Friday, August 6, 2010

10. टूटता भरोसा बिखरता इंसान

मैंने कहीं पढ़ा ''जैसे ही हम भरोसा करना छोड़ देते हैं, वैसे ही हम ख़ुद को भीतर से बंद कर लेते हैं और अकेलेपन की कंदरा में खो जाते हैं हम प्यार कम करते हैं और डरते ज़्यादा हैं''  
 
सच है, इंसानी रिश्तों का मनोविज्ञान बिल्कुल बदल चुका है आज हर रिश्ते असंवेदी हो चुके हैं, हम किसी पर यक़ीन नहीं करते ''मुँह में राम बग़ल में छुरी'' वाली कहावत चरितार्थ होती दिखती है कब कौन किसका भरोसा तोड़ दे, कब कौन किसे सरे-आम लूट ले, दोस्त बनकर कौन दग़ा दे जाए, रिश्ते की ओट में कब कौन रिश्ता नापाक कर जाए आज हम किसी पर भरोसा नहीं करते, न हमपर कोई भरोसा करता है ख़ून का रिश्ता हो या धर्म का नाता, सब छिन्न-भिन्न हो चुका है सच है, अजब हो गया सब नाता है, नहीं यहाँ अब कोई अपना, बन गया सब पराया है  
 
ऐसा नहीं है कि भरोसा टूटने की कोई एक वज़ह है या फिर अन्य ग़लत बातों की तरह तपाक से कह दिया जाए कि पश्चिमी संस्कृति का कुपरिणाम है आज हर ग़लत परिणति को विदेशी संस्कृति के प्रभाव का परिणाम कह देने का चलन फ़ैशन बन चुका है एक तरफ़ तो शिक्षा, विकास और प्रगति के लिए वैश्वीकरण की बात की जाती है, वहीं दूसरी तरफ़ हम अपने-आप में सिमटते जा रहे हैं जब कोई बात हाथ से बाहर हो जाए, तो दोष किसी और पर मढ़ देना ये हमारी पुरानी परम्परा है; चाहे आम घरेलू जीवन की बात हो या शासन-सत्ता की बात  
 
व्यक्ति, समाज और देश एक दूसरे से अंतर्सम्बंधित हैं अगर समाज ऐसा बन चुका है जहाँ हम भरोसा करना छोड़ चुके हैं, तो दोषी कौन है? कोई ख़ास समाज, सरकार या समूह दोषी नहीं है; बल्कि समस्त मानवता ज़िम्मेदार है महत्वाकांक्षाएँ इतनी बढ़ चुकी हैं कि लोग रिश्तों को सीढ़ी की तरह इस्तेमाल कर ऊपर चढ़ते हैं, और जब कहीं पहुँच जाएँ फिर उन्हीं रिश्तों को रौंद डालते हैं रिश्तों को ताक पर रखकर कोई भी कुकर्म कर जाते हैं किसी पर कोई कैसे यक़ीन करे?  
 
रिश्तों की अहमियत खो चुकी है, चाहे बच्चों से हो या माता-पिता से, सगे-सम्बन्धी से हो या दोस्त से, या पड़ोसी से पति-पत्नी में तो आत्मिक रिश्ता कभी दिखता ही नहीं, मन में कड़वाहट भरी होती है; लेकिन ऊपरी प्रेम में कमी नहीं दिखती वह पुरुष जो दहेज लेकर सामान की तरह देख-परखकर विवाह करेगा, उसे कैसे कोई स्त्री प्रेम कर सकती है? दहेज के लिए या सिर्फ़ बेटी जन्म देने के कारण विवाह के कई साल बाद भी स्त्री को मार दिया जाता है जन्मजात कन्या से लेकर मृत्यु के द्वार पर खड़ी औरत असुरक्षित होती है नहीं मालूम कब वह शारीरिक शोषण का शिकार हो जाए ये भरोसा स्त्री का उसके अपने ही घर में अपने ही नज़दीकी रिश्तों द्वारा तोड़ा जाता है ऐसा नहीं कि शारीरिक शोषण की शिकार सिर्फ़ स्त्री होती है, बल्कि छोटे लड़के भी कई बार इसके शिकार हो जाते हैं। परन्तु ऐसे मामलों में बात आगे नहीं बढ़ती; क्योंकि लड़के (पुरुष) बच्चे पैदा नहीं कर सकते इस प्राकृतिक शारीरिक संरचना के कारण स्त्री आजीवन इस भय में जीती रहती है, लेकिन पुरुष नहीं  
 
