Tuesday, August 1, 2023

105. माँ हो न!

कल शाम से वसुधा दर्द से छटपटा रही थी। उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उसके पाँव कटकर गिर जाएँगे। रात में ही उसने बगल में सोये अपने पति को उठाकर कहा- ''अब दर्द सहन नहीं हो रहा, अस्पताल ले चलो।" आधी नींद में ही विजय बोला- "बस अब सुबह होने ही वाली है, चलते हैं।" और वह खर्राटे लेने लगा। तड़पते हुए लम्बी-लम्बी साँसें लेकर किसी तरह वसुधा ने रात गुज़ारी। 

दर्द से वसुधा को रुलाई आ रही थी। वह छटपटाकर कभी पेट पकड़ती तो कभी कमर। उसे लग रहा था जैसे अब उसका पेट, कमर और पैर फट जाएगा। सुबह होते ही अस्पताल जाने के लिए वसुधा को गाड़ी में बिठाया गया। घर के निकट ही अस्पताल है। विजय के पिता ने आदेशात्मक स्वर में कहा- "मन्दिर होते हुए अस्पताल जाना।" विजय की माँ पास के मन्दिर जाकर पुत्र प्राप्ति की कामना करके लौटी, उसके बाद सभी अस्पताल गए। वसुधा दर्द से कराह रही थी, बीच-बीच में उसकी चीख निकल जाती थी। 
 
अस्पताल पहुँचते ही नर्स उसे ओ.टी. में ले गई। सिजेरियन होना तय था; क्योंकि वसुधा का रक्तचाप इन दिनों काफ़ी बढ़ा हुआ रह रहा था। लगभग दो घंटे बीत गए। सभी की नज़रें दरवाज़े पर टिकी थीं कि कब नर्स आए और खुशख़बरी सुनाए। तभी नर्स ट्रे में शिशु को लेकर आई। सभी के चेहरे पर ख़ुशी छा गई; पुत्र जो हुआ था। शिशु को देखने के लिए सभी बेचैन थे। कोई तस्वीर ले रहा है, कोई चेहरे का मिलान ख़ुद से कर रहा है, कोई उसका रंग-रूप देख रहा है। विजय के पिता ने कहा- "विजय, पहले जाकर मन्दिर में लड्डू चढ़ा आओ।" विजय मन्दिर में लड्डू चढ़ाने बाज़ार की तरफ़ चला गया।  

एक तरफ़ एक स्त्री चुपचाप खड़ी थी। उसके चेहरे पर घबराहट और चिन्ता के भाव थे। वह अब भी उसी दरवाज़े की तरफ़ बार-बार देख रही थी जिधर से नर्स आई थी। नर्स ने लाकर बच्चे को दिया तो मारे ख़ुशी के वे रोने लगीं, फिर बच्चे को प्यार कर धीरे से नर्स से पूछा- ''बच्चे की माँ कैसी है? वह ठीक है न?'' नर्स ने मुस्कुराकर कहा- ''वह बिल्कुल ठीक है। तुम जच्चा की माँ हो न!'' उस माँ की डबडबाई आँखों ने नर्स को सब समझा दिया था। 

- जेन्नी शबनम (6.7.2023)
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14 comments:

Harash Mahajan said...

बेहद खूबसूरत मार्मिक लघु कथा आदरनीय !!

शिवजी श्रीवास्तव said...

सशक्त लघुकथा।वसुधा के ससुराल वालों को वसुधा से अधिक बेटे की संतान की चिंता है,वहीं वसुधा की माँ को अपनी बेटी की चिंता है।बहुत सूक्ष्मता से सभी के मनोविज्ञान को चित्रित किया है।नर्स का कथन-'तुम जच्चा की माँ हो न'..गहरी संवेदना समेटे हुए है।यहीं लघुकथा का मर्म खुलता है।प्रभावी लघुकथा।हार्दिक बधाई।

उमेश महादोषी said...

ytharthparak achchhi laghukatha.

MahavirUttranchali said...

बेहद मर्मस्पर्शी।

Anonymous said...

मानवीय संवेदनाओं को उजागर करती बहुत सुंदर लघुकथा। समाज कितना भी प्रगतिशील होने का ढिंढोरा पीट ले पर न तो वह बेटी -बेटे के अंतर को मिटा पाया है और न ही बेटी और बहू के बीच। एक ओर बेटे होने की ख़ुशी में पूरा परिवार बहु को तो भूल ही गया दूसरी ओर माँ ने सबसे पहले बेटी के बारे मैं पूछा। दोनों की भावनाओं का सुंदर चित्रण। सुदर्शन रत्नाकर

Anonymous said...

Maa

Anonymous said...

माँ ही इस पीड़ा को समझ सकती है पिता या कोई अन्य नहीं l सुन्दर कथा 👌

डॉ. जेन्नी शबनम said...


Ram Chandra Verma
1 Aug 2023, 21:36 (22 hours ago)
to me

इस लघुकथा के ज़रिए लेखिका ने समाज का कितना घिनौना रूप दिखाया है। नवजात के पिता, दादा-दादी वो अन्य किसी को भी नवजात को जन्म देने वाली मां की चिंता नहीं है। नवजात के होने की अपार खुशी में सब खो से गए हैं।चिन्ता है तो केवल नवजात की नानी को (अपनी जच्चा बेटी की) । इन्सान कितना स्वार्थी और स्वयं तक ही सीमित हो गया है, यही शायद इस कथा का मार्मिक साथ हैं।
जेन्नी जी को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।

साहिल

zaheenbikaneri said...

आपकी लफ़्ज़ियात बेहतरीन है रवां दवां है और सबसे कमाल की बात ये है कि आपकी बंदिश और लफ़्ज़ों को बरतने का शऊर बहुत नफ़ीस है आपके यहाँ फ़साहत और बलाग़त भी जा ब जा नज़र आती है

रेखा श्रीवास्तव said...

लघुकथा बहुत ही अच्छी और मर्मस्पर्शी लगी।  हम आज भी माँ से ज्यादा बच्चे की खासतौर पर लडके के बारे में जानकारी ज्यादा लेना चाहते हैं। हम कब बच्चे के महत्व को समझेंगे

masoomshayer said...

बहुत सच्ची कहानी बहुत ख़ूबसूरत

निवेदिताश्री said...

सारगर्भित लघुकथा जो समाज को ठिठक कर चिंतन हेतु बाध्य करती है।लघुकथा का उद्देश्य भी यही।बधाई की पात्र है प्रिय आपकी लेखनी।

Pallavi saxena said...

मर्मस्पर्शी लघुकथा.

प्रियंका गुप्ता said...

माँ तो बस माँ होती है, बहुत प्यारी लघुकथा, हार्दिक बधाई