Saturday, August 27, 2011

28. अन्ना-अनशन-आन्दोलन

अन्ना हजारे का आन्दोलन अंततः ख़त्म हो गया सरकार कितने वक़्त में जन लोकपाल को अमली-जामा पहनाएगी, यह अपने तय वक़्त पर हम सबके सामने आएगा पर इतना तो निश्चित है कि इस आन्दोलन में जनता की भागीदारी ने ये साबित कर दिया कि आज पूरा देश जिस तरह भ्रष्टाचार से त्रस्त और आहत है, इससे नज़ात पाने के लिए हर मुमकिन रूप इख़्तियार किया जा सकता है अन्ना के समर्थन में तमाम विपक्षी पार्टियाँ, कई सामाजिक संगठन और देश की पूरी जनता है इस पर दो मत नहीं कि भ्रष्टाचार को किसी भी क़ीमत पर ख़त्म करना चाहिए सरकार, आम जनता, ख़ास जनता या विपक्षी पार्टियाँ सभी चाहते हैं कि देश से भ्रष्टाचार दूर हो और हमने जिस आज़ाद प्रगतिशील भारत का सपना देखा है, वह पूरा हो 
 
अन्ना हजारे के अनशन को सभी अपने-अपने तरीक़े से देख रहे हैं मक़सद तो यही है कि भ्रष्टाचार दूर हो; लेकिन सोचने वाली बात है कि क्या सिर्फ़ जन लोकपाल बिल से भ्रष्टाचार दूर हो जाएगा? अन्ना के अनशन के 10वें दिन मैं रामलीला मैदान गई यह देखने कि आम जनता पर इसका असर कैसा है और वे किस तरह इस आन्दोलन से ख़ुद को जोड़ते हैं रामलीला मैदान में प्रवेश के लिए सामान्य जनता के लिए अलग-अलग पंक्तियाँ बनी थीं अपने पुत्र 'अभिज्ञान सिद्धांत' के साथ मैं एक पंक्ति में खड़ी हो गई दूसरी पंक्ति जो साथ आगे बढ़ रही थी, कुछ लोग मेरी पंक्ति से निकलकर दौड़ते हुए दूसरी पंक्ति की क़तार में लग रहे थे; क्योंकि उन्हें लगा कि उसे पहले जाने दिया जाएगा कुछ कार्यकर्ता उन लोगों को वहाँ से पकड़कर वापस उनकी पंक्ति में ला रहे थे, तब तक दूसरा दौड़ जा रहा था मज़ा आ रहा था देखकर; लेकिन मैं सोचने लगी कि जिस भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ यहाँ आन्दोलन हो रहा है, वहीं पहुँचने के लिए लोग अपना आचरण ग़लत कर रहे हैं 'दिल्ली पुलिस' के नाम से प्रचलित ग़लत छवि को पुलिसवाले आज पूरी तरह साफ़ करने के मूड में दिख रहे थे किसी के चेहरे पर कोई शिकन नहीं, कोई झुँझलाहट नहीं, आवाज़ में तल्ख़ी नहीं, मुस्कुराते हुए वे सुरक्षा के लिए तैनात थे स्कूल ड्रेस पहने स्कूली बच्चे, छात्र, युवा, दफ़्तर से काम के बाद लौटने वाले कर्मचारी या अधिकारी, हर तबक़े और उम्र के पुरुष और महिलाएँ, मज़दूर, रेड लाईट पर भीख माँगने वाले आदि भीड़ में शामिल दिखे कहीं अफ़रा-तफ़री नहीं, पर लोगों में आक्रोश बहुत अधिक था 
 
मैदान में प्रवेश करते ही बदबू का भभका नाक में घुसा बारिश के पानी से जहाँ-तहाँ पानी लगा था अन्ना-रसोई का मुफ़्त भोजन वितरण की अलग पंक्ति जो ख़त्म नहीं हो रही थी मैदान में खाने की प्लेटें, पानी के ग्लास, केले के छिलके बिखरे पड़े थे एक तरफ़ सफ़ाई कर्मचारी साफ़ करने में भिड़े थे, तो दूसरी तरफ़ लोग खा-पीकर जहाँ-तहाँ गन्दगी फैला रहे थेI
 
