लोकसभा की अध्यक्ष मीरा कुमार पर कुछ नेताओं द्वारा की गई जातिसूचक टिप्पणी ने मुझे बहुत दुःख पहुँचाया है। मेरा बीता हुआ कल किसी सिनेमा के फ्लैश बैक की तरह मेरी आँखों के सामने है। मुझे याद आता है जाड़े की दुपहरी का एक ठिठुरता-सा वह दिन जब नर्म धूप खिली थी। घर की छत पर मैं गुनगुनी धूप को सज़दा करते हुए चाय की चुस्कियों के साथ कोई पुराना गाना सुन रही थी। कुछ ही देर बीते होंगे कि तक़रीबन 40-45 वर्ष की एक महिला आई और चुपचाप खड़ी हो गई। पूछने पर उसने अपना नाम बताया और कहा ''हम आपके स्कूल-कॉलेज में साफ़-सफ़ाई का काम करते हैं, पर... जाति के नहीं हैं।'' फिर उसने कहा ''हम आपके साथ दिल्ली जाएँगे मेरी जात... है।'' मैंने कहा ''अपना नाम और उम्र मेरे स्टाफ को लिखा दो, टिकट में जाति नहीं लिखना होता है।'' फिर वह काम पर चली गई, और मेरे ज़ेहन में जाति का वह सवाल छोड़ गई, जो अमूमन हर जगह ढूँढा जाता है। शायद रूढ़ियों से हमारे मन में यह बस चुका है और ज़िन्दगी के हर क्षेत्र से जुड़ चुका है। चाहते हुए भी इससे परे कोई नहीं जा पाता है।
मुझे अपना बचपन याद आता है। जिसकी गोद में मैं पली थी, वह मेरे गाँव का निम्न जाति का था। हमारे खेत में जो काम करता था, वह भी उसी निम्न जाति का था। जब हमलोग गाँव जाते, हम अपने पिता के साथ उसके घर जाते और भैंस का बिना उबला हुआ ताज़ा दूध उसके घर में उसके ग्लास में पीते थे। हालाँकि उन दिनों गाँव में मेरे पिता की आलोचना भी होती रही और काफ़ी लोग उनके इस सोच से सहमत भी होते रहे। जब भी मैं पीछे मुड़कर देखती हूँ, तो पाती हूँ कि जाति-बिरादरी के इस दुष्चक्र ने हमसे और इस देश की जनता से कितना कुछ छीना है; लेकिन ये सिलसिला कब ख़त्म होगा मैं समझ नहीं पाती हूँ।
मुझे याद है मेरी एक फुफेरी बहन की शादी, जो मेरे पिता ने करवाई थी और शादी मेरे ही घर से हो रही थी, शायद 1974-75 की बात होगी। मेरे पिता गांधीवादी और साम्यवादी विचारधारा के थे। उनके एक मित्र के बेटे से बिना दहेज मेरी बहन की शादी हो रही थी। रात में शादी थी और बारात दिन में बुला लिया गया था; क्योंकि गाँव में अँधेरा जल्दी हो जाता है। दिन के भोज में रिश्तेदारों के अलावा बहुत सारे गाँव वाले भी आमंत्रित थे। बाराती, रिश्तेदार और गाँव वाले सभी लोग एक साथ खाने के लिए पंक्ति में बैठे थे।अचानक किसी एक रिश्तेदार ने उठकर कहा कि कोई खाना न खाओ, खाना बनाने वाला ... जाति का है। कुछ लोग उठकर चले गए कि धर्म भ्रष्ट हो जाएगा, नहीं खाएँगे। फिर दीदी के होने वाले ससुर, जो मेरे पिता की सोच और जीवन शैली से बहुत प्रभावित थे, ने कहा ''चाहे जो भी खाना बनाए हम तो खाएँगे, जिसे जाना हो जाए।'' खाना बनाने वाली उसी गाँव की थी। चूँकि शादी की बात थी इसलिए गाँव की मानसिकता को सोचकर मेरी दादी ने उसे बुलाया था, जिसका बनाया सभी खा सकें। वह हंगामा उस वक़्त बड़ा मज़ेदार लगा था मुझे। यह समझ नहीं आया था कि जिसका बनाया हुआ हम खाते हैं, सभी लोग खाएँगे तो क्या होगा। बाद में भी मेरे गाँव से निम्न जाति की लड़की काम करने आई। परन्तु मेरे घर में किसी ने नहीं पूछा कि वह काम करने वाली किस जाति की है; क्योंकि मेरे घर आने वालो में सभी मेरे पिता के विचार से अच्छी तरह वाक़िफ़ थे।
