Monday, November 27, 2023

107. कृत्रिम बुद्धिमत्ता (ए.आई.) के मायने

चित्र गूगल से साभार 
एक दिन मेरे मोबाइल पर फ़ोन आया कि मेरा नाम, मोबाइल नं. और आधार कार्ड का इस्तेमाल कर कुछ कुरियर हुआ है, जो पकड़ा गया है। मैंने कहा कि मैंने नहीं भेजा, तो बताया गया कि चूँकि मैंने नहीं भेजा है अतः मुझे मुम्बई जाकर कम्प्लेन करना होगा। मैं मुम्बई नहीं जा सकती थी, तो उसने कहा कि वह मुम्बई पुलिस को फ़ोन ट्रान्सफर कर रहा है, जहाँ मुझे शिकायत लिखवानी है। मैंने सारा विवरण कथित मुम्बई पुलिस को दे दिया। फिर पुलिस वाले ने कहा कि मैं स्काइप पर अपनी शिकायत को सत्यापित कराऊँ। उसने मुझसे स्काइप डाउनलोड करवाया, जो नहीं हो सका। एक घंटे से ज़्यादा वक़्त उसने मुझपर और मेरा उसपर बर्बाद हुआ। जब मैंने अपने आधार कार्ड का नम्बर माँगा तो वह बहाना बनाने लगा। जिस नम्बर से फ़ोन आया, वह 9 डिजिट का था और कॉलबैक नहीं हुआ। फिर मैंने दिल्ली और मुम्बई पुलिस में शिकायत दर्ज करा दी।  

मेरे साथ हुई यह घटना ए.आई. का बहुत छोटा उदाहरण है। ए.आई. के द्वारा किसी भी व्यक्ति के डाटा और उसके पैटर्न को समझकर आसानी से धोखा दिया जाता है। इस तरह के साइबर क्राइम पर एक सीरीज़ भी बनी है 'जामताड़ा'। कई बार लोग इस तरह के जाल में फँस जाते हैं, तो कुछ लोग संयोग से बच जाते हैं। इसका नेटवर्क इतना मज़बूत और वास्तविक लगता है कि ज़रा भी शक़ नहीं होता। ऐसी घटनाएँ हमारे देश में लगातार बढ़ती जा रही हैं। इसलिए आज किसी अनजान पर कोई यक़ीन नहीं कर पाता है। हर अनजान फ़ोन संदिग्ध लगने लगा है। लोग राह चलते किसी की सहायता करने से डरने लगे हैं। धोखे का बाज़ार इतना समृद्ध हो चुका है कि सभी का सभी से भरोसा उठ चुका है। हमारा आपसी सामंजस्य न होने और सामाजिक दूरी बढ़ने का यह बहुत बड़ा कारण है। हालाँकि तकनीकी विकास न होता तो आज दुनिया इतनी विकसित नहीं होती। यह भी सच है कि तकनीक के इतने विकसित होने से हमें रोज़मर्रा के कार्यों में भी बहुत सहूलियत मिली है।  

जब से दुनिया में तकनीकी ज्ञान बढ़ा है, हर रोज़ कुछ न कुछ इसमें इज़ाफ़ा होता है। 20वीं सदी के अन्त से पहले ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता (ए.आई.) में बहुत तेज़ी से विकास हुआ। एक तरह से यह तकनीकी क्रान्ति है। ऐसे-ऐसे रोबोट तैयार हुए जो ऑफ़िस और घर का काम भी करने लगे। ए.आई. के कारण संसार का कोई भी रहस्य अनजाना नहीं रहा। तकनीकी ज्ञान, विज्ञान के साथ ही सामजिक जीवन पर भी इसका बहुत गहरा प्रभाव पड़ा है। देश का रक्षा तंत्र, पोलिसिंग, बैंकिंग, शिक्षा, खुफ़िया विभाग, स्वास्थ्य, शिक्षा, मौसम विभाग, चिकित्सा, इंजीनियरिंग, रिसर्च इत्यादि हर क्षेत्र में बहुत प्रगति हुई है। किसी भी विषय पर कुछ जानना हो या किसी तस्वीर की ज़रूरत हो, ए.आई. झट से सब कुछ सामने दिखा देता है। चिकित्सा में किसी जटिल ऑपरेशन में किसी दूसरे देश के डॉक्टर द्वारा किसी दूसरे देश में सफल ऑपरेशन हो जाता है। कृषि कार्य हो या घर में खाना पकाना, हर जगह ए.आई. प्रवेश कर चुका है। पूर्वानुमान के आधार पर किसी संकट से बचा जा सकता है। यों लगता है मानो कम्प्यूटर के की-बोर्ड पर पूरा ब्रह्माण्ड सिमट गया है और एक क्लिक से दुनिया मुट्ठी में कर लो।  

