Friday, June 5, 2020

76. बेज़ुबानों की हत्या

महात्मा गाँधी ने कहा था कि व्यक्ति अगर हिंसक है तो वह पशु के समान है मुझे यह महसूस होने लगा है कि मानव पशु बन चुका है और पशु मानव से ज्यादा सभ्य हैं अगर पशुओं को नुकसान न पहुँचाया जाए, तो वे कुछ नहीं करते हैं पशुओं में न लोभ है, न द्वेष, न ईर्ष्या, न प्रतिकार का भाव, न मान सम्मान अपमान की भावना प्रकृति के साथ प्रकृति के बीच सहज जीवन ही पशु की मूल प्रवृति है परन्तु मनुष्य अपनी प्रकृति के बिल्कुल विपरीत हो चुका है मनुष्य की मनुष्यता ख़त्म हो गई है मनुष्य में क्रूरता, पाश्विकता, अधर्म, क्रोध, आक्रोश, निर्दयता का गुण भरता जा रहा है वह पतित, दुराग्रही, पाखंडी, असहिष्णु, पाषाण हृदयी हो गया है। वह हिंसक ही नहीं बेहद हिंसक बन चुका है।  

आये दिन कोई न कोई घटना ऐसी हो जाती है कि मन व्याकुल हो जाता है केरल में गर्भवती हथिनी को अनानास में विस्फोटक रखकर खिला दिया गया, जिससे उसकी मौत हो गई अर्थात उसकी हत्या कर दी गई लोगों का कहना है कि खेतों को जंगली सूअर से बचाव के लिए इस तरह मारने की विधि अपनायी जाती है क्या जंगली सूअर जीवित प्राणी नहीं हैं, जिन्हें इतने दर्दनाक तरीके से मारा जाता है? अगर हथिनी आबादी वाले क्षेत्र में आ गई थी, तो वन विभाग को पता कैसे न चला? वन विभाग की लापरवाही और आदमी की हिंसक प्रवृति के कारण हथिनी को ऐसी मौत मिली आखिर आदमी इतना क्रूर और आतातयी क्यों हो जाता है बेजुबानों के साथ? चाहे वह निरीह पशु हो या कमजोर इंसान।  

सिर्फ इस हथिनी की बात नहीं है ऐसे हज़ारों मामले हैं जब बेज़ुबान पशु पक्षियों के साथ क्रूरता हुई है और लगातार होती रहती है हाथी-दाँत के कारोबारी बड़ी संख्या में हाथियों के साथ क्रूरता करते हैं चमड़ा का व्यवसाय करने वाले उससे संबंधित पशुओं को तड़पा-तड़पा कर मारते हैं गाय बैल भैंस को मार कर खाया भी जाता है और निर्यात भी किया जाता है सूअर की हत्या बेहद क्रूरता से की जाती है बकरी और मुर्गा की तो गिनती ही नहीं कि हर रोज़ कितने मारे जाते हैं कहीं झटका देकर काटते हैं तो कहीं ज़िबह करते हैं
सिर्फ अपने स्वाद के लिए इन पशुओं की हत्या की जाती है कहीं कुछ मंदिरों में बलि के नाम पर जानवरों की हत्या होती है, तो बक़रीद पर बकरियों को निर्मम तरीके से मारा जाता है होली में बकरी का माँस खाना जैसे परम्परा ही बन चुकी है। मछली को पानी से निकाल कर पटक-पटक कर मारते हैं या फिर ज़िंदा ही उसका पकवान बनाते हैं। मछली की हत्या कर उसे खाना कैसे शुभ हो सकता है? यह सब प्रथा और परम्परा के नाम पर होता है और सदियों से हो ही रहा है। किसी जानवर को मारकर कैसे कोई स्वाद ले सकता है? कैसे किसी जीव की हत्या कर जश्न या त्योहार मनाया जा सकता है?

अकसर मैं सोचती हूँ कि जिन लोगों ने कुत्ता, बिल्ली, गाय, तोता या कोई भी पशु-पक्षी को पालतू बनाया है और उसे खूब प्यार दुलार देते हैं, वे अन्य जानवरों को कैसे मार कर खाते हैं? अन्य दूसरे जानवरों की पीड़ा उन्हें महसूस क्यों नहीं होती? अपने पसंद और स्वाद के अनुसार जानवरों को पालना और मारना, यह कैसी सोच है, कैसी मानसिकता और परम्परा है? 