प्रेमी-प्रेमिकाओं के तार भी मन से और आत्मा की गहराइयों से जुड़े नहीं होते, वैसे में प्रेम महज़ प्रदर्शन का ज़रिया बन जाता है अगर ऐसा नहीं होता तो कैसे कोई प्रेमी या प्रेमिका जिसने इतने भरोसे से रिश्ता जोड़ा हो, उससे बदला ले लेता है अक्सर सुनने में आता है कि विवाह के लिए राज़ी न होने पर लड़की को उसके प्रेमी ने एसिड से जला दिया या धोखे से हत्या कर दी, या प्रेम जाल में फँसाकर लम्बे समय तक उसका शारीरिक शोषण करता रहा और बाद में उसे या तो बेच दिया या उसका नाजायज़ इस्तेमाल करता रहा प्रेम में पड़ जाने वाली उस लड़की ने भी तो भरोसा ही किया होगा अगर कोई प्रेमी विवाह कर भी ले, तो मानो बड़ा एहसान कर रहा हो। प्रेम विवाह, फिर भी दहेज चाहिए कैसे कोई स्त्री ऐसे पुरुष को प्रेम करे या उस पर भरोसा करे?  
 
जीवन में एक बार भी भरोसा टूटता है, तो आजीवन किसी पर भी भरोसा नहीं हो पाता है शक और सन्देह के कारण हम ख़ुद में सिकुड़ते चले जाते हैं; क्योंकि ख़ुद के बाहर की दुनिया में सभी अविश्वश्नीय दिखने लगते हैं मन में यह डर बैठ जाता है कि कहीं एक और धोखा न मिल जाए या कोई और भरोसा न तोड़ जाएये डर न तो सहज जीवन जीने देता है और न खुलकर जीने देता है प्रेम, दोस्ती, रिश्ते सबको सन्देह की नज़र से देखने लगते हैं और इतने सिमट जाते हैं कि ख़ुद पर यक़ीन नहीं रह जाता कि वह क्या करे कि धोखा न मिले, और शायद भरोसा ख़ुद पर से भी उठ जाता है आत्मविश्वास के साथ ही इंसानी रिश्तों से भरोसा ख़त्म हो जाता है  
 
- जेन्नी शबनम (5.8.2010)
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37 comments:

APNA GHAR said...

aapne bahut achcha subject chuna hai aur chinta lajimi hai lekin iske jimmevaar kaun hai ye haalaat ek din mai to bane nahi .aapko samasya ke sath2 sujkhav bhi dena chahiye

शशि "सागर" said...

jenny di;
bharosha, wishwaas, phareb, rishte, sneh aaj kal inheen shabdon se pala pad raha hai. yahee kaaran hai ki aapka ye aalekh mere bilkul pas prateet hui.
jitanee baten aapne keen ...jis smbhaawnaon aur karano ko aapne ginaya aisa lag raha tha ki meree hee bat ho rahee hai.
parantu jab aisee parishthitiyaan aa jay to nijat kaise paya jay ye batayiye di.
waise aalekh bahut hee sundar hua hai.

Pavnesh said...

Aai,
vishay na sirf jwlant hai balki jhakjhor dene wala bhi hai, shbdsah sach ha ki aaj manav ka naitik star itna gir chuka hai ki us par yakeen bada mushkil hai...........................................

Pankaj Trivedi said...

