Friday, February 21, 2020

70. फाँसी की फाँस


वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह का बयान कि जैसे सोनिया गांधी ने राजीव गांधी के हत्यारे को माफ़ किया है, वैसे ही निर्भया की माँ निर्भया के बलात्कारियों को माफ़ कर दें एक स्त्री होकर वकील साहिबा ऐसा कैसे सोच सकीं? राजीव गांधी की हत्या और निर्भया के बलात्कार का अपराध एक श्रेणी में कैसे माना जा सकता है? मानवीय दृष्टि से किसी की मौत के पक्ष में होना सही नहीं है। परन्तु बलात्कार ऐसा अमानवीय अपराध है जिसमें पीड़ित स्त्री के जीवन और जीने के अधिकार का हनन हुआ है, ऐसे में बलात्कारी के लिए मानवीय दृष्टिकोण हो ही नहीं सकता है इस अपराध के लिए सज़ा के तौर पर शीघ्र मृत्यु-दण्ड से कम कुछ भी जायज़ नहीं है। 
  
निर्भया के मामले में डेथ वारंट जारी होने के बाद फाँसी में देरी कानूनी प्रावधानों का ही परिणाम है किसी न किसी नियम और प्रावधान के तहत फाँसी का दिन बढ़ता जा रहा है अभी चारो अपराधी जेल में हैं, ढेरों सुरक्षाकर्मी उनके निगरानी के लिए नियुक्त हैं, उनकी मानसिक स्थिति ठीक रहे इसके लिए काउन्सिलिंग की जा रही है, शरीर स्वस्थ्य रहे इसके लिए डॉक्टर प्रयासरत हैं, उनके घरवालों से हमेशा मिलवाया जा रहा है आख़िर यह सब क्यों? जेल मैनुअल के हिसाब से दोषी का फाँसी से पहले शारीरिक और मानसिक रूप से पूर्णतः स्वस्थ होना ज़रूरी है यह कैसे सम्भव है कि फाँसी की सज़ा पाया हुआ मुजरिम बिल्कुल स्वस्थ हो? भले ही जघन्यतम अपराध किया हो, परन्तु फाँसी की सज़ा सुनकर कोई सामान्य कैसे रह सकता है? बलात्कारी की शारीरिक अवस्था और मानसिक अवस्था कैसी भी हो, फाँसी की सज़ा में कोई परवर्तन या तिथि को आगे बढ़ाना अनुचित है निर्भया के बलात्कारियों को अविलम्ब फाँसी पर लटका देना चाहिए    

ऐसा नहीं है कि बलात्कार की घटनाएँ पहले नहीं होती थी। परन्तु विगत कुछ वर्षों से ऐसी घटनाओं में जिस तरह से बेतहाशा वृद्धि हुई है, बेहद अफ़सोसनाक और चिन्ताजनक स्थिति है। कानून बने और सामजिक विरोध भी बढ़े; परन्तु स्थिति बदतर होती जा रही है कुछ लोगों का विचार है कि आज की लड़कियाँ फैशनपरस्त हैं, कम कपड़े पहनती हैं, शाम को अँधेरा होने पर भी घर से बाहर रहती हैं, लड़कों से बराबरी करती हैं आदि-आदि, इसलिए छेड़खानी और बलात्कार जैसे अपराध होते हैं इनलोगों की सोच पर हैरानी नहीं होती है; बल्कि इनकी मानसिक स्थिति और सोच पर आक्रोश होता है अगर यही सब वज़ह है बलात्कार के, तो दूधमुँही बच्ची या बुज़ुर्ग स्त्री के साथ ऐसा कुकर्म क्यों होता है?   