अन्ना के मंच की तरफ़ बढ़ने पर 25-26 वर्षीय छोटे कद का एक नवयुवक दिखा, जिसने दोनों हाथों से एक बड़ा-सा काग़ज़ पकड़ा था मैं नज़दीक गई तो रुककर पढ़ने लगी उसमें लिखे का अर्थ था कि सोनिया गांधी जैसा चाहती हैं मनमोहन सिंह वैसा ही करते हैं बहुत ही अभद्र भाषा में लिखी हुई थी बहुत उत्साहित और जोश में वह पूछने लगा ''आंटी कैसा लगा? मैंने लिखा है, बहुत दिमाग़ लगाया फिर लिखा है, सही है न?'' मैंने उससे पूछा कि आप क्या करते हैं? उसने बताया कि वह गंगा राम अस्पताल में डॉक्टर है उसने फिर पूछा ''आंटी बताइए न, ठीक लिखा है मैंने?'' मैंने पूछा कि ऐसा क्यों लिखा है? उसने कहा ''आंटी आपको एक चुटकुला सुनाऊँ?'' मैंने मुस्कुराकर हाँ में सिर हिलाया उसने सुनाया कि एक हिन्दू एक मुस्लिम और एक सिख मरने के बाद स्वर्ग गए वहाँ सबसे पूछा गया कि तुमने क्या-क्या किया, ज़िन्दगी कैसी कटी, आराम था न? हिन्दू ने बताया कि उसने पूजा-पाठ किया, तीर्थ यात्रा की और आनन्द से ज़िन्दगी जिया मुस्लिम ने कहा कि उसने नमाज़ पढ़ा, रोज़ा रखा, मक्का गया, वह ख़ुश है उसने अपनी ज़िन्दगी बहुत आराम से जिया सिख बोला ''कैसा आराम? आपने कैसी ज़िन्दगी दी मुझे? मुझे टॉफी बना दिया, नीचे से भी मरोड़ा जाता है ऊपर से भीI'' मैं समझ नहीं पाई कि इसमें चुटकुला क्या है मैंने उससे पूछा कि इसका अर्थ क्या हुआ उसने कहा कि मनमोहन सिंह है न! वह दोनों हाथ नचा-नचाकर बताने लगा कि जैसे टॉफी को दोनों तरफ़ से मरोड़कर बंद करते हैं वैसे ही (अर्थात सरदारों के बाल और दाढ़ी) आश्चर्य हुआ एक डॉक्टर की भाषा और सोच पर; ये कैसा आन्दोलन कर रहे हैं जिसमें प्रधानमंत्री के बारे में ऐसी भाषा

आगे बढ़ने पर भीड़ बढ़ती जा रही थी एक व्यक्ति चुपचाप एक चार्ट पेपर लेकर खड़ा था और जो भी सामने से गुज़रता उधर घूमकर उसे पढ़ाता लिखा था- ''सावधान सावधान, अभी अभी हमें पता चला है कि पाकिस्तान के दो सूअर हमारे देश के किसी नाले में घूस गए हैं, बचकर रहना उनके नाम हैं कपिल सिब्बल मनीष तिवारी'' मैं अवाक् होकर उसे देखने लगीI पर उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं बड़ा अजीब लगा कि ये कैसी भाषा का प्रयोग कर रहे हैं, व्यक्तिगत टिप्पणी वह भी इतना घटिया
आगे बढ़ने पर रामदेव बाबा का बड़ा-सा बैनर दिखा, जिसपर उन्होंने कहा है कि काला धन वापस आएगा तो हमारे देश को क्या-क्या लाभ होगा बाबा का आकलन और अनुमान देखकर आश्चर्य हुआ उस बैनर की तस्वीर हमने ले ली; जब काला धन वापस आ जाएगा, तो याद रहेगा कि बाबा के अनुमान के मुताबिक़ क्या-क्या हो पाया और क्या नहीं

