जनवरी 7, 2021 को मेरी दूसरी पुस्तक 'प्रवासी मन' (हाइकु-संग्रह) प्रकाशित हुई।
मेरी पहली पुस्तक ‘लम्हों का सफ़र‘ (कविता-संग्रह) का लोकार्पण 7 जनवरी 2020 में पुस्तक मेले में हुआ था। सुखद यह है कि आज के दिन मेरी बेटी का जन्मदिन है और इसी दिन मेरी दोनों पुस्तकें एक साल के अन्तराल में आई हैं।
10 जनवरी 2021 को विश्व हिन्दी दिवस के अवसर पर 'हिन्दी हाइकु' एवं 'शब्द सृष्टि' के संयुक्त तत्वाधान में गूगल मीट और फेसबुक पर आयोजित पहला ऑनलाइन अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मलेन हुआ, जिसमें मेरी पुस्तक 'प्रवासी मन' का लोकार्पण हुआ।
कार्यक्रम में देश-विदेश के हाइकुकार एवं साहित्यकार सम्मिलित हुए। श्री रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु', डॉ. कुमुद बंसल, डॉ. कुँवर दिनेश सिंह और डॉ. हसमुख परमार ने हिन्दी हाइकु पर अपने वक्तव्य दिए।
डॉ. पूर्वा शर्मा ने इसका संचालन किया।
मेरे लिए ख़ास बात यह रही कि मैं पहली बार ऑनलाइन लाइव कार्यक्रम में सहभागी हुई। मेरे अतिरिक्त अनिता ललित, अनिता मण्डा, कमला निखुर्पा, डॉ कविता भट्ट, कृष्णा वर्मा, डॉ. शैलजा सक्सेना, भावना सक्सैना, शशि पाधा, रचना श्रीवास्तव, रमेश कुमार सोनी, सुदर्शन रत्नाकर, ज्योत्स्ना प्रदीप, ऋताशेखर मधु, प्रियंका गुप्ता, डॉ. सुरंगमा यादव,
डॉ. शिवजी श्रीवास्तव
शामिल हुए।
'प्रवासी
मन' मेरा प्रथम हाइकु-संग्रह है, जिसमें 1060 हाइकु हैं। दस साल में जितने
भी हाइकु लिखी हूँ, सभी को क्रमानुसार इसमें शामिल किया है।
पुस्तक में 120 पृष्ठ हैं। यह संग्रह अयन प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशित हुआ है।
मेरे हाइकु लेखन और इसे पुस्तक के रूप में प्रकाशित होने के सफ़र की कहानी बहुत रोचक है।
एक साल लगे मुझे पहला हाइकु लिखने में और 10 साल लगे अपने 'प्रवासी मन' को पुस्तक रूपी घर देने में।
हाइकु ऐसे / चंद लफ़्ज़ों में पूर्ण / ज़िन्दगी जैसे!
ओशो (आचार्य रजनीश) की पुस्तकों और प्रवचनों में ज़ेन, बाशो, हाइकु इत्यादि की चर्चा रहती है।
उनको पढ़ते-पढ़ते हाइकु पढ़ना मुझे अच्छा लगने लगा; पर इस विधा में कभी लिखूँगी यह मैंने कभी सोचा न था।
विख्यात साहित्यकार एवं अवकाशप्राप्त प्राचार्य आदरणीय रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' जी ने वर्ष 2010 में मेरी कोई कविता अन्तर्जाल पर पढ़ी।मुझमें हाइकु-लेखन की सम्भावना उन्हें दिखी, तो उन्होंने मुझसे सम्पर्क किया। हाइकु से सम्बन्धित लेख पढ़ने को दिए तथा इसे लिखना समझाया।अब किसी नियम के तहत कुछ लिखना मेरे बस में तो था नहीं। इतने कम शब्दों में मन के भाव को पाबन्दी के साथ पिरोना मुझे लगा असम्भव है, नहीं लिख पाऊँगी। काम्बोज जी ने मुझे अपनी छोटी बहन माना और हर सम्भव प्रयास किया कि मैं सिर्फ़ हाइकु ही नहीं, बल्कि साहित्य की हर विधा में पारंगत हो सकूँ। उन्होंने मुझसे हाइकु लिखवाने का जैसे प्रण लिया हो। वे मुझे प्रोत्साहित करते थे कि बहन आप लिख सकती हैं, आपमें क्षमता है, आप लिख लेंगी। वे आश्वस्त थे कि मैं एक दिन हाइकुकार बनूँगी।
मैं शर्मिन्दा थी कि मैंने ढेरों रचनाएँ लिखीं, पर 5+7+5 वर्णक्रम की तीन पंक्तियों की नन्ही-सी कविता क्यों नहीं लिख पा रही हूँ। अंततः 24 मार्च 2011 को ट्रेन में सफ़र के दौरान बाहर का दृश्य देखते हुए अचानक मन में शब्द व भाव जन्म लेने लगे और मैंने कई हाइकु लिख दिए। मुझे लगा जैसे मैंने वैतरणी पार कर ली हो। काम्बोज भैया को अति उत्साह से फ़ोन किया।मुझसे अधिक वे मेरी सफलता पर प्रसन्न हुए। अंततः मैं हाइकु-लेखन की परीक्षा में उत्तीर्ण हो गई। मेरा प्रथम हाइकु, जो मैंने लिखा -
लौटता कहाँ / मेरा प्रवासी मन / कोई न घर!
काम्बोज भैया के आदेश, निर्देश, मार्गदर्शन, सहयोग, प्रेरणा, प्रोत्साहन और स्नेह का परिणाम है कि मैंने न सिर्फ़ हाइकु लिखना सीखा; बल्कि ताँका, सेदोका, चोका, हाइगा, माहिया भी लिखे। काम्बोज भैया की छत्र-छाया में मैंने बहुत सीखा है और उनके आशीष का प्रतिफल है कि मेरी रचनाएँ देश-विदेश का सफ़र करती हैं।
काम्बोज भैया की आजीवन कृतज्ञ रहूँगी, जिन्होंने अति व्यस्ततम समय में भी इस पुस्तक की भूमिका को लिखने के साथ पुस्तक प्रकाशन से सम्बन्धित सारे कार्य बड़े भाई के रूप में किए हैं।
एक हाइकुकार के रूप में काम्बोज भैया ने मुझे स्थापित किया है।
काम्बोज भैया न सिर्फ़ मेरे बड़े भाई हैं; बल्कि साहित्य के सफ़र में मेरे गुरु भी हैं।
यह पुस्तक मैं उन्हें समर्पित की हूँ।
आदरणीया डॉ. सुधा गुप्ता जी हाइकु-जगत् के लिए आदर्श हैं। सुधा गुप्ता जी ने मुझे शुभकामनाएँ एवं आशीष दिया; जो हस्तलिखित है और उसी रूप में पुस्तक में शामिल है।
आदरणीय रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु‘ जी, जिनसे मैंने हाइकु लिखना सीखा; ने मेरी इस पुस्तक की भूमिका लिखी है। गद्य कोश में भूमिका प्रकाशित है, जिसका लिंक है-
- डॉ. जेन्नी शबनम (14.1. 2021)
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