गर्भिणी हथिनी को लेकर खूब राजनीति हो रही है। निःसंदेह यह मामला बेहद दर्दनाक और अफ़सोसनाक है। परन्तु जैसे हथिनी को लेकर लोगों का आक्रोश है अन्य जानवरों के लिए क्यों नहीं? पशुओं के अधिकार को लेकर आवाज़ उठाने वाले संस्थान सभी पशुओं के लिए क्यों नहीं आवाज़ उठाते हैं? सभी पशुओं और पक्षियों को मनुष्य की तरह ही जीने का अधिकार है। जंगली जानवर हों या पालतू, सभी को उनकी प्रकृति के अनुरूप जीवन और सुरक्षा मिलनी चाहिए। सभी जंगलों के चारों तरफ काफी ऊँचा बाड़ बना दिया जाए तो इन जंगली जानवरों से आघात की संभावना ही न हो। ये बेख़ौफ़ और आज़ाद अपने जंगल में अपनी प्रकृति के साथ रहेंगे। न जानवरों से किसी को भय न जानवरों को मनुष्य का खौफ़।  

अपने से कमजोर और गैरों के प्रति दया और करुणा जबतक मनुष्य में नहीं जागेगी तब तक ऐसे ही निरपराध जानवरों और मनुष्यों की हत्या होती रहेगी। चाहे वह मॉब लिंचिंग में किसी आदमी की हत्या हो या किसी स्त्री को उसके स्त्री होने के कारण हत्या हो। चाहे वह गर्भिणी हथिनी की हत्या हो या फिर बकरी या मुर्गे का हो। हर हत्या को गुनाह मानना होगा, हर गुनाहगार को दण्डित करना होगा।   

- जेन्नी शबनम (5. 6. 2020) 
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32 comments:

संगीता पुरी said...

विचारणीय आलेख ----

kirti dubey said...

सही कहा आपने

Jyoti khare said...

मार्मिक त्रासदी की प्रभावशाली पड़ताल
लोग कब समझेंगे
बहुत खूब

Harash Mahajan said...

अति सुंदर सृजन । सच कहा जेन्नी जी कमजोर रूहों पर अत्याचार करना मानव का स्वभाव बन चुका है । उनकी ये दलील भी तो समझ नही आती एक रूह के लिए दुनियाँ अत्याचार के लिए उसके सामने खड़ी है दूसरी ओर जो वो प्राणी जिनके लिए लीगों की लार टपकती है । उन रूहों के साथ होती बर्बरता के लिए क्यों कोई नहीं बोलता ।

कुमारेन्द्र किशोरीमहेन्द्र said...

अब हर घटना को राजनीति के अंतर्गत रंग देने का काम किया जाने लगता है. जानवरों के मारे जाने की घटनाएँ देखें, तो ये कोई पहली घटना नहीं है.
बहरहाल, सामायिक विषय पर अच्छा लेख.

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

गर्भवती हथिनी को मारने वाला अपराधी एक ही नहीं है, हम सब उसमें भागीदार हैं । हम पशुओं के हक़ पर बड़ी निर्दयता के साथ डाका डालते रहे हैं ...इस बात की उपेक्षा करते हुये कि इस धरती पर उनका भी उतना ही हक़ है जितना कि हमारा ।

हमें जंगल चाहिये, हमें धरती चाहिये, हमें जलस्रोत चाहिये ...पशुओं के बारे में हमने कभी ईमानदारी से नहीं सोचा । वे कभी हमारे खेतों में नहीं आते अगर हमने उनके आशियानों पर डाके न डाले होते ।

बेज़ुबानों के लिए क़ानून बनाना ही पर्याप्त नहीं है ..ईमानदारी से उनपर अमल भी हो ...यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये ।

हथिनी की कष्टपूर्वक हुयी मौत की वेदना का अनुमान लगाने के लिए कुछ क्षणों के लिए स्वयं हथिनी बनने की कल्पना करनी होगी... गर्भवती हथिनी की ... भूख और प्यास तड़पती हथिनी की ...और उसके गर्भस्थ भ्रूण की ।

