Thursday, July 18, 2024

112. भगदड़

उत्तर प्रदेश राज्य के हाथरस ज़िला में सिकंदराराव के गाँव फुलरई में 2 जुलाई 2024 को सत्संग के बाद हुई भगदड़ में 121 लोगों की मृत्यु हुई, जिनमें 113 महिलाएँ हैं। यह भगदड़ कथावाचक भोले बाबा उर्फ़ सूरज पाल उर्फ़ नारायण साकार विश्व हरि के सत्संग के बाद हुई। कथावाचन के बाद बाबा के आदेशानुसार वापस जाते समय अनुयायी बाबा का आशीर्वाद व चरण-रज लेने के लिए दौड़ पड़े, जिससे भगदड़ मच गई। 

वर्ष 2013 में 'इंटरनेशनल जर्नल ऑफ डिजास्टर रिस्क रिडक्शन' में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि भारत में 79% भगदड़ धार्मिक सभाओं और तीर्थयात्राओं के कारण होती है। यह भी पाया गया कि ये धार्मिक सामूहिक आयोजन अक्सर ग्रामीण क्षेत्रों में किए जाते हैं, जहाँ बुनियादी सुविधाएँ नहीं होने के कारण ख़तरा बना रहता है।  

वैज्ञानिकों ने एक डाटाबेस तैयार किया है, जिसके आँकड़े के अनुसार भारत और पश्चिमी अफ्रीका भगदड़ की दुर्घटनाओं का सबसे बड़ा केन्द्र बनता जा रहा है। सबसे ज़्यादा खेल और धार्मिक आयोजनों में ऐसी दुर्घटनाएँ होती हैं।

भीड़ पर से नियंत्रण ख़त्म हो जाए या भीड़ प्रबन्धन असफल हो जाए तो भगदड़ मच जाती है; भीड़ के एकत्रित होने का कारण कुछ भी हो सकता है। न सिर्फ़ भारत में बल्कि विदेशों में भी ऐसी कई दुर्घटनाएँ हुईं हैं। न सिर्फ़ धार्मिक आयोजन बल्कि अन्य कार्यक्रम जहाँ भीड़ बहुत होती है, ऐसे हादसे होते हैं। 

वर्ष 1989 में ब्रिटैन के शेफील्ड के एक स्टेडियम में एक मैच के दौरान प्रशंसकों की भीड़ अनियंत्रित हो गई, जिसमें 96 लोग मारे गए। वर्ष 2001 में अफ्रीका के अकरा के एक स्टेडियम में अनियंत्रित प्रशंसको पर पुलिस द्वारा आँसू-गैस छोड़े जाने पर भगदड़ हो गई, जिसमें 126 लोग मारे गए। वर्ष 2022 में इंडोनेशिया के एक स्टेडियम में भगदड़ के कारण 125 लोग मारे गए। 

अंतरजाल पर मिली सूचनाओं के अनुसार भारत और विदेशों की भगदड़ की बड़ी दुर्घटनाओं का विवरण निम्न है- 

*वर्ष 2003 में महाराष्ट्र के नासिक ज़िले सिंहस्थ कुम्भ मेले में पवित्र स्नान के दौरान हुए भगदड़ में 39 लोगों की मौत हुई। 
*वर्ष 2005 में महाराष्ट्र के सतारा ज़िले में मंधारदेवी मन्दिर में वार्षिक तीर्थयात्रा के दौरान 340 लोगों की मौत हुई। 
*वर्ष 2008 में हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर ज़िले के नैना देवी मन्दिर में चट्टान खिसकने की अफ़वाह से मचे भगदड़ में 162 लोगों की मौत हुई। 
*वर्ष 2008 में राजस्थान के जोधपुर में चामुण्डा देवी मन्दिर में बम विस्फोट की अफ़वाह के भगदड़ में 250 लोगों की मौत हुई। 
*वर्ष 2010 में उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ ज़िले में राम जानकी मन्दिर में कृपालु महाराज द्वारा दान दिए जा रहे खाना व कपड़ा लेने के दौरान मची भगदड़ में 63 लोगों की मौत हुई। 
*वर्ष 2011 में केरल के इडुक्की ज़िले में सबरीमाला मन्दिर से दर्शन कर लौट रहे लोगों से एक जीप के टकरा जाने के बाद मची भगदड़ में 104 लोगों की मौत हुई। 
*वर्ष 2011 में उत्तराखण्ड में हरिद्वार के हर की पौड़ी के भगदड़ में 20 लोगों की मौत हुई। 
*वर्ष 2012 में बिहार के पटना में गंगा नदी के घाट पर छठ पूजा के दौरान अस्थायी पुल के ढहने से हुई भगदड़ में 20 लोगों की मौत हुई। 
*वर्ष 2013 में मध्य प्रदेश के दतिया ज़िले में रतनगढ़ मन्दिर के पास नवरात्रि उत्सव के दौरान पुल टूटने की अफ़वाह से मची भगदड़ में 115 लोगों की मौत हुई। 
*वर्ष 2014 में बिहार के पटना के गाँधी मैदान में दशहरा समारोह की समाप्ति के तुरन्त बाद मची भगदड़ में 32 लोगों की मौत हुई। 
*वर्ष 2015 में आंध्र प्रदेश के राजमुंदरी ज़िले में पुष्करम उत्सव के दिन गोदावरी नदी के तट के स्नान स्थल पर भगदड़ में 27 लोगों की मौत हुई। 
*वर्ष 2022 में जम्मू-कश्मीर के माता वैष्णो देवी मन्दिर में भीड़ के कारण हुई भगदड़ में 12 लोगों की मौत हुई। 
*वर्ष 2023 में इंदौर के बेलेश्वर महादेव झूलेलाल मन्दिर में रामनवमी के अवसर पर आयोजित हवन कार्यक्रम के दौरान बावड़ी का स्लैब ढह जाने से 36 लोगों की मौत हुई। 

