न जाने आज बहुत आलस-सा लग रहा था। रोज़ की तरह 7 बजे उठकर नियमित क्रमानुसार सारे कार्य करने का मन भी नहीं हुआ। सब छोड़कर एक कप चाय के साथ एक हिन्दी अख़बार लेकर पढ़ने बैठी। अख़बार में अधिकांशतः नकारात्मक ख़बरें होती हैं, मगर देश-दुनिया की थोड़ी सकारात्मक ख़बरें भी मिल जाती हैं, जैसे कुछ नई उम्मीद, कुछ अनोखा ज्ञान, कुछ अजूबे, कुछ शिक्षा, देश-दुनिया की प्रगति की कुछ बातें आदि-आदि।
हत्या, सड़क दुर्घटना, बलात्कार, राहजनी, लूट, एक गर्भवती स्त्री द्वारा पंखे से लटककर आत्महत्या और पंखे से लटके में ही उसके बच्चे का जन्म जो दो घंटे तक मृत माँ के साथ गर्भनाल से लटका रहा। ओह! सुबह-सुबह ये दिल दहलाने वाली ख़बरें; पर यह तो रोज़ की बात है। एक और ख़बर जिस पर दो दिनों से बहुत ज़्यादा चर्चा है कि महान अभिनेता नसीरुद्दीन शाह ने बुलंदशहर गोकशी काण्ड पर कहा कि ''मुझे देश के हालात पर ग़ुस्सा आता है और अपने बच्चों के लिए डर लगता है।'' मुझे याद है एक बार आमिर खान द्वारा असुरक्षा और असहिष्णुता पर दिए गए बयान पर काफ़ी बवाल मचा था, जिसमें वे बताते हैं कि उनकी पत्नी कहती हैं कि उन्हें भारत से बाहर चले जाना चाहिए।
मुझे इन दोनों के डर का कारण कहीं से भी ग़लत नहीं लगा। वे इसलिए नहीं डरे हुए हैं कि मुसलमान हैं, बल्कि इसलिए डरे हुए हैं कि हमारे देश में अराजकता का वातावरण है। मन्दिर-मस्जिद के मसले में हज़ारों हत्याएँ हो चुकी हैं। गाय के नाम पर कितने क़त्ल हो चुके हैं। मॉब लिंचिंग की घटनाएँ आम हैं। चोरी के शक में बेगुनाहों की हत्या, दहेज हत्या, बलात्कार और बलात्कार के बाद हत्या, न सिर्फ़ बालिकाएँ बल्कि बालकों का भी अप्राकृतिक यौन शोषण, छेड़खानी, एसिड अटैक, रंगदारी न देने पर हत्या, पैसों के लिए अपहरण, बेलगाम गाड़ियों या बस-ट्रक द्वारा दुर्घटना या हत्या आदि-आदि। क्या-क्या और कितना गिनाएँ! नए-नए क़िस्म के अपराध देश में हर तरफ़ नज़र आते हैं।
एक दिन मैं कहीं जा रही थी। बग़ल से एक छोटी गाड़ी शायद टाटा इंडिका गुज़री, जिसपर कार की तरफ़ से लिखा हुआ था कि अगर किसी ने मुझे छुआ भी तो जान ले लूँगी। अब कोई गाड़ी तो ऐसा न कहेगी, गाड़ी के मालिक की मंशा इससे स्पष्ट होती है। दिल्ली में इतनी ज़्यादा गाड़ियाँ हैं कि ज़रा-सा टकरा जाना तो आम बात है। यों जानबूझकर कोई अपनी या दूसरे की गाड़ी का नुक़सान नहीं पहुँचाता है, फिर भी दुर्घटना हो जाती है।क्या ऐसे में हत्या कर दी जाए?
निःसंदेह भारत की स्थिति बेहद चिन्ताजनक है। सबसे ज़्यादा अराजकता राजनीतिक पार्टियों के गुंडों द्वारा की जाती है। उन्हें किसी का डर नहीं। मन्दिर और गाय के नाम पर इंसानों की बलि चढ़ाते उन्हें देर नहीं लगती और न दंगा फैलाते देर लगती है। ग़रीबी, बेरोज़गारी, अशिक्षा और बढ़ती जनसंख्या के कारण आज के युवा इन सब के लिए सहज उपलब्ध हो जाते हैं। इनके गर्म ख़ून को ज़रा-सी हवा देने की देर है कि लहलहाकर जलते हैं और राख के ढेर की तरह भरभराकर भस्म होते हैं।
देश की सामाजिक और राजनैतिक स्थिति ऐसी है कि देश में कहीं कोई ऐसी जगह नहीं, जहाँ कोई सुरक्षित और सहज जीवन जी सके। फिर ऐसे में कोई आम नागरिक कहे कि उसे अपने बच्चों के लिए डर लगता है, तो उसकी बात पर बवाल खड़ा कर दिया जाता है। किसे डर नहीं लगता है? हमारे बच्चे घर से बाहर निकलते हैं तो सारा दिन डर में बीतता है, जब तक बच्चे सुरक्षित घर नहीं आ जाते। इस डर से ग़रीब-अमीर सभी फ़िक्रमन्द हैं और ऐसी दुनिया चाहते हैं जहाँ अमन चैन हो।
आमिर खान की पत्नी हो या नसीरुद्दीन शाह या हम, हम सभी का डर वाज़िब है। देश के हुक्मरान इस हालात को क्यों नज़रअंदाज़ कर रहे हैं, यह अब तक समझ न आया। अगर उन लोगों को डर नहीं है, तो फिर अराजकता के इस वातावरण को ख़त्म हो जाना चाहिए था। राम राज्य तो एक दिन में आ जाता है। अब तक तो देश में राम राज्य आ जाना चाहिए था।
- जेन्नी शबनम (22.12.2018)
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