Friday, December 11, 2009

2. मोहल्ला मुख्यमंत्री

हम भी बनेंगे मुख्यमंत्री! हर राजनीतिज्ञ जब प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री बनना चाहता है, तो हम क्यों न बने? कहावत है ''जिसकी लाठी उसकी भैंस'' यह बहुत सार्थक कहावत है, आज के समयानुकूल। हर इंसान को नाम, शोहरत और पैसा चाहिए जब कुछ ख़ास के पास है, तो हम आम लोगों के पास क्यों नहीं? राजनीति से अच्छा आजकल कोई धंधा नहीं, जिसमें सब कुछ मिल जाता है।  
 
मित्रो, आइए हम सभी मिलकर एक काम करते हैं हर मोहल्ले को एक राज्य बनाकर मुख्यमंत्री बना दिया जाए और उस मोहल्ले के हर घर का मुख्यकर्त्ता विधान सभा का सदस्य, हर मोहल्ले में जो सरकारी ज़मीन पर पार्क हो उसे हटाकर वहाँ विधान सभा का भवन बना दिया जाए। सभी मोहल्ला एक राज्य, जिसमें एक मुख्यमंत्री होगा, कई मंत्री, सभी विधान सभा के सदस्य, जिसकी जैसी मर्ज़ी अपना-अपना राज्य चलाया जाए।  
 
कैसा लगा मेरा सुझाव? मेरी, आपकी और सबकी महत्वाकांक्षा पूरी हो जाएगी।  
 
अँगरेज़ो की चाल 'फूट डालो राज करो' की नीति का परिणाम यह था कि देश दो टुकड़ों में बँटा सिंहासन-लोभ और राजनैतिक-महत्वाकांक्षा को महात्मा गांधी भी रोक न पाए थे और देश का विभाजन हुआ, जिसकी पीड़ा आज तक हम सह रहे हैं। देश की आज़ादी के लिए महात्मा गांधी ने जिस अहिंसा और अनशन के द्वारा अँगरेज़ो को कभी परास्त किया, आज उनके ही समर्थक इस ताक़त को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं, अपने स्वार्थ के लिए। बापू की वर्षों की तपस्या और संघर्ष से प्राप्त आज़ाद भारत आज टुकड़ों-टुकड़ों में बँट रहा है। मन तो हर आदमी का बँट चुका है, देश का आतंरिक-भौगोलिक क्षेत्र भी सत्ता-लोभ से बँट रहा है। जाने अब और कितने टुकड़ों में बँटेगा भारत?  
 
तेलंगाना राज्य का गठन होना मात्र एक राज्य के बँटने तक सीमित नहीं है, इसका गठन होना 9 और नए राज्यों के गठन के लिए रास्ता दिखा रहा है, साथ ही देश में आन्दोलनों की एक नई शृंखला शुरू होने जा रही है। बिहार को दो टुकड़ों में बाँटकर एक नया राज्य झारखंड बनाया गया था अब बिहार के कुटिल-राजनीतिज्ञ उत्तर बिहार को अलग कर नया राज्य 'मिथिलांचल' की माँग कर रहे हैं। उसी तरह गोरखालैंड (पश्चिम बंगाल और दार्जिलिंग का हिस्सा), पूर्वांचल (पूर्वी उत्तर प्रदेश), ग्रेटर कूच बिहार (पश्चिम बंगाल और असम का हिस्सा), हरित प्रदेश (पश्चिम उत्तर प्रदेश), बुंदेलखंड (उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश का हिस्सा) कूर्ग (कर्नाटक), सौराष्ट्र (गुजरात), विदर्भ (महाराष्ट्र) आदि अलग राज्य के लिए माँग कर रहे हैं हमारे बुद्धिजीवी राजनीतिज्ञों की राय है कि देश की तरक्की, विकास, सुधार और सुशासन के लिए राज्यों को छोटे-छोटे टुकड़ों में बाँटना ज़रूरी है। फिर तो ग्राम-सभा, ग्राम-पंचायत, नगर-पालिका, नगर-पंचायत, जो एक तरह की छोटी-छोटी विधानसभाएँ ही हैं, इन सभी का क्या औचित्य?  
 
असली प्रजातंत्र तो यही है अब कि हर गाँव, कस्बे, मोहल्ले को एक नया राज्य बना दिया जाए। भाषा के आधार पर अलग राज्य, परिधान के आधार पर अलग राज्य, भौगोलिक स्थिति के आधार पर अलग राज्य, संस्कृति के आधार पर अलग राज्य, हर सम्प्रदाय के लिए अलग राज्य, पुरुषों का अलग राज्य, स्त्रियों का अलग राज्य, हर पार्टी के वर्चस्व के आधार पर अलग राज्य, ग़रीबों का एक राज्य, अमीरों का एक राज्य, दलितों का एक राज्यजाति, उपजाति, गोत्र, पिंड, टोटम, देवी-देवता, भाषा, क्षेत्रीय भाषा, रहन-सहन, सन्दर्भ समूह, इन सभी आधार पर भी बाँट सकते हैं।  
 
छोटे-छोटे राज्यों में बँटकर किसकी साध पूरी होगी? जाने राजनीतिज्ञों की ये सत्ता की भूख देश को कहाँ लेकर जाएगी? देश की प्रगति के लिए राज्यों का अब और बँटवारा उचित नहीं; बल्कि देश की अखण्डता को बनाए रखना ज़रूरी है। आज देश में ग़रीबी, अशिक्षा, भूखमरी, महँगाई, पानी, बिजली, प्राकृतिक आपदा, आतंकवाद, नक्सलवाद, क्षेत्रीयता, हिंसा, बलात्कार, भ्रष्टाचार, इत्यादि ऐसे गम्भीर मसले हैं, जिससे हर आम और ख़ास नागरिक प्रभावित होता है। राजनीतिज्ञों की सत्ता-लोलुपता का ही नतीजा है कि देश के इतने टुकड़े हो चुके हैं, फिर भी वे संतुष्ट नहीं; राज्य का विभाजन नहीं बल्कि इंसानों के विभाजन में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। एक तरफ़ सम्पूर्ण दुनिया में वैश्वीकरण की बात होती है, तो दूसरी तरफ़ देश के भीतर इतना ज़्यादा विभाजन। किस-किस प्रकार से बाँटते रहेंगे? देश के बाद राज्य के विभाजन में देश का सुन्दर भविष्य देखने वाले इन देश-भक्त नेताओं से किसकी तरक्क़ी की उम्मीद करें?  
 
आश्चर्य है सत्ता पक्ष हो या विपक्ष कैसे किसी राज्य को बाँटने के लिए तैयार है?

-जेन्नी शबनम (11.12.2009)
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Sunday, December 6, 2009

1. राम जन्मभूमि : बाबरी मस्जिद