अगर सिर्फ़ स्त्री को देखकर कामोत्तेजना पैदा हो जाती है, तो हर बलात्कारी को अपनी माँ, बहन, बेटी में रिश्ता नहीं, बल्कि उनका स्त्री होना नज़र आता और वे उनके साथ भी कुकर्म करते परन्तु ऐसा नहीं है कोई बलात्कारी अपनी माँ, बहन, बेटी के साथ बलात्कार होते हुए सहन नहीं कर सकता है हालाँकि ऐसी कई घटनाएँ हुई हैं जब रक्त सम्बन्ध को भी कुछ पुरुषों ने नहीं छोड़ा है वैज्ञानिकों के लिए यह खोज का विषय है कि दुष्कर्मी में आख़िर ऐसा कौन-सा रसायन उत्पन्न हो जाता है जो स्त्री को देखकर उसे वहशी बना देता है ताकि अपराधी मनोवृति पर शुरुआत में ही अंकुश लगाया जा सके    

हमारी न्यायिक प्रक्रिया की धीमी गति और इसके ढेरों प्रावधान के कारण अपराधियों में न सिर्फ़ भय ख़त्म हुआ है, बल्कि मनोबल भी बढ़ता जा रहा है यह सही है कि कानून हर अपराधी को अधिकार देता है कि वह अपने आप को निरपराध साबित करने के लिए अपना पक्ष रखे तथा अपनी सज़ा के ख़िलाफ़ याचिका दायर करे समस्त कानूनी प्रक्रियाओं के बाद जब सज़ा तय हो जाए, और सज़ा फाँसी की हो, तब ऐसे में दया याचिका का प्रावधान ही ग़लत है दया याचिका राष्ट्रपति तक जाए ही क्यों? ऐसा अपराधी दया का पात्र हो ही नहीं सकता है सरकार का समय और पैसा इन अपराधियों के पीछे बर्बाद करने का कोई औचित्य नहीं है सज़ा मिलते ही 10 दिन के अंदर फाँसी दे देनी चाहिए कानूनविदों को इस पर विचार-विमर्श एवं शोध करने चाहिए, ताकि न्यायिक प्रक्रिया के प्रावधानों की आड़ में कोई अपराधी बच न पाए मानवीय दृष्टिकोण से सभी वकीलों को बलात्कारी का केस न लेने का संकल्प लेना चाहिएअव्यावाहारिक और लचीले कानून में बदलाव एवं संशोधन की सख़्त ज़रूरत है, ताकि कानून का भय बना रहे, न्याय में विलम्ब न हो तथा कोई भी जघन्यतम अपराधी बच न पाए।   

- जेन्नी शबनम (20.2.2020)
___________________

28 comments:

अनीता सैनी said...


जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(२२-०२-२०२०) को 'शिव शंभु' (चर्चा अंक-३६१९) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी

Resultinfo said...

Nice Blog

Onkar said...

विचारोत्तेजक

Nishant baliyan Jat boy said...

हैदराबाद की तरह बीच चौराहे पे गोली मारी जाए इन लोगो को ।
और इनसे पहले इंदिरा जयसिंह और मुलायम जैसे इनके हिमायतियों को ठोका जाए ।

संविधान में लाखो छेद हैं । जिनकी पधाई वकीलों को करवाई जाती है । उसी का सहारा लेकर अपराधी का बचाव किया जाता है ।


पोस्ट का टाइटल फांसी का फांस बिल्कुल सही ।
ये फांस ही है । 🙏

Jyoti Dehliwal said...

विचारणीय आलेख।

Kamini Sinha said...

मैं आपके एक एक शब्द से पूर्णतः सहमत हूँ ,सादर नमन आपको

Sudershan Ratnakar said...

जेन्नी जी मैं आपके विचारों से पूर्णतः सहमत हूँ ।ऐसा अमानवीय कृत्य करने वाले अक्षम्य हैं। क्या उन्होंने निर्भयता पर उस समय दया की। उसके दर्द को महसूस किया। लेकिन अब इन्हें मृत्य डर, दर्द सता रहा है।औरत की आज़ादी,उसके फ़ैशन से परेशान होने वालों से पूछा जाए कि अभी पिछले सप्ताह ही तीन महीने की बच्ची के साथ बलात्कार क्यों किया गया।कौन सा फ़ैशन किया था उसने। बस उसका दोष था कि वह लड़की थी। बीमार मानसिकता का इलाज बहुत ज़रूरी है ।

ऋता शेखर 'मधु' said...

सही लिखा है...इस जघन्य अपराध की सजा पर बचाव का कोई औचित्य नहीं।सजा में देर होने से न्याय प्रक्रिया की कमजोरियाँ सामने आने लगी हैं।

Anonymous said...

