Friday, April 23, 2021

87. सुनील मिश्र

सुनील मिश्र
स्तब्ध हूँ! अवाक् हूँ! मन को यक़ीन नहीं हो पा रहा कि सुनील मिश्र जी अब हमारे बीच नहीं हैंकैसे यक़ीन करूँ कि एक सप्ताह पूर्व जिनसे आगे के कार्यक्रमों पर चर्चा हुई, यों अचानक सब छोड़कर चले गए? उनके व्हाट्सएप स्टेटस में लिखा है ''कोई दुःख मनुष्य के साहस से बड़ा नहीं, वही हारा जो लड़ा नहीं।'' फिर आप कैसे हार गए सुनील जी? आपको लड़ना था, खूब लड़ना था, हम सब के लिए लड़कर व जीतकर आना था। यों सफ़र अधूरा छोड़कर नहीं जाना था। आपके अपने, अपने परिवार, अपने मित्र, अपने प्रशंसक, अपने शुभचिंतक, अपने सहकर्मी सबको रुलाकर कल आप चले गए। इस संसार को बहुत ज़रूरत थी आपकी। यूँ अलविदा नहीं कहा जाता सुनील जी!   

जीवन की असफलताओं से जब भी मैं हारती, आप मुझे समझाते थे। मुझे बताते थे कि जीवन में सांसारिकता, व्यावहारिकता, सरलता, सहजता, सहृदयता कैसे अपनाएँ। आपके कहे शब्द आज भी मेरे पास सुरक्षित हैं- ''इतने गहरे होकर विचार करने की उम्र नहीं है। हम सभी जिस समय में रह रहे हैं, अजीब-सा वातावरण है और इसमें जीवन की स्वाभाविकता के साथ जीना अच्छा है। यह ठीक वह समय है जब अपने आसपास से इसकी भी अपेक्षा न करके बलवर्धन करना चाहिए। थोड़ा उपकार वाले भाव में आओ। बाल-बच्चे यदि व्यस्त हैं, फ़िक्र करने या जानने का वक़्त नहीं है, अपने संसार में हैं तो उनको ख़ूब शुभकामनाएँ दो। यही हम सबकी नियति है। और उस रिक्ति को अपनी सकारात्मकता के साथ एंटीबायोटिक की तरह विकसित करो। हम तो यही कर रहे हैं। काफ़ी समय से।'' आपकी वैचारिक बुद्धिमता, मानवीयता, गम्भीरता और संवेदना सचमुच ऊर्जा देती है मुझे। मेरे लिए आप मित्र हैं और प्रेरक सलाहकार भी।

चिन्तन में
मेरे जन्मस्थान भागलपुर में गायक किशोर कुमार का ननिहाल है। वहाँ से सम्बन्धित जानकारी लेने को सुनील जी बहुत उत्सुक थे। एक बार किशोर कुमार के ननिहाल मैं गई; लेकिन कुछ ख़ास जानकारी हासिल न हो सकी थी। 14 अप्रैल को फ़ोन पर हम बात कर रहे थे कि कोरोना का प्रभाव ख़त्म हो, तो वे किसी मित्र की गाड़ी से आएँगे और नालंदा विश्वविद्यालय देखने जाएँगे। फिर भागलपुर आएँगे और किशोर कुमार के ननिहाल का पूरा व्योरा लेने मेरे साथ चलेंगे। मैंने उन्हें कहा कि आप आएँ तो विक्रमशिला विश्वविद्यालय और कर्ण गढ़ भी आपको ले चलेंगे, जो भागलपुर के इतिहास की धरोहर है। मेरी माँ का 30 जनवरी 2021 को देहान्त हो गया। माँ के बारे में उनसे बातें हो रही थीं, मैं रो रही थी और वे अपनी माँ को याद कर रो पड़े। मेरे लिए उनके अन्तिम शब्द थे ''चुप हो जाओ, रोओ नहीं, यही दुनिया है, ऐसे ही जीना होता है, 6 साल हो गए मेरी माँ को गए हुए लेकिन अब भी माँ को यादकर रो पड़ता हूँ, तुम्हारे लिए तो अभी-अभी की घटना है, ख़ुश रहने का प्रयत्न करो और स्वस्थ रहो।''   
 
