कवयित्री डॉ. जेन्नी शबनम का 'नवधा' काव्य-संग्रह में नौ विधाओं का संग्रह है। उन नौ विधाओं में ' हाइकु', 'हाइगा', 'ताँका', 'सेदोका', 'चोका', 'माहिया', 'अनुबन्ध', 'क्षणिकाएँ' तथा 'मुक्तावलि' हैं। नवधा-काव्य-सृजन में इनका सम्पूर्ण परिचय और इनके जीवन के मीठे-कटु अनुभवों का आत्मालोचन भी है। इनकी यह सारी काव्य शैली जापानी कविता की समर्थवान विधा है।
हाइकु का विकास होक्कू से हुआ है, जो एक लंबी कविता की शुरुआती तीन पंक्तियाँ हैं जिन्हें टंका के नाम से भी जाना जाता है। यह 5-7-5 के शब्दांश होते हैं जिसमें इन्होंने प्रेम की महत्ता को इस प्रकार दर्शाया है-
" प्रेम का काढ़ा
हर रोग की दवा
पी लो ज़रा-सा।"
'हाइगा' जिसका शाब्दिक अर्थ है 'चित्र कविता', जो चित्रों के समायोजन से वर्णित किया जाता है। यह हाइकु का प्रतिरूप है, जिसमें इन्होंने समुद्र की लहर का सचित्र वर्णन किया है-
"पाँव चूमने
लहरें दौड़ आईं
मैं सकुचाई।"
'ताँका' जापानी काव्य की एक सौ साल पुरानी काव्य विधा है। इस विधा को नौवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी के दौरान काफ़ी प्रसिद्धि मिली। उस समय इसके विषय धार्मिक या दरबारी हुआ करते थे। हाइकु का उद्भव इसी से हुआ है। यह पाँच पंक्तियों और 5-7-5-7-7= 31 वर्णों के लघु कलेवर में भावों को गुम्फित करता है, जिसे इन्होंने बालकविता के रूप में एक नन्हीं-सी परी को आसमान से उतारी और वो बच्चों का दिल बहलाई और पुनः लौट गई। उसे इन चंद पंक्तियों में भावनाओं का अथाह सागर-सा उड़ेल दी है-
"नन्हीं सी परी
लिए जादू की छड़ी
बच्चों को दिए
खिलौने और टॉफी
फिर उड़ वो चली।"
'सेदोका' में किसी एक विषय पर एक निश्चित संवेदना, कल्पना या जीवन-अनुभव वर्णित होता है। इसमें क्रमशः 5-7-7-5-7-7 वर्णक्रम की छह पंक्तियाँ होती हैं, जिसे इन्होंने वियोगावस्था का वर्णन, प्रेमिका के मन की पीड़ा को संवेदनाओं की काली घटाओं में इस प्रकार घोली हैं-
"मन की पीड़ा
बूँद-बूँद बरसी
बदरी से जा मिली
तुम न आए
साथ मेरे रो पड़ी
काली घनी घटाएँ।"
'चोका' भारतीय दृष्टिकोण से यह एक वार्णिक छंद है जिसमें 5-7-5-7 वर्णों के क्रम में कई पंक्तियाँ हो सकती हैं। इसके अंत की दो पंक्तियों में सात-सात वर्ण होते हैं। इस कला पक्ष के साथ भाव के प्रवाह में रची गयी कविता 'चोका' कहलाती है।
कवयित्री के मन में अपनी इन कविताओं को लेकर कोई दुविधा नहीं है। देश दुनिया के संघर्षजीवी जन के सुख-दुःख, हर्ष-विषाद, आकांक्षाओं और बेहतर ज़िंदगी, बेहतर दुनिया के लिए इनकी मुक्ति चेतना ही प्रतिबद्धता है। दूसरी ओर इस प्रतिबद्धता के पीछे इनकी समस्त भावनाओं, अनुभूतियों, आत्मीयता और कोमलतम संवेदनाओं को बचा लेने का मन दिखता है, जिसके बिना न तो जीवन जीने योग्य दिखता है और न ही मनुष्यता सुरक्षित हो सकती है। इनकी कविताओं में प्रकृति के उपादानों के माध्यम से मानव जीवन के अनुभवों को कुशलता से व्यक्त किया गया है। इसमें अभिव्यक्ति की सहजता और शब्दों की तरलता के साथ-साथ दृश्यात्मक बिम्बों की विशिष्टता देखकर आँखें जुड़ा जाती हैं। 'चोका' की एक कविता है-
'सुहाने पल' - "मुट्ठी में बंद / कुछ सुहाने पल / ज़रा लजाते / शरमा के बताते / पिया की बातें / हसीन मुलाक़ातें / प्यारे-से दिन / जगमग-सी रातें / सकुचाई-सी / झुकी-झुकी नजरें / बिन बोले ही / कह गई कहानी / गुदगुदाती / मीठी-मीठी खुशबू / फूलों के लच्छे / जहाँ-तहाँ खिलते / रात चाँदनी / आँगन में पसरी / लिपटकर / चाँद से फिर बोली / ओ मेरे मीत / झीलों से भी गहरे / जुड़ते गए / ये तेरे-मेरे नाते / भले हों दूर / न होंगे कभी दूर / मुट्ठी ज्यों खोली / बीते पल मुस्काए / न बिसराए / याद हमेशा आए / मन को हुलसाए।"
रूप, रस, गंध, शब्द-स्पर्श आदि ऐन्द्रिय बिम्बों से बुना गया इनकी अन्य कविताओं का सृजनात्मक कर्म जीवन के सन्दर्भों का समुच्चय है। कवयित्री का यह प्रयास घर को घर की तरह रखने का संकल्प है। घर गहरी आत्मीयता, परस्पर सम्बद्धता, समर्पण, विश्वास और व्यवस्था का एक रूप है। दीवारों के दायरे को भरे-पूरे संसार में तब्दील करना इनका लक्ष्य है। इनका यह सोच इनकी लोक-संपृक्ति का प्रमाण है।
कवयित्री को हार्दिक बधाई एवं सफलता की शुभकामनाएँ।
कवयित्री का संपर्क सूत्र- 9810743437
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