Thursday, September 14, 2017

58. हिन्दी बिटिया को अंग्रेजी की गुलामी से बचाओ

सुबह का व्यस्ततम समय, एक अनजाने नंबर से मोबाइल पर फ़ोन ''मे आई टॉक टू ...।'' मैंने कहा ''हाँ, बोलिए''! उसने कहा ''आई वांट टू डिस्कस ऐन इन्वेस्टमेंट प्लान विथ यू।'' मैंने कहा माफ़ कीजिएगा मुझे नहीं चाहिए। उसकी ज़िद कि मैं न लूँ पर सुन तो लूँ। बहुत तहज़ीब से उसने कहा '''इफ यू फ्री देन आई विल एक्सप्लेन रिगार्डिंग सम इन्वेस्टमेंट।'' मैंने कहा ''बहुत धन्यवाद, ज़रूरत होगी तो मैं आपसे समपर्क करुँगी'', और उसके अधूरे वाक्य ''थैंक्स मैड s...।'' एक दिन घर के नंबर पर फ़ोन आया ''मे आई टॉक टू ...।'' मैंने कहा ''वो घर में नहीं है'', कोई आवश्यक काम हो तो बताएँ।" उसने कहा ''आई ओनली टॉक टू हिम बिकॉज़ दिस कॉल इज़ रिगार्डिंग हिज़ क्रेडिट कार्ड्स।'' मैंने दोबारा कॉल करने का वक़्त बता दिया।  

बीते हिन्दी-पखवाड़े में ऐसे ही असमय मेरे लिए फ़ोन आया, सधा हुआ अंग्रेजी लहजा ''में आई टॉक टू ...'', उस दिन किसी कारण से मेरा मन खिन्न था और किसी से बात करने की इच्छा नहीं थी, मैंने कहा ''... मैडम घर में नहीं हैं, आप शाम को 6 बजे फ़ोन कीजिए।'' उसने अंग्रेजी में पूछा कि आप कौन बोल रही हैं। मैंने कहा ''साहब हम आपकी अंग्रेजी नहीं समझते हैं, हम यहाँ काम करते हैं चौका-बर्तन, आपको ज़रूरी है तो मैडम के मोबाइल पर बात कर लीजिए नहीं तो शाम को फ़ोन कीजिए।'' उसने कहा ''सॉरी, आई डिस्टर्ब यू।'' मुझे बेहद हँसी आई कि ये कैसे अंग्रेज पैदा हुए हैं देश में जो एक शब्द हिन्दी नहीं बोल सकते? उनके सॉरी को कामवाली समझ रही होगी उसे कैसे पता। कहना ही था तो ''क्षमा कीजिए'' या फिर ''ठीक है'' इतना तो बोल ही सकता था वो। एक कामवाली के कहने पर भी अंग्रेजी मे ही ''सॉरी'' बोल रहा है।  

अंग्रेजी जैसे हर भारतीयों की भाषा बन गई हो। फ़ोन करने वाला कैसे यह उम्मीद कर सकता है कि फ़ोन उठाने वाले को अंग्रेजी समझ आएगा ही? कम से कम दिल्ली और अन्य हिन्दी भाषी प्रदेश में रहने वाला हर कोई हिन्दी बोलना जानता है। मुमकिन है कि प्राइवेट और कॉरपोरेट सेक्टर में तहज़ीब का मतलब अंग्रेजी बन चुका हो। फिर भी यहाँ अब भी ऐसे भारतीय हैं जो कम से कम घर में तो हिन्दी बोलते हैं। शिक्षा पद्धति अंग्रेजी हो गई है फिर भी हिन्दी को जड़ से उखाड़ा नहीं जा सकता है।  

एक बार किसी बड़े रेस्तराँ में बच्चों के साथ खाना खाने गई, वेटरअंग्रेजी में ही बोल रहा था। अमूमन हर रेस्तराँ में वेटर को अंग्रेजी में ही बोलना होता है। मैं उससे हिन्दी में मेनू पूछ रही थी और वो अंग्रेजी में जवाब दे रहा था। बेवज़ह कोई अंग्रेजी बोलता है तो मुझे वैसे भी बड़ा गुस्सा आता है। मैंने उससे कहा क्या आप भरत से ही हैं या कहीं और से आए हैं? उसने अंग्रेजी में कहा कि वो उत्तर प्रदेश से है। मैंने कहा कि फिर आप हिन्दी में जवाब क्यों नहीं दे रहे? उसने कहा ''सॉरी मैडम'' फिर आधी हिन्दी और आधी अंग्रेजी में मुझे बताने लगा। मुझे उस पर नहीं खुद पर तरस आया कि भारत जो अंग्रेजी का गुलाम बन चुका है, मैं हिन्दी बोले जाने की उम्मीद क्यों रखती हूँ।  