सुनील मिश्र जी से मेरा परिचय फेसबुक पर हुआ था। मैं उन दिनों अंतर्जाल पर नई थी। सुनील जी का फ्रेंड रिक्वेस्ट आया। मैंने देखा कि वे फ़िल्म क्रिटिक हैं, तो तुरन्त उन्हें जोड़ लिया। बाद में मैंने उनसे पूछा कि आप तो इतने मशहूर हैं, मुझे क्यों फ्रेंड बनाया, जबकि हमारे कॉमन फ्रेंड सिर्फ़ एक हैं; वे हँस पड़े यों फ़िल्म देखना मेरा पसन्दीदा कार्य है। सुनील जी के नियमित कॉलम अख़बारों में आते रहते थे और फ़िल्म की समीक्षा भी। किसी भी नए फ़िल्म की उनके द्वारा लिखी समीक्षा पढ़कर मैं फ़िल्म देखने का अपना मन बनाती थी, सलमान-शाहरुख की फ़िल्में छोड़कर (सलमान-शाहरुख की हर फ़िल्म देखती हूँ)। 
 
सिनेमा पर सर्वोत्तम लेखन के लिए अवार्ड लेते सुनील जी
सुनील जी से जब आत्मीयता बढ़ी, तब जाना कि वे वरिष्ठ फ़िल्म-समीक्षक ही नहीं बल्कि लेखक, नाटककार, कवि, कला मर्मज्ञ, वरिष्ठ पत्रकार और मध्यप्रदेश के कला संस्कृति विभाग में अधिकारी हैं। उनके नाटकों का मंचन समय-समय पर होता रहता है, जिसका वीडियो मैंने देखा है और अंतर्जाल पर भी है। वर्ष 2006 में सुनील जी ने अमिताभ बच्चन पर पुस्तक लिखी 'अजेय महानायक'। मई 2018 में सुनील जी को सिनेमा पर सर्वोत्तम लेखन के लिए 65वाँ नेशनल अवार्ड मिला है। 
अमिताभ बच्चन जी का पत्र सुनील जी के नाम
फ़िल्म और कला से जुड़े सभी क्षेत्र के लोगों के साथ उनका वृहत सम्पर्क रहा है। सलीम साहब और हेलेन जी के साथ उनकी तस्वीर देखकर मैंने सुनील जी से कहा कि आप मुझे सलमान खान से मिलवा दीजिएगा, उनकी बहुत बड़ी फैन हूँ। वे हँस पड़े और बोले- ''यह तो मुश्किल काम है पर कोशिश करेंगे, सलमान सचमुच दिल का बहुत अच्छा इंसान है।'' मेरी ख़्वाहिश अधूरी रह गई, सलमान से वे मिलवा न सके

सलीम साहब और हेलेन जी के साथ सुनील जी
फ़िल्मों पर उनसे ख़ूब बातें होती थीं। धर्मेन्द्र के वे बहुत बड़े प्रशंसक हैं और इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने फेसबुक पर धर्म छवि के नाम से प्रोफाइल बनाया है वे धर्मेन्द्र को पापा जी कहकर बुलाते थे। धर्मेन्द्र के जन्मदिन पर वे अक्सर मिलने जाते थे
धर्मेन्द्र पापाजी को उनके जन्मदिन पर बधाई देते सुनील जी
सुनील जी से घनिष्टता बढ़ने के बाद उनके बहुमुखी व्यक्तित्व के हर पहलू को मैंने देखा। वे इतने सहज और सामान्य रहते थे कि शुरू में मुझे पता ही नहीं चलता था कि वे कितने बड़े विद्वान् और संस्कृतिकर्मी हैं। वे अपने प्रशंसनीय कार्य की चर्चा नहीं करते थे। उनके बारे में या उनके लिखे को कहीं पढ़ा, तब पूछने पर वे बताते थे। फ़िल्म ही नहीं बल्कि कला और साहित्य के हर क्षेत्र पर उनकी पकड़ बहुत मज़बूत है। उनकी हिन्दी इतनी अच्छी है कि मैं अक्सर कहती थी- आपके पास इतना बड़ा शब्द-भण्डार कहाँ से आता है? उनकी कविताओं में भाव, बिम्ब और प्रतीकों का इतना सुन्दर समावेश होता है कि मैं चकित हो जाती हूँ। 

