बाबाओं को दूसरों की ख़ातिर कितना कुछ सहना और करना होता है। दूसरों की मनोकामना पूरी कराने के लिए तरह-तरह के उपाय बताना, करवाना या करना और बदले में ज़रा-सी दक्षिणा। बेचारे बाबा को कभी अपने जजमानों की ख़ातिर भूखे रहकर जाप करना होता है, कभी नवरात्र में सिर्फ़ फलाहार करके रहना होता है, कभी विशेष पूजा करनी होती है और जब कोई मनोकामना पूरी हो जाए तो फिर से एक और नई पूजा। ये सभी तो आम बाबा हैं जिन्हें पंडित जी कहते हैं, जो किसी न किसी मन्दिर में पाए जाते हैं और किसी तरह यह सब करके अपनी ज़िन्दगी चलाते हैं। सोचिए उन बाबाओं को कितनी मुश्किल होती होगी जो मन्दिर के पुजारी नहीं हैं, पर बाबा हैं। उन्हें बहुत मशक्क़त करनी होती है बाबा के रूप में प्रसिद्धि बनाए रखने के लिए। कभी-कभी यों लगता है बाबा नहीं हुए सड़क किनारे के ढाबे के मालिक हो गए, जिन्हें चौबीसों घंटे व्यस्त रहना पड़ता है।
कभी कोई मौन हो जाता है और मौनी-बाबा कहलाता है, कोई एक पाँव पर खड़ा रहता है और ठरेसरी-बाबा कहलाता है, कोई बाल-दाढ़ी बढ़ा लेता और दाढ़ी-बाबा कहलाता है, कोई नंगा होकर नागा-बाबा कहलाता है। अब प्रसिद्धि चाहिए तो कुछ तो अलग होना होगा न सभी को एक दूसरे से, वर्ना सिर्फ़ प्रवचन से कैसी महानता, कौन बनेगा अनुयायी, कौन बनेगा चेला। प्रवचन में सदैव अच्छी बातें होती हैं और बाबा के प्रवचन से अच्छा तो है कि किसी धार्मिक चैनल पर प्रवचन सुन लें या फिर कोई धार्मिक सीरियल टी.वी. पर देख लें। फिर बाबा लोग की दूकान चले कैसे? कुछ तो ख़ास, कुछ तो अलग करना ही होगा न! अब रामदेव बाबा को ही देखा जाए, बेचारे को स्त्री वेश धारण करना पड़ गया। अरे सही सलामत रहेंगे तभी तो अनुयायिओं को योग के साथ राजनीति और कूटनीति की शिक्षा दे पाते न! रामलीला मैदान में बाबा जी चले थे योग शिक्षा के नाम पर नेतागिरी की दीक्षा देने, पड़ गए लेने-के-देने। अब वहाँ महाभारत शुरू हो गया जिसमें कोई युद्ध नहीं हुआ, पर भगदड़ मच गई। अब पुलिस को देखकर तो अच्छे-अच्छों के होश गुम हो जाते हैं, तो ये लोग तो बाबा के अनन्य भक्त ठहरे, जो सच्चे देश भक्त और भ्रष्टाचार विरोधी हैं। बेचारे शान्तिपूर्वक अनशन पर बैठे थे, और देश हित की बात कर रहे थे कि पुलिस ने अश्रु गैस और जल का क्रूर छिड़काव और बहाव शुरू कर दिया।
अब जल से भी आग लग गई, ये तो बाबा जी का प्रभाव था और बाबा के चमत्कार से जान-माल की क्षति नहीं हुई; वर्ना सरकार तो कमर कस ही ली थी दो-दो हाथ करने की। बाबा न भागते तो क्या हाल होता? सही सोच रहे थे बाबा। अब उनके सहयोगी जो परदे के पीछे थे, से विचार-विमर्श करने का मौक़ा भी तो नहीं मिला; अन्यथा बाबा स्वयं ही अनशन के साथ किए जा रहे सत्याग्रह को जेल भरो आन्दोलन में बदल देते। राजनैतिक क़ैदी की अपनी प्रतिष्ठा होती है और सम्मान भी बढ़ जाता है। अरे राजनैतिक क़ैदी कोई अपराधी थोड़े न होते हैं कि उनके साथ थर्ड डिग्री से पुलिस पेश आए। अरे नेता हों या बाबा हमारा इतिहास गवाह है कि कितनी आस्था, विनम्रता, सज्जनता और सरलता से पुलिस पेश आती है और हर संभव सहायता करती है। उनको सभी सुविधाएँ मुहैया कराई जाती हैं, चाहे एअर कंडीशनर हो या टी.