*वर्ष 1990 में सऊदी अरब के मक्का के अल-मुआइसम सुरंग में ईद-उल-अजहा के मौक़े पर हज यात्रा के दौरान भगदड़ में 1426 लोगों की मौत हुई।
*वर्ष 1994 सऊदी अरब के मक्का के पास जमरात पुल के पास शैतान को पत्थर मारने के हज-रस्म के दौरान हुए भगदड़ में 270 लोगों की मौत हुई। 
*वर्ष 2004 में ही जमारात ब्रिज के पास शैतान को पत्थर मारने के हज-रस्म के भगदड़ में 251 लोगों की मौत हुई। 
*वर्ष 2022 में दक्षिण कोरिया के सियोल में हैलोवीन समारोह की भगदड़ में 151 लोगों की मौत हुई। 

इन तथ्यों से स्पष्ट है कि भारत हो या विदेश हर जगह हीरो-वर्शिप (Hero-worship) की जाती है; चाहे वह खेल का मैदान हो या किसी बाबा या ईश्वर के लिए अंधभक्ति। पूजा, प्रेम, भक्ति, आदर, सम्मान, अनुराग, आराधना, सम्मान, पसन्द इत्यादि होना ग़लत नहीं है। ग़लत तो तब होता है जब इनमें से किसी की भी अति हो, और इसी अति का दुष्परिणाम है ऐसा हादसा।  

धर्म के नाम पर न जाने कितनी सदियों से अत्याचार हो रहे हैं और यह सब जानकर भी लोग इसमें फँस जाते हैं। चाहे वह किसी भी धर्म या संप्रदाय की बात क्यों न हो। ईसाई समाज के बाबा दूर खड़े मंत्र पढ़ते हैं और लोग गिरने लगते हैं। हर रविवार को विशेष प्रार्थना के लिए हर ईसाई का चर्च में जाना अनिवार्य है। ऐसे ही मुस्लिम समाज में मुल्ला-मौलवी ने जो कह दिया वह पत्थर की लकीर है। मक्का-मदीना जाना है तो जाना है, भले शरीर से लाचार हो। हिन्दू देवी-देवताओं के अधिकतर मशहूर मन्दिर पहाड़ों पर या ऊँचे स्थानों पर बने हुए हैं; भले जान चली जाए पर वहाँ जाना ही है। 

बेहद आश्चर्य होता है कि आज का सभ्य और शिक्षित समाज ऐसे बाबाओं के चक्कर में कैसे फँस जाता है; गाँव हो या शहर। स्त्रियाँ इन बाबाओं के चंगुल में ज़्यादा फँसती हैं और अपना सर्वस्व लुटा बैठती हैं, चाहे वे शिक्षित हों या अशिक्षित। कुछ दशक पहले तक बहुत कम लोग अंधभक्त होते थे। नित्य-क्रिया की तरह पूजा-पाठ, वंदना, नमाज़ या प्रार्थना किया करते थे। जिस ख़ास दिन पर कोई उत्सव हो वह मनाया करते थे। परन्तु अब यह सब फ़ैशन की तरह हो गया है। उस पर से हर कुछ दिन में एक नया बाबा आ जाता है और लोग पुण्य कमाने उसके पास दौड़ पड़ते हैं। सोच, समझ, शिक्षा, विज्ञान, तकनीक सबको पछाड़ दे रहा है यह बाबा-मुल्ला समाज। इनके तर्कहीन, अवैज्ञानिक और अनर्गल बातों पर विशवास कर लोग इनका अनुसरण और अनुकरण करते हैं और किसी-न-किसी हादसे का शिकार हो जाते हैं। राम रहीम, निर्मल बाबा, आसाराम, सूरज पाल या अन्य बाबा; इन सभी ने स्त्रियों पर अत्याचार किया और कितनों की जान ले चुके हैं। 