मुझे याद है एक बार एक बहुत अच्छे प्रकाशक के पुस्तक विमोचन समारोह में गई थी। जहाँ बहुत सारी पुस्तकों का विमोचन होना था। इनमें एक कवयित्री जो पेशे से डॉक्टर थी की हिन्दी काव्य पुस्तक का विमोचन हुआ। पुस्तक के अनावरण के बाद उनसे कुछ कहने के लिए कहा गया। वो हिन्दी में कविता लिखती हैं लेकिन अपना सारा वक्तव्य अंग्रेजी में दिया। मुझे बेहद आश्चर्य और क्षोभ हुआ। बार-बार मेरे मन में आ रहा था कि उनसे इस बारे में कहूँ। पर मैंने कुछ कहा नहीं लेकिन बेहद बुरा महसूस हुआ था।  

हिन्दी को लेकर एक और मेरा निजी अनुभव है जो मुझे अपने हिन्दी भाषी होने के कारण पीछे कर गया। विवाहोपरांत मैं दिल्ली आई तो सोचा कि मैं पी एच. डी. कर लूँ। शान्तिनिकेतन में श्यामली खस्तगीर एक सामाजिक कार्यकर्ता थीं, जिनके मैं बहुत ज्यादा नज़दीक थी। उन्होंने लेडी इरविन कॉलेज में किसी से (शायद प्रिंसिपल) मिलने के लिए कहा और पत्र भी दिया। मैं जब मिली तो वो बहुत खुश हुईं लेकिन उन्होंने बताया कि यहाँ सारी पढ़ाई अंग्रेजी माध्यम से होती है और शोध कार्य पूरी तरह अंग्रेजी में होगा, चूँकि मेरी समस्त शिक्षा हिन्दी माध्यम से हुई है अतः बहुत मुश्किल हो सकता है। मैंने कहा कि शोध तो अंग्रेजी में लिख लूँगी लेकिन वाइवा में मुश्किल हो सकती है क्योंकि मुझमें इतनी क्षमता नहीं कि धारा-प्रवाहअंग्रेजी बोल सकूँ। अंततः मैंने भागलपुर विश्वविद्यालय से शोध कार्य किया जहाँ वाइवा हिन्दी में हुआ।  

अक्सर दिमाग में आता है कि आखिर अंग्रेजी की गुलामी कब तक? क्या अब भी वक़्त नहीं आया कि अन्य देश की भाँति हमारे देश की भी अपनी एक ही भाषा हो। अंग्रेजी को महज़ अन्य विदेशी भाषा की तरह पढ़ाया जाए। निःसंदेह ऐसा होना बेहद कठिन भरा होगा लेकिन असंभव नहीं। भारत सरकार निम्न 3 कदम सख्ती से उठाए तो मुमकिन है हमारी हिन्दी देश की राज्य भाषा से राष्ट्र भाषा बन जाएगी और जन-जन तक लोकप्रिय हो जाएगी।  

1.  
देश के हर विद्यालय में हिन्दी को अनिवार्य कर दिया जाए और सभी राज्य की उनकी भाषा को उनकी द्वितीय भाषा कर दी जाए। अंग्रेजी कोई पढ़ना चाहे तो एक विषय की तरह पढ़ सकता है।  

2.  
जब नर्सरी की पढ़ाई शुरू होती है तब से यह नियम लागू किया जाए, ताकि पहले से जो बच्चे अंग्रेजी में पढ़ रहे हैं वो अपनी पढ़ाई पुराने तरीके से ही पूरी करें। नए बच्चे जब शुरुआत ही ऐसे करेंगे तो कहीं से भी कोई दिक्कत नहीं आएगी।  

3.
जिन विषयों की किताबें अंग्रेजी में है चाहे वो विज्ञान की हो या मेडिकल इंजिनीयरिंग या विधि की, सभी का हिन्दी अनुवाद करा दिया जाए। फिर रोजगार में भी हिन्दी माध्यम वालों को कोई मुश्किल नहीं होगी।  

