Monday, September 14, 2020

79. मेरी हिन्दी, प्यारी हिन्दी

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था ''अखिल भारत के परस्पर व्यवहार के लिए ऐसी भाषा की आवश्यकता है, जिसे जनता का अधिकतम भाग पहले से ही जानता-समझता है, हिन्दी इस दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ है'' ''हृदय की कोई भाषा नहीं है, हृदय-हृदय से बातचीत करता है और हिन्दी हृदय की भाषा है''  

भारत की आज़ादी और गांधी जी के इंतकाल के कई दशक बीत गए, लेकिन आज भी हिन्दी को न सम्मान मिल सका, न बापू की बात को महत्व दिया गया हिन्दी, हिन्दी भाषियों तथा देश पर जैसे एक मेहरबानी की गई और हिन्दी को राजभाषा बना दिया गया बापू ने कहा था ''राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूँगा है'' सचमुच हमारा राष्ट्र गूँगा हो गया है, कहीं से पुर-ज़ोर आवाज़ नहीं आती कि हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाई जाए दुनिया के सभी देशों की अपनी-अपनी राष्ट्रभाषा है; लेकिन भारत ही ऐसा देश है जिसके पास अनेकों भाषाएँ हैं लेकिन राष्ट्रभाषा नहीं है जबकि भारत में सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषा हिन्दी है  

काफ़ी साल पहले की बात  हिन्दी है, मैं अपनी पाँच वर्षीया बेटी के साथ ट्रेन से भागलपुर जा रही थी ट्रेन में एक युवा दंपती अपने तीन-साढ़े तीन साल के बेटे के साथ सामने की बर्थ पर बैठे थे, जिनका पहनावा काफ़ी आधुनिक था वे अपने घर पटना जा रहे थे बच्चा मेरी बेटी के साथ ख़ूब खेल रहा थादोनों बच्चे बिस्किट खाना चाहते थे मेरी बेटी ने मुझसे कहा ''माँ हाथ धुला दो, बिस्किट खाएँगे'' मैंने कहा ''ठीक है चप्पल पहन लो, चलो'' सामने वाली स्त्री बेटे से बोली ''फर्स्ट वाश योर हैंड्स, देन आई विल गिव यू बिस्किट्स।'' वह बच्चा अपना दोनों हाथ दिखाकर बोला ''मम्मा, माई हैंड्स नो डर्टी।'' उस स्त्री ने अपने पति से अँगरेज़ी में कहा कि वह बेटे का हाथ धुला दे। दोनों बच्चे बिस्किट खा रहे थे। हाथ का बिस्किट ख़त्म होने पर उस बच्चे ने अपनी माँ से और भी बिस्किट माँगा, कहा कि ''मम्मा गिव बिस्किट'' माँ ने अँगरेज़ी में बच्चे से कहा कि पहले प्रॉपर्ली बोलो ''गिव मी सम मोर बिस्किट्स'' बच्चा किसी तरह बोल पाया फिर उसे बिस्किट मिला 

मैं यह सब देख रही थी मुझे बड़ा अजीब लगा कि इतने छोटे बच्चे को प्रॉपर्ली अँगरेज़ी बोलने के लिए अभी से दबाव दिया जा रहा है। मैंने कहा कि अभी यह इतना छोटा है, कैसे इतनी जल्दी सही-सही बोल पाएगा? उस स्त्री ने कहा कि अभी से अगर नहीं बोलेगा तो दिल्ली के प्रतिष्ठित स्कूल में एडमिशन के लिए इंटरव्यू में कैसे बोलेगा, इसलिए वे लोग हर वक़्त अँगरेज़ी में बात करते हैं। बातचीत से जब उन्हें पता चला कि मैं दिल्ली में रहती हूँ और मैंने पी-एच.डी. किया हुआ है, तो उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ कि मैं अपनी बेटी से हिन्दी में बात करती हूँ और बेटी भी अच्छी हिन्दी बोलती है। मैं सोचने लगी कि क्या उस माता-पिता का दोष है, जो बच्चे के एडमिशन के लिए अभी से बच्चे पर अँगरेज़ी बोलने का दबाव डाल रहे हैं, या दोष हमारी शिक्षा व्यवस्था का है; जिस कारण अभिभावक प्रतिष्ठित अँगरेज़ी माध्यम के स्कूल में पढ़ाने के लिए बच्चे के जन्म के समय से ही मानसिक तनाव झेलते हैं। 