धीरे-धीरे भीड़ में घुसते गए हम
बहुत बुरा हाल था मीडिया के मंच तक भी नहीं पहुँच पाए कि लगा कि अब बेदम हो जाएँगे एक तरफ़ अन्ना के मंच पर बिहार के भोजपुरी फ़िल्म अभिनेता व गायक मनोज तिवारी का देश भक्ति गीत गूँज रहा था, तो दूसरी तरफ़ कुछ लोग नारा लगा रहे थे- ''सोनिया जिसकी मम्मी है, वह सरकार निकम्मी है'', ''मनमोहन जिसका ताऊ है, वह सरकार बिकाऊ है''
स्त्रियों से बातें करती मैं
वहाँ से हम वापस हो गए, क्योंकि अन्ना के मंच तक पहुँचना असम्भव था पंडाल में एक जगह कुछ ग्रामीण महिलाएँ बैठी दिखीं और साथ में गेरुआ वस्त्र पहने दाढ़ी वाले दो बाबा वे जन लोकपाल बिल और इस आन्दोलन को कितना समझती हैं, ये जानने के लिए मैं उनसे बातें करने लगी वे सभी 'भारतीय किसान यूनियन' सतना, मध्य प्रदेश से थे एक गेरुआधारी का नाम लालमन कुशवाहा है मैं जिनसे बात कर रही थी, उनका नाम शान्ति कुशवाहा है शान्ति ने बताया कि किसान यूनियन के नेता ईश्वरचन्द्र त्रिपाठी के साथ वे सभी आए हैं मैंने पूछा कि यहाँ क्या हो रहा है, आप क्या करने आई हैं? शान्ति ने बताया कि हमलोग अन्ना का साथ देने के लिए आए हैं, भ्रष्टाचार दूर करने के लिए मैंने पूछा कि आपके गाँव में भ्रष्टाचार है? तो दूसरी महिला जो शान्ति के बग़ल में बैठी थी, उत्तेजित होकर कहने लगी ''कहाँ नहीं है भ्रष्टाचार? सबको घूस देना पड़ता है तब कोई काम होता है, कहाँ से लाएँ हम पैसा?'' शान्ति से मैंने पूछा कि क्या आपको कभी घूस देना पड़ा है? उसने कहा ''नहीं हम तो नहीं दिए हैं लेकिन मुखिया और थाना में और अस्पताल में पैसा देना होता है तभी कोई काम होता है'' मैंने पूछा कि आपको यहाँ कोई दिक्क़त? कब से आए हैं आपलोग? उसने बताया कि ''आजे सुबह ही आए हैं, खाना भी मिला है और कोई दिक्क़त नहीं है, जब ईश्वरचन्द्र जी कहेंगे तभी हमलोग यहाँ से जाएँगे'' बग़लवाली महिला अपना बैज और कार्ड दिखाने लगी जिसपर मेंबर भारतीय किसान यूनियन लिखा था मैंने कहा कि जन लोकपाल बिल क्या है आपको मालूम है? वह बोली ''हम नहीं जानते नेता जी जानते हैं, वही हमलोग को लाए हैं, उनके साथ ही हम आए हैं अन्ना का साथ देने'' सच भी है, ये ग्रामीण महिलाएँ लोकपाल बिल क्या जाने, बस इतना जानती हैं कि अन्ना का साथ देंगे तो देश से भ्रष्टाचार दूर होगा अन्ना-आन्दोलन को सक्रिय सहयोग देने के लिए उन्हें शुभकामना देकर हम पंडाल से बाहर आए पंडाल में एक जगह ''यादव वंश का इतिहास'' नामक किताब की बिक्री हो रही थी, जिसकी मात्र तीन प्रति बच गई थी बग़ल में बड़ा-बड़ा पोस्टर उसके इतिहास को बताने के लिए लगा था

सामने दो युवक मुस्कुराते हुए अपना बैनर लिए खड़े थे मुझे देखकर वे नज़दीक आए किसी के भी आने से वे नज़दीक जा रहे थे, ताकि बैनर पढ़ा जा सके मैं पढ़कर स्तब्ध रह गई ''HIV से ज्यादा खतरनाक है कपिल सिबल (सिब्बल)I'' मेरे बेटे ने फोटो लिया, तो उन दोनों ने पूरे जोश में आकर फोटो खिंचवाया

आन्दोलनकर्ता के साथ ही मुफ़्त खाना खाने वालों की भीड़ वैसी ही बनी हुई थी केला लेने के लिए अलग एक लम्बी क़तार थी, कुछ लोग उनमें से एक बार लेने के बाद खाकर वहीं छिलका फेंक, दोबारा पंक्ति में लग जा रहे थे सच है, भूख हो तो किसी का भी ईमान भ्रष्ट हो जाता है और कोई मौक़ा चूकने नहीं देता, भले वह भ्रष्टाचार के विरुद्ध बोलता हो या फिर भ्रष्टाचार से त्रस्त हो बाहर निकलने वाले गेट पर एक पोस्टर टँगा था जिसमें लिखा था ''संसद का घेराव करो, जल्दी चलो, जय भारत माता की'', ''अन्ना भूखा है, कुत्ते पार्टी करते हैं''

