Wednesday, June 29, 2011

24. बाबा का ढाबा

बाबाओं को दूसरों की ख़ातिर कितना कुछ सहना और करना होता है| दूसरों की मनोकामना पूरी कराने केलिए तरह तरह के उपाय बताना, करवाना या करना और बदले में ज़रा सी दक्षिणा| बेचारे बाबा को कभी अपने जजमानों की ख़ातिर भूखे रह कर जाप करना होता, कभी नवरात्र में सिर्फ फलाहार करके रहना होता है, कभी विशेष पूजा करनी होती है और जब कोई मनोकामना पूरी हो जाए तो फिर से एक और नयी पूजा| ये सभी तो आम बाबा हैं जिसे पंडित जी कहते हैं जो किसी न किसी मंदिर में पाए जाते हैं और किसी तरह ये सब करके अपनी ज़िन्दगी चलाते हैं| सोचिये उन उन बाबाओं को कितनी मुश्किल होती जो मंदिर के पुजारी नहीं हैं लेकिन बाबा हैं| उन्हें बहुत मशक्कत करनी होती है बाबा के रूप में प्रसिद्धि बनाए रखने केलिए| कभी कभी यूँ लगता है बाबा नहीं हुए सड़क किनारे के ढाबे के मालिक हो गए जिन्हें चौबीसों घंटे व्यस्त रहना पड़ता है|


कभी कोई मौन हो जाता और मौनी-बाबा कहलाता, कोई एक पाँव पे खड़ा रहता और ठरेसरी-बाबा कहलाता, कोई बाल दाढ़ी बढा लेता और दाढ़ी-बाबा कहलाता, कोई नंगा होकर नागा-बाबा कहलाता| अब प्रसिद्धि चाहिए तो कुछ तो अलग होना होगा न सभी को एक दूसरे से, वरना सिर्फ प्रवचन से कैसी महानता कौन बनेगा अनुयायी कौन बनेगा चेला| प्रवचन में सदैव अच्छी बातें होती हैं और बाबा के प्रवचन से अच्छा तो है कि किसी धार्मिक चैनल पर प्रवचन सुन लें या फिर कोई धार्मिक सीरियल टी.वी पर देख लें| फिर बाबा लोग की दूकान चले कैसे? कुछ तो ख़ास कुछ तो अलग करना हीं होगा न| अब रामदेव बाबा को हीं देखा जाए, बेचारे को स्त्री वेश धारण करना पड़ गया| अरे सही सलामत रहेंगे तभी तो अनुयायिओं को योग के साथ राजनीति और कूटनीति की शिक्षा दे पाते न| रामलीला मैदान में बाबा जी चले थे योग शिक्षा के नाम पर नेतागिरी की दीक्षा देने, पड़ गए लेने के देने| अब वहाँ महाभारत शुरू हो गया जिसमें कोई युद्ध नहीं हुआ बस भगदड़ मच गई| अब पुलिस को देख कर तो अच्छे अच्छों के होश गुम हो जाते हैं तो ये लोग तो बाबा के अनन्य भक्त ठहरे जो सच्चे देश भक्त और भ्रष्टाचार विरोधी हैं| बेचारे शान्तिपूर्वक अनशन पर बैठे थे, और देश हित की बात कर रहे थे कि पुलिस ने अश्रु गैस और जल का क्रूर छिड़काव और बहाव शुरू कर  दिया|
अब जल से भी आग लग गया, ये तो बाबा जी का प्रभाव था और ये भी कि बाबा के चमत्कार से जानमाल की क्षति नहीं हुई, वरना सरकार तो कमर कास हीं ली थी दो दो हाथ करने की| बाबा न भागते तो क्या हाल होता, सही सोच रहे थे बाबा| अब उनके सहयोगियों जो परदे के पीछे थे से विचार विमर्श करने का मौका भी तो नहीं मिला अन्यथा बाबा स्वयं हीं अनशन के साथ किये जा रहे सत्याग्रह को जेल भरो आन्दोलन में बदल देते| राजनैतिक कैदी की अपनी प्रतिष्ठा होती है और सम्मान भी बढ़ जाता है| अरे राजनैतिक कैदी कोई अपराधी थोड़े न होते हैं कि उनके साथ थर्ड डिग्री से पुलिस पेश आये| अरे नेता हों या बाबा हमारा इतिहास गवाह है कि कितनी आस्था, विनम्रता, सज्जनता और सरलता  से पुलिस पेश आती है और हर संभव सहायता करती है| उनको सभी सुविधाएं मुहैया कराई जाती है, चाहे एअर कंडीशनर हो या टी.वी या फिर गरमागरम पांच सितारा होटल का खाना| मोबाइल और आरामदायक बिस्तर तो बिना कहे पहले से हीं अलग से रख दिया जाता है| अब लगे हाथ दो फायदा हो जाता है, एक तो जनता के बीच में प्रतिष्ठा और सम्मान बढ़ गया कि देश की ख़ातिर जेल गए, और दूसरे मुफ़्त आराम करने का वक़्त भी मिल गया| प्रसिद्धि मिलती है सो अलग| ख़ैर बाबा ये सब सोच हीं न पाए, अपने अनुयायिओं को छोड़ अंतर्ध्यान हो गए और फिर स्त्री वेश धारण कर लिए ताकि पुलिस से बच सकें|


