Thursday, September 2, 2021

91. माँ का दुलारा, बन गया आसमाँ का तारा : सिद्धार्थ शुक्ला

सिद्धार्थ शुक्ला (12.12.1980 - 2.9.2021) 
मृत्यु का जन्म से बस एक नाता है- जन्म लेते ही मृत्यु अवश्यम्भावी है उम्र के साल की गिनती, धन, सम्मान, शोहरत, जाति, धर्म आदि किसी से भी मृत्यु का कोई लेना-देना नहीं जिस ज़िन्दगी को पाने के लिए न जाने क्या-क्या नहीं करते, उसके ख़त्म होने में महज़ एक क्षण लगता है पलभर में साँसें बंद जीवन समाप्त! मृत्यु के सामने हम बेबस और किंकर्त्तव्य-विमूढ़ हो जाते हैं यों तो हर पल हज़ारों लोग मृत्यु की गोद में समाते हैं, पर सभी के लिए दुःख नहीं होता है अगर होता, तो जीवन जीना असम्भव हो जाता; क्योंकि हर क्षण कोई-न-कोई मृत्यु को प्राप्त होता है दुःख उनके लिए होता है, जब कोई अपना संसार छोड़ जाता है दुःख उनके लिए होता है, जब किसी की मृत्यु असमय हो जाती है दुःख उनकी मृत्यु पर होता है, जिनसे हम बहुत प्यार करते हैं, जिनके सम्पर्क में हम होते हैं या पहचान होती है, जिनसे भले हम न मिले हों; लेकिन वे हमारे मन के क़रीब होते हैं, जिन्हें हम पसन्द करते हैं 
आज मन को फिर से आघात लगा, जैसे ही मालूम हुआ कि युवा अभिनेता और कलाकार सिद्धार्थ शुक्ला नहीं रहे एक और ज़मीं का सितारा, माँ का दुलारा, लाखों का प्यारा, बन गया आसमाँ का तारा पिछले साल इरफ़ान और सुशांत के जाने पर ऐसी ही अनुभूति हुई थी फिर भी मेरे मन में यह बात थी कि इरफ़ान ने जीवन के हर रूप को जिया है और एक ऐसी बीमारी से ग्रस्त थे, जिससे वे समझते होंगे कि ज़्यादा दिन नहीं रहेंगे सुशांत तो उम्र में छोटा था, सब कुछ अधूरा-अधूरा भले शोहरत और सम्मान ख़ूब मिला, मगर जाने क्यों जीवन पसन्द नहीं आया और मृत्यु को स्वीकार किया उसने जानबूझकर जीवन का अंत किया या उसकी हत्या हुई कहना कठिन हैसिद्धार्थ शुक्ला तो महज़ 40 वर्ष का था, ज़िन्दगी और ज़िन्दादिली से भरपूरकितने सपने देखे होंगे उसने उसका जीवन अभी अधूरा था माँ का इकलौता बेटा, जिसपर माँ का दायित्व था क्या बीत रही होगी उस माँ पर, सोचकर मन काँप उठता है

मैं टी.वी. नहीं देखती हूँ, भले सामने टी.वी. चल रहा हो हाँ, फ़िल्में बहुत देखती हूँ एक दिन घर के लोग टी.वी. देख रहे थे, 'झलक दिखला जा' में सिद्धार्थ का डांस चल रहा था एक झलक मैंने देखा, बड़ा अच्छा लगा मुझे सिद्धार्थ फिर दो-तीन एपिसोड देखे मैंने एक दिन टी.वी. पर 'बालिका वधू' का कोई एपिसोड चल रहा था, जिसमें सिद्धार्थ कलेक्टर और बालिका वधू का पति है तथा सुरेखा सीकरी बालिका वधू की 'दादी सा' हैं सिद्धार्थ को देखकर मैं बोली- ''अरे यह तो झलक दिखला जा वाला डांसर है।'' मैं उसे देखने के लिए बैठ गई दादी सा के बोलने के निराले अंदाज़ तथा सिद्धार्थ को गम्भीर और प्यार करने वाले पति की मोहक भूमिका में देख मैंने पूरा एपिसोड ही नहीं, बल्कि सीरियल के कुछ पुराने एपिसोड भी देखे सुरेखा सीकरी और सिद्धार्थ की अदाकारी बस कमाल है सीरियल की कहानी अच्छी नहीं लग रही थी, बावज़ूद मैंने उस सीरियल को अंत तक देखासिद्धार्थ का व्यक्तित्व इस सीरियल में बेहद आकर्षक, गम्भीर और संतुलित है

मेरे समय के अभिनेताओं में सलमान खान और शाहरुख खान मेरे सबसे पसन्दीदा हैं एक दिन टी.वी. पर बिग बॉस आ रहा था, जिसे सलमान ने होस्ट किया है उस दिन से बिग बॉस का लगभग सभी सीजन मैंने देखा 2019 का बिग बॉस का पूरा सीजन मैंने देखा जब कभी कोई एपिसोड छूट जाए, तो वूट पर जाकर ज़रूर देखती थी। भले यह शो विवादित है, मगर इस शो को देखना मुझे बेहद पसन्द है इस शो में वास्तविक सिद्धार्थ को हमने देखा है- उसका प्यार, ग़ुस्सा, चिड़चिड़ापन, अदाकारी, बचपना, समझदारी, दोस्ती, आक्रोश सब कुछ हमने खिलखिलाते सिद्धार्थ को देखा, तो बीमार सिद्धार्थ को भी देखा उसकी लड़ाई जितनी तगड़ी थी, रूठना-मनाना उतना ही सरल सिद्धार्थ के रहने का तरीक़ा बिल्कुल बच्चों जैसा है और जीने का तरीक़ा बहुत ही सहज हर तरफ़ कैमरा है, इसके बावजूद वह सामान्य रह रहा था न कोई दिखावा न कोई बनावटीपन जैसा है तो बस है सिद्धार्थ और शहनाज़ की जोड़ी बहुत प्यारी थी पूरे सीजन में मैं चाहती थी कि सिद्धार्थ विजयी हो, और वह हुआ
 
