Monday, January 27, 2025

120. इमरोज़ की चाय

इमरोज़ जी का जन्मदिन 26 जनवरी को होता है। उनके जन्मदिन पर एक संस्मरण लिखी हूँ, जो 2024 के अभिनव इमरोज़ पत्रिका के चाय विशेषांक में प्रकाशित हुई। यों इमरोज़ जी के साथ मेरे ढेरों संस्मरण हैं; परन्तु चाय वाला संस्मरण मुझे रोमांचित करता है। 

इमरोज़ की चाय 

अमृता जी के देहावसान के बाद भी मैं उनके घर जाती और इमरोज़ जी से मिलती रही। जाने क्यों जब भी इमरोज़ जी से मिलती तो यूँ लगता मानो अमृता जी से मिल रही हूँ। कई सवाल जो मुझे अमृता जी से पूछने थे, इमरोज़ जी से पूछती थी। सोचती कि अमृता जी होतीं तो क्या जवाब देतीं, मुमकिन है वे मेरे सवाल का जवाब किसी कविता के रूप में देतीं या मेरे सवाल के जवाब में मुझसे ही सवाल करतीं। जब भी वहाँ जाती मेरे इर्द-गिर्द इमरोज़, इमरोज़ द्वारा बनाई अमृता की पेंटिंग्स, अमृता की बातें तथा चाय की चुस्कियाँ होतीं। 

मैं जब परेशान या उदास होती तो अक्सर इमरोज़ जी से मिलने उनके घर पहुँच जाती थी। जब भी जाती तो दरवाज़ा वही खोलते और मुझे पहली मंजिल पर ले जाते थे। जाड़े के दिनों में छत पर फूल व धूप के साथ हम बैठते, बातें करते व चाय पीते। कभी हम डाइनिंग रूम बैठते तो कभी उनके कमरे में। उन्हें मेरी समस्याओं की जानकारी थी, इसलिए वे जीवन जीने के लिए ढेरों बातें बताते थे। ऐसा नहीं कि वे सिर्फ़ मुझसे ऐसी बातें करते थे, वे सभी के प्रिय थे व सबसे प्रेम करते थे और सबसे खुलकर बात करते थे, चाहे उनके और अमृता के आपसी रिश्ते की बात हो या दुनियादारी की।   

एक दिन मन बहुत उदास था। हर बार की तरह इमरोज़ जी से मिलने मैं वक़्त पर पहुँच गई। वे घर पर अकेले थे। उस दिन हमलोग डाइनिंग रूम में बैठे। फिर इमरोज़ जी ने कहा ''तुम बैठो मैं चाय बनाकर लाता हूँ।'' मैंने कहा ''चाय मैं बनाती हूँ, आप बैठिए और अमृता जी की बातें करते रहिए।'' वे बोले ''तुम भी चलो किचन में, देखो मैं कैसे चाय बनाता हूँ।'' एक बर्तन में चाय का पानी डाला उन्होंने फिर मुझसे कहा ''वहाँ कप है ले आओ।'' मैं कप लेकर आई। चाय बनाते हुए बताते रहे कि अमृता और वे साथ मिलकर कैसे रसोई में काम करते हैं या अन्य कोई काम करते हैं। अमृता जी के लिए वे कभी भी थी नहीं बोलते थे। उन्होंने बताया कि अमृता के लिए वे रात में चाय बनाते हैं और चुपचाप उनके कमरे में रख आते हैं, जब अमृता कुछ लिखती होतीं हैं। अमृता के जाने के बाद भी वे दो कप चाय बनाते हैं अमृता और ख़ुद के लिए। इमरोज़ जी बोले ''अमृता तो नहीं हैं, आज तुम चाय पी लो।'' चाय बन रही थी। इमरोज़ जी मुझे रसोईघर दिखाते रहे और बताते रहे कि रसोईघर को किस तरह उन दोनों ने आकर्षक बनाया।

इमरोज़ जी द्वारा बनाई हुई चाय मैं पीने वाली हूँ, यह सोचकर मैं रोमांचित हो रही थी और यह सभी क्षण मैं अपने कैमरे में क़ैद करती रही। चाय बन गई तो मैं दोनों कप उठाकर डायनिंग टेबल पर ले आई। हम चाय पीते रहे और इमरोज़ जी से मैं जीवन को समझती रही। उन्होंने कुछ कविताएँ सुनाईं। कुछ अनछपी कविताएँ जो पन्नों पर टाइप की हुई थीं, मुझे दी। उनकी कविताओं और पेंटिंग से बनाया हुआ एक कैलेंडर भी उन्होंने दिया।

चाय ख़त्म हो चुकी थी, वे कप उठाने लगे। झट से मैं कप उठाकर किचन के सिंक में ले गई और कप धोने लगी। वे बोले ''कप मुझे दो मैं धोऊँगा, चाय पीता हूँ तो कप भी धो देता हूँ।'' मैंने कहा ''चाय आप बनाए हैं तो मुझे कप धोने दीजिए।'' अंततः मैंने दोनों कप धोया और उन्होंने सॉसपैन।  डाइनिंग रूम में हम घंटों बैठे रहे; इमरोज़ और इमरोज़ की अमृता की बातों के साथ मैं।

सोचती हूँ कुछ यादें मन को कितना आनन्दित करती हैं। यूँ चाय पर कई संस्मरण है, पर इमरोज़ जी द्वारा मेरे लिए चाय बनाना और मेरा उन पलों को जीना, मेरे लिए बहुत सुखद क्षण था।

(30.8.2024)
-0- 

-जेन्नी शबनम (26.1.2025)
___________________

4 comments:

Anonymous said...

अच्छा संस्मरण !

शिवजी श्रीवास्तव said...

बेहतरीन संस्मरण

Anonymous said...

वाह

प्रियंका गुप्ता said...

बहुत सुन्दर संस्मरण... इन यादों को और विस्तार दीजिए, यदि सम्भव हो तो...। आपके पास इतनी खूबसूरत यादें हैं, बहुत बधाई