जेन्नी शबनम की पुस्तक 'लम्हों का सफ़र' पढ़ रही हूँ। लम्हों के सफ़र में लम्हा-लम्हा एहसास पिरोये हैं। अपनी ही दुनिया में रहने वाली कवयित्री के मन में कसक है, जो इस दुनिया से ताल-मेल नहीं बैठा पाती हैं। बहुत रूहानी एहसास से परिपूर्ण कविताएँ हैं। गहन हृदयस्पर्शी भाव हैं। प्रेम की मिठास को ज़िन्दगी का अव्वल दर्जा दिया गया है। दार्शनिक एहसास के मोतियों से रचनाएँ पिरोई गई हैं। किसी और से जुड़कर उसके दुःख को इतनी सहृदयता से महसूस करना एक सशक्त कवि ही कर सकता है। पीड़ा को, दर्द को, छटपटाहट को शब्द मिले हैं। ज़मीनी हक़ीक़त से जुड़ी तथा जीवन की जद्दोजहद प्रस्तुत करती हुई कविताएँ हैं। सभी कविताओं को सात भाग में विभाजित किया है:
उसकी और मेरी तक़दीर एक है
फ़र्क महज़ ज़ुबान और बेज़ुबान का है।
वो एक बार कुछ पल तड़प कर दम तोड़ती है
मेरे अंतस् में हर पल हज़ारों बार दम टूटता है
हर रोज़ हज़ारों मछली मेरे सीने में घुट कर मरती है।
बड़ा बेरहम है, ख़ुदा तू
मेरी न सही, उसकी फितरत तो बदल दे!
मछली की इस वेदना को कितने शिद्दत से महसूस किया है आपने, जितनी तारीफ़ की जाए कम है। किसी से जुड़कर उसके सोच से जुड़ना कवयित्री का दार्शनिक सोच परिलक्षित करता है।
ऐसी ही कितनी रचनाएँ हैं जिनमें व्यथा को अद्भुत प्रवाह मिला है।
हिन्द युग्म से प्रकाशित की गई यह पुस्तक अमेज़ॉन पर उपलब्ध है।
1.जा तुझे इश्क़ हो 2.अपनी कहूँ 3. रिश्तों का कैनवास 4. आधा आसमान 5. साझे सरोकार 6. ज़िन्दगी से कहा-सुनी 7. चिन्तन
रिश्तों के कैनवास में उन्होंने अनेक कविताएँ अपनी माँ, पिता, बेटा और बेटी को समर्पित कर लिखी हैं।
आइए उनकी कुछ कविताओं से आपका परिचय करवाऊँ।
'पलाश के बीज \ गुलमोहर के फूल' में बहुत रूमानी एहसास हैं। बीते हुए दिनों को यादकर एक टीस-सी उठती प्रतीत होती है:
याद है तुम्हें
रिश्तों के कैनवास में उन्होंने अनेक कविताएँ अपनी माँ, पिता, बेटा और बेटी को समर्पित कर लिखी हैं।
आइए उनकी कुछ कविताओं से आपका परिचय करवाऊँ।
'पलाश के बीज \ गुलमोहर के फूल' में बहुत रूमानी एहसास हैं। बीते हुए दिनों को यादकर एक टीस-सी उठती प्रतीत होती है:
याद है तुम्हें
उस रोज़ चलते-चलते
राह के अंतिम छोर तक
पहुँच गए थे हम
सामने एक पुराना-सा मकान
जहाँ पलाश के पेड़
और उसके ख़ूब सारे, लाल-लाल बीज
मुठ्ठी में बटोरकर हम ले आए थे
धागे में पिरोकर, मैंने गले का हार बनाया
बीज के ज़ेवर को पहन, दमक उठी थी मैं
और तुम बस मुझे देखते रहे
मेरे चेहरे की खिलावट में, कोई स्वप्न देखने लगे
कितने खिल उठे थे न हम!
