Sunday, December 6, 2009

1. राम जन्मभूमि : बाबरी मस्ज़िद

राम जन्मभूमि : बाबरी मस्ज़िद का विवाद शुरू हुए आज कई दशक बीत चुके हैं । पर बहुत कुछ ऐसा है जो मेरे ज़ेहन में आज भी जाग रहा है। 1975 या 1976 की बात होगी जब मैं पहली और आखिरी बार अयोध्या गई थी। यूँ तो उम्र और सोच के हिसाब से उन दिनों ये सब समझ नहीं था कि मंदिर किसका और मस्ज़िद किसका, क्यों मस्ज़िद के बड़े-से गेट पर सैनिक तैनात हैं, क्यों इतनी पाबंदियाँ और जाँच, मंदिर तो जा सकते पर मस्ज़िद नहीं, राम मंदिर में ऐसा क्या है जिसकी वजह से ये सब झमेला। पर ये सब सवाल मन में दबे रह गए; क्योंकि जिस उम्र में ये सवाल मन में उठे थे, लगा कि शायद मैं कुछ गलत सोच रही हूँ और अपने पिता से कुछ न पूछ सकी थी।


बाबरी मस्ज़िद को ध्वस्त हुए आज 17 साल बीत गए, लेकिन वो ज़ख्म आज भी उतनी ही पीड़ा दे रहा जितना उस दिन हुआ था। आज भी याद है वो दिन, जब टी.वी. में मैंने वो दृश्य देखा, आँखों से अविरल आँसू बहने लगे।मुझे याद आता है वो दिन जब 1989 में लाल कृष्ण आडवा आडवाणी ने राम जन्म भूमि के विवादित स्थान पर राम मंदिर बनाने के लिए सम्पूर्ण देश से राम-शिला इकत्रित करने का आह्वाहन किया था। इसी दौरान भागलपुर में साम्प्रदायिक दंगा हुआ, जिसमें न सिर्फ भागलपुर शहर बल्कि कई गाँव के नामो निशान तक मिट गए। शहर का खौफ़नाक मंज़र, कर्फ्यू में भी जहाँ-तहाँ हो रही हत्या, दहशत में हर इंसान, वर्षों की दोस्ती महज़ पल भर में दुश्मनी में बदल गई। मेरा अपना व्यक्तिगत जीवन इतना ज्यादा प्रभावित हुआ कि आज भी उन दिनों की यादें, जो महज़ ज़ख़्म की तरह नहीं जो वक़्त के साथ भर जाए बल्कि नासूर की तरह है, बार-बार मन में रिसता रहता है। दंगे में बीते वो खौफ़नाक दिन, दंगे के बाद लगभग 6 महीने तक खानाबदोश-सा जीवन जीने की विवशता, उस घर में रहने की व्यथा जिसमें 22 निरपराध लोग मारे गए थे। मैं आज भी नहीं भूल सकती उन दरिंदों को जिनकी वजह से ये सब हुआ था तथा राम के तथाकथित उन भक्तों को जिन्होंने इंसानों को हैवान बनाया था।


आज दैनिक जागरण में 'राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ' के संघचालक मोहन भागवत का बयान कि ''उस विवादित ढाँचे को ढ़हाने पर अफ़सोस प्रकट करने का सवाल ही पैदा नहीं होता'', पढ़कर मन बहुत आहत हुआ। क्या जिस एक घटना से इतने निरपराध लोगों की जान गयी, उस एक घटना पर कोई अफ़सोस नहीं? शर्म है!

जिन लोगों ने बाबरी मस्जिद को ढ़हाया वो कोई आम इंसान नहीं थे बल्कि कुटिल राजनीतिज्ञों के अशिक्षित युवा मोहरे थे जिन्हें मज़हबी उन्माद का नशा पिलाकर वो राजनेता सत्ता और वर्चस्व स्थापित करना चाहते थे। देश के बँटवारे के बाद तथा बाबरी मस्ज़िद के विध्वंस से जो धार्मिक उन्माद और ख़ूनी हवा चली, आज भी कुछ लोगों को आहत कर रही है, तो वहीं कुछ लोगों को सियासी खेल का एक आधार दे रही है। जब भी धार्मिक भावना भड़काई जाती है तो उसका कुपरिणाम गरीब अशिक्षित वर्ग ही भुगतते हैं, क्योंकि गरीब और अशिक्षित वर्ग पर 'धर्म' को लेकर पूर्वाग्रह की भावना आसानी से विकसित की जा सकती है। ऐसी सोच को जब राजनेता या पढ़ा लिखा तबका 'इस वर्ग' तक पहुँचाता है तो सहज ही वो इससे ख़ुद को जोड़ लेते हैं, और बाबरी मस्ज़िद के विध्वंस जैसी घटनाएँ सामने आती हैं। क्योंकि इंसान की सबसे बड़ी कमजोरी अब धर्म बन चुका है।


बाबरी मस्ज़िद के ध्वस्त होने पर कोई कैसे खुश हो सकता है, ये सोचकर ही आश्चर्य होता है मुझे। बाबरी मस्ज़िद महज़ एक मस्ज़िद नहीं बल्कि अपने युग की निशानी थी, देश का एक धरोहर, जब हम सब नहीं थे। ये तय बात है कि जिसकी भी हुकूमत होती है वो अपने सोच को स्थापित करता है, चाहे वो सतयुग की बात हो या कलियुग की। जहाँ तक राम के जन्म-स्थान का प्रश्न है तो इस सन्दर्भ में बहस ही आधारहीन है। हिन्दू धर्म सनातन धर्म है और सबसे प्राचीन भी, जिसमें हज़ारो देवी देवता हैं। अगर इस सत्य को मान भी लें कि उसी जगह पर राम का जन्म हुआ, तो क्या उस मस्ज़िद में राम का अंश नहीं? बाबर नें मंदिर को ढ़हा कर मस्ज़िद बनाया तो संभव है कि राम की यही मंशा रही हो राम ईश्वर के ही अवतार हैं; और मान्यता के अनुसार बिना ईश्वरीय इच्छा के एक पत्ता तक हिल नहीं सकता, ईश्वर सर्वव्यापी है।


सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जिस कार्य से विवाद हो या किसी खास कौम को आहत पहुँचे, फिर उस कार्य को क्यों किया जाए। मज़हब में आस्था व्यक्ति की अपनी सोच है, जिसे परंपरा कहें या विश्वास, किसी पर थोप नहीं सकते। जब हमारा कोई भी धर्म या मज़हब हिंसा करना नहीं सिखाता तो फिर धर्म के नाम पर ये वर्षों का खेल किस अंजाम तक पहुँचेगा? सच ये है कि इसका अंदाज़ा राजनीतिज्ञों को तो है पर उस आम आवाम को नहीं जिनके बल पर ये क्रूरता का खेल निरंतर खेल रहे हैं।बाबरी मस्ज़िद का ध्वस्त होना ऐसे ही है जैसे एक भाई की पसंद की जगह को सदा के लिए मिटा देना और उसके दुःख पर दूसरे भाई का ताली बजाना और उसके दुःख का तमाशा देखना!


बाबरी मस्ज़िद अब तो नष्ट हो चुका, लेकिन उसको लेकर आज भी घिनौना खेल जारी है। सच बात यह है कि कोई चाहता भी नहीं कि इन बुरी यादों को भुला दिया जाए और मानसिकता में बस चुकी नफ़रत को मिटाया जाए।अगर वह राम जन्म भूमि है या फिर बाबर के द्वारा स्थापित मस्ज़िद; पर अब तो दोनों के ही निशान मिट चुके, अब तो उस पर हो रही राजनीति बंद कर देनी चाहिए। दुनिया की हर वो चीज़ जो एक बार बन चुकी है उससे किसी न किसी का मन जुड़ जाता है, और जब उसे मिटा दिया जाता है तो दुःख और पीड़ा दे जाता है। अब इन यादों को सहेजते हुए उस विवादित स्थान को एक धरोहर की तरह दर्शनीय स्थल बना देना चाहिए; जिसे हर इंसान देख सके, जहाँ कभी राम ने जन्म लिया होगा या फिर पवित्र अजान गूँजती रही होगी।

- जेन्नी शबनम (6. 12. 2009)


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39 comments:

shikha varshney said...

जेन्नी जी ! ये लड़ाई न तो किसी धर्म -प्रांत की है न ..२ कोमों की ..ये है राजनीति...सिर्फ घिनोनी और स्वार्थपरक राजनीती ,जिसमें आहात होती हैं एक इंसान की भावनाएं फिर चाहे वो हिन्दू हो या मुसलमान या फिर कोई और.
आज भी आम लोगों से पूछने जाइये उनके मन में मंदिर या मस्जिद के लिए कोई दुर्भावना नहीं..बल्कि भारत की ८०% जनता तो बस अपने बच्चों के लिए २ जून की रोटी चाहती है.लड़ते लोग नहीं, लड़ते हैं ये नेता.
ये नया ब्लॉग का नाम बहुत खूब रखा है आपने बधाई स्वीकारें

Anonymous said...

jeeny shabnam , apne theek likha hai. is desh ka durbhagya hai ki rajneta keval un muddon ko bahs ka vishay banate hain jinse unke vote-bank saurakshit rahen. desh varshon se gareebee se joojh raha hai, mahangai bhookhe so jane ko majboor kar rahee hai, yah masjid-mandir ke gaat gaa rahe hain.
apne theek kaha hai-इंसान की सबसे बड़ी कमजोरी अब धर्म बन चुकी है ,rajneta ise bhuna rahe hain. iska yahee hal 'एक धरोहर की तरह दर्शनीय स्थल बना देना चाहिए जिसे हर इंसान देख सके.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

शिखा जी,
मेरे नए ब्लॉग के पहले लेख पर आपकी पहली प्रतिक्रिया मिली, मेरा सौभाग्य|
मेरा भी यही मानना है कि देश की आम आवाम को दो वक़्त की रोटी और चैन की ज़िन्दगी मिल जाये इससे ज्यादा वो नहीं चाहते, लेकिन उनकी इसी ज़रूरत का फायदा ये राजनीतिज्ञ धर्म की आड़ ले कर उठाते हैं| आपका बहुत धन्यवाद, आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए बहुमूल्य है| आभार!

रश्मि प्रभा... said...

यह बात तो आज तक मैं भी नहीं जान पाई.........वक्तव्य में सभी कहते हैं, हमारे संविधान में है-सर्वधर्म समान है .......
खैर, मेरा यह मानना है कि कोई भी शिक्षित इन बातों के लिए नहीं लड़ता ........
शिक्षा- मानसिक स्तर्यीय !
धर्म के नाम पर, न किसी हिन्दू ने ये कदम उठाया, न मुसलमान ने........यह एक हठ की लड़ाई थी, अज्ञानियों के हाथों-जो लड़ना जानते हैं, प्रेम,सौहाद्र की
बातें उन्हें बेकार लगती हैं ! और इस विध्वंस को वे रूप देते हैं, उसकी चपेट से दूर रहते हैं !

ρяєєтii said...

जेन्नी दी सबसे पहले तो आपको इस "सांझा-संसार" की बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाये....!

आज का आम आदमी तो बस यही कहना चाहता है की
"मैं न हिन्दू, न मुसलमान मुझे जीने दो,
दोस्ती है मेरा ईमान मुझे जीने दो ..."

पर हमारे इस प्रजास्ताक देश में प्रजा की नहीं चलती है ... जिनकी चलती है वही हर मसले में अपनी रोटिया सेकता नज़र आता है, फिर वो मसला 6th dec वाला हो या 26 nov...!

