महात्मा गांधी ने कहा था कि व्यक्ति अगर हिंसक है, तो वह पशु के समान है। मुझे ऐसा लगता है जैसे मानव पशु बन चुका है और पशु मानव से ज़्यादा सभ्य हैं। अगर पशुओं को नुक़सान न पहुँचाया जाए, तो वे कुछ नहीं करते हैं। पशुओं में न लोभ है, न द्वेष, न ईर्ष्या, न प्रतिकार का भाव, न मान-सम्मान-अपमान की भावना। प्रकृति के साथ प्रकृति के बीच सहज जीवन ही पशु की मूल प्रवृत्ति है। परन्तु मनुष्य अपनी प्रकृति के बिल्कुल विपरीत हो चुका है। मनुष्य की मनुष्यता ख़त्म हो गई है। मनुष्य में क्रूरता, पाश्विकता, अधर्म, क्रोध, आक्रोश, निर्दयता का गुण भरता जा रहा है। वह पतित, दुराग्रही, पाखंडी, असहिष्णु, पाषाण-हृदयी हो गया है। वह हिंसक ही नहीं कठोर हिंसक व बर्बर बन चुका है।
आए दिन कोई-न-कोई घटना ऐसी हो जाती है कि मन व्याकुल हो उठता है।केरल में गर्भवती हथिनी को अनानास में विस्फोटक रखकर खिला दिया गया, जिससे उसकी मौत हो गई। अर्थात उसकी हत्या कर दी गई। लोगों का कहना है कि खेतों को जंगली सूअर से बचाव के लिए इस तरह मारने की विधि अपनाई जाती है। क्या जंगली सूअर जीवित प्राणी नहीं हैं, जिन्हें इतने दर्दनाक तरीक़े से मारा जाता है? अगर हथिनी आबादी वाले क्षेत्र में आ गई थी, तो वन विभाग को पता कैसे न चला? वन विभाग की लापरवाही और आदमी की हिंसक प्रवृत्ति के कारण हथिनी को ऐसी मौत मिली। आख़िर आदमी इतना क्रूर और आतातयी क्यों हो जाता है बेज़ुबानों के साथ? चाहे वह निरीह पशु हो या कमज़ोर जोर इंसान।
सिर्फ़ इस हथिनी की बात नहीं है। ऐसे हज़ारों मामले हैं जब बेज़ुबान पशु पक्षियों के साथ क्रूरता हुई है और लगातार होती रहती है। हाथी-दाँत के कारोबारी बड़ी संख्या में हाथियों के साथ क्रूरता करते हैं। चमड़ा का व्यवसाय करने वाले उससे सम्बन्धित पशुओं को तड़पा-तड़पाकर मारते हैं।गाय, बैल, भैंस को मारकर खाया जाता है और निर्यात भी किया जाता है।सूअर की हत्या बेहद क्रूरता से की जाती है। बकरी और मुर्गा की तो गिनती ही नहीं कि हर रोज़ कितने मारे जाते हैं। कहीं झटका देकर काटते हैं तो कहीं ज़बह करते हैं।
महज़ अपने स्वाद के लिए इन पशुओं की हत्या की जाती है। कुछ मन्दिरों में बलि के नाम पर पशुओं की हत्या होती है, तो बक़रीद पर बकरियों को क्रूरता से मारा जाता है। होली में बकरी का माँस खाना जैसे परम्परा बन चुकी है।
मछली को पानी से निकालकर पटक-पटककर मारते हैं या ज़िन्दा ही उसका पकवान बनाते हैं।
मछली की हत्या कर उसे खाना कैसे शुभ हो सकता है?
यह सब प्रथा और परम्परा के नाम पर होता है और सदियों से हो रहा है।
किसी जानवर को मारकर कैसे कोई स्वाद ले सकता है? कैसे किसी जीव की हत्या कर जश्न या त्योहार मनाया जा सकता है?