जेन्नी,
पहले तो पापा को मेरी और से भावभरी श्रद्धांजलि |
टूटता भरोसा, बिखरता इन्सान - में वर्त्तमान जीवन में जीते हर व्यक्ति के खोखलेपन पर सही प्रहार किया है और वास्तवदर्शी चित्र को पेश किया | मैं बहुत ही धन्यवाद देता हूँ, पूर्ण आदर और सम्मान के साथ....
मुझे बहुत खुशी हुई की मुझे यहाँ तक लाकर अपने विचारो से अवगत करवाया | आभार नहीं, आनंद |

दिपाली "आब" said...

main bahut kareeb se dekh chuki hun doston aur kareebi logon ka dhokha, kafi had tak samajh chuki hun, rishte naate dosti wafa sab kisi na kisi matlab ki wajah se hota hai, matlab poora hua aur sab khatm.. Haan par har tootey naate ne mujhe aur majboot banaya, bas yahi humein seekhna chahiye, khud ki pehchaan karna

अरुण चन्द्र रॉय said...

"रिश्तों की अहमियत खो चुकी है, चाहे वो बच्चों से हो या माता पिता से या सगे सम्बन्धी से या दोस्त या फिर पड़ोसी से हो| पति पत्नी में तो आत्मिक रिश्ता कभी दीखता हीं नहीं, मन में कड़वाहट भरी होती है लेकिन ऊपर से प्रेम में कमी नहीं होती| ".. bahut hi manovaidgynik dharatal par likha gaya aalekh.. aaj ke kathin samay me aasha kee kiran see

मुकेश कुमार सिन्हा said...

sach kaha aapne, lekin Jenny jee, ye insaani fitrat hai......ham apne fayde ki baat jayda sochne lage hain..........bs!

jahan tak rishto k ahmiyat ki baat hai.......wo kabhi khatm nahi hogi.....:)

waise aapki soch achchhi hai, aur padhne layak tatha apne andar sanjone layak.........dhanyawad!!

संजय भास्‍कर said...

"रिश्तों की अहमियत खो चुकी है, चाहे वो बच्चों से हो या माता पिता से या सगे सम्बन्धी से या दोस्त या फिर पड़ोसी से हो|

kavi kulwant said...

you write good...

निर्झर'नीर said...

महत्वाकांक्षाएँ इतनी बढ़ चुकी है कि लोग रिश्तों को सीढ़ी की तरह इस्तेमाल कर ऊपर चढ़ जाना चाहते, और जब कहीं पहुँच जाएँ फिर उन्हीं रिश्तों को रौंद डालते हैं


hmmm ye to ek talkh haqiqat hai lekin in sab ke piiche bahut sare factor hote koiek iske liye zimmedaar nahi hai .

तिलक राज कपूर said...

भरोसा टूटता इसलिये है कभी बना था, इस नश्‍वर संसार में जो कुछ बना है वह एक दिन नष्‍ट हो जाना है, अच्‍छा है जितना जल्‍दी टूट जाये। बनना एक भ्रम था और टूटना इस भ्रम का अंत। एकभ्रम से भरोसा पैदा होता है दूसरे से बिखर जाता है, इसमें ग़ल़त क्‍या है। जब सब कुछ भ्रम ही है तो ग़लती तो भ्रम पालने वाले की हुई न।
टुकड़ा-टुकड़ा हिसाब में लगे रहने से ये बनने और टूटने का क्रम बनता है, समग्रमा में विश्‍वास रखें न कुछ बनेगा न टूटेगा।

ये तो हुई ज्ञान-ध्‍यान के एक और भ्रम की बात अब बात करें आपके आलेख की। आलेख अच्‍छा है।

honesty project democracy said...

दरअसल मनुष्य के अन्दर शैतानी और इंसानी दोनों प्रविर्तीयां होती है जिसके हावी होने में देश और सामाजिक परिवेश का महत्वपूर्ण हाथ होता है | निगरानी और सुधार से ही इंसानियत को बढ़ावा दिया जा सकता है लेकिन ज्यादातर लोग अपनी गलती मानना तो दूर अपनी गलती के बारे में एक बार सोचना भी पसंद नहीं करते जिससे इंसानियत मरती जा रही है और हैवानियत बढती जा रही है |

rasaayan said...