मुझे याद आई मेरी शादी के बाद की एक घटना। वर्ष 1992 में मैं दिल्ली में यूनिटेक कंस्ट्रक्शन कम्पनी में लॉ असिस्टेंट (law assistant) के पद पर नौकरी शुरू की थी। पहली तनख़्वाह मिली तो मेरे नाम में मेरे पति का उपनाम (surname) जोड़कर चेक मिला। मैंने पूछा कि मेरे नाम में उपनाम क्यों जोड़ा गया, सभी प्रमाणपत्रों में तो मेरा यही नाम है। मुझे कहा गया कि शादी के बाद अपने-आप जुड़ जाता है, अगर आपको नहीं जोड़ना तो आप शपथ-पत्र (affidavit) दीजिए या समाचारपत्र में प्रकाशित कराइए, तभी उपनाम नहीं जोड़ेंगे। मुझे बेहद ग़ुस्सा आया। मैंने कहा कि किसी क़ानून में नहीं है कि पति का उपनाम जोड़ा जाए, ये महज़ परम्परा है। अंत में मुझे अख़बार में निकलवाना पड़ा कि मेरा नाम यही है और यही रहेगा; तब मुझे तनख़्वाह मिली।
कुछ लोग कहते हैं कि मेरी जाति का पता कैसे चलेगा, जब धर्म का ही पता नहीं चलता है। अक्सर मैं हँस पड़ती हूँ और सोचती हूँ कि लोगों को क्यों फ़र्क़ पड़ता है कि ईश्वर तक पहुँचने के लिए कौन-सा रास्ता कौन अपनाता है या ईश्वर को नहीं मानता है। कोई यह तो किसी के बारे में नहीं पूछता कि अमुक खाना ही क्यों पसन्द है अमुक क्यों नहीं, यह रंग ही क्यों पसन्द है कोई दूसरा क्यों नहीं, यह सिनेमा ही क्यों पसन्द है दूसरा क्यों नहीं, यह कपड़ा ही क्यों पसन्द है कुछ और क्यों नहीं। जबकि यह सब तो हमारे व्यक्तित्व पर प्रभाव डालते हैं और हमारी पहचान में शामिल हैं।
ग्रामीण परिवेश में छुआछुत की भावना तो अब ज़्यादा न रही, लेकिन जातिवाद और धर्म से जुड़ी मानसिकता गाँव के विघटन के रूप में सामने आ रही है। शहरों में छुपी हुई जातिवाद की भावना दिखती है, जिसका घृणित और विकृत रूप हम अख़बार में पढ़ते हैं; चाहे राजनीति, शादी-विवाह या कोई कर्म-काण्ड हो। वर्ण-व्यवस्था जब क़ायम हुई होगी, तब सामजिक कर्त्तव्यों के निर्वहन की सुविधा को ध्यान में रखा गया होगा। जो जिस क्षेत्र में पारंगत हो, उसे उस हिसाब से उस वर्ण में शामिल किया गया होगा। कालान्तर में सब कुछ ऊँच-नीच जाति में बँट गया। जिन कामों में ज़्यादा शारीरिक श्रम वह काम नीचा है, ऐसा क्यों हुआ? कोई तथ्यपूर्ण जवाब नहीं मिलता है मुझे। मेरे अपने विचार से इन सब के जड़ में कहीं-न-कहीं पूँजीवादी व्यवस्था और आधिपत्य बनाए रखने की साजिश थी, जिसका कुपरिणाम आज जाति-भेद का भयंकर और विकराल रूप हम आए दिन देख रहे हैं। हमारे रक्त में जैसे ये ज़हर की तरह घुल गया है। इससे परे अब न इंसान की सोच रह गई है, न उसकी पहचान, न उसका अपना कोई परिचय। धर्म और जाति का सामजिक जीवन से क्या सरोकार? सच कहूँ तो आज तक समझ न आया कि लोगों को इंसान से ज़्यादा उसकी जाति या धर्म में दिलचस्पी क्यों होती है?
-जेन्नी शबनम (20.1.2010)
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52 comments:
आपकी यह पोस्ट बहुत अच्छी लगी....
