Wednesday, July 18, 2018

60. आज भी तुमसे शिकायत है

पापा 
पापा, तुमसे ढेरों शिकायत है मैं बहुत ग़ुस्सा हूँ, बहुत-बहुत ग़ुस्सा हूँ तुमसे। मैं रूसी (रूठी) हुई हूँ। अगर तुम मिले, तो तुमसे बात भी नहीं करूँगी। पापा! तुमको याद है, मैं अक्सर रूस (रूठ) जाती थी और तुम मुझे मनाते थे इतनी भी क्या जल्दी थी तुमको? कम-से-कम मुझे आत्मनिर्भर बना दिए होते जाने से पहले देखो! मैं कुछ न कर सकी, हर दिन बस उम्र को धकेल रही हूँ क्यों उस समय में छोड़ गए तुम जब हमें तुम्हारी सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी न समझने का मौक़ा दिए, न सँभलने का, बस चल दिए तुम 
 
पापा-मम्मी
समय किसी की पकड़ में नहीं आया है कभी समय छलाँग लगाकर भागता है और हम धीरे-धीरे अपने क़दमों पर चलते रहते हैं कि अचानक एक दिन पता चलता है, अरे! कितना वक़्त गुज़र गया, और हम सभी चौंक जाते हैंआज से 40 वर्ष पहले आज ही के दिन मेरे पापा इस संसार से हमेशा के लिए हमलोग को छोड़कर चले गए हम सभी ज़िन्दगी को और ज़िन्दगी हम सभी को स्तब्ध होकर देखती रह गई न हमारे पास कहने को कुछ शेष था, न ज़िन्दगी के पास कौन किससे क्या कहे? कौन किसे सांत्वना दे? 
मैं, मम्मी, भैया
मेरे दादा मेरे जन्म से पूर्व ही गुज़र चुके थे मेरी दादी लगभग 70 वर्ष की थी, जब उनके सबसे प्रिय पुत्र यानी मेरे पापा का निधन हुआ पापा की मृत्यु के समय मेरी माँ लगभग 33 वर्ष, मेरा भाई 13 वर्ष और मैं 12 वर्ष की थीहममे से कोई भी इस लायक़ नहीं था कि इस दुःखद समय में एक दूसरे को सांत्वना दे सकें धीरे-धीरे हम चारों की ज़िन्दगी पापा के बिना चल पड़ी, या यों कहें कि हमने चलना सीख लिया हम सभी बहुत बार लड़खड़ाए, गिरे, सँभले और फिर चलते रहे यह हमलोगों की ख़ुशनसीबी है कि हमारे सगे-सम्बन्धी, मम्मी-पापा के मित्र, मम्मी-पापा के सहकर्मी और पापा के छात्र सदैव हमलोगों के साथ रहे और आज भी हैं।
 
कहते हैं कि वक़्त ही घाव देता है और वक़्त ही मरहम भी लगाता है वक़्त से मिला घाव यों तो ऊपर-ऊपर भर गया, पर मन की पीड़ा टीस बन गई। हम सभी को क़दम-क़दम पर पापा की ज़रूरत और कमी महसूस होती रही मेरे पापा स्त्री को स्वावलम्बी बनाने के पक्षधर थे, तो उन्होंने अपने जीवन में ही मेरी माँ को हर तरह से सक्षम बना दिया था उन दिनों मेरी माँ स्कूल में शिक्षिका थी और सन 1988 में इंटर स्कूल की प्राचार्या बनी मेरे पापा की कामना थी कि मेरा भाई बड़ा होकर विदेश में पढ़ाई करे यह सुखद संयोग रहा कि मेरे भाई ने आई.आई.टी. कानपुर से पढ़ाई की और आगे की पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप पर अमेरिका चला गया मैंने एम.ए., एलएल.बी. और पी-एच.डी. कर अपनी शिक्षा पूर्ण की; यह अलग बात है कि अलग-अलग कई तरह के कार्य मैंने किए, परन्तु कोई भी कार्य सुनियोजित और नियमित रूप से नहीं कर सकी, जिससे मैं आत्मनिर्भर बन पाती अंततः मैं हर क्षेत्र में असफल रही मेरे पापा जीवित होते तो निःसन्देह उन्हें मेरे लिए दुःख होता  