राह के अंतिम छोर तक
पहुँच गए थे हम
सामने एक पुराना-सा मकान
जहाँ पलाश के पेड़
और उसके ख़ूब सारे, लाल-लाल बीज
मुठ्ठी में बटोरकर हम ले आए थे
धागे में पिरोकर, मैंने गले का हार बनाया
बीज के ज़ेवर को पहन, दमक उठी थी मैं
और तुम बस मुझे देखते रहे
मेरे चेहरे की खिलावट में, कोई स्वप्न देखने लगे
कितने खिल उठे थे न हम!
अब क्यों नहीं चलते
फिर से किसी राह पर
बस यूँ ही, साथ चलते हुए
उस राह के अंत तक
जहाँ गुलमोहर के पेड़ों की क़तारें हैं
लाल-गुलाबी फूलों से सजी राह पर
यूँ ही बस...!
फिर वापस लौट आऊँगी
यूँ ही ख़ाली हाथ
एक पत्ता भी नहीं
लाऊँगी अपने साथ!
कवयित्री का प्रकृति प्रेम स्पष्ट झलक रहा है। सिर्फ़ यादें समेटकर लाना कवयित्री की इस भावना को उजागर करता है कि उनकी सोच भौतिकतावादी नहीं है। प्रकृति तथा कविता से प्रेम उनकी कविता 'तुम शामिल हो' में भी परिलक्षित होता है, जब वे कहती हैं:
तुम शामिल हो
मेरी ज़िन्दगी की
कविता में...
कभी बयार बनकर
फिर से किसी राह पर
बस यूँ ही, साथ चलते हुए
उस राह के अंत तक
जहाँ गुलमोहर के पेड़ों की क़तारें हैं
लाल-गुलाबी फूलों से सजी राह पर
यूँ ही बस...!
फिर वापस लौट आऊँगी
यूँ ही ख़ाली हाथ
एक पत्ता भी नहीं
लाऊँगी अपने साथ!
कवयित्री का प्रकृति प्रेम स्पष्ट झलक रहा है। सिर्फ़ यादें समेटकर लाना कवयित्री की इस भावना को उजागर करता है कि उनकी सोच भौतिकतावादी नहीं है। प्रकृति तथा कविता से प्रेम उनकी कविता 'तुम शामिल हो' में भी परिलक्षित होता है, जब वे कहती हैं:
तुम शामिल हो
मेरी ज़िन्दगी की
कविता में...
कभी बयार बनकर
...
कभी ठण्ड की गुनगुनी धूप बनकर
...
कभी धरा बनकर
...
कभी सपना बनकर
...
कभी भय बनकर
...
जो हमेशा मेरे मन में पलता है
...
तुम शामिल हो मेरे सफ़र के हर लम्हों में
मेरे हमसफ़र बनकर
कभी मुझमे मैं बनकर
कभी मेरी कविता बनकर!
बहुत सुंदरता से जेन्नी जी ने प्रकृति प्रेम को दर्शाया है और उतने ही साफ़गोई से अपने अंदर के भय का भी उल्लेख किया है जो प्रायः सभी में होता है। ऐसी रचनाएँ हैं जिन्हें बार-बार पढ़ने का मन करता है। अब यह रचना पढ़िए 'तुम्हारा इंतज़ार है':
जीवन की जद्दोजहद और मन पर छाई भ्रान्ति को बहुत सुंदरता से व्यक्त किया है कविता 'अपनी अपनी धुरी' में। हमारे जीवन की गति सम नहीं है। इसी से उत्पन्न होती वर्जनाएँ हैं, भय है, भविष्य कैसा होगा। नियति पर विश्वास रखते हुए वे कर्म प्रधान प्रतीत होती हैं। यह कविता ये सन्देश देती है कि भय के आगे ही जीत है। कर्म करने से ही हम भय पर क़ाबू पा सकते हैं।
'मैं और मछली' में वे लिखती हैं:
जल-बिन मछली की तड़प
मेरी तड़प क्योंकर बन गई?
जो हमेशा मेरे मन में पलता है
...