जेन्नी जी बहुत ही संवेदनशील विषय चुन लिया है आपने ..वाकई बहुत दुःख होता है ये निरर्थक और निराधार परम्पराओं को देख कर ...ये जातिप्रथा हमारे देश मैं कार्य विभाजन को लेकर शुरू हुई थी और अब इसने न जाने कौन सा रूप ले लिया है...जाने कब ख़तम होगी ये जानवरों वाली प्रथा.
हाँ ये शादी के बाद सरनाम वाली बात खूब कही :) मैने भी अपना नाम नहीं बदला है क्योंकि सभी कागजात में से नाम बदलना मुश्किल लग रहा था ...यहाँ तक की मेरे बच्चे भी मेरा सरनाम लगाते हैं ...और यहाँ मुझे कोई कुछ नहीं कहता...पर हाँ भारत आने पर जरुर हर कोई ये प्रश्न करता है ...और इसी बात पर मेरी भी एक बैंक मैं लड़ाई हो गई थी ..और मैने भी अपनी बात मनवा कर ही दम लिया हा हा हा
जिन कामों में ज्यादा शारीरिक श्रम वो काम नीचा, ऐसा क्यूँ हुआ, कोई तथ्यपूर्ण जवाब नहीं मिलता मुझे|
ये बात मेरी समझ में भी नहीं आती है .. मैं भी इसी का जबाब ढूंढ रही हूं .. पर आज भी यही मान्यता है .. इस दुनिया में कला का कोई कद्र नहीं .. मेहनती की कोई इज्जत नहीं !!
jenny di
aapkee bhaawnaaon ka sammaan aur salam kartaa hun.
wastitah ham chahte hee nahee hain ki ye jaatee waywasthaa mite....aur isme sirf sawarn hee nahee nimn warg ke log bhee shamil hain. har kisi ka apanaa hit sadhataa hai.
aurhaan ek baat aur hai ki "amiri ki akad tab tak rahtee hai jab tak gareebi use nihaartee hai"
hridarjiwiyon ko is kuprathaa ko khatm karne k liye saamne aana hoga.
वि़चारणीय आलेख!!
बहुत अच्छा लिखा आपने . हमारे यहां भी छूआछूत को नही मानते .
jati,dharm,unch-neech mahaj ek sankirntaa hai.....aur yah sankirnta swaarthpurn bhi hai......
bahut achchha likha hai aapne
bahut pasand aayaa
यह जाती - धर्म सब कुछ हमारा ही बनाया हुआ है, हम अपने स्वार्थ के लिए कभी यह तो कभी वो नियम बना लेते है, जब् तक हम सब एकजुट होकर यह जाती वाद को नहीं हटायेंगे यह होता ही रहेंगा ...!
बेहतरीन प्रस्तुति जेन्नी दी ...!
Sahi kaha aapne...kitni vidambna hai, varn vyavastha ,jise ki samaaj ko sucharu roop se chalane ke liye karm aadharit kiya gaya tha,kalantar me janmaadharit hokar samaaj ko hi chhinn bhinn kar chala...
Yah to achcha hai ki shaharon me yah apne aap teji se shithil padti ja rahi hai...
Aapne bahut hi achche dhang se is kupratha ya kahe vichadhara ko ujgar kiya hai di. and u set the example urself, isse badhi bat kya ho sakti hai,
very good di
इन सब के जड़ में कहीं न कहीं पूंजीवादी व्यवस्था और आधिपत्य को बनाये रखने की साजिश थी, जिसका कुपरिणाम आज जाति-भेद का भयंकर और विकराल रूप हम आये दिन देख रहे हैं|
sahi lagta hai aapko.
बहुत तसल्ली और सहजता से आपने सामाजिक विषमता पर लिखा है।
स्वागत ...
आप के विचार उच्च व प्रभावशाली है किन्तु जाति नीची-ऊंची नही होती, धन और रसूख होता है, आज शहरों में किसी भी बड़े दलित नेता के पैर छूने में उच्च जाति के भद्र जन परहेज नही करते किन्तु जबव ह अपने गांव जाते है तो उसी जाति के लोगॊ से सौतेला व्यवहार करते है, और उनकी उच्च जाति की गरिमा अपने शबाब पर होती है। कभी कभी लगता है कि साम्य वाद की धारा में यदि हम बह जाय तो जाति की कुरूपता नष्ट हो सकती है। तुलसी ने भी लिखा है कि सबसे अधिक जाति अपमाना....जाति व्यक्ति का अस्तित्व होती है, हमे यदि मिटाना है तो भेदभाव न कि जातियां।
निसंदेह आपने अत्यंत नाज़ुक रग को छुआ है.हमारे देश की यह ऐसी शिरा है जो लगभग पढ़े-लिखे , अनपढ़ और शहरी-देहाती के जिस्म में तेज़ी के साथ बहती है.
