साहिल जी और मैं |
आदरणीय श्री राम चन्द्र वर्मा 'साहिल', विख्यात कवि, ग़ज़लकार तथा महानगर टेलीफ़ोन निगम लिमिटेड से अवकाश प्राप्त अधिकारी, ने मेरी पुस्तक 'लम्हों का सफ़र' की बहुत सुन्दर और सार्थक समीक्षा की है।
उन्होंने एक नहीं दो बार मेरी पुस्तक को पढ़ा है, इसका कारण वे ख़ुद बता रहे हैं।
मैं हृदय तल से कृतज्ञ हूँ कि उन्होंने मेरी रचनाओं को तथा मुझे इतना मान दिया है।
साहिल जी का स्नेह और आशीष सदा मुझे मिलता रहे यही कामना है।
साहिल जी को आभार के साथ, उनके द्वारा की गई समीक्षा प्रस्तुत कर रही हूँ।
'लम्हों का सफ़र' की समीक्षा
- राम चन्द्र वर्मा 'साहिल'
देर-आयद, दुरुस्त-आयद - इस लोकोक्ति का अर्थ प्रायः यह लिया जाता है कि देर से तो आए, चलो आए तो सही। परन्तु मैं मज़ाक के तौर पर इसका अर्थ ऐसे करता हूँ कि जो भी देर से आया या जो कार्य देर से किया गया, वही दुरुस्त है। ऐसा इसलिए भी कह रहा हूँ कि जिस कविता-संग्रह (लम्हों का सफ़र) का मैं यहाँ उल्लेख कर रहा हूँ, डॉ. जेन्नी शबनम का यह संग्रह मुझे बहुत समय पहले मिला था। पढ़ने के बाद मुझे लगा कि इसके विषय में मुझे जो भी लिखना था शायद मैं लिखकर शबनम जी के पास भेज चुका हूँ। परन्तु यह मेरी चूक थी, ऐसा हुआ नहीं था; यह बहुत बाद में मुझे आभास हुआ। इस चूक के लिये क्षमाप्रार्थी हूँ।
इस संग्रह की प्रायः सभी रचनाएँ मैं पढ़ चुका था। अब क्योंकि समय बहुत बीत गया, रचनाएँ फिर से पढ़ीं। हर रचना के अवलोकन पर ऐसा लगा जैसे किसी अलग ही दुनिया में पहुँच गया हूँ। हर रचना अपने आप में अनूठी तथा अपने अन्दर बहुत कुछ समेटे हुए लगी। कुछ रचनाओं का उल्लेख बहुत ही आवश्यक लग रहा है, जैसे-
पहली कविता 'जा तुझे इश्क़ हो', इसका शीर्षक ही ऐसा दिया गया है जो कुछ सोचने पर विवश कर देता है। जैसे यह प्यार में बहुत गहरी चोट खाए किसी प्रेमी के दिल से निकली आह हो। और जो कुछ उसने भुगता है वह चाहता है कि सामने वाला भी इसे भुगते। इसकी ये पंक्तियाँ देखिए-
''तुम्हें आँसू नहीं पसंद / चाहे मेरी आँखों के हों / या किसी और के / चाहते हो हँसती ही रहूँ / भले ही वेदना से मन भरा हो / ... कैसे इतने सहज होते हो / फ़िक्रमंद भी हो और / बिंदास हँसते भी रहते हो।''
'पगडंडी और आकाश', इसके भी अंश देखिएगा-
''पगडंडी पर तुम चल न सकोगे / उस पर पाँव-पाँव चलना होता है / और तुमने सिर्फ़ उड़ना जाना है।...
हथेली पर आसमान को उतारना / तुम अपनी माटी को जान लेना / और मैं उस माटी से बसा लूँगी एक नयी दुनिया / जहाँ पगडंडी और आकाश / कहीं दूर जाकर मिल जाते हों।''
'बाबा आओ देखो! तुम्हारी बिटिया रोती है', इस रचना में बिटिया की अंतर्वेदना को स्वयं महसूस कीजिए-
''क्यों चले गए, तुम छोड़ के बाबा / देखो बाप बिन बेटी, कैसे जीती है / बूँद आँसू न बहे, तुमने इतने जतन से पाले थे / देखो आज अपनी बिटिया को, अपने आँसू पीती है।''
'वो अमरूद का पेड़', जहाँ लेखिका कदाचित स्वयं को खोज रही है-
''वो लड़की, खो गई है कहीं / बचपन भी गुम हो गया था कभी / उम्र से बहुत पहले, वक़्त ने उसे / बड़ा बना दिया था कभी / कहीं कोई निशानी नहीं उसकी / अब कहाँ ढूँढूँ उस नन्ही लड़की को?''
