Thursday, January 30, 2014

46. 'जय हो' की जय हो!


सलमान खान के फ़िल्मों की एक ख़ास विशेषता है कि इसे हर आम व ख़ास आदमी अपने परिवार के साथ देख सकता है। सलमान द्वारा अभिनीत हर फ़िल्म से हमें उम्मीद होती है- धाँसू डायलॉग, हँसते-गुदगुदाते डायलॉग, ज़ोरदार एंट्री, ज़बरदस्त फाइट, नायिका के साथ स्वस्थ प्रेम-दृश्य, डांस में कुछ ख़ास नया व सरल स्टेप्स, गीत के बोल और धुन ऐसे जो आम आदमी की ज़ुबान पर चढ़ जाए। सोहेल खान ने अपनी फ़िल्म 'जय हो' में लगभग इन सभी बातों का ध्यान रखा है।

'जय हो' का नायक जय एक ईमानदार, संजीदा और भावुक इंसान है। उसका सामना सामाजिक व्यवस्था के ऐसे क्रूर और संवेदनहीन स्वरूप से बार-बार होता है, जिससे आम आदमी त्रस्त है। उसकी सेना की नौकरी सिर्फ़ इसलिए चली जाती है; क्योंकि आतंकवादियों द्वारा बंधक बनाए गए बच्चों को छुड़ाने के लिए वह अपने उच्च अधिकारियों के आदेश की अवहेलना करता है। नौकरी छूट जाने के बाद वह मोटर गैराज में काम करता है। आस-पास हो रहे घटना-क्रम के कारण उसे समाज, गुंडा, आतंकवादी, नेता, मंत्री, भ्रष्ट सरकारी-तंत्र आदि से उलझना पड़ता है और बार-बार मार-पीट करनी होती है। उसका परिवार और उसके मित्र सदैव उसका साथ देते हैं। जय के अपने कुछ नैतिक सिद्धांत और विचार हैं, जिन्हें वह अमल में लाता है और सभी को इस विचार को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करता है। अंत में पापियों का नाश होता है और सत्य की जीत होती है।

जय का विचार है कि किसी एहसान के बदले में ''थैंक यू'' न बोलकर तीन आदमी की मदद करो, और उन तीनों से आग्रह करो कि उस मदद के बदले वे भी अन्य तीन की मदद करें, फिर वे तीन अन्य तीन की। इस तरह इंसानियत का यह सिलसिला एक शृंखला बनकर पूरी दुनिया को बदल देगा। यह एक बहुत बड़ा विचार और सन्देश है जो 'जय हो' फ़िल्म का सबसे सकारात्मक पक्ष है।

सच है ''थैंक यू'' शब्द जितना छोटा है, उसका एहसास भी उतना ही छोटा लगता है। किसी एहसान के बदले में ''थैंक यू'' शब्द बोलकर या सुनकर ऐसा महसूस होता है जैसे एहसान का बदला चुकता कर दिया गया, मानो ''थैंक यू'' शब्द एहसान की क़ीमत हो। यों लगता है मानो ''थैंक यू'' कहना मन की भावना नहीं, बल्कि औपचारिक-सा एक शब्द है जिसे बोलकर एहसानों से मुक्ति पाई जा सकती है। सचमुच, जय के इस विचार को सभी अपना लें, तो एहसानों से वास्तविक मुक्ति मिल सकती है और समाज में इंसानियत और संवेदनशीलता का प्रसार हो सकता है।
 
इस फ़िल्म में सलमान खान न सिर्फ़ बलिष्ठ और ताक़तवर इंसान हैं; बल्कि बेहद भावुक और संवेदनशील इंसान भी हैं। उनके लिए अपना-पराया जैसी कोई बात नहीं। हर लोगों की मदद के लिए वे तत्पर रहते हैं। दूसरों की मदद करने पर ''थैंक यू'' के बदले तीन इंसान की मदद का वादा लेना, और जब उन तीनों द्वारा किसी की मदद के लिए आगे न आने पर जय जिस पीड़ा से गुज़रता है, सलमान ने बहुत अच्छी तरह से अभिव्यक्त किया हैसलमान की संवेदनशीलता उनकी आँखों में दिखती है। सलमान की भावप्रवण आँखें और निश्छल हँसी किसी का भी दिल जीतने के लिए काफ़ी है। चेहरे पर जो मासूमियत है, निःसंदेह सलमान के वास्तविक चरित्र का द्योतक है।
फ़िल्म का हर दृश्य और पटकथा मानो सलमान को सोचकर ही लिखी गई हो। फाइट सीन में कहीं से भी नहीं लगता कि यह बेवजह हो, कथा-क्रम का हिस्सा लगता है। हाँ, इतना ज़रूर है कि मार-पीट और ख़ून-ख़राबे का दृश्य बहुत ज़्यादा है। एक अकेला इंसान कितना भी हौसले वाला या बलशाली हो, बार-बार इतने लोगों से अकेला मारकर जीत नहीं सकता। मार-पीट के लिए गुंडों की फ़ौज पर फ़ौज आती है और अकेला जय सब पर भारी पड़ता है। बस यहीं पर चूक हो गई है फ़िल्म निर्देशक से। ख़ून-ख़राबा के अतिरेक को नज़रअंदाज़ कर दें, तो 'जय हो' एक अच्छी फ़िल्म है।

