Monday, January 24, 2011

17. काजवलीचक के यतीम बच्चे (अनाथालय भाग - 1)



स्थान – इस्लामिया यतीमख़ाना (काजवलीचक, भागलपुर)

27 दिसम्बर 2010 शाम 5 बजे, बच्चे पढ़ने के लिए जैसे ही बैठे कि बिजली चली गई सभी बच्चे शोर करने लगे मौलाना साहब ने सबको चुप कराया और तुरन्त लालटेन जला दिया गया इस बीच 8 साल का असलम जिसकी निगाहें बुझ चुके बल्ब को ताक रही थीं, अपने बग़ल वाले बच्चे से और सट गया, मैं उसके पास बैठ गई और उससे बातें करने लगी 
 
असलम तुम कबसे यहाँ हो?
याद नहीं!
कौन लेकर आया यहाँ?
अम्मी! अम्मी घर पर है! असलम की निगाहें ज़मीन पर है

फिर यहाँ क्यों भेजी तुमको? मैंने चौंकते हुए पूछा
अब्बा नहीं हैं
कैसा लगता है यहाँ तुमको?
बहुत अच्छा!
क्या-क्या करते हो यहाँ? 
पढ़ता हूँ, खेलता हूँ, हम पाँच भाई हैं, पाँचों यहाँ है, बहुत मज़ा करते हैं हम
क्या पाँच भाई? और सब यहाँ? मैं चौंक गई अम्मी ज़िन्दा है फिर भी पाँचों बच्चों को यतीमख़ाने में भेज दिया?
हाँ भेज दिया! असलम के जवाब में मेरे सवाल से जुड़ा ग़ुस्सा साफ़ नज़र आता है
  
 
बग़ल में ही खड़ा एक ख़ूबसूरत आँखों वाला लड़का, जो तक़रीबन 14-15 साल का था, मेरे सामने से गुज़रा
मैंने उसे रोककर पूछा- तुमको कब लाया गया यहाँ?
उसने कहा कि अब तो याद भी नहीं बहुत छोटा था मैं
 
 

मेरी नज़र पड़ी एक 8 वर्ष के बच्चे पर, जो थोड़ा छुप रहा था और शरमा भी रहा था मैंने उससे पूछा- नाम क्या है?
जवाब न देकर वह मुस्कुराता रहा
मैंने फिर पूछा- नाम बताओ?
फिर चुप! बग़ल में एक छोटा बच्चा क़रीब 10 वर्ष का था, उसने कहा-
“अबे बोल न, तेरे से पूछ रही है!”
फिर भी वह मुस्कुराता और झेंपता रहा
फिर बग़ल वाले बच्चे से मैंने कहा कि अच्छा चलो तुम ही बताओ क्या नाम है तुम्हारा?
उसने कहा मेरा नाम रफ़ीक़ है और इसका नाम…अबे बोल न डरता क्यों है?
मैडम, इसका नाम सलीम है
मैं बोली कि इतना शरमा क्यों रहे हो? पढ़ते हो?
हाँ मैं…सर हिला दिया उसने
रफ़ीक़ से मैंने जानना चाहा कि वह क्यों आया यहाँ?
उसने बताया कि उसके अब्बा नहीं हैं?
मैंने पूछा कि क्या हुआ था?
उसने कहा कि वे ज़िन्दा हैं, पर अम्मी को छोड़ गया, इसलिए अम्मी यहाँ भेज दी उसे
सलीम को क्यों लाया गया, जानते हो तो बताओ?
उसने कहा कि इसकी अम्मी नहीं है, अब्बू ने निकाह पढ़ लिया, इसलिए इसे यहाँ छोड़ दिया गया
मैंने सलीम और रफ़ीक़ से पूछा कि मन नहीं होता अपने घर जाने का?
सलीम ने मुस्कुराते हुए ना में सिर हिलाया और रफ़ीक़ तपाक से बोला नहीं, नहीं जाऊँगा घर!
मैंने पूछा कि क्यों अम्मी तो है न घर पर, याद नहीं आती?
तो क्या हुआ मुझे नहीं जाना घर…रफ़ीक़ बोला
क्यों, अम्मी से मिलने का मन नहीं होता?
अम्मी ने निकाह पढ़ लिया और नया वाला अब्बू बहुत मारता है, मुझे नहीं जाना उस घर वापस! इस बार रफ़ीक़ की मुट्ठियाँ कसके बँधी हुई हैं  
 
मुझे लगा जैसे कोई तीर आकर चुभ गया हो दिल में कुछ और किसी से पूछने की हिम्मत न रही माता-पिता ख़ुद बच्चों में ऐसी नफ़रत भर दें, तो अब किससे कोई उम्मीद करे यतीम न होते हुए भी दोनों यतीम बन चुके हैं उनके मन में अपनी माँ के लिए भी प्रेम नहीं दोषी कौन? कैसे आसानी से कोई अपनी बीवी को तलाक दे देता है और बच्चों को भेज देता है यतीमख़ाना  
 