मैं निर्णायक होता तो हत्यारे को दो बार मरने की सज़ा ज़रूर देता ...उसी तरह भूख और प्यास से तड़पते हुये मरने की सज़ा ...ताकि एक नज़ीर बन सके ।

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

गर्भवती हथिनी को मारने वाला अपराधी एक ही नहीं है, हम सब उसमें भागीदार हैं । हम पशुओं के हक़ पर बड़ी निर्दयता के साथ डाका डालते रहे हैं ...इस बात की उपेक्षा करते हुये कि इस धरती पर उनका भी उतना ही हक़ है जितना कि हमारा ।

हमें जंगल चाहिये, हमें धरती चाहिये, हमें जलस्रोत चाहिये ...पशुओं के बारे में हमने कभी ईमानदारी से नहीं सोचा । वे कभी हमारे खेतों में नहीं आते अगर हमने उनके आशियानों पर डाके न डाले होते ।

बेज़ुबानों के लिए क़ानून बनाना ही पर्याप्त नहीं है ..ईमानदारी से उनपर अमल भी हो ...यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये ।

हथिनी की कष्टपूर्वक हुयी मौत की वेदना का अनुमान लगाने के लिए कुछ क्षणों के लिए स्वयं हथिनी बनने की कल्पना करनी होगी... गर्भवती हथिनी की ... भूख और प्यास तड़पती हथिनी की ...और उसके गर्भस्थ भ्रूण की ।

मैं निर्णायक होता तो हत्यारे को दो बार मरने की सज़ा ज़रूर देता ...उसी तरह भूख और प्यास से तड़पते हुये मरने की सज़ा ...ताकि एक नज़ीर बन सके ।

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

गर्भवती हथिनी को मारने वाला अपराधी एक ही नहीं है, हम सब उसमें भागीदार हैं । हम पशुओं के हक़ पर बड़ी निर्दयता के साथ डाका डालते रहे हैं ...इस बात की उपेक्षा करते हुये कि इस धरती पर उनका भी उतना ही हक़ है जितना कि हमारा ।

हमें जंगल चाहिये, हमें धरती चाहिये, हमें जलस्रोत चाहिये ...पशुओं के बारे में हमने कभी ईमानदारी से नहीं सोचा । वे कभी हमारे खेतों में नहीं आते अगर हमने उनके आशियानों पर डाके न डाले होते ।

बेज़ुबानों के लिए क़ानून बनाना ही पर्याप्त नहीं है ..ईमानदारी से उनपर अमल भी हो ...यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये ।

हथिनी की कष्टपूर्वक हुयी मौत की वेदना का अनुमान लगाने के लिए कुछ क्षणों के लिए स्वयं हथिनी बनने की कल्पना करनी होगी... गर्भवती हथिनी की ... भूख और प्यास तड़पती हथिनी की ...और उसके गर्भस्थ भ्रूण की ।

मैं निर्णायक होता तो हत्यारे को दो बार मरने की सज़ा ज़रूर देता ...उसी तरह भूख और प्यास से तड़पते हुये मरने की सज़ा ...ताकि एक नज़ीर बन सके ।

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

गर्भवती हथिनी को मारने वाला अपराधी एक ही नहीं है, हम सब उसमें भागीदार हैं । हम पशुओं के हक़ पर बड़ी निर्दयता के साथ डाका डालते रहे हैं ...इस बात की उपेक्षा करते हुये कि इस धरती पर उनका भी उतना ही हक़ है जितना कि हमारा ।

हमें जंगल चाहिये, हमें धरती चाहिये, हमें जलस्रोत चाहिये ...पशुओं के बारे में हमने कभी ईमानदारी से नहीं सोचा । वे कभी हमारे खेतों में नहीं आते अगर हमने उनके आशियानों पर डाके न डाले होते ।

बेज़ुबानों के लिए क़ानून बनाना ही पर्याप्त नहीं है ..ईमानदारी से उनपर अमल भी हो ...यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये ।

हथिनी की कष्टपूर्वक हुयी मौत की वेदना का अनुमान लगाने के लिए कुछ क्षणों के लिए स्वयं हथिनी बनने की कल्पना करनी होगी... गर्भवती हथिनी की ... भूख और प्यास तड़पती हथिनी की ...और उसके गर्भस्थ भ्रूण की ।