13 साल लगेंगे पूरी शिक्षा पद्धति को बदलने में लेकिन इससे हमारे देश की अपनी भाषा होगी और अंग्रेजियत की गुलामी से मुक्ति मिलेगी। हिन्दी भाषी लोगों को नौकरी में कितना अपमान सहना पड़ता है यह मैंने कई बार देखा है। न सिर्फ नौकरी में बल्कि घर में भी सदैव अपमानित किया जाता है। हिन्दी और अंग्रेजी के कारण देश दो वर्ग में बँट गया है। अमूमन हिन्दी माध्यम के स्कूल सरकारी स्कूल होते हैं जहाँ गरीबों के बच्चे पढ़ते हैं और अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में अमीरों के बच्चे। आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी हमारे विचार, व्यवहार और संस्कार से अंग्रेजी की गुलामी ख़त्म नहीं हो रही है, यह बेहद अफसोसजनक है। हम भारतवासियों को अपनी हिन्दी पर गर्व होना चाहिए और हिन्दी के सम्मान में हर संभव प्रयास करना चाहिए। आखिर अंग्रेज भाग गए तो अंग्रेजी को क्यों नहीं भगा सकते।  

- जेन्नी शबनम (14. 9. 2017)  
(हिन्दी दिवस) 
   
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15 comments:

PRAN SHARMA said...

विचारणीय लेख। जय हिन्दी।

Sadhana Vaid said...


सार्थक चिंतन जेनी जी ! इसी सन्दर्भ में पिछले वर्ष एक पोस्ट मैंने भी लिखी थी ! आपके पास उसकी लिंक भेज रही हूँ ! आपकी प्रतिक्रिया की अपेक्षा रहेगी मुझे !लिंक इस प्रकार है --

http://sudhinama.blogspot.in/2016/09/blog-post_14.html

उसी आलेख का थोड़ा सा अंश प्रस्तुत है !
इससे बड़ी विडम्बना और शर्म की बात और क्या होगी कि आजकल स्कूलों में बच्चों को हिन्दी में बात करने के लिए दण्डित किया जाता है ! यदि बच्चे स्कूल परिसर में अवकाश के समय में भी आपस में हिन्दी में बात करते हुए पाए जाते हैं तो टीचर्स उन्हें डाँटते हैं ! इस पर हम हिन्दी दिवस पर हिन्दी के उत्थान और सम्मान की बातें करते हैं और हिन्दी भाषा के भविष्य के प्रति अपनी चिंता व्यक्त करते हैं ! जिस भाषा में बात करने पर सज़ा मिले उस भाषा का सम्मान आज की युवा होती पीढ़ी कैसे करेगी और क्यों करेगी ? अपनी मातृ भाषा में बात करने पर किस देश में स्कूलों में बच्चों को दण्डित किया जाता है यह शोध का विषय हो सकता है !

निर्झर'नीर said...

सादर प्रणाम ,
बहुत दिन बाद आपका लेख पढ़ा मन बहुत प्रसन्न हुआ ऐसा लगा जैसे मैं खुद ही अपना लिखा हुआ पढ़ रहा हूँ .
आपके लेखन के लिए ढेरों शुभकामनायें .
निर्झर नीर

Sankalp said...

Ek atisundar lekh ke liye aapka aabhar. Devnagri lipi nahin hai isliye is pratikriya ko hindi men preshit hi samjha jaaye. dhanyawaad

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (16-09-2017) को
"हिन्दी से है प्यार" (चर्चा अंक 2729)
पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Anonymous PRAN SHARMA said...
विचारणीय लेख। जय हिन्दी।

September 14, 2017 at 8:47 PM
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आदरणीय प्राण शर्मा जी, मेरे लेख पर आपकी उपस्थिति और प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger sadhana vaid said...

सार्थक चिंतन जेनी जी ! इसी सन्दर्भ में पिछले वर्ष एक पोस्ट मैंने भी लिखी थी ! आपके पास उसकी लिंक भेज रही हूँ ! आपकी प्रतिक्रिया की अपेक्षा रहेगी मुझे !लिंक इस प्रकार है --

http://sudhinama.blogspot.in/2016/09/blog-post_14.html

उसी आलेख का थोड़ा सा अंश प्रस्तुत है !
इससे बड़ी विडम्बना और शर्म की बात और क्या होगी कि आजकल स्कूलों में बच्चों को हिन्दी में बात करने के लिए दण्डित किया जाता है ! यदि बच्चे स्कूल परिसर में अवकाश के समय में भी आपस में हिन्दी में बात करते हुए पाए जाते हैं तो टीचर्स उन्हें डाँटते हैं ! इस पर हम हिन्दी दिवस पर हिन्दी के उत्थान और सम्मान की बातें करते हैं और हिन्दी भाषा के भविष्य के प्रति अपनी चिंता व्यक्त करते हैं ! जिस भाषा में बात करने पर सज़ा मिले उस भाषा का सम्मान आज की युवा होती पीढ़ी कैसे करेगी और क्यों करेगी ? अपनी मातृ भाषा में बात करने पर किस देश में स्कूलों में बच्चों को दण्डित किया जाता है यह शोध का विषय हो सकता है !