True Bahin ji.....
covered this interesting topic so carefully leaving no stone unearthed.....it is the process of downfall ......
कोई ख़ास समाज या सरकार या समूह दोषी नहीं है, बल्कि समस्त मानवता जिम्मेवार है....
one needs thoughtful introvert thinking, putting the inner voice to purity of relations of all kinds of yesterday, today and tomorrow.....just as a honest duty.....
thanks for the article and making me a part of your post....

gyaneshwaari singh said...

जेन्नी जी

सही कहा अपने कि रिश्ते में भरोसा जैसे कही खो गया है...क्या किया जाये इस चलन का???
सब जैसे सिर्फ अपने लिए जी रहे है किसी को किसी कि जरुरत नहीं .
पर बिना किसी के जीवन कैसा जीवन???साथ कि जरूत होती है और साथ में विश्वास होना जरुरी है

खोरेन्द्र said...

aapne sab sahi likhaa hain

1-aaj ki sthiti me manushy
bhautil rup se sampann hain

2-usake paas t.v. hain

3-mobile hain

4-net hain

5-aajkal vah filme nahi dekhata
6-aaj kal vah kitaabe nahi padhataa


7- kaam karate huae bhi vah
aate jaate ..
ya baethe baethe chat kar saktaa hain

8 -bas use jarurat hain ti har maah 10 ya 20 hajaar rupyon ki

fir vah apane aap me king ya queen se kam nahi


9-fir aaj ke aadhunik parivesh me ..kanunan ..do vykti rah sakte hain

ekant me ..fir tiisare ka to un dono ke liye mahatv hii nahi ......

do purush ho
ya
dostriyaa ho

yaa

ek purush ho ..ek strii ho

pair kuchh bhi ho ..


10 vykti svtantrataa bhi ..apane charam par

apanaa mahatv kho degi


10-jis tarah se maarkx vaad aaj keval ..

hinsa ka rup le chukaa hain ..

naxalvaad


11- jenny bahan ..!

hame haarnaa nahi hain

pushp to khilate hi rahenge karodo

kaante hajaaron ho to kya frk padataa hain


12-ISLIYE KAHA JAATAA HAIN KI ..

MARKX + GANDHI =MANVATAA


KISHOR
TUMHARA EK BHAAII

pragya said...

एक-एक शब्द सही है जेन्नी जी...

Sanjay Grover said...

Gahre vishleshan ke vishay ke vibhinn aayamoN ko aapne ek lekh me sametne ki achchhi koshish ki hai.StrioN ki taqlifoN par to maiN, aap aur sabhi aaj-kal kafi baat-cheet kar rahe haiN, maiN vyaktigat rup se aise purushoN ko bhi jaanta huN jinke sath bachpan me kukarm huya aur baadme ve bhari pratibha hone ke baavzud kuchh nahiN kr paaye..

डॉ. जेन्नी शबनम said...

ashok ji,
aapne sahi kaha ki samasya to sabhi jante sujhaaav kya hai. jaise samasya ek din mein nahi bana waise hin nirakaran kisi formula ki tarah nahin jo sarkaar laagoo kar de aur samadhaan ho jaaye. hum log hin samasya upjaate hain hain fir nirakaran bhi hum hin kar sakte. har ek manushya agar insaan banne ki koshish kare to aadhi samasya to usi samay khatm ho jayegi. baaki ki aadhi to vishwaas upaj jayega tabhi jaayegi.

