Tuesday, March 8, 2011

19. बच्चियों का घर (चम्पानगर, भागलपुर) - 1




3 साल की बच्ची सलवार कुर्ती पहने और सिर पर दुपट्टा डाले हुए मेरे सामने से दौड़ते हुए गई| कमरे के भीतर से दो तीन औरतों को वो बाहर लेकर आई और उनमें से किसी एक स्त्री की साड़ी का पल्लू पकड़े रही| काफी जर्ज़र हालत में वो मकान था, दरवाज़े में घुसते हीं सामने मोहम्मद मुन्ना साहब से मुलाक़ात हुई जो इस यतीमखाना के संचालक हैं| हमने उन्हें बताया कि हम आपका यतीमखाना देखना चाहते हैं| हम जानना चाहते हैं कि बच्चियाँ कैसे रहती हैं और क्या क्या करती हैं| बेहद तंग गली में ये मकान है और हर मकान एक दूसरे से सटा हुआ है| आसपास के मकानों से लोग देखने लगे कि क्या हुआ| कौन लोग हैं और क्यों आये हैं? कौतूहलवश थोड़ी भीड़ सी इकठ्ठी हो गई| 


मुन्ना साहब ने बताया कि यहाँ जन्मजात कन्या से लेकर 12 साल तक की बच्ची रहती है, उसके बाद उन्हें बड़ी लड़कियों के यतीमखाने में भेज देते हैं| अभी तकरीबन 25 लड़कियाँ यहाँ रह रही है| 4-5 को छोड़कर बाकी सभी बच्चियाँ दावत खाने कहीं गई हुई थी| एक बच्ची जो करीब 5 साल की थी छत पर बने ओसारे में दो अन्य बच्ची के साथ पढ़ने बैठी थी| उससे नाम पूछने पर भी कोई जवाब न दे पाई| मैं उससे उसकी किताब मांगी कि दिखाओ क्या पढ़ रही हो, चुपचाप उसने अपनी किताब मुझे लाकर दे दी| 



मुन्ना साहब ने बताया कि यहाँ 2 शिक्षिकाएं हैं जो इन्हें पढ़ाती हैं| यहाँ सिर्फ उर्दू में पढ़ाई होती है| यहाँ दीनी तालीम दी जाती है जिसमें पाक कुरान पढ़ाया जाता है| साथ हीं बहिश्ते-ज़ेबर की तालीम दी जाती है जिसे दुनियावी तालीम भी कह सकते हैं, जिसमें मुस्लिम परंपरा के अनुसार जिंदगी जीने की कला और तहज़ीब बताई गयी है| यह माना जाता है कि हर मुस्लिम बालिका केलिए ये दोनों तालीम निहायत ज़रूरी है| 

मैंने मुन्ना साहब से बातों बातों में पूछा कि इन बच्चियों को स्कूली शिक्षा देने के बारे में आप लोग क्यों नहीं सोचते, उन्होंने जो जवाब दिया वो चौंका देने वाला था| मुन्ना साहब ने कहा ''दीनी तालीम से ज्यादा और क्या ज़रूरी है लड़की केलिए? यही पढ़ लें काफी है| सामान्य स्कूली शिक्षा इन्हें नहीं दी जाती, फ़ायदा भी क्या है लड़कियों को पढ़ाने से?''

800 वर्ग फीट में बसा हुआ यह यतीम खाना बहुत हीं ख़स्ताहाल दिखा| मात्र दो कमरे और छत और उसपर ओसारा बना हुआ था| इतने से में हीं सभी लडकियां, शिक्षिकाएं और मोहम्मद मुन्ना रहते हैं| अभावग्रस्त इस यतीमखाने में सभी लड़कियाँ फिर भी खुश हाल थीं, क्योंकि उनके घर की भी वही स्थिति...किसी के वालिद नहीं रहे, किसी की अम्मी नहीं रही, किसी के अब्बा-अम्मी दोनों हीं नहीं हैं, तो किसी के अम्मी या अब्बा की दूसरी शादी वज़ह बनी या फिर माता-पिता की गरीबी उन्हें यहाँ तक पहुंचा लाई| यतीम, दुर्रे यतीम के साथ हीं वो बालिका भी यतीम हो गई जिनके अम्मी-अब्बू जीवित हैं| जाने कैसी नियति कि पेट की खातिर या फिर बोझ या फिर और भी वज़ह, इतनी छोटी छोटी बच्ची यतीम बन गयी| 

ये यतीमखाना भी जकात, फितरह, अतियात और इमदादी की रकम से चलता है| शहरवासी वैसे भी कभी कभी कुछ अपने मन से चन्दा दे देते हैं| मुनासिब हर ज़रूरत यहाँ पूरी की जाती है| 

जारी...

**********************************************************************

6 comments:

pragya said...

"फ़ायदा भी क्या है लड़कियों को पढ़ाने से?"
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर आज इन पंक्तियों ने बड़ा ही अजीब सा माहौल बना दिया मन के अन्दर....शायद एक टीस, एक बेचैनी या शायद एक आहत मन की जानी-पहचानी आदत...hurt होने की....

Khare A said...

jaankari bahut hi rochak he, lekin, hum aaj bhi bahi rudhibadi parampra se un bachhiyun ka bahiyvshye sanvar rahe hain, jo ek dam galat he, unko aaj ke mahul ki shiksha se bhi rubaru hona chahiye!

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

लड़कियों के प्रति ऐसा ख्याल क्यों है ....क्या मुन्ना साहब लड़कियों की क्षमताओं पर भरोसा नहीं करते कि वे भी आसमान में छेद कर सकने की क्षमता रखती हैं ? ऐसे लोग ही स्त्री शक्ति की दुर्दशा के लिए ज़िम्मेदार हैं .......मोहतरमा आप मनाइए उन्हें कि लड़कियां भी बेहतरीन तालीम की उतनी ही हक़दार हैं जितने कि लडके.

rasaayan said...

lekh ke zariye aapne Bharat (economically advanced) ki saamaajik samasyaa par prakaash dala...
ye log sewaa rat hain in asahaay bachchon ke liye, ham sabko bhi is or dhyaan dena chaahiye...
dhanyavad...

rasaayan said...

Samaj ke asahaay bachhchon ke liye ye mahan vyakti jitna bhi kar rahe hain, sarahneeya hai.....
aapke lekh se kuch seekh milti hai...
yehan ham log 'Ekal Vidyalaya' ke kiye dhan ekatra karte hain,
prayaas hai, kuch to Bharat ke graamon main sahayata ho jaati hai...
dhanyavad.....

सहज साहित्य said...

आज शिक्षा का उजाला जहां पहुँचना चाहिए , वहाँ के लिए प्राय: कुछ नहीं किया जाता । शबनम जी आप अपने पारिवारिक व्यस्त समय में से कुछ समय निकाल लेती हैं , बहुत बड़ी बात है । आप जैसे लोग ही इस दुनिया में कुछ कर सकते हैं। आपके ज़ज़्बे को सलाम !