"अव्यावाहारिक और लचीले कानून में बदलाव एवं संशोधन की सख्त ज़रुरत है ताकि कानून का भय बना रहे, न्याय में विलम्ब न हो तथा कोई भी जघन्यतम अपराधी बच न पाए"

रेखा श्रीवास्तव said...

इन दरिंदों की फाँसी टालने के उपाय हमारी दण्डसंहिता में कमी। है ।वकील ही मुकद्मों को सालों खींचते रहते है । अगर न्याय प्रक्रिया उचित हो तो वकील भूखों मर जायेंगे । निर्भया के अपराधी साधारण दुष्कर्म नहीं बल्कि अमानवीयता की हद तक जाने वाले दरिंदे हैं । इनके लिए दया की भीख की याचिका दायर करानेवाला भी उतना ही अपराधी कहा जाना चाहिए ।

रेखा श्रीवास्तव said...

निर्भया के दुष्कर्मियों की फाँसी का टाला जाना हमारी न्याय प्रक्रिया की कमी है और उनके वकील उसी का फायदा उठा रहा है। मानसिक रूप से विक्षिप्त को भी अपराध करने के बाद माफी नहीं मिलनी चाहिए । ये साधारण अपराधी नहीं बल्कि दरिंदे हैं । निर्भया के साथ जो किया था लोग भूले नहीं होंगे ।

जयकृष्ण राय तुषार said...

मैं आपको इस विषय पर दमदार ढंग से अपना पक्ष रखने के लिए बधाई देता हूँ |मैं इंदिरा जय सिंह से सौ प्रतिशत असहमत हूँ |हत्या में व्यक्ति एक बार मरता है बलात्कार में स्त्री जीवित रहते हुए बार बार मरती हैं | समय पर न्याय न मिलने पर न्याय विफल हो जाता है |निर्भया केस में तो अपराधियों का कृत्य जघन्य से जघन्यतम है यह मुकदमा न्यायिक इतिहास में मजाक बन गया है |मुकदमों के बोझ से लदी न्यायपालिका इस केस के लिए इतना वक्त क्यों दे रही है |जितनी जल्दी इन पाशविक हत्यारों बलात्कारियों को फांसी मिले उतना ही अच्छा है |वरना एक दिन न्याय व्यवस्था से जनता का विश्वास उठ जायेगा |

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Priyanka Gupta
Sat, 22 Feb, 09:00 (2 days ago)
to me


आपकी ये मेल मोबाइल से ही खोल ली, पर पता नहीं क्यों मेरे मोबाइल से कहीं कमेंट करने में बहुत दिक्कतें आती हैं । यदि लैपटॉप से मेल खोलने के चक्कर मे रहो तो अक्सर वह मेल कहीं भीड़ में गुम हो जाती है। इसलिए अभी पढ़ कर मेरे विचार आपको यहीं भेज रही।

बहुुुत सार्थक आलेख है जेन्नी जी...। असल मे ये सामाजिक मानसिकता और कानून में कुछ खामियाँ ही हैं, जिनका लाभ ऐसे वहशियों को मिलता है । बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करता है ये आलेख...। मेरी शुभकामनाएँ...।

सदभावी,
प्रियंका

डॉ. जेन्नी शबनम said...


sanjiv verma salil
Sat, 22 Feb, 11:45 (2 days ago)
to me



-: विश्व वाणी हिंदी संस्थान - समन्वय प्रकाशन अभियान जबलपुर :-
ll हिंदी आटा माढ़िए, उर्दू मोयन डाल l 'सलिल' संस्कृत सान दे, पूड़ी बने कमाल ll
ll जन्म ब्याह राखी तिलक, गृह प्रवेश त्यौहार l 'सलिल' बचा पौधे लगा, दें पुस्तक उपहार ll
*
स्त्री संबन्धी अपराधियों को मृत्यु दंड देने से उनके निर्दोष परिवार जन प्रताड़ित होते हैं तथा मानवतावादी छद्म अश्रु बहाते हैं।
लंबी न्यायिक कार्यवाही प्रताड़ित महिला का परिवारजनों को भी चैन नहीं लेने देती।
क्या कोई ऐसा रास्ता नहीं हो सकता कि ऐसे अपराधी जीवित रहकर परिवार का पेट भरें किन्तु दोबारा अपराध करने लायक न बचें?
यदि अपराध प्रमाणित होते ही अपराधी को नपुंसक कर शौचालयों की सफाई के कार्य में अनिवार्यत: लगा दिया जाए तो वह हर दिन पछतायेगा .
उसे हर दिन महिला संतों और प्रताड़ित महिला के चित्रों के आगे नतमस्तक होअपने अपराध की क्षमा याचना करनी अनिवार्य हो।
विचारार्थ