निःसन्देह बाबा-मुल्ला दोषी है; लेकिन हमारा अशिक्षित समाज ज़्यादा दोषी है। धन, सुख, पद, प्रतिष्ठा, संतान, मनोकामना इत्यादि का लोभ और ईश्वर का डर मनुष्य को इन पाखण्डियों के नज़दीक ले जाता है और फिर वे इसका फ़ायदा उठाते हैं। हर धर्म-ग्रन्थ में प्रेम, दया, अहिंसा, मर्यादा, मोक्ष की बातें बताई गई हैं; परन्तु लोग इसे न अपनाकर मन्दिर-मस्जिद-चर्च में भटक रहे हैं और बाबाओं, मुल्लों, पादरियों के चक्कर में पड़ रहे हैं।      

जान-बूझकर पाप करना ही क्यों, जो पुण्य के चक्कर में मन्दिर-मस्जिद भटकना पड़े, बाबाओं या पंडितों से निदान का उपाय करवाना पड़े। जो भी संत, महात्मा, फ़क़ीर या गुरु होते हैं, वे भीड़ जुटाकर लोगों को बरगलाकर जबरन अपनी प्रतिष्ठा नहीं करवाते, न तो वे चमत्कार दिखाते हैं, न अनुयायियों की संख्या बढ़ाते हैं। लेकिन पाखण्डी जादू-टोना, तंत्र-मंत्र, तरह-तरह के अनुष्ठान क्रिया आदि करके लोगों के दिमाग़ को क़ैद कर लेते हैं और इसका दुरूपयोग कर अपना धन-बल बढ़ाते हैं।    

निःसन्देह हमारी शिक्षा सही नहीं है, हमारे संस्कार सही नहीं है। अन्यथा लोग वर्तमान जीवन का कर्म छोड़कर मृत्यु टालने और मृत्यु के बाद के सुख के लोभ में न पड़ते, न ऐसे पाखण्डी बाबाओं के चक्कर में पड़कर जान गँवाते। जो बाबा आपसी भाईचारा मिटा रहा है, समाज में आपस में दूरी बढ़ा रहा है, अमीर-ग़रीब का दो समाज बाँट रहा है, शिक्षित को भी अंधविश्वास के कुँआ में धकेल रहा है, अशिक्षित को और भी पिछड़ा बना रहा है; ऐसा बाबा हो मुल्ला हो या पादरी या अन्य कोई भी धर्म का ठेकेदार हमें उससे दूर रहना होगा ताकि उसका धर्म का धंधा बंद हो सके। 

धार्मिक आयोजन या यात्राओं में जितने भी भगदड़ हुए हैं, इन सभी के दोषी हम सब हैं, हमारा शिक्षित समाज है और हमारी सरकार। अपने-अपने धर्म, सम्प्रदाय और नियम का पालन लोग अपने-अपने घरों में करें। सरकार को चाहिए कि सार्वजनिक जगह पर सार्वजनिक रूप से धार्मिक आयोजन को बंद करवाए। जिसे प्रार्थना, नमाज़, पूजा-पाठ या कोई ख़ास अनुष्ठान करना है, वह अपने-अपने घरों में करे या फिर जो भी मन्दिर-मस्जिद-गिरजाघर पहले से है, वहाँ जाकर करे। सभी पाखण्डी बाबाओं, मुल्लों, पादरियों व नक़ली धर्म गुरुओं को कठोर दण्ड मिलना चाहिए ताकि आगे कोई बाबा बनने की हिम्मत न करे। अन्यथा लोग ऐसे ही अंधभक्ति में पड़कर जान-माल गँवाते रहेंगे, बाबा बेफ़िक्र रहकर नया-नया अनुयायी बनाता रहेगा, सरकार मुआवज़ा देती रहेगी। अगर कोई ईश्वर कहीं होता होगा, तो मनुष्य के इस गँवारूपन पर हँसता होगा। 

- जेन्नी शबनम (18.7.2024)

_____________________ 

12 comments:

विजय कुमार सिंघल 'अंजान' said...

अच्छा लिखा है

ऋता शेखर 'मधु' said...

भगदड़ के आँकड़े वाकई सोचनीय, अंधविश्वास के कारण हुई घटनाओं से सबक लेकर लोगों को जागरूक और सावधान करती पोस्ट के लिए साधुवाद !

रचना दीक्षित said...