सलमान के साथ डेजी शाह की जोड़ी ख़ास नहीं जमी है। शायद अब तक सलमान की सभी नायिकाएँ बेहद ख़ूबसूरत रही हैं, इस लिहाज़ से साधारण चेहरे वाली डेजी शाह कुछ ही दृश्यों में ठीक लगी है। सलमान खान की विशेषता है कि नए चेहरों को काम और पहचान दोनों देते हैं; शायद इसीलिए डेजी शाह को लिया हो। टी.वी. के अलावा कई अन्य फ़िल्मी कलाकार जिनकी पहचान ख़त्म हो रही थी, को इस फ़िल्म में बहुत अच्छा मौक़ा मिला है। जितने भी पात्र इसमें शामिल किए गए हैं, सभी कथा-क्रम का हिस्सा लगते हैं, किसी की उपस्थिति जबरन नहीं लगती।

सलमान के फ़िल्मों की एक ख़ासियत यह भी है कि उसके कुछ गीत इतने मधुर और मनमोहक होते हैं कि सहज ही सबकी ज़ुबान पर चढ़ जाते हैं। डांस के कुछ स्टेप्स ऐसे होते हैं, जो आम लोगों को बहुत अच्छे लगते हैं। सलमान की फ़िल्मों में नैना वाले गीत ख़ूब सराहे जाते हैं, जैसे- तेरे नैना मेरे नैनों की क्यों भाषा बोले, तेरे मस्त मस्त दो नैन, तेरे नैना दगाबाज़ रे इत्यादि। इस फ़िल्म में एक और नैना पर गीत- तेरे नैया बड़े क़ातिल, मार ही डालेंगे नैना वाले सभी गीतों के साथ सलमान के स्टेप्स... सच बड़े क़ातिल होते हैं

यह फ़िल्म सिर्फ़ मनोरंजन या सलमान को देखने के लिए, सलमान की दबंग वाली छवि देखने के लिए या सलमान के धाँसू डायलॉग के लिए ही नहीं; बल्कि सलमान की भावुकता, गंभीरता और संवेदनशीलता को देखने के लिए भी देखा जाना आवश्यक है। तीन इंसान की मदद करने के सन्देश को आत्मसात करने और उसे जीवन में उतारने के लिए भी यह फ़िल्म देखनी चाहिए। मुमकिन है इस फ़िल्म को देखकर कुछ लोग ही सही कम-से-कम किसी एक की मदद तो ज़रूर करेंगे, और वे कुछ अन्य की।

धाँसू डायलॉग- ''आम आदमी सोता हुआ शेर है, उँगली मत कर, जाग गया तो, चीर-फाड़ देगा'' गुंडों से भिड़ते हुए जब जय के पास और कोई उपाय नहीं बचता तब चिंघाड़ते हुए वह अपने दाँतों का इस्तेमाल करता है। अहा! क्या चीर-फाड़... बस कमाल है! जय हो!

सन्देशप्रद, स्वस्थ, मनोरंजक, जोशीले फ़िल्म के लिए सोहेल, सलमान, और 'जय हो' की पूरी टीम बधाई के पात्र हैं। 

- जेन्नी शबनम (30.1.2014)
____________________

6 comments:

सहज साहित्य said...

जय हो फ़िल्म पर भी आपने ऐसा लिख दिया कि साधारण और विशिष्ट हर पाठक आत्मीयता स्थापित कर लेता है । काव्य के साथ-साथ जेन्नी बहन का गद्य भी बहुत सजीव और रोचक है। हार्दिक बधाई

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (31-01-2014) को "कैसे नवअंकुर उपजाऊँ..?" (चर्चा मंच-1508) पर भी है!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

ashok andrey said...

पूरी फ़िल्म जय हो पर बहुत ही सार्थक समीक्षा प्रस्तुत की है जिससे हर दर्शक को इस फ़िल्म को समझने में आसानी हो जाती है,बधाई.

PRAN SHARMA said...

FILM ` JAI HO ` PAR AAPKEE SMEEKSHA VAKAEE SRAHNEEY HAI .
AAP SAFAL KAVYITRI TO HAIN HEE
AAPKA IS VIDHAA MEIN BHEE SAFAL
SAABIT HUEE HAIN . BADHAAEE AUR
SHUBH KAMNA .

Sumit Pratap Singh said...

जय हो!

सीमा स्‍मृति said...

जेन्‍नी जी यह लेख पढ़ कर मजा आ गया। मै अभी यह फिल्‍म देख नहीं पाई थी पर मेरे लिए तो पूरी फिल्‍म सजीव हो गई। मैं आप की बात से सहमत हूँ कि फिल्‍म का और किदार का क्‍या प्रभाव पड़ा उसका उदाहरण अब मुझ से सुनिये तो आप के लेख और फिल्‍म कि सार्थकता पर आप भी हैरान हो जाएंगी। अभी थोड़ी देर पहले मैं बाजार गई थी अपने साइड अटैचेमेंट वाले टू व्‍हीलर पर क्‍योंकि दोंनो पांव में पोलियो के कारण वो बहुत बड़ा सहारा है। यह स्‍कूटर साइड अटैचमेंट के कारण थोड़ा ज्‍यादा भारी सा हो जाता है। मैं बाजार में इस मोड़ नहीं पा रही थी।तभी पास खड़े एक लड़के को मैंने कहा, ‘बेटा जरा स्‍कूटर को सीधा कर दो। उसने बिना एक पल गवाये स्‍कूटर सीधा कर दिया। मैंने उसे थैक्‍यू कहा। वो बोला, नहीं मैडम दिन में तीन लोगों की हैल्‍प करनी चाहिए। मैंने कहा, क्‍या मैं हैरानी से देख रही थी कि क्‍या कह रहा है । कुछ समझ नहीं आया और घर आ गई । अब आप का लेख पढ़ा तो सब स्‍पष्‍ट हो गया। देखा आपके लेख और फिल्‍म का कमाल।