मैं निर्णायक होता तो हत्यारे को दो बार मरने की सज़ा ज़रूर देता ...उसी तरह भूख और प्यास से तड़पते हुये मरने की सज़ा ...ताकि एक नज़ीर बन सके ।

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

गर्भवती हथिनी को मारने वाला अपराधी एक ही नहीं है, हम सब उसमें भागीदार हैं । हम पशुओं के हक़ पर बड़ी निर्दयता के साथ डाका डालते रहे हैं ...इस बात की उपेक्षा करते हुये कि इस धरती पर उनका भी उतना ही हक़ है जितना कि हमारा ।

हमें जंगल चाहिये, हमें धरती चाहिये, हमें जलस्रोत चाहिये ...पशुओं के बारे में हमने कभी ईमानदारी से नहीं सोचा । वे कभी हमारे खेतों में नहीं आते अगर हमने उनके आशियानों पर डाके न डाले होते ।

बेज़ुबानों के लिए क़ानून बनाना ही पर्याप्त नहीं है ..ईमानदारी से उनपर अमल भी हो ...यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये ।

हथिनी की कष्टपूर्वक हुयी मौत की वेदना का अनुमान लगाने के लिए कुछ क्षणों के लिए स्वयं हथिनी बनने की कल्पना करनी होगी... गर्भवती हथिनी की ... भूख और प्यास तड़पती हथिनी की ...और उसके गर्भस्थ भ्रूण की ।

मैं निर्णायक होता तो हत्यारे को दो बार मरने की सज़ा ज़रूर देता ...उसी तरह भूख और प्यास से तड़पते हुये मरने की सज़ा ...ताकि एक नज़ीर बन सके ।

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

गर्भवती हथिनी को मारने वाला अपराधी एक ही नहीं है, हम सब उसमें भागीदार हैं । हम पशुओं के हक़ पर बड़ी निर्दयता के साथ डाका डालते रहे हैं ...इस बात की उपेक्षा करते हुये कि इस धरती पर उनका भी उतना ही हक़ है जितना कि हमारा ।

हमें जंगल चाहिये, हमें धरती चाहिये, हमें जलस्रोत चाहिये ...पशुओं के बारे में हमने कभी ईमानदारी से नहीं सोचा । वे कभी हमारे खेतों में नहीं आते अगर हमने उनके आशियानों पर डाके न डाले होते ।

बेज़ुबानों के लिए क़ानून बनाना ही पर्याप्त नहीं है ..ईमानदारी से उनपर अमल भी हो ...यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये ।

हथिनी की कष्टपूर्वक हुयी मौत की वेदना का अनुमान लगाने के लिए कुछ क्षणों के लिए स्वयं हथिनी बनने की कल्पना करनी होगी... गर्भवती हथिनी की ... भूख और प्यास तड़पती हथिनी की ...और उसके गर्भस्थ भ्रूण की ।

मैं निर्णायक होता तो हत्यारे को दो बार मरने की सज़ा ज़रूर देता ...उसी तरह भूख और प्यास से तड़पते हुये मरने की सज़ा ...ताकि एक नज़ीर बन सके ।

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

गर्भवती हथिनी को मारने वाला अपराधी एक ही नहीं है, हम सब उसमें भागीदार हैं । हम पशुओं के हक़ पर बड़ी निर्दयता के साथ डाका डालते रहे हैं ...इस बात की उपेक्षा करते हुये कि इस धरती पर उनका भी उतना ही हक़ है जितना कि हमारा ।

हमें जंगल चाहिये, हमें धरती चाहिये, हमें जलस्रोत चाहिये ...पशुओं के बारे में हमने कभी ईमानदारी से नहीं सोचा । वे कभी हमारे खेतों में नहीं आते अगर हमने उनके आशियानों पर डाके न डाले होते ।

बेज़ुबानों के लिए क़ानून बनाना ही पर्याप्त नहीं है ..ईमानदारी से उनपर अमल भी हो ...यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये ।

हथिनी की कष्टपूर्वक हुयी मौत की वेदना का अनुमान लगाने के लिए कुछ क्षणों के लिए स्वयं हथिनी बनने की कल्पना करनी होगी... गर्भवती हथिनी की ... भूख और प्यास तड़पती हथिनी की ...और उसके गर्भस्थ भ्रूण की ।

मैं निर्णायक होता तो हत्यारे को दो बार मरने की सज़ा ज़रूर देता ...उसी तरह भूख और प्यास से तड़पते हुये मरने की सज़ा ...ताकि एक नज़ीर बन सके ।

Pallavi saxena said...