दुर्भाग्य!! घोर शर्मनाक!!
सभी कुरीतियों और कुप्रथाओं में जड़ में कारण तो आर्थिक-सामाजिक शोषण ही है..... उसपर धार्मिक मुलम्मा चढ़ाकर उसके प्रति प्रतिरोध को कुंद किया जाता रहा है हमेशा से...सनातन काल से मनुष्य महानता के व्यामोह से ग्रसित है,और वो खुद को सभी से ऊपर अवस्थित देखना चाहता है ..शायद खुद को खुदा घोषित कर सर्वोपरि बन जाने की जुत्सजू है...
@आदरणीय shikha varshney जी
इत्तेफाक रखता हूँ आपकी बातो से, पता नहीं जो कुछ कहा आपने वह अजानें मे कहा या जनबुझकर, लेकिन जो कहा वह निराधार है, जेन्नी जी ने जो विषय चुना वह वास्तव में संवेदनशील है, मैं मानता हूँ कि इस व्यवस्था से समाज में कुछ विकृतियाँ जरुर फैलीं, परन्तु इस व्यवस्था को गलत ठहराना मुझे तो नहीं लगता कि किसी प्रकार से उचित होगा, ।
bhaut acha subject uthaya hai apne...
jab tak ham aadmi ko aadmi na samjhke uski jati se use janege tab tak hamare samaz ka sudhar namumkin hai
" bahut hi badhiya post ...aapko is post ke liye bahut bahut badhai "
----- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
जातिप्रथा हमारे समाज द्वारा बनाई हुई एक निरर्थक प्रथा है जिस पर आज के भ्रष्ट अवसरवादी लोग खास कर नेता कहे जाने वाले लोग अपने स्वार्थ की रोटी सेक रहे है |
जातिवाद की दीमक हमारे देश को खोखला कर रही है ..,पता नहीं कब आएगी जाग्रति ,कब जागेंगे लोग ..
बहुत ही ज्वलंत विषय पर लिखा है आपने,मुझे दाग साहब का एक शेर याद आ रह है ..
आदमियत की शर्त है ऐ 'दाग '
खूब अपना बुरा- भला समझे .
आपका तहेदिल से स्वागत है ..मक्
हिंदी ब्लाग लेखन के लिये स्वागत और बधाई । अन्य ब्लागों को भी पढ़ें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देने का कष्ट करें
narayan narayan
कली बेंच देगें चमन बेंच देगें,
धरा बेंच देगें गगन बेंच देगें,
कलम के पुजारी अगर सो गये तो
ये धन के पुजारी
वतन बेंच देगें।
हिंदी चिट्ठाकारी की सरस और रहस्यमई दुनिया में प्रोफेशन से मिशन की ओर बढ़ता "जनोक्ति परिवार "आपके इस सुन्दर चिट्ठे का स्वागत करता है . . चिट्ठे की सार्थकता को बनाये रखें .http://www.janokti.com/ ,
नमस्कार,
चिट्ठा जगत में आपका स्वागत है.
लिखते रहें!
[उल्टा तीर]
महफूज़ अली said...
आपकी यह पोस्ट बहुत अच्छी लगी....
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mahfooz sahab,
mere blog par aap tashreef laaye aur ise saraha, behad khushi hui, tahedil se aabhar.
shikha varshney said...
जेन्नी जी बहुत ही संवेदनशील विषय चुन लिया है आपने ..वाकई बहुत दुःख होता है ये निरर्थक और निराधार परम्पराओं को देख कर ...ये जातिप्रथा हमारे देश मैं कार्य विभाजन को लेकर शुरू हुई थी और अब इसने न जाने कौन सा रूप ले लिया है...जाने कब ख़तम होगी ये जानवरों वाली प्रथा.
