Thursday, June 21, 2012

38. क्योंकि वह ताजमहल नहीं था...

साइनबोर्ड 
एक बार फिर रोई अमृता, फूट-फूटकर रोई। इमरोज़ के कुर्ते को दोनों हाथों से पकड़कर झिंझोड़कर पूछा- ''क्यों नहीं बचाए मेरा घर? क्यों नहीं लड़ सके तुम मेरे लिए?'' ''बोलो इमा, क्यों नहीं रोका तुमने उन लोगों को, जो मेरी ख़्वाहिशों को उजाड़ रहे थे, हमारे प्रेम के महल को ध्वस्त कर रहे थे? हर एक कोने में मैं जीवित थी तुम्हारे साथ, क्यों छीन लेने दिया मेरा संसार?'' 
इमरोज़ 
इमरोज़ निःशब्द! इमरोज़ बेबस! ख़ामोशी से अपनी माझा को रोते हुए देखते रहे। आँखें भीग गईं, फिर तड़पकर कहा- ''माझा, मैं क्या करता, मेरा हक़ तो सिर्फ़ तुम पर था न, उस घर पर नहीं। मैं कैसे रोकता उन्हें?'' ''माझा! मैं घर को बचा नहीं सका, मैं किसके पास जाकर गिड़गिड़ाता? जिन लोगों ने तुमको इतना सम्मान दिया, पुरस्कृत किया, उनलोगों में से कोई भी तुम्हारे धरोहर को बचाने नहीं आया।'' ''माझा! उस घर को मैं अपने सीने में समेट लाया हूँ। हमारे घर के ऊपर बने विशाल बहुमंजिली इमारत में वे ईंटें दफ़न हैं जिन्हें तुमने जोड़ा था और मैंने रंगों से सजाया था।'' ''ये देखो माझा, हमारी वह तस्वीर ले आया, जब पहली बार तुम मेरे लिए रोटी सेंक रही थी, तुम्हें कितना अच्छा लगता था मेरे लिए खाना बनाना। ये देखो वह कप भी मैं ले आया हूँ, जिसमें हर रात मैं तुमको चाय देता हूँ; रात में तुम अब भी लिखते समय चाय पीना चाहती हो न। वह देखो उस तस्वीर में तुम कितनी सुन्दर लग रही हो, जब पहली बार हम मिले थे। वह देखो, हमारे घर का नेम-प्लेट 'अमृता इमरोज़, के-25', और देखो वह तस्वीर जिसे बनाने में मुझे 5 साल लगे थे, जिसे तुम्हारे कहने पर मैंने बनाया था 'वुमेन विद माइंड'।'' ''माझा, मैं अपनी तकलीफ़ किसे दिखाऊँ? मेरी लाचारी तुम समझती हो न! तुम तो चली गई, मुझे अकेला छोड़ गई। सभी आते हैं और मुझमें तुमको ढूँढते हैं, पर मैं तुमको कहाँ ढूँढूँ?'' ''माझा, मेरा मन बस अब तुम्हारा घर है, क्योंकि अब तुम सीधे मेरे पास आती हो, पहले तो तुम जीवन के हर खट्टे-मीठे अनुभव के बाद मुझ तक आई थी। तुम्हारी यादें और मैं अब मेरा घर है।''     
बिक्री के बाद मकान तोड़ कर बन रहा मकान  
किसी जीवित घर का मिटाया जाना विधि का विधान नहीं न नियति का क्रूर मज़ाक है; बल्कि मनुष्य के असंवेदनशील होने का प्रमाण है। उस घर का बाशिंदा कितना तड़पा होगा, जब उससे वह घर छीन लिया गया होगा जिसमें उसकी प्रियतमा की हर निशानी मौज़ूद है और ये सब अतीत की कथा नहीं बल्कि उसका वर्तमान जीवन है। कितना रोया होगा वह। कितना पुकारा होगा वह अपनी प्रियतमा को, जिसने अकेला छोड़ दिया यादों के सहारे जीने के लिए; पर उसने सदैव उसे अपने साथ महसूस किया है, उसे सोचा नही बल्कि उसके साथ जी रहा है। कितनी बेबस हुई होगी उस औरत की आत्मा जब उसके सपनों का घर टूट रहा होगा और उसका हमसफ़र उसकी निशानियों को चुन-चुनकर समेट रहा होगा। तोड़ दिया गया प्रेम का मन्दिर। फफक पड़ी होंगी दीवार की एक-एक ईंटें। चूर हो गया किसी औरत की ख़्वाहिशों का संसार। कैसे दिल न पिघला होगा उसका, जिसने इस पवित्र घर को नष्ट कर दिया। क्या ज़रा भी नहीं सोचा कि अमृता की आत्मा यहाँ बसती है? अमृता को उसके ही घर से बेदखल कर दिया गया और उसकी निशानियों को सदा के लिए मिटा दिया गया। 