अक्सर मैं सोचती हूँ कि जिन लोगों ने कुत्ता, बिल्ली, गाय, तोता या कोई भी पशु-पक्षी को पालतू बनाया है और उसे ख़ूब प्यार-दुलार देते हैं, वे अन्य जानवरों को कैसे मारकर खाते हैं? किसी जानवर को मारकर उसका मांस अपने पालतू जानवर को खिलाना क्या संवेदनहीनता नहीं? अन्य दूसरे जानवरों की पीड़ा उन्हें महसूस क्यों नहीं होती? अपने पसन्द और स्वाद के अनुसार जानवरों को पालना और मारना, यह कैसी सोच है, कैसी मानसिकता और परम्परा है?
गर्भिणी हथिनी को लेकर ख़ूब राजनीति हो रही है।
निःसन्देह यह मामला बेहद दर्दनाक और अफ़सोसनाक है।
परन्तु जैसे हथिनी को लेकर लोगों का आक्रोश है अन्य जानवरों के लिए क्यों नहीं? पशुओं के अधिकार को लेकर आवाज़ उठाने वाले संस्थान, सभी पशुओं के लिए क्यों नहीं आवाज़ उठाते हैं? सभी पशुओं-पक्षियों को मनुष्य की तरह ही जीने का अधिकार है।
जंगली जानवर हों या पालतू, सभी को उनकी प्रकृति के अनुरूप जीवन और सुरक्षा मिलनी चाहिए।
सभी जंगलों के चारों तरफ़ काफ़ी ऊँचा बाड़ बना दिया जाए, तो इन जंगली जानवरों से आघात की सम्भावना ही न हो। ये बेख़ौफ़ और आज़ाद अपने जंगल में अपनी प्रकृति के साथ रहेंगे। न जानवरों से किसी को भय न जानवरों को मनुष्य का ख़ौफ़।
अपने से कमज़ोर और ग़ैरों के प्रति दया और करुणा जबतक मनुष्य में नहीं जागेगी, तब तक ऐसे ही निरपराध जानवरों और मनुष्यों की हत्या होती रहेगी।
चाहे वह मॉब लिंचिंग में किसी आदमी की हत्या हो या किसी स्त्री को उसके स्त्री होने के कारण हत्या हो।
चाहे वह गर्भिणी हथिनी की हत्या हो या बकरी या मुर्गे की हत्या हो।
ऐसे
हर हत्या को गुनाह मानना होगा और हर गुनाहगार को दण्डित करना होगा।
- जेन्नी शबनम (5.6.2020)
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32 comments:
विचारणीय आलेख ----
सही कहा आपने
मार्मिक त्रासदी की प्रभावशाली पड़ताल
लोग कब समझेंगे
बहुत खूब
अति सुंदर सृजन । सच कहा जेन्नी जी कमजोर रूहों पर अत्याचार करना मानव का स्वभाव बन चुका है । उनकी ये दलील भी तो समझ नही आती एक रूह के लिए दुनियाँ अत्याचार के लिए उसके सामने खड़ी है दूसरी ओर जो वो प्राणी जिनके लिए लीगों की लार टपकती है । उन रूहों के साथ होती बर्बरता के लिए क्यों कोई नहीं बोलता ।
अब हर घटना को राजनीति के अंतर्गत रंग देने का काम किया जाने लगता है. जानवरों के मारे जाने की घटनाएँ देखें, तो ये कोई पहली घटना नहीं है.
बहरहाल, सामायिक विषय पर अच्छा लेख.