'इकन्नी-दुअन्नी और मैं चलन में नहीं', इस रचना में समय का बदलता रूप और उससे उपजी मानव-विवशताओं को शबनम जी ने किस प्रकार उकेरा है-
''वो गुल्लक फोड़ दी / जिसमें एक पैसे दो पैसे, मैं भरती थी / तीन पैसे और पाँच पैसे भी थे, थोड़े उसमें / सोचती थी ख़ूब सारे सपने खरीदूँगी इससे / इत्ते ढेर सारे पैसों में, तो ढेरों सपने मिल जाएँगे /...
अब क्या करूँ इन पैसों का?''
'उठो अभिमन्यु', इस कविता में कवयित्री ने अभिमन्यु के वीर-गति प्राप्त हो जाने पर गर्भवती अभिमन्यु-पत्नी 'उत्तरा' गर्भ में पल रहे शिशु को कैसी उत्साहवर्द्धक प्रेरणा दे रही है, इसका मार्मिक वर्णन इस पद्यांश में देखिए-
''क्यों चले गए, तुम छोड़ के बाबा / देखो बाप बिन बेटी, कैसे जीती है / बूँद आँसू न बहे, तुमने इतने जतन से पाले थे / देखो आज अपनी बिटिया को, अपने आँसू पीती है।''
'वो अमरूद का पेड़', जहाँ लेखिका कदाचित स्वयं को खोज रही है-
''वो लड़की, खो गई है कहीं / बचपन भी गुम हो गया था कभी / उम्र से बहुत पहले, वक़्त ने उसे / बड़ा बना दिया था कभी / कहीं कोई निशानी नहीं उसकी / अब कहाँ ढूँढूँ उस नन्ही लड़की को?''
'इकन्नी-दुअन्नी और मैं चलन में नहीं', इस रचना में समय का बदलता रूप और उससे उपजी मानव-विवशताओं को शबनम जी ने किस प्रकार उकेरा है-
''वो गुल्लक फोड़ दी / जिसमें एक पैसे दो पैसे, मैं भरती थी / तीन पैसे और पाँच पैसे भी थे, थोड़े उसमें / सोचती थी ख़ूब सारे सपने खरीदूँगी इससे / इत्ते ढेर सारे पैसों में, तो ढेरों सपने मिल जाएँगे /...
अब क्या करूँ इन पैसों का?''
'उठो अभिमन्यु', इस कविता में कवयित्री ने अभिमन्यु के वीर-गति प्राप्त हो जाने पर गर्भवती अभिमन्यु-पत्नी 'उत्तरा' गर्भ में पल रहे शिशु को कैसी उत्साहवर्द्धक प्रेरणा दे रही है, इसका मार्मिक वर्णन इस पद्यांश में देखिए-
''क्यों चाहते हो, सम्पूर्ण ज्ञान गर्भ में पा जाओ / क्या देखा नहीं, अर्जुन-सुभद्रा के अभिमन्यु का हश्र / छः द्वार तो भेद लिए, लेकिन अंतिम सातवाँ / वही मृत्यु का कारण बना / या फिर सुभद्रा की लापरवाह नींद / नहीं-नहीं, मैं कोई ज्ञान नहीं दूँगी / न किसी से सुनकर, तुम्हें बताऊँगी / तुम चक्रव्यूह रचना सीखो / स्वयं ही भेदना और निकलना सीख जाओगे।''
'नन्ही भिखारिन' में शबनम जी का संवेदनशील हृदय नन्ही भिखारिन से बात करते कैसे पीड़ा से रिसता है, देखिए-
'नन्ही भिखारिन' में शबनम जी का संवेदनशील हृदय नन्ही भिखारिन से बात करते कैसे पीड़ा से रिसता है, देखिए-
यह उसका दर्द है / पर मेरे बदन में क्यों रिसता है? / या ख़ुदा! नन्ही-सी जान, कौन सा गुनाह था उसका? / शब्दों में ख़ामोशी, आँखों में याचना, पर शर्म नहीं / हर एक के सामने, हाथ पसारती।''