कुछ यादें - अमृता इमरोज़ 
हौज़ ख़ास के मकान नंबर के-25 के गेट में घुसते ही सामने खड़ी मारुती कार, जिसे अमृता-इमरोज़ ने साझा खरीदा था, अब कभी नहीं दिखेगी। घंटी बजाने पर कुर्ता-पायजामा और स्पोर्ट्स शू पहने ज़ीने से उतरकर दरवाज़ा खोलते हर्षित इमरोज़, जो बहुत ख़ुश होकर पहली मंजिल पर ले जाते और सामने लगी खाने की मेज़-कुर्सी पर बिठाते हुए कहते हैं- ''देखो वहाँ अमृता अभी सो रही है'' फिर साथ लगी उस रसोई में ख़ुद चाय बनाते हैं, जिस रसोई में न जाने कितनी बार अमृता ने रोटी पकाई होगी; अब कभी न दिखेगी। रसोई में रखी काँच की छोटी-छोटी शीशियाँ भी उस वक़्त की गवाह हैं, जब अमृता रसोई में अपने हाथों से कुछ पकाती थी और इमरोज़ उसे निहारते थे। अमृता का वह कमरा जहाँ अमृता ने कितनी रचनाएँ गढ़ी हैं, जहाँ इमरोज़ की गोद में अन्तिम साँस ली है; अब कभी नहीं दिखेगा। कैनवस पर चित्रित अमृता-इमरोज़ की साझी ज़िन्दगी का इन्द्रधनुषी रंग जो उस घर के हर हिस्से में दमकता था, अब कभी नहीं दिखेगा। सफ़ेद फूल जो अमृता को बहुत पसन्द है, इमरोज़ हर दिन लाकर सामने की मेज़ पर सजा देते थे; अब उस मेज़ की जगह बदल चुकी है। अमृता की रूह शायद अब भी उस जगह भटक रही होगी; मेज़, फूल और फूलदान को तलाश रही होगी। छत के पास अब भी पंछी आते होंगे कि शायद इमरोज़ आ जाएँ और दाना-पानी दे जाएँ, पर अब जब छत ही नहीं रहा तो पखेरू दर्द भरे स्वर में पुकार कर लौट जाते होंगे। 
साहिर - अमृता 
अमृता का जीवन, अमृता का प्रेम, अमृता की रचनाएँ, अमृता के बच्चों की किलकारियाँ, अमृता के हमसफ़र की जुम्बिश, चाय की प्याली, कैनवस पर इमरोज़ का जीवन- अमृता, रसोईघर में चाय बनाता इमरोज़, रोटी सेंकती अमृता, बच्चों को स्कूटर पर स्कूल छोड़ता इमरोज़, हर शाम पंछियों को दाना पानी देता इमरोज़। पूरी दुनिया में अपनी रचनाओं के द्वारा सम्मानित अमृता जो अपने बिस्तर पर लाचार पड़ी है, वृद्ध अशक्त अमृता का सहारा बनता इमरोज़, हर एक तस्वीर जिसमें अमृता है का विस्तृत विवरण देता इमरोज़, अमृता और अमृता का साझा-संसार जो उसके मन में सिमट गया है; इमरोज़ जो बिना थके कई बार नीचे दरवाज़ा खोलने तो कभी छत पर पौधों में पानी डालने तो कभी सबसे ऊपर की छत पर पंछियों का कलरव देखने आता जाता रहता है। इमरोज़ के माथे पर न शिकन न शिकायत, बदन में इतनी स्फूर्ति मानो अमृता ने अपनी सारी शक्ति सहेज कर रखी हो और विदा होते वक्त अन्तिम आलिंगन में सौंप दिया हो और चुपके से कहा हो ''मेरे इमा, मैं इस शरीर को छोड़कर जा रही हूँ, मैं तुम्हें फिर मिलूँगी, तुम कभी थकना नहीं, मैं तुम्हारे साथ हूँ, पग-पग पर, पल-पल में, वक़्त के उस आख़िरी छोर तक जब तक तुम इस शरीर में हो, सामने वाले कमरे में बैठी मैं हर रात तुम्हारे लिए गीत रचूँगी और जिसे तुम अपने हाथों से नज़्म का रूप दोगे। मैं तुम्हारी माझा, तुम्हारे लिए सदैव वर्तमान हूँ, यूँ भी तुम इमरोज़ हो, जिसका अर्थ है आज; तुम मेरे आज हो, मेरी ख़्वाहिशों को तुम पालना, हमारे इस घर में मैं हर जगह मौजूद रहूँगी, तुम जीवन का जश्न जारी रखना, तुम्हारे कैनवस पर और तुम्हारी नज़्मों में मैं रहूँगी, मैं तुम्हें फिर मिलूँगी।'' 
