लता मंगेशकर का मतलब मेरे लिए है उनका गाया गीत ''चुप-चुप खड़े हो ज़रूर कोई बात है...।" यह गाना मेरी ज़बान पर चढ़ गया था और मैं अपने पापा को यह गाकर चिढ़ाती थी। मेरे पापा गाना सुनने के बहुत शौकीन थे। घर में एक रेडियो-रेकॉर्ड प्लेयर और ढेरों रेकॉर्ड थे। मेरे घर में दिनभर गाना बजता रहता था। उन दिनों गीत के बोल मेरी समझ में नहीं आते थे, और अपनी समझ से कोई भी शब्द जोड़ देती थी। उन्हीं में यह गीत था चुप-चुप खड़े हो, जिसके बोल मेरे लिए थे छुप-छुप खड़े हो...। पापा अपने कमरे में अधिकतर समय पढ़ते-लिखते रहते थे। मुझे लगता कि पापा सबसे छुपकर कमरे हैं और मैं जैसे लुका-चोरी खेलने में उनको पकड़ ली होऊँ, मैं उँगली के इशारे से बोलती, "पापा, हम तुमको पकड़ लिए। छुप-छुप खड़े हो ज़रूर कोई बात है...।"
लता मंगेशकर को मैंने अपने पापा के माध्यम से जाना है। हालाँकि उस उम्र में मुझे नहीं मालूम था कि गीत किसने गाया और रेकॉर्ड में बजता कैसे है। 'हिज मास्टर्स वॉइस' के रेकॉर्ड में लाउडस्पीकर के सामने एक कुत्ता बैठा रहता है। मैं सोचती थी कि वह कुत्ता कितना अच्छा गाता है, स्त्री-पुरुष दोनों की आवाज़ में गाता है। लेकिन बाहर का कुत्ता क्यों नहीं गाता, सिर्फ़ भौं-भौं क्यों करता है? यह ऐसा अनसुलझा प्रश्न था जो मैं सोचती रहती थी, आश्चर्यचकित रहती थी, मेरी खोजबीन जारी थी। लेकिन इसका उत्तर कभी पूछा नहीं किसी से। जब समझ आया कि गाना इंसान गाता है, तो अपनी मूर्खता पर चुचाप ख़ुद हँसती थी।
हमारे पास सैकड़ों रेकॉर्ड थे, जिसमें सभी गायक-गायिका और फ़िल्म के गाने थे। जब थोड़ी समझ खुली, तो सोचती थी कि जिस रेकॉर्ड पर जिस फ़िल्म का गाना है, तो उस फ़िल्म के कलाकारों ने गाया है। पाकीज़ा है तो मीनाकुमारी, नीलकमल है तो वहीदा रहमान व राज कुमार, हमराज़ है तो विम्मी व राजकुमार, वक़्त है तो साधना व सुनील दत्त इत्यादि। तब नहीं मालूम था कि गीतकार, संगीतकार, गायक, कलाकार आदि सब अलग-अलग लोग होते हैं। जब यह राज़ हमपर खुला, तब अपनी मंदबुद्धि के लिए अपने आप से शर्मिन्दा हुई। मुमकिन है मम्मी-पापा से अपनी मूर्खता बताई रही होऊँ, जो मुझे अब याद नहीं है।
जब गाना की समझ आई फिर तो लता-ही-लता मेरी चारों तरफ़। लता के दर्द भरे गाने मुझे इतने पसन्द आते थे जैसे कि मैं संगीत में दक्ष वयस्क स्त्री हूँ और गीत के बोल और भाव बहुत अच्छी तरह समझती हूँ। हालाँकि तब भी गीत के बोल में मेरे शब्द भण्डार से शब्द जुड़ते रहते थे। उन दिनों उर्दू शब्द का ज़रा भी ज्ञान नहीं था मुझे। उम्र के साथ सोच विकसित हुई और तब गीत, संगीत और गाना का मतलब समझ आया। फिर तो गाना मेरी ज़िन्दगी का अहम् हिस्सा बन गया। गाना सुने बिना मेरी पढ़ाई भी नहीं होती थी। मैं कई बार सोचती हूँ कि संगीत से मुझे इतना लगाव है, लेकिन एक पंक्ति भी क्यों नहीं गा सकी, हालाँकि कोशिश बहुत की।
