Monday, February 7, 2022

93. छुप-छुप खड़े हो की मेरी लता


लता मंगेशकर का मतलब मेरे लिए है उनका गाया गीत ''चुप-चुप खड़े हो ज़रूर कोई बात है...।" यह गाना मेरी ज़बान पर चढ़ गया था और मैं अपने पापा को यह गाकर चिढ़ाती थी। मेरे पापा गाना सुनने के बहुत शौकीन थे; घर में एक रेडियो-रेकॉर्ड प्लेयर और ढेरों रेकॉर्ड थे। मेरे घर में दिनभर गाना बजता रहता था। उन दिनों गीत के बोल मेरी समझ में नहीं आते थे, और अपनी समझ से कोई भी शब्द जोड़ देती थी। उन्हीं में यह गीत था चुप-चुप खड़े हो, जिसके बोल मेरे लिए थे छुप-छुप खड़े हो...। पापा अपने कमरे में ही ज़्यादा समय पढ़ते-लिखते रहते थे। मुझे लगता कि पापा सबसे छुपकर कमरे हैं और मैं जैसे लुका-चोरी खेलने में उनको पकड़ ली होऊँ, मैं ऊँगली के इशारे से बोलती, "पापा, हम तुमको पकड़ लिए। छुप-छुप खड़े हो ज़रूर कोई बात है...।" 
लता मंगेशकर को मैंने अपने पापा के माध्यम से जाना है। हालाँकि उस उम्र में मुझे नहीं मालूम था कि गाना किसने गाया और रेकॉर्ड में बजता कैसे है। 'हिज मास्टर्स वॉइस' के रेकॉर्ड में लाउडस्पीकर के सामने एक कुत्ता बैठा रहता है। मैं सोचती थी कि वह कुत्ता कितना अच्छा गाता है, औरत-मर्द दोनों की आवाज़ में गाता है। लेकिन बाहर का कुत्ता क्यों नहीं गाता, सिर्फ भौं-भौं क्यों करता है? यह ऐसा अनसुलझा प्रश्न था जो मैं सोचती रहती थी, आश्चर्यचकित रहती थी, मेरी खोजबीन जारी थी। लेकिन इसका उत्तर कभी पूछा नहीं किसी से। जब समझ आया कि गाना इंसान गाता है, तो अपनी मूर्खता पर चुचाप ख़ुद ही हँसती थी।
सैकड़ों रेकॉर्ड थे, जिसमें सभी गायक-गायिका और फिल्म के गाने थे। जब थोड़ी समझ खुली तो सोचती थी कि जिस रेकॉर्ड पर जिस फ़िल्म का गाना है तो उस फिल्म के कलाकारों ने गाना गाया है। पाकीज़ा है तो मीनाकुमारी, नीलकमल है तो वहीदा रहमान-राज कुमार, हमराज़ है तो विम्मी-राजकुमार, वक़्त है तो साधना-सुनील दत्त आदि। तब नहीं मालूम था कि गीतकार, संगीतकार, गायक, कलाकार आदि सब अलग-अलग लोग होते हैं। जब यह राज़ हमपर खुला तब अपनी मंदबुद्धि के लिए शर्मिन्दा होती रही, बिना किसी को बताए। मुमकिन है मम्मी-पापा से अपनी मूर्खता बताई रही होऊँ, जो मुझे अब याद नहीं है। 

जब गाना की समझ आई फिर तो लता ही लता मेरी चारों तरफ़। लता के दर्द भरे गाने मुझे इतने पसंद आते थे जैसे कि मैं संगीत में दक्ष वयस्क स्त्री हूँ और गीत के बोल और भाव बहुत अच्छी तरह समझती हूँ। हालाँकि तब भी गीत के बोल में मेरे शब्द भण्डार से शब्द जुड़ते रहते थे। उन दिनों उर्दू शब्द का ज़रा भी ज्ञान नहीं था मुझे। उम्र के साथ सोच विकसित हुआ और तब गीत, संगीत और गाना का मतलब समझ आया। फिर तो गाना मेरी ज़िन्दगी का अहम् हिस्सा बन गया। गाना सुने बिना पढ़ाई भी नहीं होती थी मेरी। मैं कई बार सोचती हूँ कि संगीत से मुझे इतना लगाव है, लेकिन एक पंक्ति भी क्यों नहीं सकी, हालाँकि कोशिश बहुत की मैंने। 