तुम शामिल हो मेरे सफ़र के हर लम्हों में
मेरे हमसफ़र बनकर
कभी मुझमे मैं बनकर
कभी मेरी कविता बनकर!
बहुत सुंदरता से जेन्नी जी ने प्रकृति प्रेम को दर्शाया है और उतने ही साफ़गोई से अपने अंदर के भय का भी उल्लेख किया है जो प्रायः सभी में होता है। ऐसी रचनाएँ हैं जिन्हें बार-बार पढ़ने का मन करता है। अब यह रचना पढ़िए 'तुम्हारा इंतज़ार है':
मेरा शहर अब मुझे आवाज़ नहीं देता
नहीं पूछता मेरा हाल
नहीं जानना चाहता
मेरी अनुपस्थिति की वज़ह
वक़्त के साथ शहर भी
संवेदनहीन हो गया है
या फिर नयी जमात से फ़ुर्सत नहीं
कि पुराने साथी को याद करे
कभी तो कहे कि आ जाओ
''तुम्हारा इंतज़ार है!"
प्रायः नए के आगे हम पुराना भूल जाते हैं, इसी हक़ीक़त को बड़ी ही ख़ूबसूरती से बयाँ किया है।
जीवन की जद्दोजहद और मन पर छाई भ्रान्ति को बहुत सुंदरता से व्यक्त किया है कविता 'अपनी अपनी धुरी' में। हमारे जीवन की गति सम नहीं है। इसी से उत्पन्न होती वर्जनाएँ हैं, भय है, भविष्य कैसा होगा। नियति पर विश्वास रखते हुए वे कर्म प्रधान प्रतीत होती हैं। यह कविता ये सन्देश देती है कि भय के आगे ही जीत है। कर्म करने से ही हम भय पर क़ाबू पा सकते हैं।
'मैं और मछली' में वे लिखती हैं:
जल-बिन मछली की तड़प
मेरी तड़प क्योंकर बन गई?
...
उसकी और मेरी तक़दीर एक है
फ़र्क महज़ ज़ुबान और बेज़ुबान का है।
वो एक बार कुछ पल तड़प कर दम तोड़ती है
मेरे अंतस् में हर पल हज़ारों बार दम टूटता है
हर रोज़ हज़ारों मछली मेरे सीने में घुट कर मरती है।
बड़ा बेरहम है, ख़ुदा तू
मेरी न सही, उसकी फितरत तो बदल दे!
मछली की इस वेदना को कितने शिद्दत से महसूस किया है आपने, जितनी तारीफ़ की जाए कम है। किसी से जुड़कर उसके सोच से जुड़ना कवयित्री का दार्शनिक सोच परिलक्षित करता है।
ऐसी ही कितनी रचनाएँ हैं जिनमें व्यथा को अद्भुत प्रवाह मिला है।
हिन्द युग्म से प्रकाशित की गई यह पुस्तक अमेज़ॉन पर उपलब्ध है।
आशा है आप भी इन रचनाओं का रसास्वादन ज़रूर लेंगे। धन्यवाद!
- अनुपमा त्रिपाठी 'सुकृति'
1.7.2022
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18 comments:
धन्यवाद जेन्नी जी मेरी समीक्षा यहाँ साझा की |आपको पढ़ना सदैव ऊर्जान्वित करता है!!
सार्थक पुस्तक समीक्षा ।
बहुत अच्छे से लिखा गया है। बधाई आपको।
सराहनीय एवं पाठकोपयोगी समीक्षा लिखी है अनुपमा जी ने। जेन्नी जी का काव्य-संसार संवेदनशीलता से ओतप्रोत है जिसकी एक विहंगम दृष्टि यह समीक्षा प्रदान करती है। लेखिका एवं समीक्षिका, दोनों ही साधुवाद की पात्र हैं।
बेहतरीन पुस्तक समीक्षा आपका लेखन अद्वितीय है
शब्दों ने लम्हों का सफर तय किया है।
एक अच्छी पुस्तक की अच्छी समीक्षा।
आप दोनों को हार्दिक बधाई।
सुंदर समीक्षा, अनुपमा जी आजकल दिखती नहीं हैं !!