अब दिल्ली पुलिस जो समय से कहीं नहीं पहुँचती एक दम सही वक़्त पर न सिर्फ पहुँच गई बल्कि स्त्री वेश में भी बाबा को पहचान ली और ससम्मान मुफ़्त हवाई यात्रा द्वारा सीधे हरिद्वार पहुंचा आयी| सरकार और बाबा के बीच अब चल रही है कबड्डी, तीसरा पक्ष जो रेफरी भी है और बाबा को व्यवसायी से नेता बनाने की जुगत में है, बड़े मज़े से तमाशा करवा रहा है और मज़े ले रहा है| बाबा सरकार की पोल खोलने के पीछे हैं तो सरकार बाबा की पोल| तीसरा पक्ष बाबा को आगे करके तमाशा में शामिल भी होता और मज़े ले ले कर बाबा का हौसला बढ़ता है| हम सभी आम जनता जो देश के एक मात्र चौथे पक्ष हैं क्योंकि बाकी सब तो ख़ामोश हैं और हम मूक दर्शक रह गए हैं| मीडिया के कारण नौटंकी का सारा घटना क्रम देखने सुनने और जानने के बाद हम चौथा पक्ष फेसबुक पर बाबा के पक्ष विपक्ष पर चर्चा करते हैं| जय बाबा की!

_ जेन्नी शबनम ( 7 जून, 2011)

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Saturday, June 11, 2011

23. अन्ना और राम के देश में शर्मिला

भ्रष्टाचार और काला धन के मुद्दे पर समूचे देश में उथल पुथल और बवाल मचा हुआ है| जब अन्ना हजारे जंतर मंतर पर अनशन पर बैठे तो देश का हर नागरिक, कुछ सामाजिक और राजनितिक दल, अनेकों स्वयंसेवी संस्था, सामाजिक संगठन, बुद्धिजीवी, आम और ख़ास लोग सभी एकजुट हो गए| सरकार ने सभी मांगों को मान लिया और जन लोक पाल बिल बनाने पर सहमति के बाद उसपर क्रियान्वयन चल रहा है| इस अनशन से कितनों की महत्वाकांक्षाओं को बल मिला और सरकार के खिलाफ़ एक मुहीम सा चल पड़ा है| आश्चर्य होता है इसी देश की कोई एक महिला अकेले 11 साल से अनशन पर बैठी है और उसके साथ कोई नहीं| बार बार उसे जेल में डाला जाता है, उसपर आत्महत्या का आरोप लगाया गया, नाक में नली के द्वारा उसे जबरन भोज्य पदार्थ दिया जा रहा है| पिछले 11 साल से ये सिलसिला जारी है, और मुमकिन है कि देश के अधिकाँश लोग इस महिला का नाम भी न जानते हों| आम आदमी और मानवीयता के खिलाफ़ पिछले 53 साल से इस्तेमाल किये जा रहे भारतीय सशस्त्र सेना विशेषाधिकार अधिनियम 1958 को हटाये जाने को लेकर 11 सालों से भूख हड़ताल पर यह महिला बैठी है| 
11 सितम्बर, 1958 को भारतीय संसद ने सशस्त्र सेना विशेषाधिकार क़ानून [आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर एक्ट (ए.एफ.एस.पी.ए)]  पारित किया| शुरू में इसे 'सात बहनों' के नाम से विख्यात पूर्वोत्तर के सात राज्यों असम, मणिपुर, अरुणांचल प्रदेश, मेघालय, नागालैंड, मिजोरम और त्रिपुरा में लागू किया गया| 1990 में इसे जम्मू कश्मीर में भी लागू कर दिया गया| बेकाबू आतंरिक सुरक्षा स्थिति को नियंत्रित करने केलिए सरकार द्वारा सेना को यह विशेषाधिकार दिया गया ताकि सुरक्षा के कड़े उपाय किये जा  सके| इस क़ानून के तहत शक की बुनियाद पर बिना किसी वारंट के गिरफ्तारी, गोली मारने या दूसरे तरीके से बल प्रयोग करने का अधिकार सुरक्षा बलों को है| बिना इजाजत किसी के भी घर में घुसकर तलाशी करने का अधिकार सेना को प्राप्त है| परन्तु इस विशेषाधिकार का हनन वक़्त वक़्त पर सेना द्वारा किता जाता रहा है और ये सभी राज्य इस कानून की पीड़ा का दंश विगत 53 साल से झेलते आ रहे हैं| भारतीय संविधान के अनुच्छेद 355 की आड़ में पारित इस अमानवीय कानून के कारण सुरक्षा के नाम पर सेना को क्रूरता की सारी हदें पार करने का वैध सरकारी अधिकार मिल गया है| इस कानून की आड़ में सेना के जवान खुलेआम क़त्ल और बलात्कार करते हैं|