बाएँ सुनील जी, बीच में 3 बहुरूपिया, मैं

5-7 अक्टूबर 2018 को इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, नई दिल्ली में बहुरूपिया फेस्टिवल हुआ। वहाँ 6 अक्टूबर को मैं सुनील जी से मिलने गई। यह मेरा पहला और आख़िरी मिलना हुआ उनसे। बहुत सारे बहुरूपियों से मेरा परिचय कराया उन्होंने। मेरे लिए यह अद्भुत अनुभव था। मैंने पहली बार बहुरूपियों का जीवन, उनकी कर्मठता, उनकी कला, उनकी परेशानियों को जाना व समझा।   
बाएँ सुनील जी, बीच में 2 बहुरूपिया, मैं
सुनील जी कला के कर्मयोगी थे। उनकी पारखी नज़रें कला को गम्भीरता से देखती थीं, फिर उनकी कलम चलती थी। कभी-कभी मैं उनसे कहती कि आप इतने बड़े-बड़े लोगों को जानते हैं, मुझ जैसे साधारण दोस्त को कैसे याद रखते हैं? उन्होंने हँसकर कहा कि वे सभी औपचारिक और कार्य का हिस्सा हैं, कुछ ही ऐसे हैं जिनसे व्यक्तिगत जुड़ाव है। अब उसमें चाहे कोई बड़ी हस्ती हो या तुम जैसी सहज मित्र, सब मुझे याद हैं और साथ हैं। उनकी कार्यक्षमता, कार्यकुशलता, कर्मठता, विद्वता, लेखनी सबसे मैं अक्सर हैरान होती रहती थी। अकूत ज्ञान का भण्डार और विलक्षण प्रतिभा थी उनमें।   
सुनील जी द्वारा लिखी पुस्तक
2017 की बात है। फेसबुक पर उनकी कविताएँ कम दिख रही थीं। मैंने पूछा कि कविताएँ नहीं दिख रहीं, तो उन्होंने बताया कि इंस्टाग्राम पर पोस्ट है। इंस्टाग्राम डाउनलोड करना और उसके फीचर्स उन्होंने मुझे बताए। कोरोना काल में हम सभी का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया था। आशंका और भय का वातावरण था। ऐसे में सुनील जी ने 16 अप्रैल 2020 को ग़ज़ल सिंगर जाज़िम शर्मा जी के साथ पहला लाइव संवाद किया। मैं फेसबुक और इंस्टाग्राम पर कोशिश करती रही कि देखूँ, पर तकनीक का अल्प ज्ञान होने के कारण समझ नहीं आया कि लाइव कहाँ हो रहा है। सुनील जी से बात हुई तो उन्होंने कहा कि क्यों न ऐसे लाइव को रोज़ किया जाए और मुझसे बात करते-करते ही कार्यक्रम का नाम बातों-बातों में रख दिया उन्होंने।   

23 अप्रैल 2020 को 'इंस्टा - बातों बातों में' के लाइव की पहली कड़ी प्रस्तुत हुई, जिसमें उन्होंने सर्वेश अस्थाना जी (विख्यात हास्य व्यंग्य कवि) को संवाद के लिए आमंत्रित किया। मैं पहली दर्शक-श्रोता थी; क्योंकि इस बार मैं अच्छी तरह समझकर इंस्टाग्राम खोलकर बैठी थी। बहुत रोचक कार्यक्रम हुआ। पहले दिन कम लोग थे, परन्तु हम सभी का परिचय उन्होंने सर्वेश जी से करवाया। बहुत सफल कार्यक्रम रहा और सुनील जी बहुत प्रसन्न थे। फिर यह कार्यक्रम हमारे कोरोना-काल का हिस्सा बन गया। निर्धारित समय पर रोज़ अलग-अलग विख्यात हस्ती के साथ संवाद का यह कार्यक्रम चलता रहा। 
31 जुलाई को 100वीं कड़ी हुई, जिसमें निर्देशक-अभिनेता सतीश कौशिक दोबारा आमंत्रित थे। सुनील जी इस दिन बहुत प्रसन्न थे और बोले कि वे सोचे ही नहीं थे कि बात करते-करते 'बातों बातों में' कार्यक्रम बन जाएगा और इतना सफल होगा। सुविधा के अनुसार कार्यक्रम का दिन और समय बदलता रहा, लेकिन यह सिलसिला चलता रहा। इसी बीच इरफ़ान खान, सुशांत सिंह राजपूत, ऋषि कपूर, बासू चटर्जी, जगदीप की मृत्यु हुई। इनपर अलग से ट्रिब्यूट के लिए उन्होंने कार्यक्रम रखे।
14 अप्रैल 2021 को 'इंस्टा - बातों बातों में' की 175वीं कड़ी थी
पिछले दो माह से मैं नेट से दूर थी, क्योंकि मेरी माँ का देहान्त जनवरी 2021 में हुआ था। मैं भागलपुर आई हुई थी 14 अप्रैल को सुनील जी से फ़ोन पर काफ़ी लम्बी बातें हुईं। उन्होंने मुझे अपने दुःख से बाहर निकलने और कार्यक्रम से जुड़ने के लिए कहा बात करते हुए उनके भागलपुर आने का कार्यक्रम तय हुआ फिर शाम को मैंने 'बातों बातों में' का लाइव कार्यक्रम देखा। 14 अप्रैल को उनसे फ़ोन पर बातें तथा 'बातों बातों में' की 175वीं कड़ी मेरे और सुनील जी के बीच की अन्तिम कड़ी बन गई। 22 अप्रैल 2021 को  रात्रि 8 बजे वे हम सबको छोड़कर चले गए, जहाँ से अब वे कभी नहीं आएँगे, न मुझे कुछ ज्ञान की बात बताएँगे। आपसे दुनियादारी बहुत सीखा, मेरे हर दुःख में आपने मुझे बहुत समझाया और उबरने में मदद की, आपको कभी भूल नहीं पाऊँगी। आपको श्रधांजलि अर्पित करते हुए प्रणाम करती हूँ