न सिर्फ़ लता बल्कि सुरैया, नूरजहाँ, बेगम अख़्तर, फ़रीदा ख़ानम, आशा भोंसले, मोहम्मद रफ़ी, सुमन कल्याणपुर, मीना कुमारी, मन्ना डे, सहगल, महेंद्र कपूर, हेमन्त कुमार, मुकेश, किशोर कुमार, एस. डी. बर्मन आदि सभी गायकों के गानों की लम्बी फ़ेहरिस्त बनती चली गई। कुछ नाम भूल रही हूँ, लेकिन ये सभी मेरे पसन्दीदा गायक-गायिका हैं, जिन्हें जितना भी सुनूँ मन नहीं भरता है। रेकार्ड के ज़माने से शुरू हुआ मेरा संगीत प्रेम कैसेट, सी डी, मेमोरी कार्ड से होते हुए अन्तर्जाल के विभिन्न साइट तक पहुँच गया है। जब ग़ज़ल की समझ आई तब मेँहदी हसन, ग़ुलाम अली, पंकज उदास, जगजीत सिंह, चित्रा सिंह, पिनाज़ मसानी आदि को ख़ूब सुनती रही। ग़ुलाम अली साहब को तो जैसे लोरी के रूप में सुनती हूँ। ग़ुलाम अली को सुनते-सुनते ही सोती हूँ। लता मंगेशकर और जगजीत सिंह के ग़ज़ल का एल्बम 'सजदा' मेरा पसन्दीदा है। लता जी का गाया गीत 'ऐ मेरे वतन के लोगों, ज़रा आँख में भर लो पानी...' जब भी जितनी बार भी सुनती हूँ, आँखें भींग जाती हैं और रोआँ-रोआँ सिहर जाता है।
किस-किस गानों की चर्चा करूँ, किस-किस गायक-गायिकाओं की चर्चा करूँ, फ़ेहरिस्त इतनी लम्बी है कि मेरी यादें कमज़ोर पड़ जाती हैं। गाना-ग़ज़ल के प्रति मेरी दीवानगी ख़त्म नहीं होती। रफ़ी साहब के प्रति मेरी दीवानगी तो आज भी परले दर्जे का है। उनके ख़िलाफ़ मैं कुछ सुन ही नहीं सकती। जब रफ़ी साहब का इंतकाल हुआ था, तब मैं सोचती थी कि रफ़ी के बिना संगीत की दुनिया कैसे चलेगी? आज सोच रही हूँ कि लता जी के बिना संगीत की दुनिया कैसी होगी?
समय-चक्र और जीवन-चक्र अपनी धुरी पर चलता है, चलता रहेगा; हम हों-न-हों कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा। यह मालूम है, संसार से सबको नियत समय पर जाना है। परन्तु उन कुछ लोगों का जाना बहुत दुःख देता है, जिनसे हम प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े होते हैं। लता जी ने तो करोड़ों ही नहीं असंख्य लोगों के दिलों पर राज किया है, चाहे वे देशी हों या विदेशी। लता जी का गाया गीत- 'नाम गुम जाएगा चेहरा ये बदल जाएगा, मेरी आवाज़ ही पहचान है, गर याद रहे...।', मैं सोचती हूँ कि लता जी का न कभी नाम गुम होगा, न कोई चेहरा भूलेगा, हर एक की लता दीदी अपनी आवाज़ के रूप में हमारे साथ सदियों-सदियों जीती रहेंगी। मेरे लिए तो छुप-छुप खड़े हो की लता चुप-चुप दुनिया से विदा हो गईं और अपनी आवाज़ जो इस दुनिया की धरोहर है, हमारे लिए छोड़ गईं।
लता जी को हार्दिक श्रद्धांजलि!
- जेन्नी शबनम (6.2.2022)
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