मुश्किलों से जूझती अमृता का 'अमृता प्रीतम' बनना इतना सहज नहीं हुआ होगा। पति से अलग हुई एक आम औरत जिसके दो छोटे बच्चे, सरल नहीं रहा होगा जीवन। टूटी हारी 40 वर्षीया अमृता को इमरोज़ का साथ और फिर समाज की मान्यताओं और प्रतिमानों से जूझना बेहद कठिन हुआ होगा। रेडियो स्टेशन में कामकर घर चलाती अमृता ने कैसे-कैसे दिन देखे होंगें, ये तो बस वह जानती है या इमरोज़। अमृता का सम्पूर्ण अस्तित्व जो उस एक घर में बना, पसरा, फिर सिमटा, कितनी क्रूरता से मिटा दिया गया। इमरोज़ के लिए नहीं, तो कम-से-कम उस औरत के लिए जिसकी हर ख़्वाहिशें और ज़िन्दगी यहाँ मौजूद थी, पर तो रहम किया होता। प्रेम की दुहाई देने वाले और अमृता-इमरोज़ के प्रेम की मिसाल देने वाले कहाँ गए? क्या जीवन के बाद ऐसे ही भुला दिया जाता है उसकी हस्ती को जिसने समाज को एक नयी सोच और दिशा दी, जिसने स्त्री होने के अपराधबोध से ग्रस्त होना नहीं सीखा और स्त्री को गौरव प्रदान किया, पुरुष को सिर्फ़ एक मर्द नहीं बल्कि एक इंसान और सच्चा साथी के रूप में समझा।   
नए घर का एक कोना 
अब कहाँ ढूँढूँ उस घर को? प्रेम के उस मन्दिर को? वह घर टूट चुका है और बहुमंजिली इमारत में तब्दील हो चुका है। अमृता बहुत रो रही थी और अपने इमरोज़ को समझा रही थी- ''वह सिर्फ़ एक मकान नहीं था इमा, हमारा प्रेम और संसार बसता था वहाँ। मेरे अपनों ने मुझे मेरे ही घर से बेदखल कर दिया। हाँ इमा, जानती हूँ तुम्हारी बेबसी, मेरे घर के कानूनी हक़दार तुम नहीं हो न! दुनिया के रिवाज से तुम मेरे कोई नहीं, ये बस मैं जानती हूँ कि तुम मेरे सब कुछ हो, जानती हूँ तुम यहाँ मुझे छोड़कर जाना नहीं चाहे होगे पर कानून... उफ़!''
शीशा में इमरोज़ और मैं 
इमरोज़ से पूछने पर कि उस घर को क्यों बेच दिया गया, वे कहते हैं ''जीवन में 'क्यों' कभी नहीं पूछना, हर क्यों का जवाब भी नहीं होता, जो होता है ठीक ही होता है।'' ''अगर अमृता होती तो उनको कैसा लगता?'' पूछने पर बहुत संजीदगी से मुस्कुराते हुए कहते हैं- ''अगर अमृता होती तो वह घर बिकता ही नहीं।'' ''ये घर भी बहुत बड़ा है और बच्चों को जो पसन्द मुझे भी पसन्द, अपने बच्चों के साथ ही मुझे रहना है।'' 
विस्तार से बताते इमरोज़ और मैं 
इमरोज़ के साथ अमृता अब नए घर में आ चुकी है। अमृता के परिवार के साथ दूसरे मकान में शिफ्ट करते समय इमरोज़ ने अमृता की हर निशानी को अपने साथ लाया है और पुराने मकान की तरह यहाँ भी सजा दिया है। हर कमरे में अमृता, हर जगह अमृता। चाहे उनके पेंटिंग करने का कमरा हो या उनका शयन कक्ष, गैलरी, भोजन कक्ष, या फिर अन्य कमरा। अमृता को देखना या महसूस करना हो तो हमें के-25 या एन-13 नहीं बल्कि इमरोज़ से मिलना होगा। इमरोज़ के साथ अमृता हर जगह है चाहे वे जहाँ भी रहें। 
इमरोज़ और मैं 
- जेन्नी शबनम (जून 21, 2012)  