गर्भवती हथिनी को मारने वाला अपराधी एक ही नहीं है, हम सब उसमें भागीदार हैं । हम पशुओं के हक़ पर बड़ी निर्दयता के साथ डाका डालते रहे हैं ...इस बात की उपेक्षा करते हुये कि इस धरती पर उनका भी उतना ही हक़ है जितना कि हमारा ।
हमें जंगल चाहिये, हमें धरती चाहिये, हमें जलस्रोत चाहिये ...पशुओं के बारे में हमने कभी ईमानदारी से नहीं सोचा । वे कभी हमारे खेतों में नहीं आते अगर हमने उनके आशियानों पर डाके न डाले होते ।
बेज़ुबानों के लिए क़ानून बनाना ही पर्याप्त नहीं है ..ईमानदारी से उनपर अमल भी हो ...यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये ।
हथिनी की कष्टपूर्वक हुयी मौत की वेदना का अनुमान लगाने के लिए कुछ क्षणों के लिए स्वयं हथिनी बनने की कल्पना करनी होगी... गर्भवती हथिनी की ... भूख और प्यास तड़पती हथिनी की ...और उसके गर्भस्थ भ्रूण की ।
मैं निर्णायक होता तो हत्यारे को दो बार मरने की सज़ा ज़रूर देता ...उसी तरह भूख और प्यास से तड़पते हुये मरने की सज़ा ...ताकि एक नज़ीर बन सके ।
गर्भवती हथिनी को मारने वाला अपराधी एक ही नहीं है, हम सब उसमें भागीदार हैं । हम पशुओं के हक़ पर बड़ी निर्दयता के साथ डाका डालते रहे हैं ...इस बात की उपेक्षा करते हुये कि इस धरती पर उनका भी उतना ही हक़ है जितना कि हमारा ।
हमें जंगल चाहिये, हमें धरती चाहिये, हमें जलस्रोत चाहिये ...पशुओं के बारे में हमने कभी ईमानदारी से नहीं सोचा । वे कभी हमारे खेतों में नहीं आते अगर हमने उनके आशियानों पर डाके न डाले होते ।
बेज़ुबानों के लिए क़ानून बनाना ही पर्याप्त नहीं है ..ईमानदारी से उनपर अमल भी हो ...यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये ।
हथिनी की कष्टपूर्वक हुयी मौत की वेदना का अनुमान लगाने के लिए कुछ क्षणों के लिए स्वयं हथिनी बनने की कल्पना करनी होगी... गर्भवती हथिनी की ... भूख और प्यास तड़पती हथिनी की ...और उसके गर्भस्थ भ्रूण की ।
मैं निर्णायक होता तो हत्यारे को दो बार मरने की सज़ा ज़रूर देता ...उसी तरह भूख और प्यास से तड़पते हुये मरने की सज़ा ...ताकि एक नज़ीर बन सके ।
गर्भवती हथिनी को मारने वाला अपराधी एक ही नहीं है, हम सब उसमें भागीदार हैं । हम पशुओं के हक़ पर बड़ी निर्दयता के साथ डाका डालते रहे हैं ...इस बात की उपेक्षा करते हुये कि इस धरती पर उनका भी उतना ही हक़ है जितना कि हमारा ।
हमें जंगल चाहिये, हमें धरती चाहिये, हमें जलस्रोत चाहिये ...पशुओं के बारे में हमने कभी ईमानदारी से नहीं सोचा । वे कभी हमारे खेतों में नहीं आते अगर हमने उनके आशियानों पर डाके न डाले होते ।
बेज़ुबानों के लिए क़ानून बनाना ही पर्याप्त नहीं है ..ईमानदारी से उनपर अमल भी हो ...यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये ।
हथिनी की कष्टपूर्वक हुयी मौत की वेदना का अनुमान लगाने के लिए कुछ क्षणों के लिए स्वयं हथिनी बनने की कल्पना करनी होगी... गर्भवती हथिनी की ... भूख और प्यास तड़पती हथिनी की ...और उसके गर्भस्थ भ्रूण की ।
मैं निर्णायक होता तो हत्यारे को दो बार मरने की सज़ा ज़रूर देता ...उसी तरह भूख और प्यास से तड़पते हुये मरने की सज़ा ...ताकि एक नज़ीर बन सके ।
गर्भवती हथिनी को मारने वाला अपराधी एक ही नहीं है, हम सब उसमें भागीदार हैं । हम पशुओं के हक़ पर बड़ी निर्दयता के साथ डाका डालते रहे हैं ...इस बात की उपेक्षा करते हुये कि इस धरती पर उनका भी उतना ही हक़ है जितना कि हमारा ।
हमें जंगल चाहिये, हमें धरती चाहिये, हमें जलस्रोत चाहिये ...पशुओं के बारे में हमने कभी ईमानदारी से नहीं सोचा । वे कभी हमारे खेतों में नहीं आते अगर हमने उनके आशियानों पर डाके न डाले होते ।
बेज़ुबानों के लिए क़ानून बनाना ही पर्याप्त नहीं है ..ईमानदारी से उनपर अमल भी हो ...यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये ।