हाँ ये शादी के बाद सरनाम वाली बात खूब कही :) मैने भी अपना नाम नहीं बदला है क्योंकि सभी कागजात में से नाम बदलना मुश्किल लग रहा था ...यहाँ तक की मेरे बच्चे भी मेरा सरनाम लगाते हैं ...और यहाँ मुझे कोई कुछ नहीं कहता...पर हाँ भारत आने पर जरुर हर कोई ये प्रश्न करता है ...और इसी बात पर मेरी भी एक बैंक मैं लड़ाई हो गई थी ..और मैने भी अपनी बात मनवा कर ही दम लिया हा हा हा
January 20, 2010 10:01 AM
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shikha ji,
sach kahu to ye surname wali pratha ka koi auchitya samajh nahin aata, pahle pita ka fir pati ka. jaati pratha ho ya anya kureetiyan jinka aam jiwan par bura asar padta hai khatm kar dena chaahiye. par ab to mumkin hin nahin. aarakshan ke faayade se kaun wanchit hona chaahega.
mere aalekh par aapke vichaar jaankar prasannata hui, yun hin mera hausla badhati rahen, dhanyawaad.
संगीता पुरी said...
जिन कामों में ज्यादा शारीरिक श्रम वो काम नीचा, ऐसा क्यूँ हुआ, कोई तथ्यपूर्ण जवाब नहीं मिलता मुझे|
ये बात मेरी समझ में भी नहीं आती है .. मैं भी इसी का जबाब ढूंढ रही हूं .. पर आज भी यही मान्यता है .. इस दुनिया में कला का कोई कद्र नहीं .. मेहनती की कोई इज्जत नहीं !!
January 20, 2010 10:08 AM
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sangeeta ji,
sahi kah rahi hain, inka jawaab kisi ko nahin mil pata, na ye maanyata badalti. fir bhi agar hum aap jaise log apne aas paas kuchh logon ko bhi is soch ke prati jaagruk karen to kuchh to sahyog hoga, na ke barabar hi sahi.
aapne mere lekh ko waqt diya aur saraha bahut bahut aabhar aapka.
शशि "सागर" said...
jenny di
aapkee bhaawnaaon ka sammaan aur salam kartaa hun.
wastitah ham chahte hee nahee hain ki ye jaatee waywasthaa mite....aur isme sirf sawarn hee nahee nimn warg ke log bhee shamil hain. har kisi ka apanaa hit sadhataa hai.
aurhaan ek baat aur hai ki "amiri ki akad tab tak rahtee hai jab tak gareebi use nihaartee hai"
hridarjiwiyon ko is kuprathaa ko khatm karne k liye saamne aana hoga.
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shashi sagar ji,
yahi to sabse badi mushkil hai ki jaati ke naam par jis tarah gandhi ji ne harijan naam diya, mayawati ne dalit, sawarn ityaadi kahkar tarah tarah ke jhaase diye gay aur chhote chhote jaati aur mazhabi muddon ko uthakar apni apni saadh puri ki gai, janta kyu nahin samajhti. dukh bahut hota.
mere aalekh ko aapne samjha aur saraha, bahut bahut shukriya.
Udan Tashtari said...
वि़चारणीय आलेख!!
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sir,
mere blog tak aane aur meri baat ko samajhne keliye bahut aabhar. aapse yun hin protsaahan ki ummid rahegi.
dhiru singh {धीरू सिंह} said...
बहुत अच्छा लिखा आपने . हमारे यहां भी छूआछूत को नही मानते .
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sir,
khushi hui ki aapke yaha chhua-chhut ki parampara nahin rahi, lekin jati pratha aur saampradaayik wibhaajan se samaj aaj rasatal me jaa chuka hai. aap sabhi agar logo mein jaagrukta laayen to nihsandeh samaj se ye buraui bhi door hogi.
aapka bahut bahut aabhar.
रश्मि प्रभा... said...
jati,dharm,unch-neech mahaj ek sankirntaa hai.....aur yah sankirnta swaarthpurn bhi hai......
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rashmi ji,
sahi kaha aapne ki swarthpurnta keliye hi aaj jaati bhed aur dharm bhed ko badhawa diya jaa raha hai.
mere lekh par waqt dene aur sarahna keliye shukriya.
kishor kumar khorendra said...
bahut achchha likha hai aapne
bahut pasand aayaa
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bhai sahab,
aapse mujhe sada protsaahan milta hai chahe meri kavita ho ya lekh. yaha aane aur sarahne keliye aapka aabhar. aap se sada yun hin sahyog ki apeksha rahti hai.
, 2010 11:43 PM
ρяєєтι said...