बिहार के भागलपुर शहर के काजवलीचक मोहल्ला स्थित इस्लामिया यतीमख़ाना 78 वर्ष पुराना है कूल 50 बच्चे अभी यहाँ हैं, जिनमें से अधिकांश बच्चे 6-14 वर्ष के हैं, क़रीब 18-22 वर्ष के 10-12 बच्चे हैं इस यतीमख़ाना के संचालक डॉक्टर सईद जियाउर रहमान हैं

मोहम्मद ताहिर हुसैन, जिनकी तालीम मौलाना की है, इस यतीमख़ाना की जवाबदेही सँभाले हुए हैं
मौलाना साहब ने बताया कि यतीमख़ाना में सिर्फ़ वे बच्चे नहीं जिनका कोई नहीं हैं, बल्कि कई बच्चे ऐसे हैं जिनके वालिद जीवित हैं, और वे ख़ुद अपने बच्चों को यहाँ छोड़ जाते हैं जिन बच्चों के वालिद नहीं उन बच्चों को यतीम कहा जाता है और जिनके अम्मी-अब्बा दोनों नहीं हैं उनको दुर्रे-यतीम कहा जाता है हर बच्चे को यहाँ नहीं लिया जाता जिस गाँव, मोहल्ला, टोला या अन्य जगह पर बच्चा पाया जाता है, तो उसके पूर्ण तफ़तीश के बाद ही यहाँ रखा जाता है ये सत्यापन घर के रिश्तेदार, गाँव का मुखिया, उस वार्ड का कमिश्नर या थाना के द्वारा किया जाता है सिया और सुन्नी दोनों तबक़े के बच्चे यहाँ रहते हैं जो लोग बहुत ग़रीब हैं, वे भी अपने बच्चों को पढ़ने और पालन-पोषण के लिए यहाँ छोड़ जाते हैं  
 
50 बच्चों पर 4 ख़ानसामा और हेल्पर हैं, क़रीब 10 अन्य स्टाफ़ हैं, जिनमें बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षक भी हैं यहाँ सभी कार्य के लिए सिर्फ़ पुरुष हैं, चाहे बच्चों की देखभाल हो या पढ़ाना या अन्य कार्य आश्चर्य की बात है कि यहाँ 5-6 साल के कई बच्चे हैं और एक भी महिला स्टाफ़ नहीं है। यहाँ एक भी यतीम बालिका नहीं है यतीम लड़कियों के लिए अलग यतीमख़ाना है  
 
मौलाना साहब से जानकारी मिली कि ज़कात, फ़ितरा, अतीया और इम्दाद की रक़म से यहाँ का ख़र्चा चलता है इसी यतीमख़ाना से भागलपुर के एक मशहूर वकील और जानवरों के एक मशहूर डॉक्टर भी हुए हैं बच्चे यहाँ क़ुरान के साथ सभी विषयों की पढ़ाई करते हैं बच्चों की सभी तालीम, भोजन, वस्त्र और देखभाल यतीमख़ाना द्वारा किया जाता है मौलाना कहते हैं कि यह यतीमख़ाना एक तरह का छात्रावास है, जहाँ बच्चों को न सिर्फ़ तालीम दी जाती है, बल्कि जीवन सँवारा जाता है इसके लिए यतीम या दुर्रे-यतीम होना लाज़िमी नहीं बल्कि ग़रीबी भी एक वज़ह है  
 
मेरा समय ख़त्म होने को है मैं जैसे ही उठ खड़ी होती हूँ, दरवाज़े पर खड़ा बच्चों का हुजूम एक साथ हाथ उठाकर मुझे ख़ुदा हाफ़िज़ और अलविदा कहता है छोटी-छोटी हथेलियों की रेखाएँ दूर से नज़र नहीं आती मैं जानना चाहती हूँ कि क्या है उन हथेलियों में, जो वे इस भरे जहाँ में अकेले हो गए? लौटते वक़्त भागलपुर शहर की सड़कों पर सरगोशी पहले की तरह नज़र आती है माँ का हाथ पकड़ सड़क पार करते बच्चों को देख मेरी आँखें न जाने क्यों ठहरती नहीं, वे वापस काजवलीचक पहुँचती है शायद असलम सो गया होगा और सपनों में कभी अपनी अम्मी को, कभी अब्बा, कभी उनकी गोद को, तो कभी माँ की बनाई गरम रोटियों को महसूस कर लेता होगा

जारी...
 
- जेन्नी शबनम (24.1.2011)
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Friday, January 7, 2011