हथिनी की कष्टपूर्वक हुयी मौत की वेदना का अनुमान लगाने के लिए कुछ क्षणों के लिए स्वयं हथिनी बनने की कल्पना करनी होगी... गर्भवती हथिनी की ... भूख और प्यास तड़पती हथिनी की ...और उसके गर्भस्थ भ्रूण की ।
मैं निर्णायक होता तो हत्यारे को दो बार मरने की सज़ा ज़रूर देता ...उसी तरह भूख और प्यास से तड़पते हुये मरने की सज़ा ...ताकि एक नज़ीर बन सके ।
गर्भवती हथिनी को मारने वाला अपराधी एक ही नहीं है, हम सब उसमें भागीदार हैं । हम पशुओं के हक़ पर बड़ी निर्दयता के साथ डाका डालते रहे हैं ...इस बात की उपेक्षा करते हुये कि इस धरती पर उनका भी उतना ही हक़ है जितना कि हमारा ।
हमें जंगल चाहिये, हमें धरती चाहिये, हमें जलस्रोत चाहिये ...पशुओं के बारे में हमने कभी ईमानदारी से नहीं सोचा । वे कभी हमारे खेतों में नहीं आते अगर हमने उनके आशियानों पर डाके न डाले होते ।
बेज़ुबानों के लिए क़ानून बनाना ही पर्याप्त नहीं है ..ईमानदारी से उनपर अमल भी हो ...यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये ।
हथिनी की कष्टपूर्वक हुयी मौत की वेदना का अनुमान लगाने के लिए कुछ क्षणों के लिए स्वयं हथिनी बनने की कल्पना करनी होगी... गर्भवती हथिनी की ... भूख और प्यास तड़पती हथिनी की ...और उसके गर्भस्थ भ्रूण की ।
मैं निर्णायक होता तो हत्यारे को दो बार मरने की सज़ा ज़रूर देता ...उसी तरह भूख और प्यास से तड़पते हुये मरने की सज़ा ...ताकि एक नज़ीर बन सके ।
गर्भवती हथिनी को मारने वाला अपराधी एक ही नहीं है, हम सब उसमें भागीदार हैं । हम पशुओं के हक़ पर बड़ी निर्दयता के साथ डाका डालते रहे हैं ...इस बात की उपेक्षा करते हुये कि इस धरती पर उनका भी उतना ही हक़ है जितना कि हमारा ।
हमें जंगल चाहिये, हमें धरती चाहिये, हमें जलस्रोत चाहिये ...पशुओं के बारे में हमने कभी ईमानदारी से नहीं सोचा । वे कभी हमारे खेतों में नहीं आते अगर हमने उनके आशियानों पर डाके न डाले होते ।
बेज़ुबानों के लिए क़ानून बनाना ही पर्याप्त नहीं है ..ईमानदारी से उनपर अमल भी हो ...यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये ।
हथिनी की कष्टपूर्वक हुयी मौत की वेदना का अनुमान लगाने के लिए कुछ क्षणों के लिए स्वयं हथिनी बनने की कल्पना करनी होगी... गर्भवती हथिनी की ... भूख और प्यास तड़पती हथिनी की ...और उसके गर्भस्थ भ्रूण की ।
मैं निर्णायक होता तो हत्यारे को दो बार मरने की सज़ा ज़रूर देता ...उसी तरह भूख और प्यास से तड़पते हुये मरने की सज़ा ...ताकि एक नज़ीर बन सके ।
गर्भवती हथिनी को मारने वाला अपराधी एक ही नहीं है, हम सब उसमें भागीदार हैं । हम पशुओं के हक़ पर बड़ी निर्दयता के साथ डाका डालते रहे हैं ...इस बात की उपेक्षा करते हुये कि इस धरती पर उनका भी उतना ही हक़ है जितना कि हमारा ।
हमें जंगल चाहिये, हमें धरती चाहिये, हमें जलस्रोत चाहिये ...पशुओं के बारे में हमने कभी ईमानदारी से नहीं सोचा । वे कभी हमारे खेतों में नहीं आते अगर हमने उनके आशियानों पर डाके न डाले होते ।
बेज़ुबानों के लिए क़ानून बनाना ही पर्याप्त नहीं है ..ईमानदारी से उनपर अमल भी हो ...यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये ।
हथिनी की कष्टपूर्वक हुयी मौत की वेदना का अनुमान लगाने के लिए कुछ क्षणों के लिए स्वयं हथिनी बनने की कल्पना करनी होगी... गर्भवती हथिनी की ... भूख और प्यास तड़पती हथिनी की ...और उसके गर्भस्थ भ्रूण की ।
मैं निर्णायक होता तो हत्यारे को दो बार मरने की सज़ा ज़रूर देता ...उसी तरह भूख और प्यास से तड़पते हुये मरने की सज़ा ...ताकि एक नज़ीर बन सके ।
बिल्कुल सही लिखा है आपने, जान तो जान ही है फिर चाहे हाथी की हो या किसी भी अन्य पशु पक्षी की इन्हें मार कर खाने का अधिकार हमें कभी था ही नही मानव शरीर सिर्फ शाकाहारी वस्तुओं के हिसाब से बना है। वो कहते है ना "जैसा खाओ अन्न वैसा बने मन" कौन जाने शायद ऐसी क्रूर परवर्ती का ही यह परिणाम हो।
अच्छा और सम्वेदनशील आलेख. बधाई!