सुनील जी अपनी आवाज़, अपनी लेखनी, अपनी विद्वता, अपनी सहृदयता के साथ हमारे दिलों में सदा जिएँगे। सुनील जी की एक कविता:
 
इन्स्टाग्राम से कॉपी
 
किसी कविता का सृजन या फ़िल्म समीक्षा करते हुए सुनील जी
 
- जेन्नी शबनम (23.4.2021)
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16 comments:

Divik Ramesh said...

विनम्र श्रद्धांजलि।

Udan Tashtari said...

नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि

Pallavi saxena said...

ॐ शांति क्या कहें आजकल समय बड़ा विकट चल रहा है। आप हौंसला रखें।

HINDI AALOCHANA said...

विनम्र श्रद्धांजलि

Ramesh Kumar Soni said...

विनम्र श्रद्धांजलि । इतना सुंदर संस्मरण आपकीं यादों से निकालकर शब्दान्कित हुए यही असली आदरांजलि है।

जितेन्द्र माथुर said...

यह तो बहुत ही दुखद समाचार है। आपने श्रद्धांजलि स्वरूप जो उनके विषय में लिखा है, उससे उनके व्यक्तित्व को जानने का अवसर मिला। सत्य ही सुनील जी का जाना साहित्य और कला जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है।

ashok andrey said...

विनम्र श्रद्धांजलि।
अशोक आंद्रे

सुशील कुमार जोशी said...

नमन।

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Divik Ramesh said...

विनम्र श्रद्धांजलि।
April 24, 2021 at 9:04 PM
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सुनील जी जैसे व्यक्तित्व का चला जाना साहित्य और कला के लिए बहुत बड़ी क्षति है. उनको श्रधांजलि के लिए आभार दिविक रमेश जी.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger Udan Tashtari said...

नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि

April 25, 2021 at 1:53 AM Delete
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आभार समीर जी.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger Pallavi saxena said...

ॐ शांति क्या कहें आजकल समय बड़ा विकट चल रहा है। आप हौंसला रखें।

April 25, 2021 at 12:38 PM Delete
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बड़ा दुखद समय चल रहा है. इतने अपने लोग चले गए, सच कहें तो अब स्थिति असह्य हो चला है. धन्यवाद पल्लवी जी.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger HINDI AALOCHANA said...

विनम्र श्रद्धांजलि

April 26, 2021 at 2:26 PM Delete
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धन्यवाद राजीव जी.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger Ramesh Kumar Soni said...

विनम्र श्रद्धांजलि । इतना सुंदर संस्मरण आपकीं यादों से निकालकर शब्दान्कित हुए यही असली आदरांजलि है।

April 26, 2021 at 3:48 PM Delete
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सुनील जी के साथ बहुत यादें जुड़ी हैं. उन्हें याद करना ही आदरांजलि है. धन्यवाद रमेश कुमार सोनी जी.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger जितेन्द्र माथुर said...

यह तो बहुत ही दुखद समाचार है। आपने श्रद्धांजलि स्वरूप जो उनके विषय में लिखा है, उससे उनके व्यक्तित्व को जानने का अवसर मिला। सत्य ही सुनील जी का जाना साहित्य और कला जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है।

April 27, 2021 at 8:57 AM Delete
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सुनील जी जैसा व्यक्तित्व होना अब असंभव है. कला संस्कृति की क्षति के साथ ही हम जैसे मित्रों के लिए जीवन भर का दुःख है. आभार जितेन्द्र माथुर जी.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger ashok andrey said...

विनम्र श्रद्धांजलि।
अशोक आंद्रे

April 28, 2021 at 12:28 PM Delete
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आपका आभार भाई साहब.

डॉ. जेन्नी शबनम said...


Blogger सुशील कुमार जोशी said...

नमन।

May 18, 2021 at 8:03 PM Delete
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आभार सुशील जी.