशोधन की सख्त ज़रुरत है ताकि कानून का भय बना रहे, न्याय में विलम्ब न हो तथा कोई भी जघन्यतम अपराधी बच न पाए।   

- जेन्नी शबनम (20. 2. 2020)   

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