'हँसी, ख़ुशी और ज़िन्दगी बेकार है पड़ी', ज़िन्दगी का क्या चित्रण किया गया है इस रचना में; कुछ पंक्तियाँ देखते चलें-
'हँसी, ख़ुशी और ज़िन्दगी बेकार है पड़ी', ज़िन्दगी का क्या चित्रण किया गया है इस रचना में; कुछ पंक्तियाँ देखते चलें-
हँसी बेकार पड़ी है, यूँ ही एक कोने में कहीं / ख़ुशी ग़मगीन रखी है, ज़ीने में कहीं / ज़िन्दगी गुमसुम खड़ी है, अँगने में कहीं / अपने इस्तेमाल की आस लगाए / ठिठके सहमे से हैं सभी।''
इसी प्रकार कई चुनिन्दा कविताएँ हैं जिन्होंने मुझे उद्वेलित किया है। मैं चाहता तो हूँ सभी का थोड़ा-थोड़ा उल्लेख करना, परन्तु डर है कि कहीं ऐसा किया तो मेरी बात बहुत ही लम्बी हो जाएगी जो कि उचित नहीं होगी। हक़ तो शबनम जी का बनता है कि मैं ऐसा करूँ, परन्तु नहीं। मुझे लगता है, विद्वान लेखकों ने भी, जिन्होंने इस पुस्तक की भूमिका लिखी है; इसी तरह न चाहते हुए भी आगे लिखने से अपने हाथ खींच लिए होंगे और उन्हें भी ऐसे ही अफ़सोस हुआ होगा जैसा मुझे हो रहा है।
अंत में डॉ. शबनम जी की दीर्घायु एवं अच्छे स्वास्थ्य की कामना करते हुए अपनी बात को, न चाहते हुए भी, यहीं समेटता हूँ।
राम चन्द्र वर्मा 'साहिल'
131- न्यू सूर्य किरण अपार्टमेंट्स
दिल्ली-110092
मोबाइल- 9968414848
तिथि- 2.11.2020
_____________
20 comments:
बहुत बहुत बधाई,
अनेक अनेक बधाइयाँ शबनम जी ।पुस्तक तो नहीं पढ़ी किन्तु समीक्षा से कविताओं की बानगी जरूर मिली । बधाई💐
सहिल जी बहुत गुनी शाइर हैं और बहुत गहराई से अध्यन करते हैं, जिस पुस्तक को पसंद करते हैं। आपकी कविताओं की बहुत तारीफ़ उन्होंने व्यक्तिगत बातचीत में मुझसे भी की थी, जो ‘लम्हों का सफर‘ की बहुत बड़ी उपलब्धि है। बहुत-बहुत बधाई आपको और शुभकामानाएँ आपकी साहित्यिक यात्रा के लिए।
जेन्नी जी बहुत बहुत बधाई,
और
साहिल जी को भी बधाई बहुत सुन्दर शब्दों से समीक्षा
बहुत सुंदर सटीक समीक्षा।हार्दिक बधाई जेन्नी जी।
Bahot sundar kabita. Aur vyakhyan.
बहुत गहन समीक्षा की साहिल जी ने , ऐसे विद्वजनों की लेखनी से निकले शब्द कवयित्री को एक नयी ऊर्जा से भर देते है ।
आपको बहुत बहुत बधाई !
लम्हों का सफर' को एक एक कविता के उल्लेख सहित जिस तरह और जिन शब्दों में साहिल जी ने उल्लेख किया है , किसी भी कवयित्री के लिए गौरव की बात होने के साथ एक नयी ऊर्जा और उत्साह देने वाला है । आपको बहुत बहुत बधाई !
-- रेखा
बधाई एवं शुभकामनायें।
जेन्नी जी,सभी रचनाओं के विषय सारगर्भित है और समय में कुछ खो जाने की तलाश करते से लगते हैं।आज पहलीबार आया तो लगा यहां आना सार्थक हुआ।धन्यवाद।
Udan Tashtari said...
बहुत बहुत बधाई,
November 6, 2020 at 12:06 AM
________________________________________
आभार समीर जी.
Blogger कल्पना मनोरमा said...