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23 comments:

PRAN SHARMA said...

AMRITA KO DEKHNA YAA MAHSOOS KARNA HO
TO HAMEN K - 25 YAA N - 13 NAHIN
BALKI IMROZ SE MILNAA HOGAA . IMROZ
KE SAATH AMRITA HAR JAGAH HAI CHAAHE
VO JAHAAN BHEE RAHE .
KHOOB HAIN UKT PANKTIYAN ! SACHCHE
PYAR KO DARSHAATEE . EK - EK SHABD
KAVITAMAY HAI .

अजय कुमार झा said...

आपके इस खूबसूरत पोस्ट का एक कतरा हमने सहेज लिया है आज के ब्लॉग बुलेटिन के लिए , आप देखना चाहें तो इस लिंक को क्लिक कर सकते हैं

Shanti Garg said...

बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....


इंडिया दर्पण
पर भी पधारेँ।

डा. गायत्री गुप्ता 'गुंजन' said...

इस रचना को पढने के बाद लगा जैसे फीका पड़ गया ताजमहल इस घर के सामने...
अमृता-इमरोज का प्रेम तो मिसाल है इस दुनिया के लिए... नमन उन्हें...

अनामिका की सदायें ...... said...

jindgi me kabhi aise mod bhi aate hain jahan insan ka bas nahi chalta yaha imroj ji k sath bhi aisa hi kuchh hua....

sunder lekh.

Unknown said...

साधारण होना ही सबसे असाधारण बात है...

दीपिका रानी said...

बहुत भावुक लेख.. वैसे सच यही है कि अमृता अब इमरोज़ के अंदर बसी हैं, वह उनका असली घर है, जहां से उन्हें कोई नहीं हटा सकता...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर भी होगी!

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

इमरोज अमृता तो जैसे एक रूह ही हैं....
अंतर्स्पर्शी लेखन...
सादर आभार.

Bharat Bhushan said...

इमरोज़ और अमृता के अतीत को एक झरोखा दे दिया आपने. अब जो भी बीत रहा है वह केवल टीस ही है.

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

बहुत सुंदर प्रस्तुति
मन को छू गया आपका लेख

bhawnavardan@gmail.com said...

behad samvedansheel, kuch palon ke liye laga ki main bhi wahin us ghar mein jaa kar dekh ayi hoon amrita-imroj ko......

bhawnavardan@gmail.com said...

behad samvedansheel ....atyant hi bhavuk kar dene wala lekh.......

सहज साहित्य said...

बहन माफ़ करना , मैं बहुत सारी व्यस्तताओं के कारण आपका यह गद्यगीत नहीं प।ध सका था । आपकी लेखनी कमाल की है , जादूभरी है । एक -एक शब्द बोलता है , दिल को छूता है । अद्भुत और दुर्लभ रचना पढ़ने को मिली , आपका आभार किन शब्दों में करूँ । आप जैसे शब्द मेरे गद्य में नहीं हैं।

मुकेश कुमार सिन्हा said...

dil ko chhuti sansmaran..

Vandana Ramasingh said...

कोमल भावों की कोमल अभिव्यक्ति

Meenakshi said...