दिपाली "आब" said...

jenny di..

blog jagat mein sanjha sansaar ki bahut bahut badhai..hhihihii...

i totaly agree wid preeti di.. jinki chalti hai wah har masle mein apni rotiyan sekhta hai..
aur yeh sab dange fasaad.. yeh sab political drame hain..
aur duniya ki aankhon mein dhool jhonkne ka tareeka..

great write up.

Ashk said...

साझा-संसार का स्वागत है।
पहली पोस्ट ही सामयिक है। विवादस्पद ढांचे और राम-जन्म भूमि के ढहने के वर्षों बाद भी राजनेता इसे जीवित कर देते हैं। हम टी वी और अख़बारों के मध्यम से प्रति वर्ष फिर इस पर चर्चाएँ सुनाने को बाध्य हो जाते हैं। संसद में बहस बढ़ते दामों पर होनी चाहिए , वहाँ इस विषय के गढ़े मुर्दे उखाड़े जा रहे हैं। दो धर्मावलम्बियों में फिर तनाव उत्पन्न हो रहा है।
आपने इस विषय से आपने ब्लॉग का श्रीगणेश किया। समस्या का हल भी सुझाया । काश ! राजनेता भी ऐसा ही सोचते।

डॉ. जय प्रकाश गुप्त said...

Viewed and read the posting. The pointed reaction needs time and therefore not now, whenever I have enough time to type. But one thing is certain that I disagree to your viewpoint. Anyway, Congrats on your coming to blogwriting.
Jai Prakash Gupta (Dr.)

न्यू अब्ज़र्वर पोस्ट हिन्दी दैनिक said...

janny ji
namaskar
aaj tak ham is baat ke liye ladte aa rahe hain ki,ham logon ka saajha chulaha hai.hmari sanskriti aur parmprayen sundar aur sresth hain.jiski wajah se duniya men bhi hamara naam hai-lekin aap sirf kisi ek party yaa neta ko dosh nahin de sakti.aaj jra poore bharat ki rajniti par nazar dalen sab ke sab ek hi theli ke chatte-batte hain.sab party insaano ke aur dharmon ke thekedaar bane huye hain.ek neta marne ki baat karta hai to doosra jeene aur sangharsh ki baat karta hai-yeh sab kiya hai?yhaan tak ki apne aap ko budhhijivi kahlane wala bhi to in rajnetaon ke haathon hi to khel rha hai.aap ka dard bhi aam dard hai .ham log likhte hain rote hain,tarpte hain.aur yeh neta log chahye kisi bhi party ke kiun na ho hwa men ham logon ki koshis ko uda dete hain.
aap ka lekh aaj bhi sarthak hai aur kal bhi gambhir rahega aur sarthak bhi--bdhai.
.......arif jamal......
editor/publishr--new observer post--hindi daily.

Abha Khetarpal said...

Jenny ji,
Apke blog par apki pehli posting ke liye apko dheron badhayi....
Aapne ek bahut hi mahatvapooran aur samayik vishay par leh likha hai...
bahut kuchh sochne par majboor karta hai apka ye lekh...
bhavishya me bhi aapke dwara rachit aise hi lekhon ka intezaar rahega...
yunhi likhti rahiye...
Abha Khetarpal
News Editor
New Observer Post Hindi Daily

डॉ. जेन्नी शबनम said...

indu puri goswami ji ne is lekh par apni pratikriya mujhe bheji hai...

indu puri goswami to me
show details 17:03 (22 hours ago)


जब भी साम्प्रदायिक दंगे हुए है ,क्षति दोनों पक्षों को उठानी पड़ी है.
नौजवानों को उकसा कर मोहरा बना कर ये सब किया जाता रहा है .अफ़सोस तो तब होता है धर्म के ठेकेदारों या उनके रिश्तेदारों मे से कोई वहां नही मारा जाता या मारा गया ,क्यों ?मगर आम janata इतनी सी बात क्यों नही समझती की धर्म के मर मिटने की बात करने वाले स्वयं या उनके अपने बच्चे उस वक्त कहाँ चले जाते हैं ?
ना मंदिर बने ना वहां ना मस्जिद कोई
एक विद्या का मन्दिर (स्कुल)बनाया जाये
हर धर्म प्यार करने की सीख देता है
बच्चों को सिखाया जाये ,आज नही तो कल
नया सूरज उगेगा,मानव धर्म की बात करेगा
सिर्फ और सिर्फ इन्सान बन के रहेगा

डॉ. जेन्नी शबनम said...

rama ji ne is lekh par apne vichar bheje hain...


r k to me
show details 18:31 (20 hours ago)

Aapne thik kaha hai. Ye siyaasat ka khel ban k reh gaya
Jab tak Ye siyaasat ki nazar me na tha tab na koi aisa
Kuch bhi na tha. Jisne jo achha lagta hai wo jaata tha|
Kisi aur ne galti ki aaj hum usko ko baraabar Bata rahe hain
Kya hum bhi wo he kaam nahi kjar rahe jo kis ne pehle ki th
Haan rahi baat to Raam aur rahim ki hai to
Raam ko bhi rahim ne he Khuda maana hai
Dekha jaaye Janam huay shishu ko kya pata wo
kis com ka hai, Jab tak k koi usko bata na de;
Isnaaniyat me aaga laga rahi aaj siyaasat
aur te mool hai Aaj kursi paa ne ka
Fir bhi hum padhe likhe log ye sab. Jaankar bhi
unhe ukhaad kar fenk kyun nahi dete?
jo DHarama k Haqdaar kehlaate hain

Shayad hum sab ye samjh kar bhi na samajh ban rahe hain..
Waise aape thik he likha hai. Bahut khub .
regards RK
Mai post nahi kar paaya aapke Blog me iske liye khshama chaahta hun
Kyunki usme post kaise karna hai pata nahi


Friends Korner:
maine padha wo sab aapke blog me. Achha laga ki aapne apne khayalon ki smavesh karke
Badi sanvedan sheel baat ko bahut sehajta k saath poorna roop me lafz k sahare utar siye
. Aapne is bhayya ko proud kiya Jenny
I m proud of you. Bhayya...rk

डॉ. जेन्नी शबनम said...

kishor kumar khorendra ji ne apne vichaar bheje hain...