September 14, 2017 at 11:50 PM
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साधना जी, मेरे विचार से आपकी सहमति मेरे लिए महत्वपूर्ण है. आपके लेख को अभी पढ़ रही हूँ, पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया दूँगी.
यह निश्चित ही शर्म की बात है कि स्कूल में बच्चों के हिन्दी बोलने पर पाबंदी है. पर मैं इसका दोष स्कूल को न देकर हमारी शिक्षा प्रणाली को एवं सरकार को दूँगी. जब तक हिन्दी माध्यम से पढ़ाई न होगी हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा न होगी सब कुछ ऐसे ही चलेगा. इसमें मैं बच्चों को भी दोष नहीं देती न तो माता पिता को. आज के इस अंग्रेजी समाज में खुद को स्थापित करना है तो उन्हें अंग्रेजी ही बोलना होगा अन्यथा वे पिछड़ जाएँगे. आज़ादी के 70 साल हो गए हिन्दी को राष्ट्र भाषा क्यों नहीं बनाया जा रहा यह मेरी समझ से परे है. सरकार एक दिन हिन्दी के नाम कर समझती है कि देश को हिन्दी राष्ट्र बना दिया जबकि शहरों की मातृभाषा अब अंग्रेजी बन गई है. बड़ा क्षोभ होता है.

आपके बहुमूल्य प्रतिक्रया के लिए आभार.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger निर्झर'नीर said...
सादर प्रणाम ,
बहुत दिन बाद आपका लेख पढ़ा मन बहुत प्रसन्न हुआ ऐसा लगा जैसे मैं खुद ही अपना लिखा हुआ पढ़ रहा हूँ .
आपके लेखन के लिए ढेरों शुभकामनायें .
निर्झर नीर

September 15, 2017 at 10:10 AM Delete
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नीर जी, मेरे ब्लॉग पर आपको देखकर मुझे बेहद ख़ुशी हुई. आप मेरे लेखन पर अपनी टिपण्णी देते रहे ताकि लिखने का मनोबल बढ़ता रहे. आप और हम जो हिन्दी भाषी हैं सभी के मन की यही बात है, हमारी हिन्दी हमें कमजोर कर चुकी है और खुद भी अंग्रेजी से दिन ब दिन हार रही है. हम सभी को इसके लिए कुछ तो कदम उठाना ही होगा. आपकी सराहना और शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger Sankalp said...
Ek atisundar lekh ke liye aapka aabhar. Devnagri lipi nahin hai isliye is pratikriya ko hindi men preshit hi samjha jaaye. dhanyawaad

September 15, 2017 at 11:39 AM Delete
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स्क्रिप्ट भले ही रोमन है पर बात तो हिन्दी में है न, यही बहुत बड़ी बात है और इसे मैंने हिन्दी ही मान लिया है. यूँ ही ब्लॉग पर आकर अपनी प्रतिक्रया देकर मेरा हौसला बढाया करो. बहुत बहुत शुक्रिया संकल्प.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger रूपचन्द्र शास्त्री मयंक said...
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (16-09-2017) को
"हिन्दी से है प्यार" (चर्चा अंक 2729)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

September 15, 2017 at 11:47 AM Delete
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मेरे ब्लॉग का लिंक चर्चा मंच में शामिल किया आपने, तहे दिल से धन्यवाद रूपचन्द्र शास्त्री जी.

virendra sharma said...

Good job buddy .

Kailash Sharma said...

बहुत सटीक और सार्थक विवेचन...

सदा said...

सार्थकता लिए सशक्त लेखन के माध्यम से बेहद विचारणीय बात कही आपने ....

Unknown said...

आलेख सुंदर, प्रभवशाली और हिंदी भाषा की वर्तमान में होती फजीहत को रेखांकित करती है। आज जिस दौर से हिंदी गुज़र रही है वह आगे और विकृत होगी चूंकि जनता और सरकारें अंग्रेजी भाषा की स्कूलिंग की ओर दौड़ रही है जब ये बच्चे कुछ करने योग्य होंगे तो इनके पास न हिंदी और न ही अंग्रेजी भाषा पर नियंत्रण होगा। जो हिंदी थी जानते हैं उनकी समस्याएं आप जैसी बानी रहेंगी और जो अंग्रेजी अच्छी जानते हैं वो ऐसे ही किसी कंपनी के एजेंट बने उपभोक्ता को संपर्क कर रहे होंगे। समाज हितकारी शोध, विचार, साहित्य अब अंग्रेजी में लिखा हो बाजार में बिकेगा, चमकेगा और पुरुस्कृत होगा।

umeshmahadoshi said...

हिन्दी के समर्थन में एक अच्छा और रुचिकर आलेख। धन्यवाद, आदरणीया जेन्नी जी।