निःसन्देह हमारे देश का ताना-बाना और सामजिक व्यवस्था का स्वरूप ऐसा बन चुका है, जिससे अँगरेज़ी के बिना काम नहीं चल पाता है। अगर जीवन में सफलता यानि उच्च पद और प्रतिष्ठा चाहिए तो अँगरेज़ियत ज़रूरी है। हिन्दी के पैरोकार कहते हैं कि हिन्दी बोलने से ऐसा नहीं है कि आदमी सफल नहीं हो सकता। मैं भी ऐसा मानती हूँ। लेकिन विगत 30-35 सालों में जिस तरह से सामाजिक-सांस्कृतिक बदलाव हुए हैं, हिन्दी माध्यम से कोई सफलता प्राप्त कर भी ले, पर समाज में उसे वह सम्मान नहीं मिलता जो अँगरेज़ी बोलने वाले को मिलता है। यों अपवाद हर जगह है। अब तो गाँव-कस्बों में भी अँगरेज़ी माध्यम के स्कूल खुलते जा रहे हैं; क्योंकि सफलता का मापदंड अँगरेज़ी भाषा बोलना हो गया है। आम जीवन में अक्सर मैंने यह महसूस किया है। किसी दूकान, रेस्त्राँ, सिनेमा हॉल, मॉल, किसी समारोह इत्यादि जगह में ''एक्सक्यूज मी'' बोल दो, तो सामने वाला पूरे सम्मान के साथ आपकी बात पहले सुनेगा और ध्यान देगा। हिन्दी में भइया-भइया कहते रह जाएँ, वे उसके बाद ही आपकी बात सुनेंगे। अमूमन हिन्दी बोलने वाला अगर सामान्य कपड़ों में है, तब तो उसे जाहिल या गँवार समझ लिया जाता है।   

शिक्षा पद्धति ऐसी है कि बच्चे हिन्दी बोल तो लेते हैं परन्तु समझते अँगरेज़ी में हैं। हिन्दी में अगर कोई स्क्रिप्ट लिखना हो तो रोमन लिपि में लिखते हैं। पर इसमें दोष उनका नहीं है, दोष शिक्षा पद्धति का है; क्योंकि हिन्दी की उपेक्षा होती रही है। सभी विषयों की पढ़ाई अँगरेज़ी में होती है, तो स्वाभाविक है कि बच्चे अँगरेज़ी पढ़ना, लिखना और बोलना सीखेंगे। हिन्दी एक विषय है, जिसे किसी तरह पास कर लेना है; क्योंकि आगे काम तो उसे आना नहीं है चाहे आगे की पढ़ाई हो या नौकरी या सामान्य जीवन।   

वर्ष 1986 में नई शिक्षा नीति लागू की गई थी, जिसमें 1992 में कुछ संशोधन किये गए थे। अब दशकों बाद 2020 में नई शिक्षा नीति लागू की गई है, जिसमें मातृभाषा पर ज़ोर दिया गया है। इसमें पाँचवीं कक्षा तक मातृभाषा, स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाई का माध्यम रखने की बात की गई है। यह भी कहा गया है कि किसी भी भाषा को थोपा नहीं जाएगा। अब इस नीति से हिन्दी को कितना बढ़ावा मिलेगा, यह कहना कठिन है। हिन्दी प्रदेशों के सरकारी विद्यालयों में हिन्दी माध्यम से पढ़ाई होती है। लेकिन पूरे देश के सभी निजी विद्यालयों में अँगरेज़ी माध्यम से ही पढ़ाई होती है। इस नई शिक्षा नीति के तहत ग़ैर-हिन्दी प्रदेश और निजी विद्यालय किस तरह हिन्दी को अपनाते हैं यह समय के साथ पता चलेगा।   

अँगरेज़ी की ज़ंजीरों  में जकड़े हुए हम भारतीयों को न जाने कब और कैसे इससे आज़ादी मिलेगी। बहुत अफ़सोस होता है जब अपने ही देश में हिन्दी और हिन्दी-भाषियों का अपमान होते देखती हूँ। आख़िर हिन्दी को उचित सम्मान व स्थान कब मिलेगा? कब हिन्दी हमारे देश की राष्ट्रभाषा बनेगी? क्या हम यों ही हर साल एक पखवारा हिन्दी दिवस के नाम करके अँगरेज़ी का गीत गाते रहेंगे? जिस तरह हमारे देश में अँगरेज़ों ने हमपर अँगरेज़ी थोप दिया और पूरा देश अँगरेज़ी का गुणगान करने लगा, क्या उसी तरह हमारी सरकार नीतिगत रूप से हिन्दी को पूरे देश के लिए अनिवार्य नहीं कर सकती? लोग अपनी-अपनी मातृभाषा बोलें; साथ ही हमारी राष्ट्रभाषा को जानें, सीखें, समझें और बोलें।  

हिन्दी दिवस की शुभकामनाएँ!