शोधपरक, विस्तृत और ज्ञानवर्धक आलेख
बधाई स्वीकारें🙏🙏👌👌

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

जब तक अधर्मी भीड़ सांसारिकलोभ के वशीभूत होकर बिना कर्म किए केवल आशीर्वाद के बल पर चमत्कार की एषणा करती रहेगी तब तक बाबाओं की सत्ता बनी रहेगी। ऐसे चमत्कारी आयोजनों को प्रतिबंधित करने के लिए कानून का उपयोग न करने वाली प्रशासनिक व्यवस्था भी उतनी ही दोषी है जितने कि मूर्ख जनता।

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

जब तक अधर्मी भीड़ सांसारिकलोभ के वशीभूत होकर बिना कर्म किए केवल आशीर्वाद के बल पर चमत्कार की एषणा करती रहेगी तब तक बाबाओं की सत्ता बनी रहेगी। ऐसे चमत्कारी आयोजनों को प्रतिबंधित करने के लिए कानून का उपयोग न करने वाली प्रशासनिक व्यवस्था भी उतनी ही दोषी है जितने कि मूर्ख जनता।

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

जब तक अधर्मी भीड़ सांसारिकलोभ के वशीभूत होकर बिना कर्म किए केवल आशीर्वाद के बल पर चमत्कार की एषणा करती रहेगी तब तक बाबाओं की सत्ता बनी रहेगी। ऐसे चमत्कारी आयोजनों को प्रतिबंधित करने के लिए कानून का उपयोग न करने वाली प्रशासनिक व्यवस्था भी उतनी ही दोषी है जितने कि मूर्ख जनता।

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

जब तक अधर्मी भीड़ सांसारिकलोभ के वशीभूत होकर बिना कर्म किए केवल आशीर्वाद के बल पर चमत्कार की एषणा करती रहेगी तब तक बाबाओं की सत्ता बनी रहेगी। ऐसे चमत्कारी आयोजनों को प्रतिबंधित करने के लिए कानून का उपयोग न करने वाली प्रशासनिक व्यवस्था भी उतनी ही दोषी है जितने कि मूर्ख जनता।

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

जब तक अधर्मी भीड़ सांसारिकलोभ के वशीभूत होकर बिना कर्म किए केवल आशीर्वाद के बल पर चमत्कार की एषणा करती रहेगी तब तक बाबाओं की सत्ता बनी रहेगी। ऐसे चमत्कारी आयोजनों को प्रतिबंधित करने के लिए कानून का उपयोग न करने वाली प्रशासनिक व्यवस्था भी उतनी ही दोषी है जितने कि मूर्ख जनता।

Pallavi saxena said...

शिक्षाप्रद आलेख 👍🏼

रेखा श्रीवास्तव said...

आपने बहुत ही सारगर्भित लेख लिखा है, जिसमें वैश्विक स्तर के आंकड़ों और घटनाओं के संकलन से लेख की सार्थकता अधिक हो गयी है। अन्धविश्वास और आस्था में एक पतली सी रेखा है जो उनको अलग करती है। आस्था कब अविश्वास का रूप ले ले , ये कोई भी नहीं जानता है, लेकिन इसमें आयोजन से पहले वहां की व्यवस्था के बारे में प्रशासन की जिम्मेदारी होती है और इसमें ज्यादातर लापरवाही होती है।  आयोजकों का भी इसमें दायित्व कम नहीं होता है कि वे प्रशासन को भीड़ के बारे में पूरी जानकारी नहीं देते हैं।  इसमें स्थानीय लोगों को ही अगर शामिल कर लें तो भी बहुत है।  स्वयंसेवक भी इन स्थितियों से निबट सकते हैं।
                           तथाकथित बाबा जी की भूमिका भी काम नहीं मणि जा सकती है क्योंकि किसी की चरण राज लेने से ही अगर सारे काम हो गए होते तो फिर बाबा जी जगह जगह आश्रम और प्रवचन का आयोजन क्यों कर रहे होते। भूमिगत क्यों हो जाते ? सामने आकर उत्तर देते। अब तक अन्धविश्वास बना रहेगा तब तक हम इन घटनाओं को रोक नहीं सकते हैं।

Anonymous said...

सारगर्भित, शिक्षाप्रद आलेख। अंधविश्वास के कारण ही ऐसी घटनाएँ होती हैं। अशिक्षित ही नहीं मध्यम वर्गीय शिक्षित लोग भी इन तथाकथित बाबाओं के चक्रव्यूह में फँसते हैं।अपूर्ण व्यवस्था और प्रबंधन ठीक न होने के कारण ऐसी घटनाएँ घटती है। लोगों को जाग्रत करने की अत्यंत आवश्यकता है । सुदर्शन रत्नाकर

प्रियंका गुप्ता said...

बहुत सार्थक और तार्किक लेख है, हार्दिक बधाई