aapka aabhar aap yahan tak aaye. koi saarthak sujhaav ho to aapse ummid rahegi. aabhar.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

sagar ji,
samajh sakti hun aapki baat, vishwas ka tootna bahut dukhad hota hin hai. aur yahi sabse badi samasya hai ki jab ek baar chot pahunchti hai fir kisi par se bhi bharosa uth jata hai. fir bhi insaan ko swayam ka aatmabal banaye rakhna chaahiye, mumkin hai waqt lage par apni raah zaroor milti hai.
bahut aashish.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

pavnesh ji,
aapko yahan dekhkar sukhad aashcharya hua. meri kavita ko aapka samman milta hin hai aur mere lekh bhi aapko sarahniye lage bahut khushi hui. Aai ka bahut aashish.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

pankaj ji,
mere pita ki mrityu ko 32 saal ho chuke hain, unki yaad mein unki baaten likhi thi jo yahan sabhi se saajha ki thee. kahin se sunkar bhi aapko meri fikra hui, ye mere liye bahut khushi ki baat hai.
is lekh ko aapne samjha aur saraha, sukhad laga. yun hin apna aashish banayen rakhein, bahut aabhar.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

deepa,
hum sab ki zindgi mein aisa hota hai, koi na koi dhokha milta hin hai. par kabhi socho to shayad hamein ye seekh mil jata ki jo dukh hamein mila kamse kam hum dusre ko na dein. jo peeda hamein mila wahi dusre ko humse na mile. aur ye bhi achha hai ki ye dhokha tumko toda nahin balki aur mazboot tatha samvedansheel banaya hai. tumhara yahan aana bahut achha laga. khushh raho bahut aashish.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

arun ji,
mere aalekh par aapki sakaaratmak pratikriya dekhkar bahut khushi hui. jiwan ko samajhna bahut kathin hai, aur tab jabki rishte naate kee paribhsha hin badal chuki hai. kaun apna kaun paraya behad kathin hot ahai samajhna.
yahan aane keliye bahut aabhar.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

mukesh ji,
rishton ki ahmiyat khatm ho jaaye to hum insaan bachenge kaise. par itna zaroor hai ki rishton ke rakh rakhaav me bahut badi tabdili aa chuki hai. kisi bhi anjaane par koi bharosa kaise kare jab apne hin bharosa tod dete hain, aur aaj ka sach bhi yahi hai.
meri baaton se aapne ittefaaq rakha, bahut shukriya.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

sanjay bhaskar ji,
mere aalekh par aane keliye man se shukriya aapka.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

kavi kulwant ji,
yahan tak aane keliye shukriya.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

nirjhar neer ji,
sahi kaha ki sirf ek factor jimmedaar nahin. wazah to kai hain lekin insabke karan hum akele padte chale jaate hain. aashanka hamare mann mein itne gahre jad jama leti ki na humpar koi yakin karta na hum dusron par. dastoor ban gaya hai bas.
aapko yahan dekhkar bahut achha laga, bahut dhanyawaad.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger तिलक राज कपूर said...

भरोसा टूटता इसलिये है कभी बना था, इस नश्‍वर संसार में जो कुछ बना है वह एक दिन नष्‍ट हो जाना है, अच्‍छा है जितना जल्‍दी टूट जाये। बनना एक भ्रम था और टूटना इस भ्रम का अंत। एकभ्रम से भरोसा पैदा होता है दूसरे से बिखर जाता है, इसमें ग़ल़त क्‍या है। जब सब कुछ भ्रम ही है तो ग़लती तो भ्रम पालने वाले की हुई न।
टुकड़ा-टुकड़ा हिसाब में लगे रहने से ये बनने और टूटने का क्रम बनता है, समग्रमा में विश्‍वास रखें न कुछ बनेगा न टूटेगा।

ये तो हुई ज्ञान-ध्‍यान के एक और भ्रम की बात अब बात करें आपके आलेख की। आलेख अच्‍छा है।
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tilak raj ji,
sabse pahle to yahan aane keliye aapko dhanyawaad.
aapne daarshanik se vichar likhe hain, par saamanya jiwan mein aisa nahi hota na sir. ye gyan-dharm ki baat hai ki dunia maya hai aur hum nashwar praani jo maya-moh ke bhrum mein uljhe hain. sach agar yahi hai to fir ise bhi galat nahin kah sakte ki dunia ka jo vidhwansh ho raha wo bhi bhrum hai, hamein jo peeda milti wo bhi bhrum hai. par aisa nahi hota sir. vishwaas tootne se insaan bikhar jata hai, fir kitna bhi ved-upnishad ki baat ki jaaye insaan saabut nahin ho pata.
bahut achha laga aapke vichar jaankar aur achha laga ki aapne thoda sa aadhyaatm ka paath bhi yaad karaya. mere aalekh par aapki upasthiti aur sahmati keliye aabhar.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger honesty project democracy said...

