श्री लखन लाल झा जो रामानन्दी देवी हिन्दू अनाथालय के अधीक्षक हैं, से बातें हो रही थीं तभी एक छोटा लड़का पापा-पापा करते हुए आया और उनकी गोद में बैठ गया। मैंने पूछा ''ये आपका बेटा है?'' लखन जी बड़े गर्व से कहते हैं ''मैडम, मैं यहाँ इन सब का पिता हूँ, सभी बच्चे मुझे पापा ही कहते हैं।'' उन्होंने बताया कि यहाँ जो सेविका है उसे बच्चे माँ कहते हैं और ये परम्परा शुरू से है। हम सभी के चेहरे पर संतोष की लहर-सी दौड़ गई। मन ख़ुश हुआ कि यहाँ कोई बच्चा अनाथ नहीं है। सभी बच्चों का नामकरण ये ख़ुद करते हैं और सभी के नाम के साथ 'भारती' लिख जाता है; क्योंकि ये सभी भारत की संतान हैं। उन्होंने बताया कि यहाँ जो भी बच्चे आते हैं किसी की जाति या धर्म का पता नहीं होता। जब जो मिल गया उसे हमलोग रख लेते हैं। थाना में इतिल्ला कर आवश्यक कार्रवाई पूरी कर दी जाती है। बच्चों की शिक्षा स्थानीय सरकारी स्कूल और कॉलेज में होती है। बड़े होकर जबतक कुछ कमाने न लगें या विवाह न हो जाए तब तक वे यहीं रहते हैं।
एक दिन मैं यों ही अनाथालय पहुँची, तो देखा कि कुछ महिलाएँ एकत्रित हैं और एक स्त्री एक शिशु को गोद में लेकर प्यार कर रही है। देखकर लगा कि ये बाहरी हैं, लेकिन प्यार करने के तरीक़े से लगा कि जैसे इनका अपना बच्चा है। जिज्ञासावश मैं उनके पास गई। पूछने पर पता चला कि वे पिछले 4 महीने से दौड़ रही हैं, एक कन्या को गोद लेने के लिए। अभी जिसे पसन्द किया है संभावना है कि वह मिल जाए। कानूनी कार्रवाई की लम्बी प्रक्रिया के कारण इससे पहले वाली बच्ची उन्हें न मिल सकी थी; क्योंकि बच्ची बड़ी हो गई और इन्हें बहुत छोटी कन्या चाहिए थी। मैं अचम्भित हो गई। आज जब सभी बालक चाहते हैं, पर ये सिर्फ़ कन्या! मन में कहीं एक गर्व-सा महसूस हुआ कि आज भी कुछ लोग हैं जो कन्या को इतना महत्व देते हैं, अन्यथा दुनिया इतनी भी बची न होती।
मेरी बेटी के जन्मदिन पर मैंने यहाँ भोज का आयोजन किया। बच्चों के साथ पहुँची तो क़रीब 20 साल का एक लड़का तेज़ी से आया और अभिवादन किया। उसके एक हाथ में बड़ा-सा एल्बम और दूसरे हाथ में एक स्मृति-चिन्ह था। एल्बम ज़बरदस्ती मेरे हाथ में पकड़ा दिया और वह स्मृति चिन्ह भी। मैं भौंचक! समझ हीं नहीं आया कि वह कौन है और क्यों दे रहा है। पूछने पर बस मुस्कुराता रहा मुँह से कुछ बोल नहीं रहा था। मुझे असमंजस में देख वह बिना कुछ बोले एल्बम खोलकर तस्वीर दिखाने लगा। मैं आश्चर्यचकित! राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से पुरस्कार लेते हुए तस्वीरें थीं। मेरे मित्र ने बाद में बताया कि यह उदय भारती है, जो बचपन से यहीं पला है और वह मूक-बधिर है। उसे स्काउट के लिए राष्ट्रपति से पुरस्कार मिला है। मैं बहुत ख़ुश हुई। उसे शब्दों द्वारा बधाई दी। वह समझ नहीं पाया कि मैं क्या बोली या शायद मेरी बात समझ गया हो, वह बस मुस्कुराता रहा और गर्व से सभी को एल्बम और स्मृति-चिन्ह दिखाता रहा। सच, प्रतिभा के सामने जीवन की कठिनाइयों को नतमस्तक होते देखा।
अनाथालय में रंगाई-पुताई चल रहा था। पता चला कि सुषमा का विवाह राजकुमार शर्मा से हो रहा है, जो स्थानीय एयरटेल की कंपनी में काम करता है और उसके माता-पिता की इच्छा से हो रहा है। सुषमा चहकती-सी सामने आई और पूछने पर लजा गई। शादी में निमंत्रण भी आया पर जा नहीं सकी; क्योंकि मैं दिल्ली आ चुकी थी। अपने सहयोगी से उपहारस्वरूप कुछ धनराशि भेज दी, ताकि अपनी पसन्द और ज़रूरत से जो चाहे वह ले ले। वर्ष 1955 से 2011 तक 30 लड़कियों का विवाह अनाथालय द्वारा किया जा चुका है।