अगर वो राम जन्म भूमि है, और बाबर के द्वारा स्थापित मस्ज़िद, पर अब तो दोनों के हीं निशान मिट चुके, अब तो उस पर हो रही राजनीति बंद कर देनी चाहिए| दुनिया की हर वो चीज़ जो एक बार बन चुकी है उससे किसी न किसी का मन जुड़ जाता है, और जब उसे मिटा दिया जाता तो दुःख और पीड़ा दे जाता| अब इन यादों को सहेजते हुए एक धरोहर की तरह दर्शनीय स्थल बना देना चाहिए जिसे हर इंसान देख सके, जहाँ कभी कोई राम जन्म लिया होगा या फिर पवित्र अजान गूंजती रही होगी|

bahut hi satik salah di hai aapne

naye blog ke liye bhadhaaii
shubh kamna

mai aapka follower ban gaya hu
blog me dekhe

apni pratibha ka sadupyog jan hit me karana hi chaahiiye

hame pichhe nahi hatna chahiye

बूंद बूंद से अमृत का घड़ा भी भर ही जाएगा
इसी आशा के साथ
तुम्हारा दोस्त .बड़ा भाई और आपकी रचनाओं का एक प्रशंसक

किशोर

Unknown said...

Agar hum is mudde ko dharmik maane to kisi sarthak ant par nahi pahunchte.Choonki,dharm nitant vyaktigat cheez hai isliye is vivad ko ( Babri Majid or Ram janmabhoomi) samoohik aastha ka mudda banaya jaana hi ghalat hai!

Vishwa me dharmik aastha ko chhudra swarth ke liye istemal karne ka itihaas bahut purana hai.RSS ho ya Muslim League ho ya Pakistan ki andarooni rajneeti ho, Afgahnistan ho ya Taliban ya middle-east ya Turkey ho ,sabhi jagah dharm ka istemaal satta aur sansadhano ke dohan se juda raha hai.

South Asia ki adhunik rajneeti me bhi rajneetigyon aur dharm ke thekedaron dwara dharm ke istemaal ke mool me unke astitwa ka sankat aur unki swarthparta hi hai- jo anek chhal-chadmon ke madhyam se aam aadmi se jod dee jaati hai.
Ye log naadaan, naasamajh aur aasani se bhulawe me aa jane wale aam aadmi ko apna auzar bana lete hain aur aag laga kar us par apni rotiyan senkte hain.

Mandir ya masjid ki rajneeti karne wale hamare samaj ki prathmiktaon se hame vimukh karte hain taaki hum unke peechhe-peeche chalen aur unki swarthpoorti me sahayak bane.

Dukh ka vishay hai ki aazadi ke 6 dashak baad bhi abhi humari aadhi janata nirakshar hai aur hamare in netaon, panditon aur mullaon ko nahi samajh paati. Aisi haalat banaye rakhne me hi in madariyon ka bhala hai jo badi chalaki se apni bhoomika adal-badal kar madari aur jamoore ka khel khel kar janata ko moorkh bana rahe hain.

Dhyan se dekhiye to pata chalta hai ki in logon ne poore samaj ko kitni chalaki se, jaatiyon, up-jaatiyon,kshetron- up-kshetron, aur dalgat rajneeti me baant diya hai. Ab kisi vyapak janhit ke samoohik mudde par poore samaj ko jod paana kathin ho gaya hai.

Agar aisa na hota to 17 saal me Liberahan ayog karondon rupaye chaatne ke baad kuchh sarthak analysis de deta. Ayogon ka khel bhi inhi logon ki sochi samjhi chaal hai jis se hum sab mool muddon par unhe na gher paayen.

Lekin ab hame sachet ho jana chahiye. Asli muddon me pramukh desh ki niraksharta, garibi, berozgari, bhrashtachar, kala dhan aur short-cut ki culture ka panapna hai.

Vastav me ye koi mudda tha hi nahi, banaya gaya hai.Desh me itni masjiden aur itne mandir hain ki puja karne wale hi kum pad jaayenge.Itne par bhi Hindu log ghar banate waqt usme bhi ek chhota mandir bana lete hain- jaise bhagwan unki car, tijori ya wardrobe ho!

Hame mandir-masjid mudde par nahi apitu is mudde par ho rahi rajneeti ko benaquab karne par apna dhyan aur shakti lagani chahiye.

- Aaditya . My orkut Id: softpinch@gmail.com

Unknown said...

जेन्नी जी आपने जो एक बात कही हैं अब इन यादों को सहेजते हुए एक धरोहर की तरह दर्शनीय स्थल बना देना चाहिए जिसे हर इंसान देख सके, जहाँ कभी कोई राम जन्म लिया होगा या फिर पवित्र अजान गूंजती रही होगी| ये हमने अब से पहले कभी नहीं सुनी थी |जब तक देश में धर्म को लेकर धंधेबाजी ख़त्म नहीं होगी ,बाबरी मस्जिद जैसी घटनाएँ होती रहेंगी ,साहसिक लेखन के लिएबधाई .

Unknown said...

Aavesh ji,

Achchhi soch wale desh ke bahut saare logon ki rai me Ayodhya vivad ke shantipoorna hal hetu is vikalp ka pakshdhar hai.