शबनम जी .....बहुत ही संवेदनशील ...एक प्रेम करने वाले ह्रदय से ...प्रेम में जीते ह्रदय पर लिखा ...अद्भुत लेख… आपका लेख पढ़कर मुझे १ ९ ९ ६ की यादें ताज़ा हो आई ...मैंने सबसे पहले दसवीं कक्षा में अमृता प्रीतम की कहानियां पढ़ी थी ....फिर तो ऐसा चस्का लगा कि पुस्तकाय सेलेकर उनका समग्र लेखन पढ़ डाला और 1996 में दिल्ली में जब मैं मालवीय नगर रहने लगी तो सबसे सुखद बात मेरे लिए यही थी की मेरे घर के रास्ते में हौजखास आता था ....और वहां था मेरी प्रिय लेखिका अमृता जी के सपनों का आशियाना ....मैं १ ९ ९ ६ से लेकर २ ० ० ० तक अमृता जी के घर बहुत बार गयी और वहां साहित्य पर चर्चा हुई ....आप सही कह रही हैं ....जब भी घंटी बजाई ..हर बार सफ़ेद कुर्ते पायजामे में चेहरे पे मधुर मुस्कराहट बिखरे इमरोज ही दरवाज़ा खोलते थे .......उन चार वर्षों में अमृता जी से बहुत बार मिलना हुआ ! फिर फरीदाबाद शिफ्ट हो जाने के बाद मुलाकातों का ये सिलसिला थम गया और मैं अपनी नयी गृहस्थी के झंझटों में रम गयी मगर अमृता जी ....इमरोज जी और उनकी खुबसूरत यादें आज भी जह्नो।दिल में बसी हैं ...आपके इस संवेदनशील लेख ने उन सभी मधुर स्मृतियों को पुनर्जीवित कर दिया ....जब मुझे ही सहज स्वीकार नहीं हो रहा कि अब अगर इमरोज जी से और अमृता जी की यादों से मिलने जाना हो तो के - २ ५ की बजाये एन -१ ३ में जाना होगा तो यह कटु सत्य लगभग अकल्पनीय ही कि इमरोज जी को कैसा लगता होगा ........फिर भी ...........क्या आप मुझे इमरोज जी का कांटेक्ट नम्बर दे सकती हैं .....मैं जाना चाहूंगी ....इस लेख के लिए आपको बधाई ......मीनाक्षी जिजीविषा .....08901186300

Ravindra Singh Yadav said...

वियोग पर आधारित रचनाओं की खोज करते-करते आपका यह आलेख भी मिला। आपके इस आलेख को हमने "पाँच लिंकों का आनंद" http://halchalwith5links.blogspot.in में गुरुवार 27 जुलाई 2017 को प्रकाशन हेतु लिंक किया है।
चर्चा में आप अवश्य आइयेगा,आपकी प्रतीक्षा रहेगी। आप सादर आमंत्रित हैं। सधन्यवाद।

Ravindra Singh Yadav said...

वियोग पर आधारित रचनाओं की खोज करते -करते आपका यह आलेख भी मिला। आपके इस आलेख को हमने "पाँच लिंकों का आनंद" http://halchalwith5links.blogspot.in में गुरुवार 27 जुलाई 2017 को प्रकाशन हेतु लिंक किया है।
चर्चा में आप अवश्य आइयेगा ,आपकी प्रतीक्षा रहेगी। आप सादर आमंत्रित हैं। सधन्यवाद।

Ravindra Singh Yadav said...

नमस्ते, आपकी लिखी यह प्रस्तुति गुरूवार 27 जुलाई 2017 को "पाँच लिंकों का आनंद http://halchalwith5links.blogspot.in के 741 वें अंक में लिंक की गयी है। चर्चा में शामिल होने के लिए अवश्य आइयेगा ,आप सादर आमंत्रित हैं। सधन्यवाद।

Unknown said...

धन्यवाद पांच लिंको का आनंद इतने सुन्दर ब्लॉग को पढवाने के लिये. अमृता प्रीतम नाम सबने सुना है लेकिन उनके जीवन में इतना भीतर जाने का अवसर कम लोगों को ही मिल पाता है.

सुशील कुमार जोशी said...

वाह जैसे एक ताजा पोस्ट।

Lokesh Nashine said...

उम्दा प्रस्तुति