अन्ना का अनशन भ्रष्टाचार के विरुद्ध है और हर बार वे हिंसा नहीं करने की गुज़ारिश करते हैं इस आन्दोलन में शारीरिक हिंसा तो कहीं नहीं दिखी; परन्तु मानसिक और भाषाई हिंसा सभी जगह नज़र आ रही है सरकार की ग़लत नीतियाँ और उनके विरुद्ध आवाज़ उठाना हर नागरिक का अधिकार और कर्तव्य है; लेकिन व्यक्तिवादी गाली देना या अशिष्ट भाषा का प्रयोग करना कहीं से जायज़ नहीं निःसंदेह अन्ना के साथ पूरा देश है; क्योंकि भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ पूरा देश है परन्तु अन्ना को क्या पता कि उनके समर्थक उन्हीं के आन्दोलन के पंडाल में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाते हुए ख़ुद अपना आचरण भ्रष्ट कर रहे हैं गांधी और अन्ना को एक कहने वाले कभी गांधी को पढ़ लें, तो शायद अहिंसा, अनशन और आन्दोलन का अर्थ समझ जाएँगेI

-जेन्नी शबनम (27.8.2011)
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Saturday, August 20, 2011

27. कठपुतलियों वाली श्यामली दी (शान्तिनिकेतन भाग- 2)


भाग-1: https://saajha-sansaar.blogspot.com/2011/08/blog-post.html
श्यामली दी और मैं
श्यामली दी हम सभी को छोड़कर चली गईं और इसके साथ ही गुरुदेव की सोच की एक और विरासत का अंत हुआ अभी एक महीने भी तो नहीं हुए, काग़ज़ों और रंगों से खेलती सबकी प्यारी श्यामली दी से मुझे मिले हुए समझ में नहीं आ रहा इस घटना को किस रूप में लूँ? मैं 20 सालों से दोबारा शान्तिनिकेतन जाने का सपना देख रही थी जब गई तो सभी से मिली और आने के दिन ही श्यामली दी को लकवा (paralysis) का अटैक आया अन्तिम दिनों में शायद मुझे उनसे मिलना था बस एक दिन पहले उनके साथ कॉफ़ी हाउस में बैठकर कॉफ़ी पी, उनके साथ दूकान गई जहाँ से उन्होंने मेरे लिए किताब लिए, उनके साथ एक मित्र के घर बाउल का गाना सुनने और रात्रि भोजन के लिए गई, जहाँ उनकी बनाई ख़ास सब्ज़ी (चाचरी) भी थी  
 
अटैक से ठीक पहले वे मेरे और मेरे बेटे के लिए नाश्ते की तैयारी कर रही थीं आधा खाना बन चुका था, आधा वैसे ही कटा खुला रखा हुआ था मेरे पहुँचने तक सिर्फ़ उनके दाहिने हाथ और पैर पर असर हुआ था, चेहरा ठीक था और बोल पा रही थीं मेरे पहुँचने से पहले उन्होंने ख़ुद मनीषा को फ़ोन कर बताया कि उन्हें अटैक आया है और वह जल्दी आ जाए उन्होंने मंजु दी से जो संयोग से मेरे साथ उनसे मिलने आई थीं, अपना पैसेवाला थैला मँगाकर उन्हें दिए, जिसे मनीषा को देने के लिए कहा ताकि उनका इलाज़ उनके अपने पैसों से हो; किसी और की मदद लेना वे नहीं चाहती थीं जब हमलोग पहुँचे तो वे पूरे होश में थीं, उन्होंने बताया कि कैसे यह सब हुआ और बोलते-बोलते आवाज़ लड़खड़ाने लगी साँस लेने में उन्हें बहुत तकलीफ़ हो रही थी मंजु दी और मैंने बहुत कहा कि अस्पताल चलिए, लेकिन वे राज़ी नहीं थीं फिर उन्होंने कहा कि ठीक है डॉक्टर को बुला लोमंजु दी ने डॉक्टर को फ़ोन किया लेकिन डॉक्टर शान्तिनिकेतन में उपलब्ध नहीं थे तब तक मनीषा आ गई और फिर ज़िद कर हम सबने उन्हें गाड़ी से अस्पताल भेजा गाड़ी में बैठते हुए उनकी साँसे अटक रही थीं बहुत मुश्किल से उनको गाड़ी में बिठाया गया जाते-जाते भी मनीषा और मंजु दी से वे कहती रहीं कि मुझे ज़रूर से खाना खिला दे, जो कुछ भी वे बना पाई हैं इशारे से वे मुझे कह रही थीं कि घर जाकर खा लो बहुत कोशिश कर भी वे कुछ बोल नहीं पा रहीं थीं अस्पताल में प्राथमिक चिकित्सा किया गया और देखते-ही-देखते शरीर का समूचा दाहिना हिस्सा काम करना बंद कर दिया  