Yadi, is par aam sahmati ban sake aur hamari pradesh aur kendra ki sarkar ka mat ban paaye to ye ho sakta hai. Aisee sthiti me mera sujhav ye hoga ki:

* wahan bachchon ka ek bahut bada park banaya jaaye,

* Is park me unke liye ek bahut achchhi library ho,

* unke sanskritik vikas ko gati dene hetu karyakram ayojit karne ke liye ek bada Auditorium aur bahut saari Art Galleries hon,

*unke sharirik vikas ke liye khel kood ki sabhi suvidhayen hon aur Khel-pratyogitaon ke liye stadium ho,tatha

* Delhi ke Pragati maidan ki Tarah exhibitions ayojit karne ke liye alag se structure banaya jaaye.

Aaditya Singh (softpinch@gmail.com)

شہروز said...

आवेश की स्क्रैप-बुक में आपके इस ब्लॉग का पता मिला.और दौड़ा चला आया.सिर्फ इसलिए भी की साझा-सरोकार के लिए मैं भी संघर्षरत हूँ.इस नाम से एक ठिकाना भी बनाया है.
खैर! आपके साहस की दाद देता हूँ!बहुत खूब लिखा है आपने.लेकिन किसके लिए.कौन सुनता है.किसे सुनाएँ.आज तो लोग गलियाने में भी गुरेज़ नहीं करते.अपने रचना-संसार पर अभी ही कुछ दिनों पूर्व -नाम तो हमको भी अपने कातिलों का याद है- लिखा था.खूब बजाय गया मुझे.
लेकिन जानती हैं, मैं घबराया नहीं!और आप भी न घब्रायेंगी,
पुन:मुबारक बाद!

डॉ. जेन्नी शबनम said...

MEHTA AK Ji,
मेरे लेख को आपने समय दिया और बहुमूल्य प्रतिक्रिया द्वारा मेरी बात को सराहा है, मेरे लिए बेहद ख़ुशी की बात है| धर्म से अब आस्था का कोई सम्बन्ध रह हीं नहीं गया है, महज राजनीति और एक दूसरे को आहत पहुंचाने का ज़रिया बनता जा रहा है| अमूमन सभी शिक्षित वर्ग इसे समझते फिर भी देश की दुर्दशा बढती जा रही| कोई हल नहीं दीखता, महज़ अफ़सोस हीं कर पाते हैं हम सभी| आपका बहुत आभार मेरे विचार आपको उचित लगे| धन्यवाद!

डॉ. जेन्नी शबनम said...

रश्मि जी,
आप सही कह रही हैं कि कोई भी शिक्षित मज़हबी द्वेष नहीं रखता, अज्ञानियों द्वारा ये सब किया जाता| पर सबसे बड़ी समस्या यही है कि कथित शिक्षित महज़ डिग्रियों से शिक्षित हैं, विचार से शिक्षित होते तो देश की आज़ादी के इतने साल बाद भी उन्हीं परिस्थितियों में देश नहीं होता जैसा आज़ादी से पूर्व था, बल्कि स्थिति और भी दयनीय हो गई है| मेरे विचार से आपका सहमत होना मेरे लिए ख़ुशी की बात है| मेरे लेख पर आपने अपना वक़्त और बहुमूल्य वक्तव्य दिया, मन से आभार आपका| धन्यवाद!

डॉ. जेन्नी शबनम said...

प्रीती,
यही तो हर आम इंसान को चाहिए दो वक़्त की रोटी और चैन की नींद| पर इस रोटी केलिए हीं धार्मिक भावना से खिलवाड़ कर ये तथाकथित धर्म के ठेकेदार अपनी मंशा पूरी करते, चाहे धर्म परिवर्तन की बात हो या आतंकी गतिविधि हो या दंगा फसाद हो| मेरे लेख पर आपके विचार मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं, आपका बहुत बहुत धन्यवाद!

डॉ. जेन्नी शबनम said...

दीपा,
तुम मेरी बात को समझ सकी, बेहद ख़ुशी हुई| हर आम इंसान इसे समझता फिर भी उनके शिकंजे में फंस हीं जाता, राजनेता हों या धर्म के ठेकेदार अपनी चाल में कामयाब होते और देश में ऐसे हादसे होते रहते| मेरे लेख तक आने और अपनी प्रतिक्रिया देने केलिए तुम्हारा शुक्रिया|

Unknown said...

nice

डॉ. जेन्नी शबनम said...

ashok ji,
is mudde par mere vichaar aur salaah aapko pasad aaye, behad khushi hui. jin baaton ka ab koi auchitya nahin, aise dukhad muddon ko ukhaad kar behad zaruri baaton se aam janta ko bhatkaane ki saajish hai. kaash ki raajnetaon ke sath hi aise bhatke dimaag ki janta bhi is baat ko samjh paati. aapka bahut aabhar yahan aane aur meri baat ko samajhne keliye.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Dr.jaiprakash ji,
aap mere blog par aaye yahi bahut khushi ki baat hai. aapse meri lambi-lambi bahas aise saamaajik vishayon par kai baar ho chuki hai. aapse mere vichaar mein buniyaadi bhinnata hai. isliye aapse is vishay par samarthan ki ummid nahin rakhti, parantu is samasya ke hal ke liye aap sabhi se sasamman nivedan zarur karti hun ki kuchh saarthak sochen taaki ab aur isase judi hinsaatmak ghatnayen band ho. aakhir kab tak is ghaaw ko ubhaar kar swarthpurti ki jati rahegi, chaahe neta ho ya isase jude log.
aapke vichaar ki prateeksha rahegi, saabhaar dhanyawaad.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