हमारा डिजिटल पर्सनल डाटा हमारे ढेरों काम में इस्तेमाल में आता है। बैंक अकाउन्ट खुलवाने, क्रेडिट-डेबिट कार्ड बनवाने, सरकारी सेवाओं में, फोन का कनेक्शन, बिजली-पानी का कनेक्शन, बच्चों का नामांकन, होटल बुक करने, रेल-हवाई या बस द्वारा टिकट बुक करने, सरकारी विभागों में किसी सेवा लेने के लिए, इन्टरनेट पर अपना प्रोफाइल बनाने इत्यादि हर काम में हमारा डाटा शेयर होता है। मार्केटिंग कम्पनी हमारा डाटा इकठ्ठा कर अपने प्रचार-प्रसार के लिए उपयोग करती है। गूगल, सफारी, फेसबुक, इंस्टाग्राम या फिर नेट पर कुछ भी खोजा जाए तो ए.आई. के द्वारा हमारे फेसबुक या इंस्टाग्राम अकाउंट पर हमारे पैटर्न को देखकर उससे सम्बन्धित चीज़ें दिखने लगती हैं। यहाँ तक कि कम्प्यूटर या मोबाइल पर हमारे गेम खेलने के पैटर्न पर भी ए.आई. की नज़र रहती है। यूट्यूब में कुछ देखें तो उससे सम्बन्धित और भी वीडियो सामने आ जाता है। बड़ा आश्चर्य होता है कि कम्प्यूटर को कैसे पता कि हम क्या देखना चाहते हैं। यों लगता है मानो हम मनुष्य मशीनों और तकनीक के जाल में उलझ गए हैं, जहाँ सब कुछ अप्राकृतिक और डरावने रूप से सामने आता है। आज का मनुष्य समाज से कटकर मशीनों के साथ जीवन बिता सकता है और जो चाहे कर सकता है। 
 
ए.आई. के द्वारा जब जो चाहे किया जा सकता है, क्योंकि यह मनुष्य की बुद्धि नहीं है जो सोचेगा; बल्कि मशीन की बुद्धि है जो उसमें फीड किए हुए प्रोग्रामिंग के अनुसार कार्य करेगा। यह न थकता है, न ऊबता है, लगातार क्रियाशील रहकर अपने प्रोग्रामिंग किए हुए कार्य का निष्पादन करता रहता है। जटिल प्रोग्रामिंग कर न सिर्फ़ औपचारिक कार्य; बल्कि भावनात्मक कार्य भी इनके जरिए हो रहा है। अब ऐसे-ऐसे रोबोट बन गए हैं, जो हमारे दुःख में हमारे साथ रो सकता है और ख़ुशी में हँस सकता है, हमारे सवालों के जवाब दे सकता है। दुनिया का कुछ भी जानना हो पूरे विस्तार से जानकारी देता है। निश्चित रूप से मनुष्य की बुद्धि जहाँ ख़त्म होती है ए.आई. की बुद्धि वहाँ से शुरू होती है।  

किसी भी तकनीक में कुछ अच्छाइयाँ हैं, तो बुराइयाँ भी होती हैं। ए.आई. के लिए जिस सॉफ्टवेयर और तकनीक का इस्तेमाल होता है उसके लिए उचित संसाधनों की आवश्यकता होती है, जो काफ़ी महँगी होती है। ए.आई. का कार्य मशीन करता है, अतः इसमें न नैतिकता होती है, न भावना, न मूल्य, न सही-ग़लत का फ़ैसला लेने की क्षमता। इनमें न संवेदनशीलता होती है, न भावनात्मकता। इससे मिलने वाली जानकारी की फिल्टरिंग नहीं होती है। ए.आई. के द्वारा मनुष्य के दिमाग को नियंत्रित किया जा रहा है और हम आसानी से इसके चक्कर में पड़कर कई बार बहुत बड़ा नुक़सान कर लेते हैं। ए.आई. के दुरुपयोग के कारण कितने लोगों की जान जा चुकी है। चूँकि मशीन के पास सोचने की क्षमता नहीं है अतः इसका इस्तेमाल विनाशकारी कार्यों में कुशलता से हो सकता है। इसकी सहायता से तबाही और विध्वंस लाया जा सकता है। एक क्लिक से साइबर हमला होगा और दुनिया तहस-नहस हो जाएगी।  