संदेश में फोटो देखें
(संजीव वर्मा 'सलिल')
२०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन,
जबलपुर ४८२००१, चलभाष ९४२५१ ८३२४४
salil.sanjiv@gmail.com
www.divyanarmada.in

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger अनीता सैनी said...


जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(२२-०२-२०२०) को 'शिव शंभु' (चर्चा अंक-३६१९) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी

February 21, 2020 at 4:16 PM Delete
____________________________________________

चर्चा मंच पर मेरे ब्लॉग लिंक को शामिल करने के लिए धन्यवाद अनीता सैनी जी.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Anonymous Resultinfo said...

Nice Blog

February 21, 2020 at 7:56 PM Delete
__________________________

धन्यवाद.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger Onkar said...

विचारोत्तेजक

February 22, 2020 at 9:28 AM Delete
_______________________

धन्यवाद ओंकार जी.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Anonymous Nishant baliyan Jat boy said...

हैदराबाद की तरह बीच चौराहे पे गोली मारी जाए इन लोगो को ।
और इनसे पहले इंदिरा जयसिंह और मुलायम जैसे इनके हिमायतियों को ठोका जाए ।

संविधान में लाखो छेद हैं । जिनकी पधाई वकीलों को करवाई जाती है । उसी का सहारा लेकर अपराधी का बचाव किया जाता है ।


पोस्ट का टाइटल फांसी का फांस बिल्कुल सही ।
ये फांस ही है । 🙏

February 22, 2020 at 10:16 AM Delete
______________________________________________

मेरे विचार से आपकी सहमति के लिए धन्यवाद. सही कहा आपने, हमारे संविधान की कमियों के कारण ही बहुत सारे अपराधी बच निकलते हैं, इसीलिए अपराध पर नियंत्रण भी नहीं हो पा रहा है.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger Jyoti Dehliwal said...

विचारणीय आलेख।

February 22, 2020 at 10:27 AM Delete
_____________________________

धन्यवाद ज्योति जी.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger Kamini Sinha said...

मैं आपके एक एक शब्द से पूर्णतः सहमत हूँ ,सादर नमन आपको

February 22, 2020 at 12:29 PM Delete
_______________________________________________

मेरे विचार से पूर्ण सहमत होने के लिए आपका शुक्रिया कामिनी जी.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger Sudershan Ratnakar said...

जेन्नी जी मैं आपके विचारों से पूर्णतः सहमत हूँ ।ऐसा अमानवीय कृत्य करने वाले अक्षम्य हैं। क्या उन्होंने निर्भयता पर उस समय दया की। उसके दर्द को महसूस किया। लेकिन अब इन्हें मृत्य डर, दर्द सता रहा है।औरत की आज़ादी,उसके फ़ैशन से परेशान होने वालों से पूछा जाए कि अभी पिछले सप्ताह ही तीन महीने की बच्ची के साथ बलात्कार क्यों किया गया।कौन सा फ़ैशन किया था उसने। बस उसका दोष था कि वह लड़की थी। बीमार मानसिकता का इलाज बहुत ज़रूरी है ।

February 22, 2020 at 1:11 PM Delete
_________________________________________

रत्नाकर जी, इस मानसिकता का ही इलाज़ ज़रूरी है. तभी ऐसे अपराध का रुकना संभव है. शिक्षा, खानदान, परिवेश का इस जुर्म से कोई सम्बन्ध नहीं है. मानसिकता ही एक सबसे बड़ा कारण है. हर एक घर को सोचना और बदलना पड़ेगा तभी समाज की सोच बदलेगी. हार्दिक आभार आपका.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger ऋता शेखर 'मधु' said...