स्थिति की गम्भीरता को देखते हुए उन्हें दुर्गापुर ले जाने का निर्णय लिया गया जब यह बात श्यामली दी को बताया गया, तो बहुत ज़ोर से चिल्लाने लगीं कि उन्हें शान्तिनिकेतन में ही रहना है कहीं बाहर नहीं जाना है; जबकि उनकी आवाज़ स्पष्ट नहीं थी, पर इशारे में भी वे यही कहती रहीं एक मित्र ने उनसे कहा कि आप फ़िक्र न करें सारा इंतिज़ाम हो जाएगा, तो और भी ग़ुस्सा हो गईं उन्हें शायद लगा कि अस्पताल में ख़र्च ज़्यादा होगा और किसी और का पैसा ख़र्च न हो, इसलिए इशारे में कहा कि मनीषा के पास पैसा है, किसी और से पैसा नहीं लेना मैंने और मंजु दी ने समझाया कि आपके ही पैसे से इलाज हो रहा है आप फ़िक्र न करें, तब वे शांत हुईं  
 
शान्तिनिकेतन प्रकृति, शिक्षा, कला, संस्कृति और विद्वता का केन्द्र है; परन्तु एक अच्छा अस्पताल नहीं है, जहाँ सामान्य बीमारी से अलग किसी गम्भीर बीमारी का इलाज किया जा सके एम्बुलेंस ऐसी स्थिति में नहीं कि उससे श्यामली दी को दुर्गापुर भेजा जा सके। वहाँ मेरी गाड़ी भी थी और मनीषा की भी; लेकिन आपातकालीन प्राथमिक चिकित्सा के बिना श्यामली दी को दुर्गापुर ले जाना सम्भव नहीं था। उन्हें साँस लेने में बहुत दिक्कत हो रही थी, लगातार ऑक्सीजन दिया जा रहा था दुर्गापुर से एम्बुलेंस चल चुका था इस बीच सत्य (श्यामली दी के एक मित्र) ने साथ जाने का फ़ैसला लिया, तो श्यामली दी के पैसेवाला झोला उन्हें दे दिया गया। इस बीच श्यामली दी के मित्र और शुभचिन्तक जमा हो चुके थे और सभी बहुत दुःखी थे  

अभी एम्बुलेंस के आने में दो घंटा और लगना था मनीषा ने कहा कि मैं श्यामली दी के घर जाकर खाना खा लूँ, तब तक वह भी सेमीनार में सम्मिलित होकर आ जाएगी खाना खाकर वापस आकर मैंने श्यामली दी को बता दिया कि उनके घर जाकर उनका बनाया खाना मैंने खा लिया है और अब आप चिन्ता न करें वे मुस्कुरा दीं और मुझे देखने लगीं उनकी आँखों में आँसू थे, शायद अपनी असमर्थता की पीड़ा पर बोलने की बहुत चेष्टा करती रहीं, लेकिन आवाज़ गले में अटक रही थी मैंने उन्हें दिलासा दिया कि आप शीघ्र स्वस्थ हो जाएँगी, आप दूसरे अस्पताल में चलिए कुछ नहीं बोलीं, बस डबडबाई आँखों से देखती रहीं  

