Monday, August 15, 2022

98. युवा भारत का अमृत महोत्सव

भारत की स्वतन्त्रता का 75वाँ साल इस वर्ष पूरा हुआ है। यों कहें कि साल 2022 देश की आज़ादी के नाम है। आज़ादी के इस अमृत महोत्सव की तैयारी हर तरफ़ बहुत ज़ोर-शोर से हुई। हर जगह ख़ुशहाली का माहौल है। हर एक व्यक्ति अपने-अपने तरीक़े से आज़ादी के इस पर्व को मना रहा है। देश की अधीनता, स्वतन्त्रता-आंदोलन, स्वतन्त्रता सेनानियों का बलिदान, हमारा इतिहास, आज़ादी के बाद देश के विकास में योगदान आदि चलचित्र की भाँति ज़ेहन में चल रहा है। हमारे लिए गर्व की बात है कि अधीनता से मुक्ति के समय के कुछ लोग अब भी हमारे बीच हैं और उनके सुनाए क़िस्से हममें जोश भर देते हैं। आज इस अमृत-महोत्सव पर हर घर तिरंगा फहराने का उत्साह है। 

देश की स्वतन्त्रता के वर्ष की गिनती के अनुसार हमारा देश प्रौढ़ हो चुका है; लेकिन मेरा मानना है कि जबतक देश विकासशील अवस्था में था, तो देश बालक था। अब हम विकसित देश की श्रेणी में आ चुके हैं, तो हमारा देश युवा माना जाएगा। युवा-शक्ति देश की धरोहर है और देश को आगे बढ़ाने की ऊर्जा भी। देश का युवा बने रहना देश के युवाओं पर निर्भर करता है और देश कब तक युवा रहेगा यह हमारे युवाओं की समझ और कर्मठता पर निर्भर है। 

जब हमें आज़ादी मिली, देश बहुत विकट परिस्थितियों से गुज़र रहा था। एक तरफ़ हुकूमत बदल रही थी, देश का विभाजन हो गया था, तो दूसरी तरफ़ दंगा शुरू हो गया। देश की भौगोलिक, आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक स्थितियाँ अस्थिर थीं। जाति, धर्म, शिक्षा, प्रांत, भाषा, बोली आदि कई तरह के मसले से हमारा समाज टूट चुका था। समाज पूर्णतः विभाजित हो चुका था। ऐसे में उस समय पूरे देश को एकजुट कर विकास कार्य करना इतना सहज नहीं था; परन्तु हमारे राजनीतिज्ञों, समाज सेवियों, चिन्तकों, प्रबुद्ध वर्ग तथा युवाओं के कठिन प्रयास से देश की स्थिति बदली और आज हम आज़ादी का जश्न मन रहे हैं हैं।   

हमारे कर्मठ नेताओं, सामजिक कार्यकर्ताओं और विचारकों के सम्मिलित प्रयास से देश की स्थिति में सुधार हुआ और हमारा देश विकासशील देश से विकसित देश की श्रेणी में आ गया। भारत पूरी तरह अब आत्मनिर्भर है। इन संघर्षों और सुधारों में हमारे बुज़ुर्ग नेताओं और समाज सेवियों के अलावा युवा-शक्ति का भी बहुत बड़ा योगदान रहा है। संघर्षशील पूर्वजों और बलिदानियों को विस्मृत न कर उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए कि संघर्ष और विपरीत समय में साहस को कैसे संगठित कर मानसिक सम्बल बनाया जाए और आगे बढ़ा जाए। 

आज़ादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में पहली बार दिल्ली विधान सभा को आम जनता के लिए खोला गया। विधान सभा परिसर में वह फाँसी घर भी है, जहाँ अँगरेज़ों द्वारा स्वतन्त्रता सेनानियों और क्रान्तिकारियों को फाँसी दी जाती थी। फाँसी घर, फाँसी के लिए प्रयुक्त रस्सी, जूते-चप्पल आदि देखकर मन विह्वल हो गया। सोचती हूँ कि उन युवा वीर क्रान्तिकारियों में कितना जोश और जज़्बा रहा होगा, जो देश की स्वतन्त्रता के लिए शहीद हो गए। आज़ादी के लिए फाँसी पर चढ़े अज्ञात वीर बलिदानियों को मन से सलाम!   
     
