Tuesday, April 2, 2019

65. जेनरेशन गैप

"रोज़-रोज़ क्या बात करनी है, हर दिन वही बात- खाना खाया, क्या खाया, दूध पी लिया करो, फल खा लिया करो, टाइम से वापस आ जाया करो।" आवाज में झुंझलाहट थी और फ़ोन कट गया। 

वह हतप्रभ रह गई। इसमें ग़ुस्सा होने की क्या बात थी। आख़िर माँ हूँ, फ़िक्र तो होती है न। हो सकता है पढ़ाई का बोझ ज़्यादा होगा। मन ही मन में बोलकर ख़ुद को सांत्वना देती हुई रंजू रजाई में सिर घुसाकर अपने आँसुओं को छुपाने लगी। यूँ उससे पूछता भी कौन कि आँखें भरी हुई क्यों है, किसने कब क्यों मन को दुखाया है। सब अपनी-अपनी ज़िन्दगी में मस्त हैं। 

दूसरे दिन फ़ोन न आया। मन में बेचैनी हो रही थी। दो बार तो फ़ोन पर नम्बर डायल भी किया, फिर कल वाली बात याद आ गई और रंजू ने फ़ोन रख दिया। सारा दिन मन में अजीब-अजीब-से ख़याल आते रहे। दो दिन बाद फ़ोन की घंटी बजी। पहली ही घंटी पर फ़ोन उठा लिया। उधर से आवाज़ आई "माँ, तुमको खाना के अलावा कोई बात नहीं रहता है करने को। हमेशा खाना की बात क्यों करती हो? तुम्हारे कहने से तो फल-दूध नहीं खा लेंगे। जब जो मन करेगा वही खाएँगे। जब काम हो जाएगा लौटेंगे। तुम बेवजह परेशान रहती हो। सच में तुम बूढ़ी हो गई हो। बेवजह दख़ल देती हो। ख़ाली रहती हो, जाओ दोस्तों से मिलो, घर से बाहर निकलो। सिनेमा देखो बाज़ार जाओ।"

रंजू को कुछ भी कहते न बन रहा था। फिर भी कहा- "अच्छा चलो, खाना नहीं पूछेंगे। पढ़ाई कैसी चल रही है? तवियत ठीक है न?"
"ओह माँ, हम पढ़ने ही तो आए हैं। हमको पता है कि पढ़ना है। और जब तबीयत ख़राब होगी हम बता देंगे न।"

रंजू समझ गई कि अब बात करने को कुछ नहीं बचा है। उसने कहा "ठीक है, फ़ोन रखती हूँ। अपना ख़याल रखना।" उधर से जवाब का इंतज़ार न कर फोन काट दिया रंजू ने। सच है, आज के समय के साथ वह चल न सकी थी। शायद यही आज के समय का जेनरेशन गैप है। यूँ जेनरेशन गैप तो हर जेनरेशन में होता है परन्तु उसके ज़माने में जिसे फ़िक्र कहते थे आज के ज़माने में दख़लअंदाजी कहते हैं। फ़िक्र व जेनरेशन गैप भी समझ गई है अब वह। 

- जेन्नी शबनम (2. 4. 2019)
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20 comments:

Puran Mal said...

Thanks! It's such a very nice post. i will definitely share it with colleagues Apne Naam Ki Ringtone Kaise Banaye

HARSHVARDHAN said...

आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति फील्ड मार्शल सैम 'बहादुर' मानेकशॉ की 105वीं जयंती और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान जरूर बढ़ाएँ। सादर ... अभिनन्दन।।

Udan Tashtari said...

जनरेशन गैप की समझ बहुत जरुरी है..उम्दा!!

MahavirUttranchali said...

उत्कृष्ट व स्टीक चित्रण। बधाई।

ज्योति-कलश said...

मर्मस्पर्शी !

shail said...

मार्मिक, तेरी-मेरी सबकी कहानी। बधाई।

Meena sharma said...

उसके जमाने में जिसे फिक्र कहते थे आज के जमाने में दखलअंदाजी कहते हैं।
माता पिता फिर भी कहाँ छोड़ते हैं बच्चों की फिक्र करना !!!

जयकृष्ण राय तुषार said...

बहुत ही समयानुकूल और सार्थक पोस्ट |बधाई आपको

Kailash Sharma said...

आज के बच्चे कहाँ समझ पाते हैं माता पिता की भावनाओं को...बहुत मार्मिक प्रस्तुति

Sudershan Ratnakar said...

आज का सत्य । बहुत सुंदर

VINOD said...

नहीं जैनी जी
मैं आपके इस जनरेशन गैप से मुख्तलिफ राय रखता हूँ ..जब पढ़ने वाला बच्चा कमाने लगेगा, मेरे विचार से उसे अपने माँ बाप से ज़्यादा लगाव होगा.

VINOD said...

नहीं जैनी जी
मैं आपके इस जनरेशन गैप से मुख्तलिफ राय रखता हूँ ..जब पढ़ने वाला बच्चा कमाने लगेगा, मेरे विचार से उसे अपने माँ बाप से ज़्यादा लगाव होगा.

रवीन्द्र प्रभात said...

बहुत सुन्दर और सारगर्भित पोस्ट।

सहज साहित्य said...

उत्तम एवं यथार्थ चित्रण

काम्बोज

KAMLESH KUMAR MEENA said...

Very Nice

Kamlesh Chanda said...

आज का सत्य । बहुत सुंदर

Parmod Kumar said...

The article is very easy to understand, detailed and meticulous! I had a lot of harvest after watching this article from you! I find it interesting, your article gave me a new perspective
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Shayari Sad said...

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Anjuna Sharma said...

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Prof Vipin K Chilana said...

अच्छा लगा पढ़ कर