सही लिखा है...इस जघन्य अपराध की सजा पर बचाव का कोई औचित्य नहीं।सजा में देर होने से न्याय प्रक्रिया की कमजोरियाँ सामने आने लगी हैं।

February 22, 2020 at 1:32 PM Delete
__________________________________

बिल्कुल सही कहा ऋता जी. अपराध की सजा में देर होना ऐसे अपराध को और बढ़ाता है. प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Anonymous Anonymous said...

"अव्यावाहारिक और लचीले कानून में बदलाव एवं संशोधन की सख्त ज़रुरत है ताकि कानून का भय बना रहे, न्याय में विलम्ब न हो तथा कोई भी जघन्यतम अपराधी बच न पाए"

February 22, 2020 at 5:32 PM Delete
_________________________________________

प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger रेखा श्रीवास्तव said...

इन दरिंदों की फाँसी टालने के उपाय हमारी दण्डसंहिता में कमी। है ।वकील ही मुकद्मों को सालों खींचते रहते है । अगर न्याय प्रक्रिया उचित हो तो वकील भूखों मर जायेंगे । निर्भया के अपराधी साधारण दुष्कर्म नहीं बल्कि अमानवीयता की हद तक जाने वाले दरिंदे हैं । इनके लिए दया की भीख की याचिका दायर करानेवाला भी उतना ही अपराधी कहा जाना चाहिए ।

February 22, 2020 at 11:36 PM Delete
____________________________________________

बिल्कुल रेखा जी. मैं भी यही सोचती हूँ कि बलात्कार जैसा मामला जब साबित हो जाए फिर कैसे कोई वकील उसे बचाने के लिए पक्ष में खड़ा होता है. वकील का पेशा है यह, परन्तु अपराध साबित होने तक केस लड़ें, अपराध साबित होने के बाद खुद ही वकील को ऐसा केस लेने से मना कर देना चाहिए.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger रेखा श्रीवास्तव said...

निर्भया के दुष्कर्मियों की फाँसी का टाला जाना हमारी न्याय प्रक्रिया की कमी है और उनके वकील उसी का फायदा उठा रहा है। मानसिक रूप से विक्षिप्त को भी अपराध करने के बाद माफी नहीं मिलनी चाहिए । ये साधारण अपराधी नहीं बल्कि दरिंदे हैं । निर्भया के साथ जो किया था लोग भूले नहीं होंगे ।

February 22, 2020 at 11:44 PM Delete
______________________________________________

हाँ रेखा जी, सही कहा आपने. इस अपराध में माफी तो हो ही नहीं सकती, चाहे अपराधी कोई भी हो.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger जयकृष्ण राय तुषार said...

मैं आपको इस विषय पर दमदार ढंग से अपना पक्ष रखने के लिए बधाई देता हूँ |मैं इंदिरा जय सिंह से सौ प्रतिशत असहमत हूँ |हत्या में व्यक्ति एक बार मरता है बलात्कार में स्त्री जीवित रहते हुए बार बार मरती हैं | समय पर न्याय न मिलने पर न्याय विफल हो जाता है |निर्भया केस में तो अपराधियों का कृत्य जघन्य से जघन्यतम है यह मुकदमा न्यायिक इतिहास में मजाक बन गया है |मुकदमों के बोझ से लदी न्यायपालिका इस केस के लिए इतना वक्त क्यों दे रही है |जितनी जल्दी इन पाशविक हत्यारों बलात्कारियों को फांसी मिले उतना ही अच्छा है |वरना एक दिन न्याय व्यवस्था से जनता का विश्वास उठ जायेगा |

February 23, 2020 at 6:27 PM Delete
____________________________________________

मेरी बात और विचार के समर्थन के लिए धन्यवाद जयकृष्ण जी. न्याय व्यवस्था से जनता का विश्वास उठ चुका है. बलात्कार के कई केस ऐसे हैं जिसमें रसूखदार शामिल हैं. वे न सिर्फ बाइज्ज़त बरी हो जाते हैं बल्कि शान से ज़िन्दगी जीते हैं और पीड़ित हर पल हज़ार बार मरती है. प्रतिक्रिया के लिए आभार आपका.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger डॉ. जेन्नी शबनम said...