इस कृत्रिम बुद्धिमत्ता से सब कुछ सम्भव है, परन्तु सामाजिक मूल्य, मनुष्य की कुशलता व दक्षता नष्ट हो रही है। मनुष्य आलसी और कृत्रिम बुद्धि के मशीन पर निर्भर होता जा रहा है। जो काम मनुष्य सारा दिन लगाकर करता है, मशीन के द्वारा चंद मिनट में हो जाता है। ऐसे में सरकारी उद्यम हो या उद्योग, उद्योगपति हो या व्यवसायी, कार्यरत आदमी हो या आम आदमी, हर लोग मशीन को अपना रहा है ताकि पैसा बचे। इससे बेरोज़गारों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। निश्चित रूप से आई.टी. सेक्टर (इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी) को छोड़कर हर क्षेत्र में बेरोज़गारी बढ़ेगी।  

संयमित और संतुलित तरीक़े से अगर ए.आई. का उपयोग हो, तो देश और अधिक उन्नति कर सकता है। लेकिन अगर दुर्भावना से इसका प्रयोग होगा तो निःसंदेह दुनिया बहुत डरावनी और विनाश की तरफ अग्रसर हो जाएगी। मशीन की बुद्धि का उपयोग मानव अपनी बुद्धि से करे, तभी मानवता का हित सम्भव है। ए.आई. हमारे जीवन में जितनी सुविधा दे रहा है, उतना ही एक अनजाना-सा डर मन में भर रहा है। 

-जेन्नी शबनम (15.7.2023)
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Sunday, November 12, 2023

106. 'टाइगर 3'

पोस्टर के साथ मैं
''वक़्त नहीं लगता वक़्त बदलने में।'' - यह बहुत बड़ा सच है। यह पंक्ति सलमान खान और कैटरीना कैफ़ अभिनीत फ़िल्म 'टाइगर 3' का डायलॉग है। फ़िल्म के सन्दर्भ में नहीं, बल्कि जीवन के सन्दर्भ में यह बहुत बड़ा सच है। वक़्त कितनी तेज़ी से बदलता है, आश्चर्य होता है जब पीछे मुड़कर देखती हूँ। यों लगता है मानो पलक झपका और मैं कहाँ-से-कहाँ पहुँच गई। अपने जीवन में तमाम उतार-चढ़ाव वक़्त के साथ मैंने देखा। हाँ, सिनेमा भी बहुत देखती रही, जब से सिनेमा देखने की उम्र हुई। सिनेमा की शौक़ीन मैं, अब भी ख़ूब मन से सिनेमा देखती हूँ। 

मैं फ़िल्म समीक्षक नहीं हूँ, तो उस दृष्टि से सलमान-शाहरुख की फ़िल्में नहीं देखती। मनोरंजन के लिए देखती हूँ, क्योंकि ये दोनों मेरे पसन्दीदा अभिनेता हैं। इनकी फ़िल्मों में मुझे न फ़िल्म की पटकथा से मतलब होता है, न कहानी से, न व्यर्थ के दिमाग़ी घोड़े दौड़ाने से। बस सिनेमा इंजॉय करती हूँ, भले अकेली जाऊँ, पर देखती ज़रूर हूँ। सलमान-शाहरुख की फ़िल्म पहले दिन देखना हमेशा से मेरे लिए ख़ुशी का दिन होता है। 