arif sahab,
kisi ek party ki baat hin nahin, aaj har party ka charitra ek saa hai. mazhab hamari kamjori hai tabhi to angrejon ne iska faayada uthaaya aur desh bata. usi raah par chal kar takreeban sabhi neta aam janta ko aapas mein lada kar apna fayada uthaa rahe. aaj aam janta ke jaagruk hone ki zarurat hai, agar aam janta unka sath na de to koi bhi mazhab ke naam par kutil chaal na chal sakega aur na hi unko mohra bana kar apna swaarth pura kar sakega.
aashcharya hota ki ek taraf hum pragati ki baat karte hain to dusri taraf soch ka dayara itna sankuchit ki dusre mazhab ke log ko sama nahi paate. mazhab to nitaant vyaktigat soch hai, jiwan ke prati ek drishtikon, ismein aapsi ranjish kyu, ye main aajtak samajh na saki.
aap mere lekh ko samjhe mere liye behad khushi ki baat hai. aapse sadaiv uchit pratikriya ki ummid rahti hai. saabhaar dhanyawaad.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

abha ji,
mere blog par aap aai aur meri baat ko samjhi, mere liye behad khushi ki baat hai. ummid hai ki aap yun hin mere vichaaron ko padhne aur apni bahumulya pratikriya ke sath sadaa mera sahyog karti rahengi. meri to hamesha yahi koshish rahti hai ki sampurn samaj mein aman chain rahe, aur main kisi bhi tarah ismein apni saarthak bhoomika nibhaa sakun. yaha aane aur mujhe samajhne keliye bahut aabhar aapka.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

इंदु जी,
मेरे लेख पर आपकी प्रतिक्रिया पढ़ कर बेहद ख़ुशी हुई| सच कहा आपने कि धार्मिक उन्माद में जो मारे जाते उनमें ये धर्म के ठेकेदार या उनके अपने कोई नहीं होते, सदा आम आदमी मारा जाता, फिर भी आम लोग ये बात क्यों नहीं समझते| आपका सुझाव बेहद पसंद आया, अगर उस विवादित स्थान पर एक विद्यालय खुल जाये तो अति उत्तम हो, हर बच्चों में एक सच्चा इंसान होता, और सुनहरे भविष्य की हम उम्मीद कर सकते हैं| आपका बहुत आभार यहाँ आने और सार्थक प्रतिक्रिया द्वारा एक अच्छी दिशा की दिखाने केलिए| धन्यवाद!

डॉ. जेन्नी शबनम said...

रामा भैया,
यही तो समझ की बात है, जिस गलती को कभी किसी ने किया था उसका बदला किसी और से लेना जो कुछ किया हीं नहीं, और वो भी उन बातों केलिए जिसका जीवन में कोई औचित्य हीं नहीं| धर्म तो मन की बात है, जिसे जन्म लेने के बाद हम बच्चों पर थोपते हैं, न कि जन्मजात कोई बच्चा मज़हबी होता| आज तक इन सवालों का जवाब नहीं मिला, कि मज़हब मानो या कि न मानो इसमें किसी और को क्या आपत्ति, और क्यों जब कोई खुद को धार्मिक कहता तो मज़हब की बात लाता| जाने कब लोग धर्म और मज़हब को समझेंगे? मेरी बात आपको अच्छी लगी मेरे लिए ख़ुशी की बात है| यकीन है आपका स्नेह और आशीष मुझे मिलता रहेगा, और यूँ हीं आपसे दिशा निर्देश की उम्मीद भी रहेगी| बहुत धन्यवाद!

डॉ. जेन्नी शबनम said...

किशोर जी,
मेरी कविता हो या मेरे लेख आप सदा मेरा हौसला बढ़ाते रहे हैं| बेहद ख़ुशी हुई आपके विचार जानकार जो आपने प्रतिक्रियास्वरुप लिखा है...
''बूंद बूंद से अमृत का घड़ा भी भर ही जाएगा''
बहुत सही कहा आपने की बूँद बूँद से अमृत का घड़ा भर हीं जायेगा| आशा और उम्मीद तो ज़रूर है कि कोई दिन ऐसा अवश्य आयेगा जब दुनिया में अमन-चैन होगा भले हम हों या न हों| कुछ ज्यादा न सही लेकिन कोशिश तो ज़रूर करती हूँ कि समाज के हित में थोड़ा भी कुछ कर सकूँ| आपका आशीष ऐसे हीं मिलता रहे उम्मीद रहेगी| यहाँ आने और अपने विचार देने केलिए धन्यवाद!

डॉ. जेन्नी शबनम said...

आदित्य जी,
बहुत सही कहा आपने, ये विवादित मसला आस्था का मुद्दा हीं नहीं है| धर्म नितांत व्यक्तिगत बात है, इसे किसी मत या सम्प्रदाय से जोड़ना हीं गलत है| आज आतंकी गतिविधियों की बात करें या तालिबान की, या फिर कई देशों में एक संप्रदाय के होते हुए भी अलग मत को मानने वालों की, या अपने देश में जहाँ मज़हबी चाल की गुंजाइश नहीं फिर जाति और उपजाति को भड़काए जाने की| कभी भाषा को मुद्दा बनाया जाता तो कभी क्षेत्र को| कभी धर्म परिवर्तन तो कभी परंपरा को मुद्दा बनाया जाता|
इन सभी के पीछे शासन सत्ता की भूख़ के अलावा कुछ भी नहीं| आश्चर्य है कि बाबरी मस्जिद विध्वंश को कैसे कहा जाता कि ये साजिश नहीं थी, अब और क्या साजिश हो सकती जब रथ यात्रा निकाला जाता, राम शिला इकठ्ठा किया जाता, उसी विवादित जगह पर मंदिर निर्माण के लिए भड़काया जाता| और इन सबके बाद लिब्राहन आयोग पर करोड़ो खर्च के बाद भी बात वहीं की वहीं| कौन थे साजिश रचने वाले, किनके इशारे पर ये हुआ, हर आम जनता जानती है, फिर इसपर क्यों बहस| भीड़ की अपनी कोई सोच नहीं होती ये राजनेता भी जानते, और इसका फायदा उन गरीबों और नासमझों को बरगला कर एक भीड़ बना देते, जिन्हें राम या अल्लाह के नाम पर उकसा कर उनकी अपनी ज़रूरत भूख़ और शिक्षा से महरूम करते, और ऐसे मुद्दों में मरने और मारने केलिए महज एक शारीर की तरह इस्तेमाल किये जाते| देश हीं नहीं दुनिया की इस अफसोसजनक स्थिति पर मूक बने हम सभी बस यूँ आपसी चर्चा के बाद अपने अपने काम में व्यस्त हो जाते|
कहीं से सुधार की कोई गुंजाइश नहीं दिखती|
आपकी प्रतिक्रिया जानकार बेहद ख़ुशी हुई, सभी अपने सोच को यूँ विस्तृत करें तो बहुत सी समस्याएं हल हो जाये| आपका बहुत आभार, मेरी बात को आपने समझा और अपने बहुमूल्य प्रतिक्रिया द्वारा मुझे समर्थन किया| आपके विचार जानकार देश के भविष्य के प्रति थोड़ी आशा जागती है, परन्तु इन विचारों को आम जनता तक पहुंचाने की ज़रूरत है| आपको मेरी शुभकामनायें कि देश के प्रति आप अपने कर्त्तव्य में संलग्न रहें| धन्यवाद!