- जेन्नी शबनम (14.9.2020)
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20 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

हिन्दी दिवस पर शुभकामनाएं।

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत अच्छा !!
हमें भाषा के झगड़े से बच कर हिंदी बचाना है बस!!

ANULATA RAJ NAIR said...

Pls visit
www.turnslow.com

Thanks

Anonymous said...

प्रिय बहिन जैनी जी आपने हिन्दी भाषा को लेकर बहुत गहराई से उसकी दशा तथा दिशा पर काफी गहराई से लोगों की मानसिक सोच को बयान किया है। जो हम सभी हिन्दी भाषीयों को सोचने के लिए मजबूर करता है लेकिन इस सबके बावजूद
भारतीयों को इंग्लिश भाषा में बात करते हुए गर्व महसूस होता है.
एक बार का वाक्या मेरे साथ भी घटा है। मुझे एक बार किसी विषय पर कुछ सलाह लेना चाहता था और अपने सामने वाले से पूछने पर किसी प्रकार का उत्तर न मिलने पर निराश हुई। तभी मैंने उससे इंग्लिश में उसी सवाल को उनके समक्ष रखा तो उसने तुरंत मुझे काफी सम्मान व्यक्त करते हुए मेरी समस्या को सुलझाया।
आप समझ सकती हैं कि हिन्दी की क्या दशा है। दुख; होता यह सब देख कर।
अशोक आंद्रे

घुघुती said...

सहज शब्दों में सार्थक संवाद करता यह लेख सराहनीय है। हिंदी दिवस को पर्व की तरह मनाने के बदले विद्वादजन इसकी सही चिंता करें और घर से निदान की शुरुआत करें ,तभी कुछ सुधार हो पाएगा।

Ravindra Singh Yadav said...

नमस्ते,

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 15 सितंबर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!



दिगम्बर नासवा said...

अच्छा आलेख हिन्दी की दशा पर ...
बहुत शुभकामनायें ...

Sudershan Ratnakar said...

जेन्नी जी आपने हिन्दी के पक्ष में सटीक तर्क दिए हैं जब तक हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं दिया जाता, शिक्षा नीति में परिवर्तन नहीं होता।और सब से बड़ी बात लोगों की मानसिकता नहीं बदलती हिन्दी की यही दशा रहेगी। लोगों को हिन्दी में अपना कोई भविष्य ही नजर नहीं आता।इस सोच को बदलने की आवश्यकता है।
बहुत सुंदर लिखा आपने। बधाई

MahavirUttranchali said...

आओ सब हिन्दुस्तानी संकल्प करें!
हिन्दी अनिवार्य, अंग्रेज़ी विकल्प करें!!
— महावीर उत्तरांचली

प्रतिभा सक्सेना said...

हिन्दी के सामने सबसे बड़ी मुश्किल यही है कि मातृभाषा हिन्दी होते हुए भी ,अपने को विशेष माननेवाले लोग उसे हिकारत से देखते हैं और अंग्रेज़़ी का व्यवहार करने में अपनी शान समझते हैं.

डॉ. जेन्नी शबनम said...



Blogger सुशील कुमार जोशी said...

हिन्दी दिवस पर शुभकामनाएं।

September 14, 2020 at 4:00 PM Delete
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बहुत शुक्रिया! आपको भी शुभकामनाएँ सुशील जी.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत अच्छा !!
हमें भाषा के झगड़े से बच कर हिंदी बचाना है बस!!

September 14, 2020 at 5:54 PM Delete
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हाँ, भाषा के झगडे में क्या पढ़ना. हमारी हिन्दी को राजभाषा का मान मिले. शुक्रिया अनु जी.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger ANULATA RAJ NAIR said...

Pls visit
www.turnslow.com

Thanks

September 14, 2020 at 6:07 PM Delete
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आपके ब्लॉग को पढ़ती रहती हूँ, टिप्पणी देती रहती हूँ. आप आईं, अच्छा लगा. धन्यवाद.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Anonymous Anonymous said...