संग्रह के लिए बहुत बधाई | आपकी रचनाएँ तो वैसे भी बहुत बढ़िया होती हैं |
बेहतरीन कृति की बहुत सुंदर सटीक समीक्षा। बधाई जेन्नी जी एवं अनुपमा जी। सुदर्शन रत्नाकर
Blogger Anupama Tripathi said...
धन्यवाद जेन्नी जी मेरी समीक्षा यहाँ साझा की |आपको पढ़ना सदैव ऊर्जान्वित करता है!!
July 3, 2022 at 9:45 PM Delete
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अनुपमा जी, आपने इतने मन और ध्यान से पुस्तक को पढ़कर कविताओं के मर्म को समझा, यह मेरे लिए बहुत प्रसन्नता की बात है. बहुत सुन्दर समीक्षा की है आपने, हृदय से आभार.
Blogger संगीता स्वरुप ( गीत ) said...
सार्थक पुस्तक समीक्षा ।
July 3, 2022 at 10:02 PM Delete
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संगीता जी, बहुत-बहुत आभार.
Blogger सुभाष नीरव said...
बहुत अच्छे से लिखा गया है। बधाई आपको।
July 3, 2022 at 10:04 PM Delete
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आदरणीय सुभाष जी, आपको यहाँ देखकर बहुत ख़ुशी हुई. हार्दिक आभार.
Blogger जितेन्द्र माथुर said...
सराहनीय एवं पाठकोपयोगी समीक्षा लिखी है अनुपमा जी ने। जेन्नी जी का काव्य-संसार संवेदनशीलता से ओतप्रोत है जिसकी एक विहंगम दृष्टि यह समीक्षा प्रदान करती है। लेखिका एवं समीक्षिका, दोनों ही साधुवाद की पात्र हैं।
July 4, 2022 at 7:58 AM Delete
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जितेन्द्र जी, यूँ तो आपने मेरी कई रचनाएँ पढ़ी हैं, फिर भी अगर पुस्तक पढने का अवसर मिला तो अपनी प्रतिक्रिया ज़रूर दीजिएगा. सार्थक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद.
Blogger नीरज गोस्वामी said...
बेहतरीन पुस्तक समीक्षा आपका लेखन अद्वितीय है
July 4, 2022 at 11:34 AM Delete
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नीरज जी, आपकी सराहना पाकर ख़ुशी हुई. सादर आभार.
Blogger Ramesh Kumar Soni said...
शब्दों ने लम्हों का सफर तय किया है।
एक अच्छी पुस्तक की अच्छी समीक्षा।
आप दोनों को हार्दिक बधाई।
July 4, 2022 at 3:21 PM Delete
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रमेश जी, आपका हृदय से धन्यवाद. आपने मेरी इस पुस्तक की भी समीक्षा की थी, इसलिए आपका वक्तव्य मेरे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है. शुक्रिया.
मुकेश कुमार सिन्हा said...
सुंदर समीक्षा, अनुपमा जी आजकल दिखती नहीं हैं !!
July 4, 2022 at 5:35 PM
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मुकेश, अनुपमा जी दिल्ली से बाहर थीं, अब वापस आ गईं, अब दिखेंगी. शुक्रिया.
Blogger प्रियंका गुप्ता said...
संग्रह के लिए बहुत बधाई | आपकी रचनाएँ तो वैसे भी बहुत बढ़िया होती हैं |
July 4, 2022 at 6:38 PM Delete
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आपका प्यार है, बना रहे. शुक्रिया प्रियंका जी.
Anonymous Anonymous said...
बेहतरीन कृति की बहुत सुंदर सटीक समीक्षा। बधाई जेन्नी जी एवं अनुपमा जी। सुदर्शन रत्नाकर
July 5, 2022 at 11:25 AM Delete
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आदरणीया रत्नाकर जी, आपकी सराहना मेरे लिए उत्साहवर्धन का कार्य करता है. आपका स्नेह यूँ ही बना रहे. सादर आभार.
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