यह जाती - धर्म सब कुछ हमारा ही बनाया हुआ है, हम अपने स्वार्थ के लिए कभी यह तो कभी वो नियम बना लेते है, जब् तक हम सब एकजुट होकर यह जाती वाद को नहीं हटायेंगे यह होता ही रहेंगा ...!
बेहतरीन प्रस्तुति जेन्नी दी ...!
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preeti,
yahi sach hai ki humari suwidha keliye ye warn-vyawastha ki gai thee, parantu ab jab samaj viksit ho chuka iska koi auchitya nahin, lekin fir bhi kayam hai ab tak. aur ab is pratha ke karan samaj ka ghinauna roop saamne aaane laga hai. ab to naamumkin hin hai is pratha ka ant hona.
mere lekh ko aapne samjha bahut dhanyawaad.
रंजना said...
Sahi kaha aapne...kitni vidambna hai, varn vyavastha ,jise ki samaaj ko sucharu roop se chalane ke liye karm aadharit kiya gaya tha,kalantar me janmaadharit hokar samaaj ko hi chhinn bhinn kar chala...
Yah to achcha hai ki shaharon me yah apne aap teji se shithil padti ja rahi hai...
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ranjana ji,
jaati pratha samaapt nahin ho sakta. raajnitik daaw pench ne ise ghrinit roop se upjaa diya hai, aur dheere dheere aur bhi samasya vikraal hoti jaa rahi hai, aarakshan aur alpsankhyak ke aadhar par aaram se log bat jate hain. fir in suwidha ko kaun tyag kar ek barabar banna chaahega. jahan aarakshan ka sirf ek aadhar-aarthik hona chaahiye thaa.
mere lekh tak aane aur sarahna keliye bahut aabhar aapka.
GAURAV VASHISHT said...
Aapne bahut hi achche dhang se is kupratha ya kahe vichadhara ko ujgar kiya hai di. and u set the example urself, isse badhi bat kya ho sakti hai,
very good di
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gaurav bhai,
meri baat ko aapne samjha hai mere liye khushi ki baat hai. yun bhi mai jo bhi likhti sirf apni samajh aur apne anubhaw ke aadhar par likhti. aur aap ye jante hin hain.
lekh ki sarahna keliye aapka bahut dhanyawaad.
varsha said...
इन सब के जड़ में कहीं न कहीं पूंजीवादी व्यवस्था और आधिपत्य को बनाये रखने की साजिश थी, जिसका कुपरिणाम आज जाति-भेद का भयंकर और विकराल रूप हम आये दिन देख रहे हैं|
sahi lagta hai aapko.
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varsha ji,
bilkul sahi baat hai ki punjiwaadi vyawastha ko banaye rajkhne keliye kuchh khas warg par aadhpatya rakhna aawashyak hai, aur kahin na kahin iska hi parinaam hai ki ye sabhi mudde prati din badhte jaa rahe.
mere lekh par waqt dene keliy ebahut aabhar.
अजित वडनेरकर said...
बहुत तसल्ली और सहजता से आपने सामाजिक विषमता पर लिखा है।
स्वागत ...
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ajit ji,
mere lekh par aapne waqt diya aur bahut dhyaan se padhkar saraha hai, bahut aabhaar aapka.
Krishna Kumar Mishra said...
आप के विचार उच्च व प्रभावशाली है किन्तु जाति नीची-ऊंची नही होती, धन और रसूख होता है, आज शहरों में किसी भी बड़े दलित नेता के पैर छूने में उच्च जाति के भद्र जन परहेज नही करते किन्तु जबव ह अपने गांव जाते है तो उसी जाति के लोगॊ से सौतेला व्यवहार करते है, और उनकी उच्च जाति की गरिमा अपने शबाब पर होती है। कभी कभी लगता है कि साम्य वाद की धारा में यदि हम बह जाय तो जाति की कुरूपता नष्ट हो सकती है। तुलसी ने भी लिखा है कि सबसे अधिक जाति अपमाना....जाति व्यक्ति का अस्तित्व होती है, हमे यदि मिटाना है तो भेदभाव न कि जातियां।
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krishna kumar ji,
yun aapne baaki sabhi baat to satya kaha, lekin mera apna manna hai ki jatiyan ka mitna jyada zaruri hai. jaati ke aadhar par jab se aarakshan hua, jaati bhed aur bhi badh gaya. raajnitigyon ko to koi na koi aisa mudda chaahiye hota hai jisase wo logo ko aapas mein lada dein taaki unhe sahuliyat ho. dharm jaati to aan, baan aur shaan ki baat ho jati hai. mere lekh tak aane keliy eaur samajhne keliye bahut dhanyawaad.