बिल्कुल सही लिखा है आपने, जान तो जान ही है फिर चाहे हाथी की हो या किसी भी अन्य पशु पक्षी की इन्हें मार कर खाने का अधिकार हमें कभी था ही नही मानव शरीर सिर्फ शाकाहारी वस्तुओं के हिसाब से बना है। वो कहते है ना "जैसा खाओ अन्न वैसा बने मन" कौन जाने शायद ऐसी क्रूर परवर्ती का ही यह परिणाम हो।

डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल said...

अच्छा और सम्वेदनशील आलेख. बधाई!

Sudershan Ratnakar said...

बेज़ुबान जानवर के साथ क्रूरता का व्यवहार अमानवीय है। प्रकृति के विरुद्ध है लापरवाही हो या जानबूझकर ऐसा करना कितना दुखद है।
आप ने सही लिखा है संवेदनशील हदय ही इस पीड़ा को अनुंभव कर सकता है। बहुत अच्छा लिखा है आपने.

प्रतिभा सक्सेना said...

सोच कर ही मन विचलित हो जाता है कि इस वीभत्स घटना ने उस गर्भवती को कितनी पीड़ा पहुँचाई होगी,उस अजन्में शिशु का क्या हाल हुआ होगा.मनुष्य अपनी क्रूरता का एक परिणाम तो भोग ही रहा है ,मनुष्यता का और कितना अधःपतन होगा ,और भविष्य कैसे-कैसे दंडित कर सकता है,इस पर सचैत होना ही पड़ेगा.
,

प्रियंका गुप्ता said...

मन विचलित हो जाता है सभ्य कहे जाने वाले मानव की ऐसे घृणित कृत्य को जान-सुन कर...| आपके इस आलेख की सार्थकता निश्चय ही आज के समाज में बहुत है | सोचनीय विषय पर कलम चलाने के लिए मेरी बधाई...|

डॉ. जेन्नी शबनम said...



इनसे मिलिए Inse miliye (किशोर श्रीवास्तव जी) 
07:41 (10 hours ago)
to me

मेरी प्रतिक्रिया:


आपने इस अमानवीय कृत्य पर बहुत ज़रूरी प्रश्न उठाये हैं। पर जहां मानव ही अपने क्षणिक लाभ, सनक के चलते खुद एक दूसरे का खून बहाने पर आमादा रहता है तो पशु पक्षियों से भी उसे क्यों हमदर्दी हो। बेशक हमें किसी को पीड़ा न पहुंचे इस पर ध्यान देना चाहिए। जान तो सभी की ही कीमती है और दर्द भी सबको एक जैसा ही होता होगा।

Jyoti Singh said...

सच्चाई को दर्शाती हुई ,अहम पोस्ट ,एक बात सही है ,मनुष्य अपनी पहचान, परिभाषा बदलते जा रहा है

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger संगीता पुरी said...

विचारणीय आलेख ----

June 6, 2020 at 7:41 PM Delete
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धन्यवाद संगीता जी.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger kirti dubey said...

सही कहा आपने

June 6, 2020 at 7:43 PM Delete
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शुक्रिया कीर्ति जी.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger Jyoti khare said...

मार्मिक त्रासदी की प्रभावशाली पड़ताल
लोग कब समझेंगे
बहुत खूब

June 6, 2020 at 9:39 PM Delete
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आभार ज्योति खरे जी.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger Harash Mahajan said...