Priyanka Gupta
Sat, 22 Feb, 09:00 (2 days ago)
to me


आपकी ये मेल मोबाइल से ही खोल ली, पर पता नहीं क्यों मेरे मोबाइल से कहीं कमेंट करने में बहुत दिक्कतें आती हैं । यदि लैपटॉप से मेल खोलने के चक्कर मे रहो तो अक्सर वह मेल कहीं भीड़ में गुम हो जाती है। इसलिए अभी पढ़ कर मेरे विचार आपको यहीं भेज रही।

बहुुुत सार्थक आलेख है जेन्नी जी...। असल मे ये सामाजिक मानसिकता और कानून में कुछ खामियाँ ही हैं, जिनका लाभ ऐसे वहशियों को मिलता है । बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करता है ये आलेख...। मेरी शुभकामनाएँ...।

सदभावी,
प्रियंका

February 24, 2020 at 12:44 AM Delete
___________________________________________

प्रियंका जी, टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद. मोबाइल से अक्सर यह समस्या आती है.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger डॉ. जेन्नी शबनम said...


sanjiv verma salil
Sat, 22 Feb, 11:45 (2 days ago)
to me



-: विश्व वाणी हिंदी संस्थान - समन्वय प्रकाशन अभियान जबलपुर :-
ll हिंदी आटा माढ़िए, उर्दू मोयन डाल l 'सलिल' संस्कृत सान दे, पूड़ी बने कमाल ll
ll जन्म ब्याह राखी तिलक, गृह प्रवेश त्यौहार l 'सलिल' बचा पौधे लगा, दें पुस्तक उपहार ll
*
स्त्री संबन्धी अपराधियों को मृत्यु दंड देने से उनके निर्दोष परिवार जन प्रताड़ित होते हैं तथा मानवतावादी छद्म अश्रु बहाते हैं।
लंबी न्यायिक कार्यवाही प्रताड़ित महिला का परिवारजनों को भी चैन नहीं लेने देती।
क्या कोई ऐसा रास्ता नहीं हो सकता कि ऐसे अपराधी जीवित रहकर परिवार का पेट भरें किन्तु दोबारा अपराध करने लायक न बचें?
यदि अपराध प्रमाणित होते ही अपराधी को नपुंसक कर शौचालयों की सफाई के कार्य में अनिवार्यत: लगा दिया जाए तो वह हर दिन पछतायेगा .
उसे हर दिन महिला संतों और प्रताड़ित महिला के चित्रों के आगे नतमस्तक होअपने अपराध की क्षमा याचना करनी अनिवार्य हो।
विचारार्थ

संदेश में फोटो देखें
(संजीव वर्मा 'सलिल')
२०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन,
जबलपुर ४८२००१, चलभाष ९४२५१ ८३२४४
salil.sanjiv@gmail.com
www.divyanarmada.in

February 24, 2020 at 12:47 AM Delete
___________________________________________

संजीव वर्मा जी, यह सही है कि ऐसे अपराधी के परिवार वाले प्रताड़ित होते हैं. लेकिन इस आधार पर अगर बलात्कारियों को मृत्यु दंड न देकर दुसरी कोई भी सज़ा दी जाए तो भी वे सुधरेंगे नहीं. क्योंकि उनकी मानसिकता ही इस प्रवृति की है. ऐसे अपराधी को जबरन किसी स्त्री का सम्मान के लिए कैसे राजी किया जा सकता है, जबकि वह किसी स्त्री का न सिर्फ अपमान किया अहै बल्कि उसकी पूरी ज़िन्दगी ख़त्म कर दी है. एक स्त्री के साथ जब बलात्कार होता है तो सिर्फ वह स्त्री पीड़ित नहीं होती बल्कि उसका पूरा परिवार खानदान और आगे आने वाली पीढ़ी का जीवन भी प्रभावित होता है. ऐसा अपराध अन्य अपराधों से अलग श्रेणी का है. फाँसी से कम इस अपराध की सज़ा नहीं हो सकती.
आभार.