दरअसल मनुष्य के अन्दर शैतानी और इंसानी दोनों प्रविर्तीयां होती है जिसके हावी होने में देश और सामाजिक परिवेश का महत्वपूर्ण हाथ होता है | निगरानी और सुधार से ही इंसानियत को बढ़ावा दिया जा सकता है लेकिन ज्यादातर लोग अपनी गलती मानना तो दूर अपनी गलती के बारे में एक बार सोचना भी पसंद नहीं करते जिससे इंसानियत मरती जा रही है और हैवानियत बढती जा रही है |
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sir,
sach hai ki hum kabhi bhi apni galti nahin maante aur sadaiv dosh dusron par madhte hain, jabki mann se jaante hain ki swayam hum galat hain. lekin insaan ka manowigyaan hai ye aur aisa bhi nahi ki aaj ki baat hai, kisi bhi sadi ki baat karen to sadaiv aisa hin prateet hota bas maatra mein antar dikhta hai.
bahut aabhar mere aalekh par aane aur apne kimati vichar dene keliye.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger rasaayan said...

True Bahin ji.....
covered this interesting topic so carefully leaving no stone unearthed.....it is the process of downfall ......
कोई ख़ास समाज या सरकार या समूह दोषी नहीं है, बल्कि समस्त मानवता जिम्मेवार है....
one needs thoughtful introvert thinking, putting the inner voice to purity of relations of all kinds of yesterday, today and tomorrow.....just as a honest duty.....
thanks for the article and making me a part of your post....
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arvind bhaiya,
aapko yahan dekhakar atyant prasannata hui. mere vichar se aapki sahmati mere liye gaurav ki baat hai. bahut sahi kaha aapne ki bhoot, bhawishya aur wartmaan par gahan aatmachintan karne ki aawashyakta hai, aur jiwan ke sabhi paksh par sochna bhi aniwaarya hai. badlaaw ki thodi sambhaawna to zarur aayegi agar hum zara bhi ispar sochen.
apna sneh aur aashish banaye rakhein, aasha rahegi. saabhar.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

sakhi,
bahut sahi kaha ki bina kisi ke kaise jiya jaaye? aur jo jivan se itna juda ho uspar to yakin karna hin hota. par dukh tab hota jab purn vishwas ke sath jise apna maana jaaye aur jiske bina jina mushkil ho, wo vishwas tod jaaye. shayad kuchh udahran hote par isi udahran se hum sabhi aashankit ho jaate. ye aawashyak nahin ki sabhi log aise hon lekin jyadatar hote, faltah yakin ho nahin pata. aur ye bhi sach hai ki jabtak vishwas na ho rishte mein apnapan nahin hota.
achha laga aap yaha tak aai aur meri baato ko samjhi. bahut shukriya.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

11- jenny bahan ..!
hame haarnaa nahi hain
pushp to khilate hi rahenge karodo
kaante hajaaron ho to kya frk padataa hain

12-ISLIYE KAHA JAATAA HAIN KI ..
MARKX + GANDHI =MANVATAA

KISHOR
TUMHARA EK BHAAII
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kishor bhaisahab,
meri kavitaayen hon ya mere blog par mere vichaar, sadaiv aapse mujhe sarahna, sahyog aur sneh mila hai, bahut aabhari hun.
mere lekh ka bahut saarthak aur vistrit vishleshan kiya hai aapne. aapki baaton se main purntah sahmatu hun. aur sabse mukhya aur achhi baat lagi aapka ye kahna...
MARKX + GANDHI =MANVATAA
shayad mere vichaar ke bahut kareeb hain ye donon, waise saiddhantik taur par dono ke vichar vipreet hain, parantu agar ye dono ko sammiliti kar diya jaaye to nihsandeh ek sampurn insaan janm lega.
yun hin sneh ki apeksha rahegi aapse. bahut bahut aabhar aapka.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

pragya ji,
meri lekhni se aapki sahmati mera ahobhaagya. bahut dhanyawaad.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

संजय ग्रोवर Sanjay Grover said...