16. काहे कइल हो बाबू जी दुरंग नीतिया


आज के हिन्दुस्तान में स्त्री एक वस्तु मानी जाती है समय बदला, संस्कृति बदली, पीढियाँ बदली, लेकिन स्त्री जहाँ थी वहीं है, जिसे हर कोई अपनी पसन्द के अनुरूप जाँचता-परखता है फिर अपनी सुविधा के हिसाब से चुनता है; यह हर स्त्री की नियति है आज के सन्दर्भ में स्त्री वस्तु के साथ-साथ एक विषय भी है, जिसपर जब चाहे जहाँ चाहे विस्तृत चर्चा हो सकती है चर्चा में उसके शरीर से लेकर उसके कर्त्तव्य, अधिकार और उत्पीड़न की बात होती है अपनी सोच और संस्कृति के हिसाब से सभी अपने-अपने पैमाने पर उसे तौलते हैं यह भी तय है कि मान्य और स्थापित परम्पराओं से स्त्री ज़रा भी विलग हुई कि उसकी कर्तव्यपरायणता ख़त्म और समाज को दूषित करने वाली मान ली जाती है युग परिवर्तन और क्रान्ति का परिणाम है कि स्त्री सचेत हुई है; लेकिन अपनी पीड़ा से मुक्ति कहाँ ढूँढे? किससे कहे अपनी व्यथा? युगों-युगों से भोग्या स्त्री आज भी महज़ एक वस्तु ही है, चाहे जिस रूप में इस्तेमाल हो  
 
कभी रिश्तों की परिधि तो कभी प्रेम-उपहार देकर उस पर एहसान किया जाता है कि देखो तुम किस दुर्गति में रहने लायक थी, तुमसे प्रेम या विवाह कर तुमको आसमान दिया है लेकिन आज़ादी कहाँ? आसमान में उड़ा दिया और डोर हाथ में थामे रहा कोई पुरुष, जो पिता हो सकता या भाई या फिर पति या पुत्र जब मन चाहा आसमान में उड़ाया, जब चाहा ज़मीन में ला पटका कि देख तेरी औक़ात क्या है स्त्री की प्रगति की बात कर समाज में पुरुष प्रतिष्ठा पाता है कि वह प्रगतिवादी है क्या कभी कोई पुरुष स्त्री की मनःस्थिति को समझ पाया कि उसे क्या चाहिए? अगर स्त्री अपना कोई स्थान बना ले, या अलग अस्तित्व बना ले, फिर भी उसकी अधीनता नहीं जाती है।  
 
यों स्त्री-विमर्श और स्त्री के बुनियादी अस्तित्व पर गहन चर्चा तो सभी करते हैं, पर मैं यहाँ इन सब पर कोई चर्चा नहीं करना चाहती मैं बस स्त्री की पीड़ा व्यक्त करना चाहती हूँ, जो एक गीत के माध्यम से है एक भोजपुरी लोकगीत जो मेरे मन के बहुत ही क़रीब है, जिसमें एक स्त्री अपने जन्म से लेकर विवाह तक की पीड़ा अभिव्यक्त करती है वह अपने पिता से कुछ सवाल करती है कि उसके और उसके भाई के पालन-पोषण और जीवन में इतना फ़र्क़ क्यों किया, जबकि वह और उसके भाई ने एक ही माँ के कोख से जन्म लिया है भाई-बहन के पालन-पोषण की विषमता से आहत मन का करुण-क्रन्दन एक कचोट बनकर दिल में उतरता है, जिसे तमाम उम्र वह सहती और जीती है।  
 
इस गीत में पुत्री, जो अब ब्याहता स्त्री है, अपने पिता से पूछती है कि क्यों उसके और उसके भाई के साथ दोहरी नीति अपनाई गई, जबकि एक ही माँ ने दोनों को जन्म दिया 
 
एके कोखी बेटा जन्मे एके कोखी बेटिया
दुरंग नीतिया
(काहे कइल हो बाबू जी दुरंग नीतिया) - 2  
 
बेटा के जनम में त सोहर गवइल अरे सोहर गवइल
हमार बेरिया (काहे मातम मनइल हमार बेरिया) - 2
दुरंग नीतिया
काहे कइल हो बाबू जी दुरंग नीतिया  
 
बेटा के खेलाबे ला त मोटर मंगइल अरे मोटर मंगइल
हमार बेरिया (काहे सुपली-मऊनीया हमार बेरिया) - 2
दुरंग नीतिया 
काहे कइल हो बाबू जी दुरंग नीतिया  
 
बेटा के पढ़ाबे ला स्कूलिया पठइल अरे स्कूलिया पठइल
हमार बेरिया (काहे चूल्हा फूँकवइल हमार बेरिया) - 2
दुरंग नीतिया
काहे कइल हो बाबू जी दुरंग नीतिया  
 
बेटा के बिआह में त पगड़ी पहिरल अरे पगड़ी पहिरल
हमार बेरिया (काहे पगड़ी उतारल हमार बेरिया) - 2
दुरंग नीतिया
काहे कइल हो बाबू जी दुरंग नीतिया  
 
एके कोखी बेटा जन्मे एके कोखी बेटिया
दुरंग नीतिया
काहे कइल हो बाबू जी दुरंग नीतिया  
 
(अज्ञात लेखक)
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दुरंग नीतिया - दोहरी नीति
काहे कइल - क्यों किए
गवइल - गाना गवाना
हमार बेरिया - हमारी बारी में
खेलाबे ला - खेलने के लिए
सुपली-मऊनी - सुप और डलिया
पढ़ाबे ला - पढ़ाने के लिए
स्कूलिया - स्कूल
पठइल - भेजना
पहिरल - पहनना
उतारल - उतारना 
 
-जेन्नी शबनम (7.1.2011)
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