'हम्प्टी शर्मा की दुल्हनिया' फ़िल्म में सिद्धार्थ को हम देख चुके हैं अभी बहुत सी फ़िल्में आनी थीं हीरो बनने के सारे टैलेंट उसमें थे बहुत सारे पुरस्कार और सम्मान उसे मिले हैं, अभी न जाने कितने और मिलते टी.वी. का एक बेहतरीन कलाकार, मॉडल, ख़ूबसूरत व्यक्तित्व का स्वामी, शारीरिक रूप से चुस्त व बलशाली युवा अभिनेता सिद्धार्थ शुक्ला के न जाने कितने सपने रहे होंगे सिद्धार्थ की माँ के ढेरों सपने रहे होंगे सब कुछ ख़त्म हो गयासिद्धार्थ के घरवालों को सिद्धार्थ की यादों के साथ जीने की हिम्मत मिले यही कामना कर सकती हूँ 

तक़दीर में किसके पास कितनी साँसें हैं, काश! कोई जान पाता, तो तय वक़्त के मुताबिक़ सपने देखता और पूरे करता मृत्यु तो तय है; लेकिन अधूरी कामनाओं के साथ किसी का असमय गुज़र जाना, उसके अपनों के लिए पीड़ा यों है मानो दुःख के पानी से भरा घड़ा, जिसे जितना पीते जाएँगे वह भरता जाएगा दुःख लहू में दौड़ेगा, नसों में पसरेगा, आँखों से बरसेगासमय का कितना भी बड़ा पहर या कई युग बीत जाए, न घड़ा ख़ाली होगा न दुःख विस्मृत होगा सिद्धार्थ! तुमने वह दुःख का घड़ा सभी को देकर अलविदा कह दिया यों क्यों गए सिद्धार्थ? अलविदा सिद्धार्थ! 

-जेन्नी शबनम (2.9.2021) 
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7 comments:

जितेन्द्र माथुर said...

सिद्धार्थ शुक्ला को श्रद्धांजलि स्वरूप लिखा गया आपका लेख सचमुच बहुत ही अच्छा है। तक़दीर में किसके पास कितनी साँसें हैं, यह सचमुच कोई नहीं जानता और जितनी लिखी हैं, उतनी ही ली जा सकती हैं, न कम न ज़्यादा। हाल ही में बालिका वधू की दादी-सा सुरेखा सीकरी भी चल बसी थीं। उन्होंने तो शायद अपनी आयु जी ली थी। सिद्धार्थ का जाना उसी तरह दुखद है, जिस तरह विगत वर्ष सुशांत का संसार को अलविदा कह देना था। आपने अपनी भावनाओं को शब्द दिए जेन्नी जी, अच्छा किया।

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

इन दो सालों में बहुत से लोग असमय ही चले गये।

रेखा श्रीवास्तव said...

जीवन तो मिलता है लेकिन मृत्यु नहीं देखती उम्र, जिम्मेदारी या फिर बिलखता परिवार, आई और लेकर चल दी लेकिन किसका क्या टूटा या बिखरा वो देखते रहें।

kishor srivastava said...

अच्छी जानकारी...बेहतरीन लिखा आपने..

प्रियंका गुप्ता said...

जिन्हें हम न भी जानते हो, उनके साथ हुई ऐसी घटनाएँ भी दिल को आघात-सा पहुँचाती है | एक अदाकार को हम व्यक्तिगत रूप से भले ही न मिले हों, पर उनके बारे में हम इतना कुछ जानने लगते हैं कि वह अपने आसपास का ही कोई व्यक्ति लगने लगता है | सच में, सिद्धार्थ का जाना भी दिल दुखा गया | एक माँ और बहनों का दुःख सोच कर भी तकलीफ होती है | सिद्धार्थ को विनम्र श्रद्धांजलि...ईश्वर उनके अपनों को शक्ति दे |

डॉ. जेन्नी शबनम said...

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Ram Chandra Verma
Mon, 6 Sept, 15:03 (4 days ago)
to me

सिद्धार्थ के बारे में और ज़िन्दगी/मौत के बारे में जो भी आपने कहा, बहुत ही अद्भुत और बहुत ही विलक्षण कहा है।जो भी अपनी याद,अपने निशाँ पीछे छोड़ के जाता है समझिये ज़िन्दगी उसी ने ही जी है,चाहे वो मुख़्तसर ही जी हो।बहुत ही सुन्दर और सटीक शब्दों में आपका यह आलेख बेहद प्यारा लगा। साधुवाद और मुबारकबाद जेन्नी जी।

Sudershan Ratnakar said...

आपने सही कहा।बहुत सारे ऐसे लोग हैं जिनसे हम मिलते नहीं नहीं लेकिन उनके बारे में हम जानते बहुत कुछ हैं जो अपने से लगने लगते हैं उनका दुख भी अपना दुख लगता है।सिद्धार्थ का व्यक्तित्व ही ऐसा था कि वह सबका चहेता था। उसका यूँ जाना वास्आतव में दुखायी है। आपने अपनी लेखनी से उसकी स्मृतियाों को बहुत सुंदर ढंग से उकेरा है।हार्दिक बधाई जेन्नी जी।