अनाथालय के एक कर्मचारी ने बताया कि अनाथालय के ठीक सामने गुरुकूल, जो एक सरकारी स्कूल है, के गेट पर आज एक छोटी बच्ची मिली है। बच्ची की उम्र कुछ महीने की है। देखरेख करने वाली आया उसे गोद में लेकर बैठी थी। बहुत प्यारी बच्ची थी। आश्चर्य होता है कैसे कोई लावारिस छोड़ जाता है अपनी संतान। हाँ! इतना सुकून ज़रूर मिला कि कम-से-कम यह जीवित है और सुरक्षित यहाँ पहुँच गई है।
कई बार मैं इस अनाथालय में आई हूँ। कभी होली के मौक़े पर तो कभी बच्चों के जन्मदिन के अवसर पर। मन में अक्सर सोचती थी कि ऐसा क्या किया जाए जो सिर्फ़ सुस्वादू भोजन या वस्त्र-वितरण से बढ़कर हो। घर में विचार-विमर्श कर यह फ़ैसला लिया गया कि क्यों न इनकी शिक्षा का उत्तम प्रबंध किया जाए, ताकि इनमें से कुछ का भविष्य ज़्यादा सुरक्षित हो। इस अनाथालय के सचिव अशोक मेहरा जी यह जानकार बहुत ख़ुश हुए और आनन-फानन में सब तय हो गया।
नर्सरी से लेकर कक्षा 2 तक के बच्चों का चयन किया गया; क्योंकि बड़ी कक्षा के छात्र का हिन्दी से अँगरेज़ी माध्यम में पढ़ना मुश्किल है। कोमल भारती और रानी भारती 'नर्सरी', मोनी भारती और आकाश भारती 'प्रेप', लाल भारती 'कक्षा-1', रोशनी भारती और अभिषेक भारती 'कक्षा-2', यानी कूल 7 बच्चों का मेरी संस्था 'संकल्प' द्वरा डी.पी.एस.भागलपुर में सत्र 2011-2012 में नामांकन कराया गया। नामांकन शुल्क, वार्षिक शुल्क, अन्य शुल्क के साथ पुस्तक एवं अन्य शिक्षण सामाग्री, स्कूल ड्रेस, मध्यान्ह भोजन, परिवहन आदि का ख़र्च 'संकल्प' के द्वारा किया गया।
कई बार मैं इस अनाथालय में आई हूँ। कभी होली के मौक़े पर तो कभी बच्चों के जन्मदिन के अवसर पर। मन में अक्सर सोचती थी कि ऐसा क्या किया जाए जो सिर्फ़ सुस्वादू भोजन या वस्त्र-वितरण से बढ़कर हो। घर में विचार-विमर्श कर यह फ़ैसला लिया गया कि क्यों न इनकी शिक्षा का उत्तम प्रबंध किया जाए, ताकि इनमें से कुछ का भविष्य ज़्यादा सुरक्षित हो। इस अनाथालय के सचिव अशोक मेहरा जी यह जानकार बहुत ख़ुश हुए और आनन-फानन में सब तय हो गया।
नर्सरी से लेकर कक्षा 2 तक के बच्चों का चयन किया गया; क्योंकि बड़ी कक्षा के छात्र का हिन्दी से अँगरेज़ी माध्यम में पढ़ना मुश्किल है। कोमल भारती और रानी भारती 'नर्सरी', मोनी भारती और आकाश भारती 'प्रेप', लाल भारती 'कक्षा-1', रोशनी भारती और अभिषेक भारती 'कक्षा-2', यानी कूल 7 बच्चों का मेरी संस्था 'संकल्प' द्वरा डी.पी.एस.भागलपुर में सत्र 2011-2012 में नामांकन कराया गया। नामांकन शुल्क, वार्षिक शुल्क, अन्य शुल्क के साथ पुस्तक एवं अन्य शिक्षण सामाग्री, स्कूल ड्रेस, मध्यान्ह भोजन, परिवहन आदि का ख़र्च 'संकल्प' के द्वारा किया गया।
उम्मीद है ये बच्चे समाज के आम बच्चों की तरह शिक्षा ग्रहणकर उच्च पद हासिल करेंगे। ये स्वयं को अनाथ या स्वयं को किसी से कमतर नहीं आँकेंगे। इन बच्चों को जब पहले दिन एक सादे समारोह में बुलाकर कुर्सी पर बिठाकर स्कूल ड्रेस और पुस्तक का वितरण किया गया, इन बच्चों की ख़ुशी और उत्साह का ठिकाना नहीं था। थोड़ी झिझक भी थी उनमें पर ख़ास होने का एहसास उनके चेहरे से दिख रहा था। बिना बताए ये बच्चे सभी का पाँव छूकर आशीर्वाद ले रहे थे। सभी को तो नहीं पर कुछ को तो हम अच्छी ज़िन्दगी दे सकते हैं। उम्मीद और आशा इनके साथ है, ये अब अनाथ नहीं हैं, यों पहले भी नहीं थे; क्योंकि अनाथालय में इनकी माँ और पापा हैं, जो शायद उतना ही प्रेम करते हैं जितना इनके सगे माँ-बाप करते।
समाप्त!
-जेन्नी शबनम (10.4.2011)
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