वी. या फिर गरमा-गरम पाँच सितारा होटल का खाना। मोबाइल और आरामदायक बिस्तर तो बिना कहे पहले से ही रख दिया जाता है। अब लगे हाथ दो-दो फ़ायदा हो जाता है। एक तो जनता के बीच में प्रतिष्ठा और सम्मान बढ़ गया कि देश की ख़ातिर जेल गए, और दूसरे मुफ़्त आराम करने का वक़्त भी मिल गया। प्रसिद्धि मिलती है सो अलग। ख़ैर बाबा ये सब सोच ही न पाए, अपने अनुयायियों को छोड़ अंतर्ध्यान हो गए और फिर स्त्री वेश धारण कर लिए ताकि पुलिस से बच सकें।
अब दिल्ली पुलिस जो समय से कहीं नहीं पहुँचती एक दम सही वक़्त पर न सिर्फ़ पहुँच गई, बल्कि स्त्री वेश में भी बाबा को पहचान ली और ससम्मान मुफ़्त हवाई यात्रा द्वारा सीधे हरिद्वार पहुँचा आई। सरकार और बाबा के बीच अब चल रही है कबड्डी। तीसरा पक्ष जो रेफ़री है और बाबा को व्यवसायी से नेता बनाने की जुगत में है, बड़े मज़े से तमाशा करवा रहा है और मज़े ले रहा है। बाबा सरकार की पोल खोलने के पीछे हैं, तो सरकार बाबा की पोल। तीसरा पक्ष बाबा को आगे करके तमाशा में शामिल होता है और मज़े ले-लेकर बाबा का हौसला भी बढ़ाता है। हम सभी आम जनता जो देश के एक मात्र चौथे पक्ष हैं; क्योंकि बाक़ी सब तो ख़ामोश हैं और हम मूक दर्शक रह गए हैं। मीडिया के कारण नौटंकी का सारा घटना-क्रम देखने-सुनने और जानने के बाद हम चौथा पक्ष फेसबुक पर बाबा के पक्ष-विपक्ष पर चर्चा करते हैं।
अब दिल्ली पुलिस जो समय से कहीं नहीं पहुँचती एक दम सही वक़्त पर न सिर्फ़ पहुँच गई, बल्कि स्त्री वेश में भी बाबा को पहचान ली और ससम्मान मुफ़्त हवाई यात्रा द्वारा सीधे हरिद्वार पहुँचा आई। सरकार और बाबा के बीच अब चल रही है कबड्डी। तीसरा पक्ष जो रेफ़री है और बाबा को व्यवसायी से नेता बनाने की जुगत में है, बड़े मज़े से तमाशा करवा रहा है और मज़े ले रहा है। बाबा सरकार की पोल खोलने के पीछे हैं, तो सरकार बाबा की पोल। तीसरा पक्ष बाबा को आगे करके तमाशा में शामिल होता है और मज़े ले-लेकर बाबा का हौसला भी बढ़ाता है। हम सभी आम जनता जो देश के एक मात्र चौथे पक्ष हैं; क्योंकि बाक़ी सब तो ख़ामोश हैं और हम मूक दर्शक रह गए हैं। मीडिया के कारण नौटंकी का सारा घटना-क्रम देखने-सुनने और जानने के बाद हम चौथा पक्ष फेसबुक पर बाबा के पक्ष-विपक्ष पर चर्चा करते हैं।
जय बाबा की!
- जेन्नी शबनम (7.6.2011)
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