शहरोज़ said...
निसंदेह आपने अत्यंत नाज़ुक रग को छुआ है.हमारे देश की यह ऐसी शिरा है जो लगभग पढ़े-लिखे , अनपढ़ और शहरी-देहाती के जिस्म में तेज़ी के साथ बहती है.
दुर्भाग्य!! घोर शर्मनाक!!
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shahroz sahab,
sach kaha aapne ab hamari rago mein lahu ki jagah dharm aur jaati ki kadwaahat bahti hai aur jab jaha zarurat ho apna rang dikhane lagti apne fayede keliye. chahe raajniti ho, naukri ho, shadi ho ya aam janjiwan.
meri rachna tak aapka aana aur ise samjh kar pratikriya dena mereliye khushi ki baat hai, bahut dhanyawaad.
Dr. RAMJI GIRI said...
सभी कुरीतियों और कुप्रथाओं में जड़ में कारण तो आर्थिक-सामाजिक शोषण ही है..... उसपर धार्मिक मुलम्मा चढ़ाकर उसके प्रति प्रतिरोध को कुंद किया जाता रहा है हमेशा से...सनातन काल से मनुष्य महानता के व्यामोह से ग्रसित है,और वो खुद को सभी से ऊपर अवस्थित देखना चाहता है ..शायद खुद को खुदा घोषित कर सर्वोपरि बन जाने की जुत्सजू है...
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docter sahab,
aapne bahut hin gahri samajh aur pakad ki baat kahi hai, nihsandeh saty hai yeh aur wajah bhi.
yun aap to in sabhi vicharniye samasya ke prati bahut chintansheel hain, isliye aapka yaha aan mere liye harsh ka vishay hai, aur jab mere vichar se aapki sahmati ho to mere liye utsaah ki baat hai.
bahut bahut dhanyawaad aapka.
Mithilesh dubey said...
@आदरणीय shikha varshney जी
इत्तेफाक रखता हूँ आपकी बातो से, पता नहीं जो कुछ कहा आपने वह अजानें मे कहा या जनबुझकर, लेकिन जो कहा वह निराधार है, जेन्नी जी ने जो विषय चुना वह वास्तव में संवेदनशील है, मैं मानता हूँ कि इस व्यवस्था से समाज में कुछ विकृतियाँ जरुर फैलीं, परन्तु इस व्यवस्था को गलत ठहराना मुझे तो नहीं लगता कि किसी प्रकार से उचित होगा, ।
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mithilesh ji,
shikha ji ne aisa kuchh nahi kaha jo mere vichar se alag ho. jaati pratha se kuchh khas warg ko fayada hota, khaai bhi badhti aur mukhyadhara se alag bhi kar deta. jaati bhed sirf samajik sanrachna tak seemit nahin rah gaya balki hamare jiwan ke har kshetra mein prawesh kar gaya hai. naukri, shiksha, raajniti sabhi mein iska bolbala hai.
ye apne apne vichar hain, aapke vichar jaankar mujhe is disha mein sochne ka dayara aur badh gaya.
bahut bahut dhanyawaad.
sakhi with feelings said...
bhaut acha subject uthaya hai apne...
jab tak ham aadmi ko aadmi na samjhke uski jati se use janege tab tak hamare samaz ka sudhar namumkin hai
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sakhi,
sahi kaha aapne, mera bhi yahi manna hai. kuchh jatiyan khas fayada utha leti to kuchh aur bhi pichhdepan mein dhakel dee jati.
bahut achha laga aap yaha aai, tahedil se shukriya aapka.
SACCHAI said...
" bahut hi badhiya post ...aapko is post ke liye bahut bahut badhai "
----- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
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mere lekh aapko pasand aaye, aur aapne ise saraha, bahut bahut aabhar.
mastkalandr said...
जातिप्रथा हमारे समाज द्वारा बनाई हुई एक निरर्थक प्रथा है जिस पर आज के भ्रष्ट अवसरवादी लोग खास कर नेता कहे जाने वाले लोग अपने स्वार्थ की रोटी सेक रहे है |
जातिवाद की दीमक हमारे देश को खोखला कर रही है ..,पता नहीं कब आएगी जाग्रति ,कब जागेंगे लोग ..