देश की सुरक्षा की मुहिम में हिस्सा लेना हो या बलिदान देना, फ़ौज़ में शामिल होकर देश की सेवा करनी हो या खेत-खलिहान से लेकर राजपथ तक युवाओं की भागीदारी अचम्भित करती है। सत्ता में हों या विपक्ष में, युवाओं के जोश में कहीं कमी नहीं दिखती है। शिक्षा, तकनीक, कला, खेल, राजनीति, व्यवसाय इत्यादि हर क्षेत्र में युवा बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं और देश का नाम स्थापित करते हैं। युवा-शक्ति को अगर सार्थक तरीक़े से देश के उत्थान में लगाया जाए, तो निःसंदेह भारत विश्वगुरु बन सकता है। हालाँकि कुछ राजनीतिक और ग़ैर राजनितिक दल युवा-शक्ति का ग़लत तरीक़े से उपयोग कर भारत में अशांति और अराजकता फैला रहे हैं, जिसपर अंकुश लगाकर उन्हें सही दिशा देना हर एक भारतवासी का कर्त्तव्य है। 

एक बात जो मेरे ज़ेहन में सदैव रहती है कि दर्द के सभी दंश को झेलते हुए आज़ादी में विस्थापित हुए परिवार ने ख़ुद को कितनी कठिनाई से सँभाला होगा। लोगों ने छोटा-से-छोटा काम कर अपने परिवार की देखभाल की होगी। जो कार्य कभी नहीं किया होगा, वक़्त की विवशता ने वह काम भी कराया। मेहनत और हौसला के बल पर कई लोगों ने बाद में समृद्धि हासिल की; लेकिन मंज़िल पाने तक की राह कितनी कठिन रही होगी, इस बात की कल्पना ही हम कर सकते हैं। यह बात क़ाबिले-ग़ौर है कि अगर हममें जज़्बा हो, तो हम किसी भी परिस्थिति में संतुलित रहकर अपनी राह बनाते हैं और एक मुक़ाम हासिल कर सकते हैं। 
 
नवम्बर 2017 में एक दिन मेरे मन में आया कि कुछ सामाजिक कार्य मैं पुनः प्रारम्भ करूँ, क्योंकि छात्र जीवन में सक्रिय राजनीति और सामाजिक कार्य से मैं जुड़ी हुई थी। लेकिन उम्र के इस पड़ाव पर सब कुछ असम्भव लगने लगा। मन में विचार आया कि किसी ग़ैर सरकारी संस्था से जुड़कर कुछ काम करूँ। कई संस्थाओं का पता चला। दिल्ली के सरिता विहार में एक ग़ैर सरकारी संस्था है जहाँ ई-मेल के द्वारा मेरी बात हुई और उन्होंने आकर उनका केंद्र देखने को कहा। मुझे कोई कार्य वहाँ भी न मिला, जो वैतनिक हो, पर आश्वासन मिला कि अगर मेरे लायक कोई कार्य हुआ तो वे सूचित करेंगे। जब मैं वहाँ गई, तो उनके कार्य देखकर दंग रह गई। डोनेशन में मिले पुराने सामान का उपयोग और प्रयोग बहुत सार्थक रूप से किया जाता है। हर छोटे-से-छोटे बेकार सामान से बहुत सुन्दर और उपयोगी सामान तैयार होता है। मुझे बेहद सुखद आश्चर्य हुआ कि जिन चीज़ों को लोग बेकार समझकर फेंक देते हैं, उससे न सिर्फ़ उपयोगी सामान बन रहा है, बल्कि देश के जिस हिस्से में ज़रूरत हो वहाँ पहुँचाया भी जा रहा है। 

मैं सोचने लगी कि अगर हमारे सोच का विस्तार हो, तो समाज में बहुत से ऐसे कार्य हैं जो किए जा सकते हैं। कोई भी कार्य छोटा या बड़ा नहीं है। बस सूझ-बूझ की ज़रूरत है। न जाने ऐसी कितनी संस्थाएँ हैं, जो युवाओं के द्वारा संचालित हैं, जिससे समाज सेवा का कार्य भी हो रहा है और उससे जुड़े लोगों का जीवन यापन भी। सिलाई केन्द्र, पशुपालन, शिक्षण-प्रशिक्षण का कार्य, लघु उद्योग, अलग-अलग तरह के व्यवसाय आदि में भारत का युवा बहुत बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहा है। 