अनेक अनेक बधाइयाँ शबनम जी ।पुस्तक तो नहीं पढ़ी किन्तु समीक्षा से कविताओं की बानगी जरूर मिली । बधाई💐
November 6, 2020 at 1:44 AM Delete
_____________________________________________-
शुक्रिया कल्पना जी. मेरी पुस्तक आप ज़रूर पढ़ें, मुझे ख़ुशी होगी. और अपनी प्रतिक्रिया भी दें. बहुत आभार.
Blogger masoomshayer said...
सहिल जी बहुत गुनी शाइर हैं और बहुत गहराई से अध्यन करते हैं, जिस पुस्तक को पसंद करते हैं। आपकी कविताओं की बहुत तारीफ़ उन्होंने व्यक्तिगत बातचीत में मुझसे भी की थी, जो ‘लम्हों का सफर‘ की बहुत बड़ी उपलब्धि है। बहुत-बहुत बधाई आपको और शुभकामानाएँ आपकी साहित्यिक यात्रा के लिए।
November 6, 2020 at 5:38 PM Delete
______________________________________________________
बहुत बहुत धन्यवाद अनिल जी. साहिल जी ने जब मेरी पुस्तक पढी, तुरत फ़ोन कर सराहना और आशीष दिया. तब तो मैं उन्हें जानती नहीं थी. लेकिन आपके द्वारा परिचय होने के बाद मेरी पुस्तक पर कई बार उनसे बात हुई. इसके लिए आपका धन्यवाद कि साहिल जी से आपके कारन मुलाक़ात हुई. आभार.
Blogger VINOD said...
जेन्नी जी बहुत बहुत बधाई,
और
साहिल जी को भी बधाई बहुत सुन्दर शब्दों से समीक्षा
November 6, 2020 at 10:05 PM Delete
_____________________________________________
बहुत बहुत आभार विनोद जी.
Blogger Sudershan Ratnakar said...
बहुत सुंदर सटीक समीक्षा।हार्दिक बधाई जेन्नी जी।
November 6, 2020 at 11:23 PM Delete
_____________________________________________
हृदय से आभार रत्नाकर जी.
Blogger Manisha said...
Bahot sundar kabita. Aur vyakhyan.
November 8, 2020 at 9:32 AM Delete
_________________________________________
धन्यवाद मनीषा.
Blogger Unknown said...
बहुत गहन समीक्षा की साहिल जी ने , ऐसे विद्वजनों की लेखनी से निकले शब्द कवयित्री को एक नयी ऊर्जा से भर देते है ।
आपको बहुत बहुत बधाई !
November 8, 2020 at 6:09 PM Delete
_____________________________________________
आपका ब्लॉगर प्रोफाइल नहीं है तो आपको नहीं पहचान पा रही हूँ. आपने बिल्कुल सही कहा विद्वजनों द्वारा लेखनी की प्रशंसा लेखक को ऊर्जा से भर देती है. बहुत आभार आपका.
Blogger Unknown said...
लम्हों का सफर' को एक एक कविता के उल्लेख सहित जिस तरह और जिन शब्दों में साहिल जी ने उल्लेख किया है , किसी भी कवयित्री के लिए गौरव की बात होने के साथ एक नयी ऊर्जा और उत्साह देने वाला है । आपको बहुत बहुत बधाई !
-- रेखा
November 8, 2020 at 6:16 PM Delete
__________________________________________________________
रेखा जी, साहिल जी ने बहुत गहराई से हर कविता को पढ़कर समीक्षा लिखी है, यह मेरे लिए गौरव की बात है. उनका स्नेहिल आशीष मुझे ऊर्जावान करता है. आपका बहुत बहुत धन्यवाद.
Blogger Pallavi saxena said...
बधाई एवं शुभकामनायें।
November 17, 2020 at 11:42 AM Delete
_______________________________
शुक्रिया पल्लवी जी.
Blogger Rajiv said...
जेन्नी जी,सभी रचनाओं के विषय सारगर्भित है और समय में कुछ खो जाने की तलाश करते से लगते हैं।आज पहलीबार आया तो लगा यहां आना सार्थक हुआ।धन्यवाद।
November 24, 2020 at 11:23 AM Delete
__________________________________________________
आप पहली बार आए, इसके लिए तहे दिल से शुक्रिया राजीव जी. अपनी प्रतिक्रियाओं के साथ मेरे ब्लॉग पर आप आते रहें, यही कामना है. बहुत आभार आपका.
Post a Comment