न सिर्फ़ लता बल्कि सुरैया, नूरजहां, बेगम अख्तर, फरीदा खानुम, आशा भोंसले, मोहम्मद रफ़ी, सुमन कल्याणपुर, मीना कुमारी, मन्ना डे, सहगल, महेंद्र कपूर, हेमन्त कुमार, किशोर कुमार, एस. डी. बर्मन आदि सभी गायकों के गानों की लम्बी फ़ेहरिस्त बनती चली गई। कुछ नाम भूल रही हूँ, लेकिन ये सभी मेरे पसंदीदा गायक-गायिका हैं जिन्हें जितना भी सुनूँ मन नहीं भरता है।  रेकार्ड के ज़माने से शुरू हुआ मेरा संगीत प्रेम कैसेट, सी डी, मेमोरी कार्ड से होते हुए अन्तर्जाल के विभिन्न साइट तक पहुँच गया है। जब ग़ज़ल की समझ आई तब मेँहदी हसन, ग़ुलाम अली, पंकज  उदास, जगजीत सिंह, चित्र सिंह आदि को ख़ूब सुनती रही हूँ। ग़ुलाम अली को तो जैसे मैं लोरी के रूप में सुनती हूँ। ग़ुलाम साहब को सुनते-सुनते ही सोती हूँ। लता मंगेशकर और जगजीत सिंह के ग़ज़ल का एल्बम 'सजदा' मेरा पसंदीदा है। लता जी का गाया गीत 'ऐ मेरे वतन के लोगों, ज़रा आँख में भर लो पानी...' जब भी जितनी बार भी सुनती हूँ, आँखें भींग जाती हैं और रोआँ-रोआँ सिहर जाता है। 

किस-किस गानों की चर्चा करूँ, किस-किस गायक-गायिकाओं की चर्चा करूँ, फ़ेहरिस्त इतनी लम्बी है कि मेरी यादें कमज़ोर पड़ जाती हैं। गाना-ग़ज़ल के प्रति मेरी दीवानगी ख़त्म नहीं होती। रफ़ी साहब के प्रति मेरी दीवानगी तो आज भी परले दर्जे की है। उनके ख़िलाफ़ मैं कुछ सुन ही नहीं सकती। जब रफ़ी साहब का इंतकाल हुआ था तब मैं सोचती थी कि रफ़ी के बिना संगीत की दुनिया कैसे चलेगी? आज सोच रही हूँ कि लता जी के बिना संगीत की दुनिया कैसी होगी? 
समय-चक्र और जीवन-चक्र अपनी धुरी पर चलता है, चलता रहेगा; हम हों न हों कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा। यह मालूम है, संसार से सबको नियत समय पर जाना है। परन्तु उन कुछ लोगों का जाना बहुत दुःख देता है, जिनसे हम प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े होते हैं। लता जी ने तो करोड़ों ही नहीं असंख्य लोगों के दिल पर राज किया है, चाहे वे देशी हों या परदेशी। लता जी का गाया गीत- 'नाम गुम जाएगा चेहरा ये बदल जाएगा, मेरी आवाज़ ही पहचान है, गर याद रहे...।', मैं सोचती हूँ कि लता जी का न कभी नाम गुम होगा, न कोई चेहरा भूलेगा, हर एक की लता दीदी अपनी आवाज़ के रूप में हमारे साथ सदियों-सदियों जीती रहेंगी। मेरे लिए तो छुप-छुप खड़े हो की लता चुप-चुप दुनिया से विदा हो गईं और अपनी आवाज़ जो इस दुनिया की धरोहर है, हमारे लिए छोड़ गईं। 

लता जी को हार्दिक श्रद्धांजलि!
- जेन्नी शबनम (6. 2. 2022)
___________________

 

10 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (09-02-2022) को चर्चा मंच      "यह है स्वर्णिम देश हमारा"   (चर्चा अंक-4336)      पर भी होगी!
--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
-- 
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'    

Anita said...

अति सुंदर संस्मरण के द्वारा लता जी को भावभीनी श्रद्धांजलि

Divik Ramesh said...

बेहतरीन

शिवजी श्रीवास्तव said...

'जब गाना की समझ आई फिर तो लता ही लता मेरी चारों तरफ़।'...यही आलम था उस दौर में हम सब का।लता जी का जादू सर चढ़ कर बोलता था।बहुत सुंदर संस्मरणों द्वारा श्रद्धांजलि दी है आपने।लता जी को नमन।

जयकृष्ण राय तुषार said...

लता जी को शब्दों ,संस्मरणों में बांधना बहुत मुश्किल है।सुंदर शब्द श्रद्धांजलि।

शिवजी श्रीवास्तव said...

'जब गाना की समझ आई फिर तो लता ही लता मेरी चारों तरफ़।'...यही आलम था उस दौर में हम सब का।लता जी का जादू सर चढ़ कर बोलता था।बहुत सुंदर संस्मरणों द्वारा श्रद्धांजलि दी है आपने।लता जी को नमन।

Ramesh Kumar Soni said...

हम उस पीढ़ी के लोग हैं जो गर्व से कह सकते हैं कि हमने लता जी को सुना है। अविस्मरणीय सुनहरी यादों की यह एक धरोहर अब हमारे पास है जिसे हम गुनगुना सकते हैं। लता जी के जाने का दुःख हुआ।

विनोद पाराशर said...

शानदार!
आलेख
लता जी को विनम्र श्रद्धांजलि!��

रवीन्द्र प्रभात said...

बहुत सुन्दर और सारगर्भित आलेख, लता जी को विनम्र श्रद्धांजलि।

प्रियंका गुप्ता said...

लता जी और संगीत...जैसे एक दूसरे के पूरक हों । आपकी इस पोस्ट की जाने कितनी बातें बिलकुल अपने दिल से निकली सी लगीं । लता जी को विनम्र श्रद्धांजलि |