बेज़ुबान जानवर के साथ क्रूरता का व्यवहार अमानवीय है। प्रकृति के विरुद्ध है लापरवाही हो या जानबूझकर ऐसा करना कितना दुखद है।
आप ने सही लिखा है संवेदनशील हदय ही इस पीड़ा को अनुंभव कर सकता है। बहुत अच्छा लिखा है आपने.
सोच कर ही मन विचलित हो जाता है कि इस वीभत्स घटना ने उस गर्भवती को कितनी पीड़ा पहुँचाई होगी,उस अजन्में शिशु का क्या हाल हुआ होगा.मनुष्य अपनी क्रूरता का एक परिणाम तो भोग ही रहा है ,मनुष्यता का और कितना अधःपतन होगा ,और भविष्य कैसे-कैसे दंडित कर सकता है,इस पर सचैत होना ही पड़ेगा.
,
मन विचलित हो जाता है सभ्य कहे जाने वाले मानव की ऐसे घृणित कृत्य को जान-सुन कर...| आपके इस आलेख की सार्थकता निश्चय ही आज के समाज में बहुत है | सोचनीय विषय पर कलम चलाने के लिए मेरी बधाई...|
इनसे मिलिए Inse miliye (किशोर श्रीवास्तव जी)
07:41 (10 hours ago)
to me
मेरी प्रतिक्रिया:
आपने इस अमानवीय कृत्य पर बहुत ज़रूरी प्रश्न उठाये हैं। पर जहां मानव ही अपने क्षणिक लाभ, सनक के चलते खुद एक दूसरे का खून बहाने पर आमादा रहता है तो पशु पक्षियों से भी उसे क्यों हमदर्दी हो। बेशक हमें किसी को पीड़ा न पहुंचे इस पर ध्यान देना चाहिए। जान तो सभी की ही कीमती है और दर्द भी सबको एक जैसा ही होता होगा।
सच्चाई को दर्शाती हुई ,अहम पोस्ट ,एक बात सही है ,मनुष्य अपनी पहचान, परिभाषा बदलते जा रहा है
Blogger संगीता पुरी said...
विचारणीय आलेख ----
June 6, 2020 at 7:41 PM Delete
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धन्यवाद संगीता जी.
Blogger kirti dubey said...
सही कहा आपने
June 6, 2020 at 7:43 PM Delete
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शुक्रिया कीर्ति जी.
Blogger Jyoti khare said...
मार्मिक त्रासदी की प्रभावशाली पड़ताल
लोग कब समझेंगे
बहुत खूब
June 6, 2020 at 9:39 PM Delete
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आभार ज्योति खरे जी.
Blogger Harash Mahajan said...