डॉ. जेन्नी शबनम said...

आवेश जी,
बहुत सही कहा आपने कि जबतक धर्म की राजनीति बंद नहीं होगी ऐसी कोई न कोई घटनाएँ होती रहेंगी| आज आतंकी गतिविधियों के मूल में भी धार्मिक भावना से खिलवाड़ का हीं नतीजा है| आम जनता को उनके जीवन के वास्तविक मुद्दे से दूर रखने का सबसे आसान तरीका है उनकी धार्मिक आस्था को लेकर राजनीति करना और कुछ खास वर्ग के फायदा द्वारा वर्चस्व बनाये रखना| आपने मेरी बात को समझा है, बहुत ख़ुशी हुई| यहाँ आने और आपकी प्रतिक्रिया केलिए बहुत धन्यवाद!

डॉ. जेन्नी शबनम said...

आदित्य जी,
आपका एक बार पुनः धन्यवाद, आप यहाँ दुबारा आये और उस विवादित जगह पर एक उचित और सार्थक हल की बात कहे| मेरे विचार से किसी भी आम जनता से पूछा जाये तो सभी इस बात के लिए सहमत होंगे कि वहां न मंदिर बने न मस्ज़िद बल्कि कोई भी सार्वजनिक हित के लिए उस स्थान का इस्तेमाल किया जाये| चाहे वहां विद्यालय बने, अस्पताल बने या आपने जो सुझाया वैसा वृहत सार्वजनिक स्थान| आम सहमति होते हुए भी इस पर सिर्फ राजनीति हो रही, कोई सार्थक कदम नहीं उठाया जा रहा है| आपके विचार और आपके सुझाव जो आम जन की राय भी है, इस दिशा में कुछ सशक्त कदम उठाने हेतु एक पुरजोर आन्दोलन की ज़रूरत है| आपका बहुत आभार!

डॉ. जेन्नी शबनम said...

शहरोज़ साहब,
मेरे ब्लॉग पर आपका आना मेरी खुशकिस्मती है| साझा-संसार नाम हीं इसे इसलिए दी हूँ कि इसमें अपने वैसे विचारों को जगह दे रही जिसका सरोकार सम्पूर्ण समाज से है और भद्रजनों की प्रतिक्रिया द्वारा उनके विचार भी जान और समझ सकती हूँ| आपने सही कहा कि कौन सुनता है, किसे सुनाएँ? लेकिन मेरा मानना है कि अगर हम चुप भी रहे तो क्या होगा? अगर मेरी बात कोई एक भी सुने और समझ सके, तथा उस विषय पर चर्चा के द्वारा एक आम सहमति बन सके जिससे ज़रा सा भी समाज को फायदा हो तो छोटा हीं सही एक प्रयास सभी को ज़रूर करना चाहिए|
मेरे लिए किसी भी मज़हब का कोई अर्थ नहीं, न इन बातों में मेरी कोई आस्था है| महज़ इंसानी धर्म है जिसे मैं मानती हूँ और चाहती हूँ कि जिसकी मर्ज़ी जिस संप्रदाय से जुड़े या आस्था रखें, लेकिन उस वजह से दूसरे को क्यों मजबूर किया जाये? किसी के डर से अपनी स्पष्ट राय बदलनी भी नहीं चाहिए| सहमति असहमति की अपेक्षा मैं नहीं रखती, परन्तु अपनी बात और सोच मैं अवश्य निर्भय होकर कहती हूँ| यकीन है आप मेरी बात समझ सकेंगे, और उम्मीद रखूंगी की आप के विचारों में जो बेबाकी और धार हैं सदैव बनायें रखेंगे| शुभकामनाओं के साथ शुक्रिया!

डॉ. जेन्नी शबनम said...

rajesh sahab,
yun aapka profile nahi isliye yah gyaat nahin ki aapka parichay kya hai. parantu aap mere blog tak aaye aur mere vichaaron ko padhe, ye khushi ki baat hai. sambhaw hai ki desh ke in jatil samasyaaon par aaap spasht soch na rakhte hon ya kuchh kahne se parhej rakhte hon, shayad isliye profile na banaya ho. aapka sasmman swaagat hai mere blog par. aage bhi aapke vichaar ya mere blog par aane keliye aamantrit hain. dhanyawaad.

Deepak "बेदिल" said...

bahut khub kaafi achcha lekh hai... kuch meri raaye ...