अति सुंदर सृजन । सच कहा जेन्नी जी कमजोर रूहों पर अत्याचार करना मानव का स्वभाव बन चुका है । उनकी ये दलील भी तो समझ नही आती एक रूह के लिए दुनियाँ अत्याचार के लिए उसके सामने खड़ी है दूसरी ओर जो वो प्राणी जिनके लिए लीगों की लार टपकती है । उन रूहों के साथ होती बर्बरता के लिए क्यों कोई नहीं बोलता ।

June 6, 2020 at 10:01 PM Delete
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मैं भी यही सोचती हूँ कि आखिर जो कमजोर हैं बोल नहीं सकते उसे मार कर खा लेना है, यह कैसी क्षुधा है जो दूसरे को पीड़ा पहुँचा कर तृप्त होती है. कुछ ख़ास जानवरों को मारना अपराध है लेकिन सभी का क्यों नहीं? मेरे विचार से सहमत होने के लिए शुक्रिया हर्ष महाजन जी.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger कुमारेन्द्र किशोरीमहेन्द्र said...

अब हर घटना को राजनीति के अंतर्गत रंग देने का काम किया जाने लगता है. जानवरों के मारे जाने की घटनाएँ देखें, तो ये कोई पहली घटना नहीं है.
बहरहाल, सामायिक विषय पर अच्छा लेख.

June 6, 2020 at 11:01 PM Delete
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राजनीति का रंग देना तो बहुत गलत है. ऐसी घटना बार बार हो रही है, यही तो सोचने का विषय है कि मानव इतना दानव क्यों बनता जा रहा है. धन्यवाद कुमारेंद्र जी.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

गर्भवती हथिनी को मारने वाला अपराधी एक ही नहीं है, हम सब उसमें भागीदार हैं । हम पशुओं के हक़ पर बड़ी निर्दयता के साथ डाका डालते रहे हैं ...इस बात की उपेक्षा करते हुये कि इस धरती पर उनका भी उतना ही हक़ है जितना कि हमारा ।

हमें जंगल चाहिये, हमें धरती चाहिये, हमें जलस्रोत चाहिये ...पशुओं के बारे में हमने कभी ईमानदारी से नहीं सोचा । वे कभी हमारे खेतों में नहीं आते अगर हमने उनके आशियानों पर डाके न डाले होते ।

बेज़ुबानों के लिए क़ानून बनाना ही पर्याप्त नहीं है ..ईमानदारी से उनपर अमल भी हो ...यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये ।

हथिनी की कष्टपूर्वक हुयी मौत की वेदना का अनुमान लगाने के लिए कुछ क्षणों के लिए स्वयं हथिनी बनने की कल्पना करनी होगी... गर्भवती हथिनी की ... भूख और प्यास तड़पती हथिनी की ...और उसके गर्भस्थ भ्रूण की ।

मैं निर्णायक होता तो हत्यारे को दो बार मरने की सज़ा ज़रूर देता ...उसी तरह भूख और प्यास से तड़पते हुये मरने की सज़ा ...ताकि एक नज़ीर बन सके ।

June 6, 2020 at 11:12 PM Delete
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कौशलेन्द्र जी, बिल्कुल सही कहा आपने कि उस हथिनी की पीड़ा को खुद पर महसूस करना होगा. निश्चित ही ऐसे अपराधियों को वैसी ही सजा मिलनी चाहिए जैसी वे दूसरों को देते हैं. परन्तु हमारा कानून और हमारी सोच हर जानवर के लिए एक-सी नहीं है, यही तो दुःख का विषय है.
आपकी टिप्पणी प्रकाशित नहीं हो रही थी, मालूम नहीं क्या गड़बड़ हुआ. आपने मेल किया अन्यथा मुझे पता भी नहीं चलता इस समस्या का. काफी दिनों से हमारा समपर्क नहीं हुआ. आपने बार बार सात बार टिप्पणी पोस्ट की, तहेदिल से आपका आभार.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger Pallavi saxena said...