अति सुंदर सृजन । सच कहा जेन्नी जी कमजोर रूहों पर अत्याचार करना मानव का स्वभाव बन चुका है । उनकी ये दलील भी तो समझ नही आती एक रूह के लिए दुनियाँ अत्याचार के लिए उसके सामने खड़ी है दूसरी ओर जो वो प्राणी जिनके लिए लीगों की लार टपकती है । उन रूहों के साथ होती बर्बरता के लिए क्यों कोई नहीं बोलता ।
June 6, 2020 at 10:01 PM Delete
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मैं भी यही सोचती हूँ कि आखिर जो कमजोर हैं बोल नहीं सकते उसे मार कर खा लेना है, यह कैसी क्षुधा है जो दूसरे को पीड़ा पहुँचा कर तृप्त होती है. कुछ ख़ास जानवरों को मारना अपराध है लेकिन सभी का क्यों नहीं? मेरे विचार से सहमत होने के लिए शुक्रिया हर्ष महाजन जी.
Blogger कुमारेन्द्र किशोरीमहेन्द्र said...
अब हर घटना को राजनीति के अंतर्गत रंग देने का काम किया जाने लगता है. जानवरों के मारे जाने की घटनाएँ देखें, तो ये कोई पहली घटना नहीं है.
बहरहाल, सामायिक विषय पर अच्छा लेख.
June 6, 2020 at 11:01 PM Delete
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राजनीति का रंग देना तो बहुत गलत है. ऐसी घटना बार बार हो रही है, यही तो सोचने का विषय है कि मानव इतना दानव क्यों बनता जा रहा है. धन्यवाद कुमारेंद्र जी.
Blogger बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...
गर्भवती हथिनी को मारने वाला अपराधी एक ही नहीं है, हम सब उसमें भागीदार हैं । हम पशुओं के हक़ पर बड़ी निर्दयता के साथ डाका डालते रहे हैं ...इस बात की उपेक्षा करते हुये कि इस धरती पर उनका भी उतना ही हक़ है जितना कि हमारा ।
हमें जंगल चाहिये, हमें धरती चाहिये, हमें जलस्रोत चाहिये ...पशुओं के बारे में हमने कभी ईमानदारी से नहीं सोचा । वे कभी हमारे खेतों में नहीं आते अगर हमने उनके आशियानों पर डाके न डाले होते ।
बेज़ुबानों के लिए क़ानून बनाना ही पर्याप्त नहीं है ..ईमानदारी से उनपर अमल भी हो ...यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये ।
हथिनी की कष्टपूर्वक हुयी मौत की वेदना का अनुमान लगाने के लिए कुछ क्षणों के लिए स्वयं हथिनी बनने की कल्पना करनी होगी... गर्भवती हथिनी की ... भूख और प्यास तड़पती हथिनी की ...और उसके गर्भस्थ भ्रूण की ।
मैं निर्णायक होता तो हत्यारे को दो बार मरने की सज़ा ज़रूर देता ...उसी तरह भूख और प्यास से तड़पते हुये मरने की सज़ा ...ताकि एक नज़ीर बन सके ।
June 6, 2020 at 11:12 PM Delete
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कौशलेन्द्र जी, बिल्कुल सही कहा आपने कि उस हथिनी की पीड़ा को खुद पर महसूस करना होगा. निश्चित ही ऐसे अपराधियों को वैसी ही सजा मिलनी चाहिए जैसी वे दूसरों को देते हैं. परन्तु हमारा कानून और हमारी सोच हर जानवर के लिए एक-सी नहीं है, यही तो दुःख का विषय है.
आपकी टिप्पणी प्रकाशित नहीं हो रही थी, मालूम नहीं क्या गड़बड़ हुआ. आपने मेल किया अन्यथा मुझे पता भी नहीं चलता इस समस्या का. काफी दिनों से हमारा समपर्क नहीं हुआ. आपने बार बार सात बार टिप्पणी पोस्ट की, तहेदिल से आपका आभार.
Blogger Pallavi saxena said...
बिल्कुल सही लिखा है आपने, जान तो जान ही है फिर चाहे हाथी की हो या किसी भी अन्य पशु पक्षी की इन्हें मार कर खाने का अधिकार हमें कभी था ही नही मानव शरीर सिर्फ शाकाहारी वस्तुओं के हिसाब से बना है। वो कहते है ना "जैसा खाओ अन्न वैसा बने मन" कौन जाने शायद ऐसी क्रूर परवर्ती का ही यह परिणाम हो।
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सच है कि मानव का जन्म शाकाहार के लिए हुआ है. लेकिन स्वाद ऐसी चीज़ है कि हम जानवरों की पीड़ा समझते नहीं हैं. मुझे तो हमेशा ही लगता है कि ऐसा भोजन करने का ही परिणाम है कि मानव क्रूर होता जा रहा है. यूँ शाकाहारी भी क्रूर होते हैं, परन्तु अन्य कई परिस्थितियाँ होती हैं ऐसा बनाने में. पर दूसरों का दर्द तो महसूस होना चाहिए न.