फ़िल्म 'टाइगर 3' आज दीपावली के दिन सिनेमा हॉल में रिलीज़ हुई। जैसे ही सलमान पर्दे पर आए, तालियाँ और सीटियाँ बजनी शुरू हो गईं। अब अपनी उम्र के लिहाज़ से मैं तो ऐसा नहीं कर सकती थी, पर तालियों-सीटियों को ख़ूब इंजॉय किया। सलमान के एक डायलॉग ''जब तक टाइगर मरा नहीं, तब तक टाइगर हारा नहीं'' पर पूरा सिनेमा हॉल तालियों से गूँज गया। सलमान के हर एक्शन सीन पर तालियाँ बजती रहीं। फ़िल्म में जब शाहरुख खान (छोटी भूमिका) सलमान की मदद के लिए आते हैं, तब भी सीटी और तालियों की गड़गड़ाहट गूँजने लगी। मुझे याद आया शाहरुख खान की फ़िल्म 'पठान' में सलमान (छोटी भूमिका) शाहरुख की मदद के लिए आते हैं, तो ऐसे ही हॉल में सीटी और तालियाँ गूँजी थीं। 

'टाइगर 3' की कहानी के अन्त में जब यह पता चलता है कि पकिस्तानी प्रधानमंत्री को उनके अपने ही लोग हत्या करने वाले होते हैं, तो हिन्दुस्तान के रॉ एजेन्ट अर्थात सलमान उनको बचाते हैं, तब पाकिस्तानी छात्राओं द्वारा हिन्दुस्तान का राष्ट्रगान 'जन गण मन' का धुन बजाया जाता है। राष्ट्रगान का धुन शुरु होते ही सिनेमा हॉल का हर दर्शक खड़ा हो गया। यह सचमुच बहुत सुखद लगा। काश! हर देश एक दूसरे का सच में ऐसे ही सम्मान करे और कहीं कोई युद्ध न हो।  

मैं सोच रही हूँ कि अगर हर देश और वहाँ का हर देशवासी, चाहे राजनेता हो या आम नागरिक, अमन की चाह रखे तो कभी दो देश के बीच युद्ध नहीं होगा। परन्तु यह सम्भव ही नहीं। सिनेमा देखकर भले हम ताली बजाएँ या सीटी, लेकिन देश की सीमा पर हर दिन जवान मारे जा रहे हैं। कितने ही रॉ एजेन्ट मारे जाते हैं, जिन्हें अपना देश स्वीकार नहीं करता है। अमन की बात करने वाला भी अपने अलावा दूसरे धर्म को प्रेम से नहीं देखता है। आज जिस तरह कई देश आपस में युद्ध कर रहे हैं, वह दिन दूर नहीं जब तीसरा विश्व युद्ध शुरु हो जाएगा। फिर न धर्म बचेगा न देश न दुनिया।

सलमान-शाहरुख मेरे हमउम्र हैं। इन्हें हीरो के रूप में देखकर लगता है कि वे अभी भी युवाओं को मात देते हैं, जबकि मुझ जैसे आम स्त्री-पुरुष इस उम्र में जीवन के अन्तिम पल की गिनती शुरु कर देते हैं। इन अभिनेताओं से हमें प्रेरणा लेनी चाहिए और जीवन को भरपूर जीना चाहिए। इन्हें देखकर लगता है मानो वक़्त बढ़ता रहा, पर इनकी उम्र ठहर गई; अजर अमर हैं ये। युवा सलमान-शाहरुख से उम्रदराज़ सलमान-शाहरुख को देख रही हूँ। बढ़ती उम्र के साथ ये और भी आकर्षक लगने लगे हैं। इनका न सिर्फ़ सुन्दर व्यक्तित्व है, बल्कि बहुत उम्दा अभिनेता भी है। निःसंदेह सलमान-शाहरुख की बढ़ती उम्र उनकी फ़िल्मों और प्रशंसकों में कमी नहीं ला सकती। 

'टाइगर 3' हिट होगी या फ्लॉप मुझे नहीं मालूम, पर मेरे लिए सलमान-शाहरुख की हर फ़िल्म हिट होती है। मुझे सलमान-शाहरुख-सा कोई अभिनेता नहीं लगता। हालाँकि ढेरों अभिनेता हैं, जो बेहतरीन अभिनय करते हैं, लेकिन इन दोनों की बात ही और है मेरे लिए। इस वर्ष दीपवाली के अवसर पर टाइगर 3 का तोहफ़ा मिला है। उम्मीद है अगले साल ईद के अवसर पर 'टाइगर 4' ईदी के रूप में मिलेगा। 

सलमान की ऊर्जा यूँ ही अक्षुण्ण रहे और लगातार फ़िल्में करते रहें। टाइगर 3 के लिए बधाई और भविष्य के लिए शुभकामनाएँ! 

- जेन्नी शबनम (12.11.2023)
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