लो आ गया जश्न का एक सप्ताह 'जॉय ऑफ़ गिविंग वीक' (Joy of giving week) जो 26 सितम्बर से 2 अक्टूबर तक दुनिया भर में मनाया जाएगा।इस नए जश्न भरे सप्ताह के बारे में कोई जानकारी नहीं थी मुझे। हाँ, यह ज़रूर याद आया कि सितम्बर का तीसरा रविवार 'डॉटर्स डे' (daughters day) यानी बेटियों का दिन होता है। अच्छा है, अब पूरा एक सप्ताह ख़ुशी लेने और देने में बीतेगा। पर इसके लिए कोई हंगामा क्यों नहीं? अरे...
मुझे याद है हर साल जब भी वेलेंटाइन डे, रोज़ डे, चाकलेट डे आदि का सप्ताह आता है, तो कुछ ख़ास सोच के लोगों द्वारा इसका बहिष्कार होता है। बार-बार चेतावनी दी जाती है कि ये हमारी संस्कृति को नष्ट करने के तरीक़े हैं, इससे हम पथभ्रष्ट हो रहे हैं आदि-आदि; अतः इस विदेशी संस्कृति को न अपनाएँ। यहाँ बहिष्कार का मतलब सिर्फ़ वैचारिक विरोध से नहीं है, बल्कि इन विशेष दिनों को मनाने वालों को शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना भी दी जाती है; क्योंकि इनके हिसाब से ये देश की परम्परा और संस्कृति का अपमान है। अब वेलेंटाइन डे को ही लें, इसकी आड़ में वे पति-पत्नी को भी नहीं बख़्शते और ज़बरदस्ती राखी बँधवाकर रिश्तों का अपमान करते हैं।
हर साल कहा जाता है कि लोग वेलेंटाइन डे मनाते हैं, लेकिन भगत सिंह या दूसरे क्रांतिकारियों या देश के शहीदों को क्यों नहीं याद करते? नेट और मोबाइल पर ऐसे संदेशों की भरमार होती है। कई बार मैं इस बहस में पड़ चुकी हूँ। लोग किसी भी बात को सही और सार्थक दिशा में क्यों नहीं सोचते? आज भी मैं यही सोच रही हूँ कि इस बार एक भी सन्देश न आया कि ये 'जॉय डे' क्यों मनाया जा रहा है। एक दिन नहीं बल्कि एक पूरा सप्ताह इसके नाम। आज भगत सिंह का जन्मदिन है फिर आज क्यों भूल गए ये तथाकथित देश प्रेमी? एक भी सन्देश नहीं न तो चेतावनी। क्या सिर्फ़ इसलिए कि इसमें प्रेम शब्द शामिल नहीं? पर ख़ुशी शब्द तो शामिल है न! लोगों को प्रेम देंगे और हमें प्रेम मिलेगा तभी ख़ुश रह सकते हैं हम।
- जेन्नी शबनम (28.9.2010)
अब इस 'जॉय वीक' को कैसे मनाया जाए? परिवार के साथ मिलकर जैसे मन हो वैसे जश्न मनाएँ। परिवार के साथ अपनी अनुभूतियाँ बाँटें और अन्य सदस्यों के मन के अनुरूप कोई योजना बनाएँ ताकि सभी प्रसन्न हों। परिवार के अलावा दोस्त और परिचित के साथ भी हम ख़ुशियाँ बाँट सकते हैं और उनको ख़ुशी दे सकते हैं।
मेरी माँ ने दो दिन पहले ही मुझे 'पुत्री दिवस' (daughters day) की बधाई दी और मैंने अपनी बेटी को आज 'पुत्री दिवस' की बधाई दी। मैं एक माँ की बेटी हूँ और एक बेटी की माँ। दोनों रिश्ते समझती हूँ और कहीं-न-कहीं उनसे ख़ुद को गहरे में जुड़ा महसूस करती हूँ। मैं, मेरा बचपन और मेरी ज़िन्दगी इन तीनों को मिलाकर सम्पूर्ण 'मैं' हूँ, जिसमें मेरी माँ अपनी ख़ुशी ढूँढती हैं। वैसे ही अब मैं अपनी बेटी में ख़ुद को ढूँढने लगी हूँ।
मेरे जीवन में इतने ज़्यादा उतार-चढ़ाव आए कि ख़ुशी के ज़्यादातर पल विस्मृत हो गए, जो पल दर्द दे गए वह ज़्यादा याद रहते हैं। ऐसा नहीं कि जीवन में कोई ख़ुशी नहीं मिली, ख़ुशी भी भरपूर मिली। लेकिन शायद मानव स्वभाव है कि दुःख ज़्यादा याद रहता है और ख़ुशी कम। कोशिश तो यही होती है कि सभी ख़ुश रहें, घर ही नहीं बल्कि मुझसे जुड़े सभी लोग ख़ुश रहें और मैं भी इन सब में ख़ुश रहूँ। ऐसे में जब भी कोई ऐसा ख़ास दिन आता है, तो मुझे बेहद ख़ुशी होती है, चाहे वह बाल दिवस, वेलेंटाइन डे, रोज डे, चाॅकलेट डे, मदर्स डे, फादर्स डे, फ्रेंडशिप डे, किसी का बर्थ डे, स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, कोई ख़ास पर्व या त्योहार, या कोई ख़ास दिन को समर्पित एक दिन। इसी बहाने इन ख़ास दिनों में मन में उमंग और उत्साह होता है, कुछ ख़ास करने का मन होता है या फिर किसी नए तरीक़े से मनाने की योजना बनाई जाती है।
जद्दोजहद से भरी ज़िन्दगी में कुछ नया पाने, देखने, सोचने की ऐसी कोई भी कोशिश जो मानवीय सम्बन्धों को और भी ख़ूबसूरत बनाए ख़राब कैसे हो सकती है। जब भी ऐसा कोई मौक़ा आता है तब बच्चों का उत्साह देखते ही बनता है। तरह-तरह की फ़रमाइशें होती हैं, ख़ास दिन के लिए ख़ास कपड़े और तोहफ़ा! हर बार जब भी कोई ख़ास दिन आता है, तब मैं सोचती हूँ कि क्यों नहीं हर दिन को किसी ख़ास दिन को समर्पित कर दिया जाए। हर दिन खुशियों का, जश्न का और जीने का दिन हो।
- जेन्नी शबनम (28.9.2010)
____________________