Gahre vishleshan ke vishay ke vibhinn aayamoN ko aapne ek lekh me sametne ki achchhi koshish ki hai.StrioN ki taqlifoN par to maiN, aap aur sabhi aaj-kal kafi baat-cheet kar rahe haiN, maiN vyaktigat rup se aise purushoN ko bhi jaanta huN jinke sath bachpan me kukarm huya aur baadme ve bhari pratibha hone ke baavzud kuchh nahiN kr paaye..
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sanjay ji,
stree ke haq ki baat hum log karte hain lekin ek sach ye bhi hai ki jab tak stree purush ko ek dusre se jodkar na chalenge aisa hin hoga. stree ke haq ki ladaai mein jabtak purush ka sath na hoga kabhi bhi safalta na milegi. lekin mushkil ye ho jaati hai ki jab bhi koi stree apne haq ki baat karti hai to uske apne ghar ki stree hin uska paanw khinchti hai aur fir purush. sirf purush ko dosh de dena nyaaysangat kabhi na laga mujhe. par ye bhi sach hai ki stree ki aazadi purush kabhi chahta nahin. kyonki warchaswa khatm ho jaayegi fir kispar adhikaar jatayega. waise is baare mein to aap apne article mein bahut achha likhte hain.
jin purushon ke sath dushkarm hota hai wo bhi kamjor hote hain chaahe umra ke hisaab se ya fir samaj mein. mann to stree purush dono ka ek saa hin hota aur vishwas toote to peeda bhi utni hin hoti hai. bahut mushkil gutthi hai, koi sambhaawna nahin dikhti in sab se paar jaane ka.
mere blog tak aap aaye bahut shukriya.

Rakesh Kumar said...

आपकी यह लोकप्रिय पोस्ट आज पहली बार पढ़ी.

बहुत ही अच्छी तरह से आपने 'टूटता भरोसा बिखरता इंसान..' पर अपने सार्थक व दिल
को कचोटते विचार प्रस्तुत किये हैं.

आपकी पोस्ट पर अभी बस इतना ही कहना चाहूँगा कि अविश्वास की जड़ अज्ञान व आसक्ति है.एक सरल और निर्मल हृदय व्यक्ति का सामना जब अविश्वास से होता है तो उसका भरोसा टूट जाता है और उसका मन 'विषाद'से ग्रषित हो जाता है.ऐसे में 'विषाद' बना रहे तो अत्यंत हानिकारक हो सकता है.शायद इसकी चरम परणिति आत्महत्या या क़त्ल जैसे जघन्य कर्मों तक में भी हो सकती है.

इसलिये 'विषाद'पर ध्यान दिया जाना अत्यंत आवश्यक है.इसका एक हल 'विषाद योग' से संभव हो सकता है.श्रीमद्भगवद्गीता में प्रथम अध्याय 'अर्जुन विषाद योग' है.जो 'विषाद योग' के लिए सार्थक चिंतन प्रदान करता है.

अभी टिपण्णी लंबी हो गई है.'विषाद योग' की चर्चा यदि आप चाहेंगीं तो पुन:समय की सुविधानुसार आपसे जारी रखने की इजाजत चाहूँगा.

Madhu Rani said...

वाकई भरोसा टूटने नहीं देना चाहिए...बहुत सही लिखा है जेन्नी।

Choudhry Sunil said...

bahut hi acha laga padh kar jeni ji.
Dhanyvad