Blogger डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल said...
अच्छा और सम्वेदनशील आलेख. बधाई!
June 7, 2020 at 1:12 PM Delete
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धन्यवाद दुर्गाप्रसाद जी.
Blogger Sudershan Ratnakar said...
बेज़ुबान जानवर के साथ क्रूरता का व्यवहार अमानवीय है। प्रकृति के विरुद्ध है लापरवाही हो या जानबूझकर ऐसा करना कितना दुखद है।
आप ने सही लिखा है संवेदनशील हदय ही इस पीड़ा को अनुंभव कर सकता है। बहुत अच्छा लिखा है आपने.
June 7, 2020 at 7:30 PM Delete
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आभार रत्नाकर जी. मानव दूसरे की संवेदना न समझेगा तो कौन समझेगा? कुछ जानवरों से इतना प्रेम, और कुछ के लिए क्यों नहीं? यह प्रश्न मुझे अक्सर बेचैन कर देता है.
Blogger प्रतिभा सक्सेना said...
सोच कर ही मन विचलित हो जाता है कि इस वीभत्स घटना ने उस गर्भवती को कितनी पीड़ा पहुँचाई होगी,उस अजन्में शिशु का क्या हाल हुआ होगा.मनुष्य अपनी क्रूरता का एक परिणाम तो भोग ही रहा है ,मनुष्यता का और कितना अधःपतन होगा ,और भविष्य कैसे-कैसे दंडित कर सकता है,इस पर सचैत होना ही पड़ेगा.
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June 9, 2020 at 6:35 AM Delete
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सही कहा प्रतिभा जी. मनुष्य के अधोपतन का ही परिणाम है कि समाज और प्रकृति दोनों प्रभावित है. जाने कहाँ पहुँचेंगे हम? in सब से मन द्रवित हो जाता है.
Blogger प्रियंका गुप्ता said...
मन विचलित हो जाता है सभ्य कहे जाने वाले मानव की ऐसे घृणित कृत्य को जान-सुन कर...| आपके इस आलेख की सार्थकता निश्चय ही आज के समाज में बहुत है | सोचनीय विषय पर कलम चलाने के लिए मेरी बधाई...|
June 11, 2020 at 12:03 AM Delete
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मेरी सोच को आपने समझा, धन्यवाद प्रियंका जी.
Blogger डॉ. जेन्नी शबनम said...
इनसे मिलिए Inse miliye (किशोर श्रीवास्तव जी)
07:41 (10 hours ago)
to me
मेरी प्रतिक्रिया:
आपने इस अमानवीय कृत्य पर बहुत ज़रूरी प्रश्न उठाये हैं। पर जहां मानव ही अपने क्षणिक लाभ, सनक के चलते खुद एक दूसरे का खून बहाने पर आमादा रहता है तो पशु पक्षियों से भी उसे क्यों हमदर्दी हो। बेशक हमें किसी को पीड़ा न पहुंचे इस पर ध्यान देना चाहिए। जान तो सभी की ही कीमती है और दर्द भी सबको एक जैसा ही होता होगा।
June 11, 2020 at 5:48 PM Delete
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हाँ किशोर जी. यही तो मैं सोचती हूँ, हर जानवर को चोट या पीड़ा हम मनुष्यों सी ही होती है. फिर मनुष्य इस पर सोचता विचारता क्यों नहीं. समर्थन के लिए धन्यवाद.
Blogger Jyoti Singh said...
सच्चाई को दर्शाती हुई ,अहम पोस्ट ,एक बात सही है ,मनुष्य अपनी पहचान, परिभाषा बदलते जा रहा है
June 13, 2020 at 10:53 PM Delete
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सहमति के लिए धन्यवाद ज्योति जी.
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