ज़हिर उद-दिन मुहम्मद (14 फरवरी 1483 – 26 दिसम्बर 1530) जो बाबर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। वह भारत में मुगल वंश का संस्थापक था। उसने बड़ी ही शान ओ शोकत से बाबरी मस्जिद का निर्माण करवाया था, जिसमे लाखो मजदूरो का पसीना और कई वर्षो की महनत लगी हुई थी, मगर देश के सियासतदानों को इस बात से कोई फर्क नही पड़ता की यह मस्जिद किसने बनायीं या कितनी महनत लगी वो कहते है ना बनाने में वर्षो लग जाते है मगर तोड़ने में पल भर भी नहीं लगता, एक मत के लिए जबरदस्ती करवाए गए दंगो से नेताओं का तो कुछ नहीं गया ना उस वक़्त ना फिलहाल के दिनों में ही मगर अयोध्या के ना जाने कितने परिवारों की रातों की नींद और दिन का चेन छीन गया इस कुकर्म से, यहाँ तक की सिर्फ एक ईमारत के तोर पर भी उससे सुरक्षित नहीं किया गया, अगर इस मस्जिद पर बवाल हो सकता है तो मुद्दा दिल्ली में भी उठाया जा सकता है क्योकि यहाँ भी विभिन परकार की मस्जिदे मोजूद है मगर आज से १७ साल पहले हालात कुछ और थे आज कुछ और है, मुद्दा यहाँ ये नहीं है की कितने मरे कितने घ्याल हो गए , मुद्दा यह की बाबरी मस्जिद को एक ईमारत के रूप में भी बचाया ना गया, अब कोई मंत्री जी से पूछे मस्जिद के सामने जो राम का मंदिर है वहा भी कौन अपना माथा शान्ति से टेक सकता है, नेताओ के दो मिनट के भाषण से आज १७ साल से वही आग जल रही है करने वाले मर गए भर हम रहे है.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

बेदिल,
मेरे ब्लॉग पर स्वागत है| इस मसले पर आपकी राय सटीक और सोचने वाली है|
बाबरी मस्ज़िद को अगर एक पवित्र स्थान न मानकर एक इमारत भी मान लिया गया होता जिसे हमारे पूर्व के शासक ने बनाया था, तो इतना बड़ा बवाल कर न उसे ढहाने की ज़रूरत थी, न उसके नाम पर सांप्रदायिक दंगा कराने की, और न उसको लेकर राजनीति करने की| कल को अगर ये साबित हो जाये कि राष्ट्रपति भवन या संसद भवन के नीचे कोई मंदिर था, या मस्ज़िद था तो क्या उसे भी तोड़ दिया जाए? हजारो लोग मारे गये, वर्षों से इसपर छानबीन और सरकारी धन की बर्बादी, और फिर भी मुद्दा जहाँ का तहाँ| सच कहा आपने कि आज अयोध्या की आम जनता दहशत में जीती है, मंदिर में भी शांति से पूजा नहीं कर सकते| वजह बस एक है कि अगर इन मुद्दों को न उठाया गया तो आम जनता एक जुट हो सकती है, और जीवन से जुड़े आर्थिक सामजिक राजनितिक मुद्दों पर सोचने और फैसले लेने में सक्षम हो सकती है| राजनेताओं के हाथ से आम जनता निकल गई तो मोहरा कौन बनेगा, कौन दंगा फसाद करेगा, किसपर ये अपनी सत्ता चलाएंगे, वोट बैंक हाथ से निकल जायेगा| नेता तो न चेतेंगे लेकिन आम जन को ये सब सोचना बेहद ज़रूरी है, कि गड़े मुर्दों को उखाड़ कर उस पर हो रही राजनीति का हिस्सा बनना बंद करें| अन्यथा वो लोग ऐसे न जाने कितने बवाल उठाते रहेंगे और आपस में जनता को लड़ा कर अपना हित साधेंगे|
आपका बहुत बहुत धन्यवाद प्रखर सोच केलिए|

Hemant Sharma said...

Hello Jenny Ji,


R u Great...muje aapke Vichar aur aapka lekh bahut accha laga.........Tahnk's

Regards

hemant sharma

दीपक बाबा said...

@बाबर नें मंदिर को ढहा कर मस्ज़िद बनाया तो संभव है कि राम की मंशा रही हो ये भी? राम भी ईश्वर के हीं अवतार हैं, और मान्यता के अनुसार बिना इश्वरिये इच्छा के एक पत्ता तक हिल नहीं सकता, ईश्वर सर्वव्यापी है|


इसी मानसिकता ने तो भारत देश कर बेडा गर्क किया है. मुस्लिम आक्रांता का लूटते रहे, ध्वंस्त करते रहे रहे तो पंडे/पुजारी राजपूतों को यही समझाते रहे कि ये ईश्वरीय इच्छा है.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

दीपक बाबा जी,
मेरे ब्लॉग पर आपकी प्रतिक्रया के लिए आभार.
आप जो कह रहे वो भी ईश्वर इच्छा. पंडे पुजारी तो कहते हैं और कहते रहे हैं मानना या न मानना तो अपनी इच्छा और सोच पर निर्भर करता है. चाहे भारत हो या दुनिया का कोई भी देश धर्म के कारण सबसे ज्यादा बर्बाद हुआ है. दोष सिर्फ पंडे पुजारी को ही क्यों? वो डराते हैं, वो समझाते हैं, वो स्वर्ग की राह दिखाते हैं, धन और समृधि का द्वार बताते हैं, पाप को पुण्य में बदलने के उपाय कराते हैं... पर ये सब तो तब जब हम चाहते हैं. जबरन तो वो भी नहीं करते. पंडित या धर्म गुरु तो अपना व्यवसाय करते हैं, हम इन सब चक्कर में पड़ते हैं. मुगलों का आक्रमण हो या अंग्रेजों का शासन, दोषी तो हम ही हैं.
पुनः धन्यवाद.