लगभग 2 वर्ष पापा की बीमारी चली थी इन दो वर्षों में पापा ने प्राकृतिक चिकित्सा के द्वारा अपना इलाज कराया और अंततः सुधार नहीं होने पर आयुर्वेद की दवा खाते रहे एलोपैथ पद्धति पर उन्हें विश्वास न था जब बीमारी बहुत बढ़ गई, तब दिल्ली के एम्स में एक माह तक भर्ती रहे, जहाँ डॉक्टर ने शायद ठीक न हो सकने की बात कही थी वे भागलपुर लौट आए और उनके अधीन जितने छात्र पी-एच.डी. कर रहे थे उनका काम उन्होंने शीघ्र पूरा कराया अपनी बीमारी की चर्चा वे किसी से नहीं करते थे अतः उनकी बीमारी की स्थिति का सही अंदाज़ा किसी को नहीं था लीवर सिरोसिस इतना ज़्यादा बढ़ चुका था कि अंत में वे कौमा में चले गए और लगभग 10 दिन अस्पताल में रहने के बाद सदा के लिए हमें छोड़ गए  
एक पुस्तक, जिसमें पापा की चर्चा है

पापा का लेटर हेड

पापा की हस्तलिखित डायरी

पापा का हस्तलिखित डायरी


पापा को घूमना, गाना सुनना और फोटो खींचकर ख़ुद साफ़ करने का शौक़ था वे मम्मी के साथ पूरे देश का भ्रमण कर चुके थे और हर जगह की तस्वीर सिर्फ़ मम्मी की ली थी मम्मी की तस्वीरों को बड़ा कराकर फ्रेम करा पूरे घर के दीवारों में उन्होंने स्वयं लगाया था। पूरे घर में गांधी जी, महान स्वतंत्रता सेनानी व मम्मी का फोटो टँगा रहता था वे शिक्षा, राजनीति और सामजिक कार्यों से अन्तिम समय तक जुड़े रहे जब तक होश में रहे 
 
पापा की थीसिस


बैग

जर्नल

पापा के पी-एच.डी. की ख़बर अख़बार में
पापा के गुज़र जाने के बाद, मैं हर जगह पापा की निशानी तलाशती रहीपरन्तु एक भी तस्वीर उनकी नहीं है, जिसमें वे हमलोगों के साथ हों यों पापा की निशानी के तौर पर मेरी माँ, मेरा भाई और मेरे अलावा उनके उपयोग में लाया गया कुछ ही सामान बचा है मसलन एक बैग जिसे लेकर वे यूनिवर्सिटी जाते थे, उनकी एक डायरी, उनके कुछ जर्नल, एक दो कपड़े, घड़ी आदि।  
पापा का शर्ट

पापा का शर्ट

पापा का पैंट

पापा की घड़ी


पापा का बैग, जिसे रोज़ यूनिवर्सिटी ले जाते थे
पापा की डायरी

मेरी दादी की मृत्यु 102 वर्ष की आयु में सन 2008 में हुई दादी जब तक जीवित रही, एक दिन ऐसा न गुज़रा जब वे पापा को यादकर न रोती होंपापा के जाने के बाद मेरी माँ के लिए मेरी दादी बहुत बड़ा सम्बल बनीसमय ने इतना सख़्त रूप दिखाया कि अगर मेरी दादी न होती तो मम्मी का क्या हाल होता पता नहीं भाई ने काफ़ी बड़ा ओहदा पाया लेकिन पिता के न होने के कारण शुरू में उसे काफ़ी दिक्क़तों का सामना करना पड़ा था
 
दादी
हम सभी पापा को यादकर एक-एक दिन गुज़ारते रहे बहुत सारे अच्छे दिन आए, बहुत सारे बुरे दिन बीते हर दिन आँखें रोती रहीं जब भी पापा के न होने के कारण जीवन में हम सभी को पीड़ा मिली बिना बाप की बेटी होने के कारण मैं बहुत अपमानित और प्रताड़ित हुई हूँ मेरा मनोबल हर एक दिन के साथ कम होता जा रहा है मेरा मन अब शिकायतों की पोटली लिए पापा का इन्तिज़ार कर रहा है, मानों मैं अब भी 12 साल की लड़की हूँ और पापा आकर सब ठीक कर देंगे     
भागलपुर विश्वविद्यालय का सोफ़ा, जिसपर बीमारी में पापा आराम करते थे

राजनीति शास्त्र विभाग का क्लासरूम

पापा की पुनर्प्रकाशित पुस्तक

पुस्तक का बैक कवर 

अक्सर सोचती हूँ, काश! कुछ ऐसा होता कि मेरी परेशानियों का हल मेरे पापा सपने में आकर कर जाते या कहीं किसी मोड़ पर कोई ऐसा मिल जाता, जो पापा का पुनर्जन्म होता जानती हूँ यह सब काल्पनिकता है, लेकिन मन है कि अब भी हर जगह पापा को ढूँढता है यों मेरी आधी उम्र बीत गई है, पर अब भी अक्सर मैं छोटी बच्ची की तरह एकान्त में पापा के लिए रोती रहती हूँ पापा! मुझे आज भी तुमसे ढेरों शिकायत है ताउम्र शिकायत रहेगी पापा! 