प्रिय बहिन जैनी जी आपने हिन्दी भाषा को लेकर बहुत गहराई से उसकी दशा तथा दिशा पर काफी गहराई से लोगों की मानसिक सोच को बयान किया है। जो हम सभी हिन्दी भाषीयों को सोचने के लिए मजबूर करता है लेकिन इस सबके बावजूद
भारतीयों को इंग्लिश भाषा में बात करते हुए गर्व महसूस होता है.
एक बार का वाक्या मेरे साथ भी घटा है। मुझे एक बार किसी विषय पर कुछ सलाह लेना चाहता था और अपने सामने वाले से पूछने पर किसी प्रकार का उत्तर न मिलने पर निराश हुई। तभी मैंने उससे इंग्लिश में उसी सवाल को उनके समक्ष रखा तो उसने तुरंत मुझे काफी सम्मान व्यक्त करते हुए मेरी समस्या को सुलझाया।
आप समझ सकती हैं कि हिन्दी की क्या दशा है। दुख; होता यह सब देख कर।
अशोक आंद्रे

September 14, 2020 at 6:12 PM Delete
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प्रणाम भाईसाहब! आशा है अब आप बिल्कुल स्वस्थ होंगे.
हिन्दी की जो स्थिति है, बहुत निराशा होती है. हमारे ज़माने में अंग्रजी को इतना महत्व नहीं दिया जाता था. सामान्य सरकारी स्कूल में हिन्दी मीडियम से मेरी पढ़ाई हुई. कभी भी अंग्रेजी को लेकर उन दिनों कुछ नहीं होता था. विगत 30-35 से देखती हूँ कि हर जगह अंग्रेजी अंग्रेजी. बड़ा दुःख होता है. पता नहीं सरकार राष्ट्रभाषा के लिए क्यों नहीं सोचती.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger घुघुती said...

सहज शब्दों में सार्थक संवाद करता यह लेख सराहनीय है। हिंदी दिवस को पर्व की तरह मनाने के बदले विद्वादजन इसकी सही चिंता करें और घर से निदान की शुरुआत करें ,तभी कुछ सुधार हो पाएगा।

September 14, 2020 at 8:08 PM Delete
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बात तो बिल्कुल सही कहा आपने. घर से इसकी शुरुआत अब मुमकिन नहीं. कितने भी विदुषी हों जब उनके बच्चे हिन्दी को अंगरेजी के द्वारा सीखे हों, तब वे अब अपने बच्चों को कहाँ हिन्दी सिखा पाएँगे. सरकार को पूरे देश में हिन्दी अनिवार्य करना होगा. तभी कुछ भी संभव है. सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका धन्यवाद.

डॉ. जेन्नी शबनम said...


Blogger Ravindra Singh Yadav said...

नमस्ते,

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 15 सितंबर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!



September 14, 2020 at 10:36 PM Delete
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आपका बहुत धन्यवाद.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger दिगम्बर नासवा said...

अच्छा आलेख हिन्दी की दशा पर ...
बहुत शुभकामनायें ...

September 15, 2020 at 9:35 PM Delete
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हिन्दी की दशा सुधरे इसी उम्मीद के साथ आपको भी शुभकामनाएँ.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger Sudershan Ratnakar said...

जेन्नी जी आपने हिन्दी के पक्ष में सटीक तर्क दिए हैं जब तक हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं दिया जाता, शिक्षा नीति में परिवर्तन नहीं होता।और सब से बड़ी बात लोगों की मानसिकता नहीं बदलती हिन्दी की यही दशा रहेगी। लोगों को हिन्दी में अपना कोई भविष्य ही नजर नहीं आता।इस सोच को बदलने की आवश्यकता है।
बहुत सुंदर लिखा आपने। बधाई

September 15, 2020 at 10:43 PM Delete
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आदरणीया रत्नाकर जी, आपने बिल्कुल सही कहा कि मानसिकता और शिक्षा नीति बदलने की ज़रुरत है. आपकी सार्थक प्रतिक्रिया के लिए हृदय से धन्यवाद.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger MahavirUttranchali said...

आओ सब हिन्दुस्तानी संकल्प करें!
हिन्दी अनिवार्य, अंग्रेज़ी विकल्प करें!!
— महावीर उत्तरांचली

September 16, 2020 at 4:18 PM Delete
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यह हो जाए तो मज़ा आ जाए. बहुत धन्यवाद महावीर जी.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger प्रतिभा सक्सेना said...

हिन्दी के सामने सबसे बड़ी मुश्किल यही है कि मातृभाषा हिन्दी होते हुए भी ,अपने को विशेष माननेवाले लोग उसे हिकारत से देखते हैं और अंग्रेज़़ी का व्यवहार करने में अपनी शान समझते हैं.

September 16, 2020 at 8:15 PM Delete
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हाँ, हर रोज़ हम यह देखते हैं. बड़ा दुःख होता है. कैसे यह सब ठीक होगा पता नहीं. कब हिन्दी और हिंदीभाषियों को सम्मान मिलेगा पता नहीं. बहुत धन्यवाद प्रतिभा जी.