बहुत ही ज्वलंत विषय पर लिखा है आपने,मुझे दाग साहब का एक शेर याद आ रह है ..
आदमियत की शर्त है ऐ 'दाग '
खूब अपना बुरा- भला समझे .
आपका तहेदिल से स्वागत है ..मक्
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mastkalander ji,
mere lekh aur vichar ko aapki sahmati mili, khushi hui. sach kaha ki ye deemak ki tarah hai jo na sirf desh ko balki insaniyat ko khatm kar rahi hai. koi cheta.ta nahin, jane kyon.
daag sahab ki pankti padhkar achha laga.
yun hin sahyog ki apeksha rahegi, yaha aagman keliye bahut shukriya.
अजय कुमार said...
हिंदी ब्लाग लेखन के लिये स्वागत और बधाई । अन्य ब्लागों को भी पढ़ें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देने का कष्ट करें
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ajay sahab,
aap mere blog tak aaye bahut khushi hui, is lekh par apni pratikriya bhi dete to ek nayee soch main bhi jaan paati.
dusre blogs ko main aksar padhti hun. kahin na kahin zarur dikh jaungi.
dhanyawad aapka.
नारदमुनि said...
narayan narayan
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naradmuni ji,
narayan narayan...aapka swagat hai is lok mein, kuchh wachan bol jate to kripa hoti. narayan narayan.
जयराम “विप्लव” { jayram"viplav" } said...
कली बेंच देगें चमन बेंच देगें,
धरा बेंच देगें गगन बेंच देगें,
कलम के पुजारी अगर सो गये तो
ये धन के पुजारी
वतन बेंच देगें।
हिंदी चिट्ठाकारी की सरस और रहस्यमई दुनिया में प्रोफेशन से मिशन की ओर बढ़ता "जनोक्ति परिवार "आपके इस सुन्दर चिट्ठे का स्वागत करता है . . चिट्ठे की सार्थकता को बनाये रखें .http://www.janokti.com/ ,
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jayram ji,
mere lekh par aapka aana achha laga. bilkul sahi kaha, kalam ke pujari apni kalam mein itni dhaar rakhte hain ki koi takat unko hara nahin sakti.
mere lekh tak aane keliye bahut dhanyawaad.
Amit K Sagar said...
नमस्कार,
चिट्ठा जगत में आपका स्वागत है.
लिखते रहें!
[उल्टा तीर]
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amit ji,
mere blog par aapka swagat hai. aapki pratikriya ki apeksha rahegi. yaha aane keliye bahut shukriya.
jennyji,
aapne samaaj ki us tasveer ko samne rakha hai jo dhundhali to ho rahi hai magar uske banaye naasur aaj bhi dukh de rahe hain. bharat ganvo mein basta hai aur vahaan dher sari achchhi baaton ke alawa jatigat bhedbhav bhi jyada milta hai. aasha hai ki aane wale vaqt mein ham sirf insaan hi honge.
JK SONI
www.jksoniprayas.blogspot.com
arch 5, 2010 5:25 AM
जितेन्द्र कुमार सोनी "प्रयास" said...
jennyji,
aapne samaaj ki us tasveer ko samne rakha hai jo dhundhali to ho rahi hai magar uske banaye naasur aaj bhi dukh de rahe hain. bharat ganvo mein basta hai aur vahaan dher sari achchhi baaton ke alawa jatigat bhedbhav bhi jyada milta hai. aasha hai ki aane wale vaqt mein ham sirf insaan hi honge.
JK SONI
www.jksoniprayas.blogspot.com
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jitendra ji,
aapne ashaajanak baat kahi hai, parantu graamin pariwesh mein jaati pratha ka roop ab bhi paribhaashit hai, ki kise kya karna aur kise kya nahin karna. parantu shahri kshetra mein har koi jaati ko aadhar maanta hai, chaahe wo raajniti ho ya anya saamajik kaarya. ya fir shabdon mein na kahkar man mein jaati ki bhaawna liye rahta hai. bas fark yahi hai ki shahar mein khul kar baat kahi nahin jaati aur gaanw mein ye sab sahaj jiwan mana jata. ummid to nahin ki kabhi ye sab khatm hoga, par samaaj mein kuchh aap jaise chintansheel log hain to niraash bhi nahin hum.
bahut shukriya aapka.
hme apne aap ko kisi bhi insan se great nhi manna chahiye nhi to hum tut kr bikhar jayege
True
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