- जेन्नी शबनम (18.7.2018)
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10 comments:

सुनीता said...

पिता का जाना जीवन में एक खालीपन भर देता है जो ताउम्र नहीं भरता। केवल माँ-बाप के सामने ही हम खुलकर खुद को रख पाते हैं। ये कमी कोई दूर नहीं कर सकता। आपने बड़ी खूबसूरती से अपनी भावनाओं को व्यक्त किया है। असमय पिता के साये से महरूम होना बहुत ही तकलीफदेह है। आपके पिता अवश्य ही आपकी भावनाओं को महसूस कर रहे होंगे।

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

बहुत भावपूर्ण मार्मिक संस्मरण
कितनी बार आंखें भर आईं
हर चित्र को बार बार देखा
ईश्वर की इच्छा के आगे हम विवश हैं

मेरे पिताजी को गए हुए 27 वर्ष से कुछ अधिक समय हुआ है
आपका दर्द अच्छी तरह महसूस करता हूं

याद कभी कम नहीं होगी
लेकिन
संभलना ही होगा...

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन आज़ादी के पहले क्रांतिवीर की जन्मतिथि और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

Madan Mohan Saxena said...

Nice sharing
Heart touching words

सुभाष नीरव said...

मेरा नमन उन्हें. आपने चित्रों सहित भावुक कर देने वाली पोस्ट डाली है !

-सुभाष नीरव

डॉ. जेन्नी शबनम said...


Blogger सुनीता said...
पिता का जाना जीवन में एक खालीपन भर देता है जो ताउम्र नहीं भरता। केवल माँ-बाप के सामने ही हम खुलकर खुद को रख पाते हैं। ये कमी कोई दूर नहीं कर सकता। आपने बड़ी खूबसूरती से अपनी भावनाओं को व्यक्त किया है। असमय पिता के साये से महरूम होना बहुत ही तकलीफदेह है। आपके पिता अवश्य ही आपकी भावनाओं को महसूस कर रहे होंगे।

July 19, 2018 at 11:29 AM Delete
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मिनी,
बहुत अच्छा लगा तुम्हारी त्वरित प्रतिक्रिया पाकर. मेरी भावनाओं को तुमने समझा, धन्यवाद.

डॉ. जेन्नी शबनम said...


Blogger Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...
बहुत भावपूर्ण मार्मिक संस्मरण
कितनी बार आंखें भर आईं
हर चित्र को बार बार देखा
ईश्वर की इच्छा के आगे हम विवश हैं

मेरे पिताजी को गए हुए 27 वर्ष से कुछ अधिक समय हुआ है
आपका दर्द अच्छी तरह महसूस करता हूं

याद कभी कम नहीं होगी
लेकिन
संभलना ही होगा...

July 19, 2018 at 6:57 PM Delete
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राजेंद्र जी,
मेरी संवेदनाओं को आप अच्छी तरह समझ रहे हैं, आपने भी अपने पिता को खोया है. कुछ नहीं कर सकते हम, बस संभल ही रहे हैं. आपका हृदय से आभार.

डॉ. जेन्नी शबनम said...


Blogger राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन आज़ादी के पहले क्रांतिवीर की जन्मतिथि और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

July 20, 2018 at 8:43 AM Delete
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धन्यवाद.

डॉ. जेन्नी शबनम said...


Blogger Madan Mohan Saxena said...
Nice sharing
Heart touching words

July 20, 2018 at 4:32 PM Delete
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धन्यवाद मदन जी.

डॉ. जेन्नी शबनम said...


Blogger सुभाष नीरव said...
मेरा नमन उन्हें. आपने चित्रों सहित भावुक कर देने वाली पोस्ट डाली है !

-सुभाष नीरव

July 23, 2018 at 11:36 AM Delete
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सुभाष जी,
आपका हृदय से आभार.