बिल्कुल सही लिखा है आपने, जान तो जान ही है फिर चाहे हाथी की हो या किसी भी अन्य पशु पक्षी की इन्हें मार कर खाने का अधिकार हमें कभी था ही नही मानव शरीर सिर्फ शाकाहारी वस्तुओं के हिसाब से बना है। वो कहते है ना "जैसा खाओ अन्न वैसा बने मन" कौन जाने शायद ऐसी क्रूर परवर्ती का ही यह परिणाम हो।
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सच है कि मानव का जन्म शाकाहार के लिए हुआ है. लेकिन स्वाद ऐसी चीज़ है कि हम जानवरों की पीड़ा समझते नहीं हैं. मुझे तो हमेशा ही लगता है कि ऐसा भोजन करने का ही परिणाम है कि मानव क्रूर होता जा रहा है. यूँ शाकाहारी भी क्रूर होते हैं, परन्तु अन्य कई परिस्थितियाँ होती हैं ऐसा बनाने में. पर दूसरों का दर्द तो महसूस होना चाहिए न.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल said...

अच्छा और सम्वेदनशील आलेख. बधाई!

June 7, 2020 at 1:12 PM Delete

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धन्यवाद दुर्गाप्रसाद जी.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger Sudershan Ratnakar said...

बेज़ुबान जानवर के साथ क्रूरता का व्यवहार अमानवीय है। प्रकृति के विरुद्ध है लापरवाही हो या जानबूझकर ऐसा करना कितना दुखद है।
आप ने सही लिखा है संवेदनशील हदय ही इस पीड़ा को अनुंभव कर सकता है। बहुत अच्छा लिखा है आपने.

June 7, 2020 at 7:30 PM Delete
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आभार रत्नाकर जी. मानव दूसरे की संवेदना न समझेगा तो कौन समझेगा? कुछ जानवरों से इतना प्रेम, और कुछ के लिए क्यों नहीं? यह प्रश्न मुझे अक्सर बेचैन कर देता है.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger प्रतिभा सक्सेना said...

सोच कर ही मन विचलित हो जाता है कि इस वीभत्स घटना ने उस गर्भवती को कितनी पीड़ा पहुँचाई होगी,उस अजन्में शिशु का क्या हाल हुआ होगा.मनुष्य अपनी क्रूरता का एक परिणाम तो भोग ही रहा है ,मनुष्यता का और कितना अधःपतन होगा ,और भविष्य कैसे-कैसे दंडित कर सकता है,इस पर सचैत होना ही पड़ेगा.
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June 9, 2020 at 6:35 AM Delete
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सही कहा प्रतिभा जी. मनुष्य के अधोपतन का ही परिणाम है कि समाज और प्रकृति दोनों प्रभावित है. जाने कहाँ पहुँचेंगे हम? in सब से मन द्रवित हो जाता है.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger प्रियंका गुप्ता said...

मन विचलित हो जाता है सभ्य कहे जाने वाले मानव की ऐसे घृणित कृत्य को जान-सुन कर...| आपके इस आलेख की सार्थकता निश्चय ही आज के समाज में बहुत है | सोचनीय विषय पर कलम चलाने के लिए मेरी बधाई...|

June 11, 2020 at 12:03 AM Delete
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मेरी सोच को आपने समझा, धन्यवाद प्रियंका जी.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger डॉ. जेन्नी शबनम said...



इनसे मिलिए Inse miliye (किशोर श्रीवास्तव जी)
07:41 (10 hours ago)
to me

मेरी प्रतिक्रिया:


आपने इस अमानवीय कृत्य पर बहुत ज़रूरी प्रश्न उठाये हैं। पर जहां मानव ही अपने क्षणिक लाभ, सनक के चलते खुद एक दूसरे का खून बहाने पर आमादा रहता है तो पशु पक्षियों से भी उसे क्यों हमदर्दी हो। बेशक हमें किसी को पीड़ा न पहुंचे इस पर ध्यान देना चाहिए। जान तो सभी की ही कीमती है और दर्द भी सबको एक जैसा ही होता होगा।

June 11, 2020 at 5:48 PM Delete
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हाँ किशोर जी. यही तो मैं सोचती हूँ, हर जानवर को चोट या पीड़ा हम मनुष्यों सी ही होती है. फिर मनुष्य इस पर सोचता विचारता क्यों नहीं. समर्थन के लिए धन्यवाद.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger Jyoti Singh said...

सच्चाई को दर्शाती हुई ,अहम पोस्ट ,एक बात सही है ,मनुष्य अपनी पहचान, परिभाषा बदलते जा रहा है

June 13, 2020 at 10:53 PM Delete

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सहमति के लिए धन्यवाद ज्योति जी.