मनीषा से लगातार मैं संपर्क में थी, दुर्गापुर में उनके सिर का ऑपरेशन हुआ कोई सुधार तो नहीं, लेकिन स्थिर थीं और लगातार वेंटिलेटर पर रहींतब तक उनके पुत्र आनन्दा भी कनाडा से आ गए फिर उनको कोलकाता ले जाया गया; क्योंकि स्थिति दिन-ब-दिन बिगड़ रही थी। 18 जुलाई को अटैक आया था, तब से लगतार अस्पताल में उनका इलाज चलता रहा मनीषा कई बार जाकर उनको देख आई थी मनीषा के लिए श्यामली दी बहुत महत्व रखती हैं, उसके लिए जैसे सिर पर से साया उठ गया हो यों मनीषा के माता-पिता जीवित हैं; परन्तु मानसिक सम्बल सदैव श्यामली दी से मिलता था 15 अगस्त को श्यामली दी ने अन्तिम साँस ली 

श्यामली दी का पूरा नाम श्यामली खस्तगीर है वे एंटी न्यूक्लिअर एक्टिविस्ट के साथ-साथ लोक-कला-संस्कृति जिसमें पेपर क्राफ्ट, कठपुतली (पपेट), मूर्तिकला, चित्रकला आदि के प्रसार के लिए भी काम करती रहीं। वे समाज सेविका के साथ लेखिका, कलाकार, चित्रकार, शिल्पकार आदि कलाओं में निपुण एवं मर्मज्ञ के रूप में प्रसिद्ध हैं अपने घर 'पलाश' जो शान्तिनिकेतन के पूर्वपल्ली में स्थित है, ग़रीब बच्चों को पढ़ाती थीं इस घर में सभी तरफ़ इनके पिता और इनकी कला के नमूने कुछ सहेजे कुछ बिखरे हुए देखे जा सकते हैं 
 
श्यामली दी के पिता श्री सुधीर खस्तगीर प्रसिद्ध शिल्पकार और चित्रकार थे, साथ ही गांधीवादी और समाजवादी विचारधारा के व्यक्ति थे शुरुआती दिनों में वे देहरादून के प्रसिद्ध दून स्कूल में 20 साल कला के शिक्षक रहेफिर लखनऊ के जी.सी.ए. कॉलेज में प्रिंसिपल रहे श्यामली दी की माँ बनारस के एक ब्राह्मण परिवार से थीं श्यामली दी के सिर से माँ का साया बचपन में उठ गया था उनका बचपन देहरादून में बीता बाद में शान्तिनिकेतन से उन्होंने कला की पढ़ाई की विश्वविद्यालय के चीना भवन के विभागाध्यक्ष के पुत्र 'तान ली', जो कनाडा के मशहूर आर्किटेक्ट हैं, से विवाह किया और कनाडा चली गईं वहाँ जाने के बाद वे भारत के साथ अमेरिका और कनाडा के शान्ति आन्दोलन से भी जुड़ गईं अमेरिका में इस आन्दोलन के कारण उनकी गिरफ़्तारी भी हुई कनाडा के वैभवशाली जीवन से जल्द ही ऊब गईं और अपने पति से अलग होकर वापस शान्तिनिकेतन आ गईं अपनी सोच और विचारधारा के कारण वे मेधा पटकर और बाबा आमटे जैसे सामाजिक कार्यकर्ता के सम्पर्क में आईं और साथ मिलकर काम करती रहीं 44 वर्षीय आनन्दा जो उनके एकमात्र पुत्र हैं, कनाडा में अपने परिवार के साथ रहते हैं  
शान्तिनिकेतन से 10 किलो मीटर दूर तिलुतिया गाँव में एक आश्रम को शयमाली दी ने अपनी मृत्यु के बाद दाह-संस्कार के लिए तय कर रखा हैउनके चाहने और जानने वाले देश-विदेश से आज यहाँ शान्तिनिकेतन में एकत्रित हो चुके हैं श्यामली दी का शरीर आज शान्तिनिकेतन में ज़मींदोज़ कर दिया गया और उसी जगह पर एक पेड़ लगाया गया, जैसा कि श्यामली दी की अन्तिम इच्छा थी  
शान्तिनिकेतन जैसे श्यामली दी के जिस्म का कोई हिस्सा हो, या वजूद का शान्तिनिकेतन से बाहर वे रहने का सोच भी नहीं सकती थीं अपनी पूरी ज़िन्दगी उन्होंने शान्तिनिकेतन को समर्पित कर दिया और आज ख़ामोशी से अपने चाहनेवालों को छोड़ सदा के लिए शान्तिनिकेतन में समाहित हो गईं 

-जेन्नी शबनम (16.8.2011)
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