टी.वी. पर ख़बर देखी कि एक शिक्षित लड़की चाय का ठेला लगाकर हर दिन सैकड़ों रुपये कमा रही है। विदेश से शिक्षा प्राप्त नौजवान अपने गाँव में रहकर वैज्ञानिक तरीक़े से जैविक खेती कर रहा है। किसी ने कोचिंग सेन्टर खोलकर न सिर्फ़ शिक्षा का प्रसार किया है; बल्कि बड़ी कमाई करके उच्च वर्ग का जीवन जी रहा है। वेबसाइट के द्वारा मार्केटिंग, फ़ूड डिलीवरी, दवा या घर के सामान की होम डिलीवरी आदि जितने भी कार्य हैं लगभग सभी में युवा कार्य करते हैं। एयरपोर्ट पर युवतियों के द्वारा अलग से टैक्सी चालन की व्यवस्था है। 

आज स्वतन्त्रता दिवस के उपलक्ष्य में गुरुग्राम के एक वृद्धाश्रम में ध्वजारोहण में सम्मिलित होने का अवसर मिला। बहुत ख़ुशी हुई, जब वहाँ रहने वाले एक बुज़ुर्ग ने ध्वजारोहण किया। वहाँ कार्यरत सभी सहयोगी युवा हैं और बहुत मन से बुज़ुर्गों की सेवा करते हैं। वहाँ एक बुज़ुर्ग से बात हुई, जो पाकिस्तान के एक संभ्रांत परिवार से थे। तीन वर्ष की उम्र में इन्हें पाकिस्तान छोड़कर आना पड़ा। उनके पिता साथ न आकर बाद में आने वाले थे। वहाँ उन्हें सुरक्षित रखने वाले दूसरे सम्प्रदाय के व्यक्ति और उनके पिता को पाकिस्तान के ही लोगों ने हत्या कर दी। किसी भी देश के विस्थापित परिवार का दर्द सुनकर मन सहम जाता है। हत्या करने वाले युवा संवेदनहीन होते हैं। मैं अक्सर सोचती हूँ कि युवाओं का मानवीय और संवेदनशील होना आवश्यक है, जिससे उनका दृष्टिकोण बदले, ताकि कभी भी दंगा या अपराध न हो। इसके लिए युवाओं के मानसिक विकास और सोच को सकारात्मक दिशा देना होगा।   

मुझे याद है जब मैं कॉलेज में पढ़ती थी, तब डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, सरकारी अधिकारी का पेशा अपनाने पर ज़ोर दिया जाता था। जो पढ़ाई में ज़्यादा अच्छे हों, उनसे उम्मीद रहती थी कि वे यू.पी.एस.सी. या राज्य प्रशासन या बैंक अधिकारी के पद पर ज़रूर पहुँचेंगे। धीरे-धीरे समय के बदलने और वैश्वीकरण के बाद अन्य पेशा पर भी ध्यान गया। अब तो युवाओं द्वारा ऐसे-ऐसे कार्य हो रहे हैं, जिससे पैसा और शोहरत दोनों मिल रहा है। लोगों के सोचने का नज़रिया काफ़ी बदल गया है। अब हर काम को इज़्ज़त के रूप में देखा जा रहा है।  

आज जब देश अपने युवावस्था में है, देश के युवाओं से उम्मीद बहुत बढ़ गई है। समाज के सरोकार से जुड़कर समय, शक्ति और संसाधनों का सही उपयोग कर देश को समृद्ध, सक्षम एवं शक्तिशाली बनाए रखने के लिए युवा-शक्ति को चिन्तनशील और कर्तव्यपरायण बनना होगा। तभी देश का वर्तमान और भविष्य जो युवा-शक्ति के हाथ में है, सुरक्षित रहेगा और विश्व के माथे पर भारत चाँद-सा चमकता रहेगा। 
 
- जेन्नी शबनम (15.8.2022)
(स्वतन्त्रता दिवस की 75वीं वर्षगाँठ) 
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