1991 में असम में सैनिक कार्यवाई के दौरान शान्ति और सुरक्षा के नाम पर सैकड़ों निर्दोषों की ह्त्या कर दी गई| बन्दूक के निशाने पर महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ| 1995 में कोहिमा में 'ऑपरेशन तलाशी' के दौरान जीप का टायर फटने से बौखलाए सैनिकों ने बम हमले के अंदेशे के कारण अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी जिसमें 7 निर्दोष लोगों की मौत हुई साथ ही 7 नाबालिगों सहित 22 लोग गंभीर रूप से ज़ख़्मी हुए| 1995 में नमतिरम (मणिपुर) के 5 गाँव में सैनिक कार्यवाई के दौरान कई महिलाओं से बलात्कार किया गया| 1997 में ओईनाम (मणिपुर) में सेना द्वरा जारी हिंसा का विरोध करने पर सैनिकों ने 3 महिलाओं के साथ बलात्कार कर 15 ग्रामीणों की ह्त्या कर दी और कई लोगों को बिजली के झटके देकर हमेशा केलिए विकलांग बना दिया|

इम्फाल से 10 किलोमीटर मालोम (मणिपुर) गाँव के बस स्टॉप पर बस के इंतज़ार में खड़े 10 निहत्थे नागरिकों को उग्रवादी होने के संदेह पर गोलियों से निर्ममतापूर्वक मार दिया गया| 
मणिपुर के एक दैनिक अखबार 'हुयेल लानपाऊ' की स्तंभकार और गांधीवादी 35 वर्षीय इरोम शर्मिला 2 नवम्बर 2000 को इस क्रूर और अमानवीय क़ानून के विरोध में सत्याग्रह और आमरण अनशन पर अकेले बैठ गई| 6 नवम्बर 2000 को उन्हें 'आत्महत्या के प्रयास' के जुर्म में आई.पी.सी. की धारा 307 के तहत गिरफ़्तार किया गया और 20 नवम्बर 2000 को जबरन उनकी नाक में तरल पदार्थ डालने की कष्टदायक नाली डाली गई| पिछले 11 साल से उनका सत्याग्रह जारी है| शर्मीला का कहना है कि जब तक भारत सरकार सेना के इस विशेषाधिकार क़ानून को पूर्णतः हटा नहीं लेती तबतक उनकी भूख़ हड़ताल जारी रहेगी|

शर्मिला की रिहाई केलिए तमाम विरोध और मानवाधिकारों के प्रदर्शन के बावजूद उन्हें नहीं छोड़ा गया| कानून के मुताबिक़ अधिकतम एक साल के लिए हीं जेल में रखा जा सकता है इसलिए बार बार शर्मिला को छोड़ा जाता है और फिर गिरफ़्तार कर लिया जाता है| जवाहरलाल नेहरु अस्पताल, इम्फाल में शर्मिला कैद है जहाँ उसे नली के द्वरा जबरन तरल भोज्य पदार्थ देकर जीवित रखा गया है, क्योंकि लाख़ कोशिशों के बावजूद शर्मिला अनशन न तोड़ने पर अडिग है| शर्मिला कहती है ''मैं अपना अनशन नहीं तोड़ने जा रही, एक उद्देश्य के लिए मरने केलिए तैयार हूँ जिसे मैं न्यायसंगत और सही समझती हूँ''|

पिछले वर्ष मणिपुर की महिलाओं ने सैनिकों द्वारा बलात्कार और हिंसक कार्यवाईयों से त्रस्त होकर सेना के खिलाफ़ नग्न प्रदर्शन भी किया| शर्मिला के समर्थन में कई महिला अधिकार संगठनों ने इम्फाल के जे. एन. अस्पताल के बाहर क्रमिक भूख़ हड़ताल शुरू कर दी है, यानी कि समूह बनाकर प्रतिदिन भूख़ हड़ताल करना| शर्मिला के समर्थन में मणिपुर स्टेट कमीशन फॉर वूमेन, नेशनल कैम्पेन फॉर पीपुल्स राइट टू इंफॉरमेशन, नेशनल कैम्पेन फॉर दलित ह्यूमन राइट्स, एकता पीपुल्स यूनियन ऑफ़ ह्यूमन राइट्स, ऑल इंडिया स्टुडेंट्स एसोसिएशन, फोरम फॉर डेमोक्रेटिक इनिसिएटिव्स, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी-लेनिनवादी आदि शामिल हैं|
शर्मिला के समर्थन में विदेशों की कई संस्थाएं जिनमें पूरी दुनिया के मानवाधिकार संगठनों और एन.आर.आई, फ्रेंड्स ऑफ़ साउथ एशिया, एन.आर.आई फॉर ए सेक्युलर एंड हारमोनियस इंडिया, पाकिस्तान ऑर्गेनाइजेशंस, पीपुल्स डेवलपमेंट फाउंडेशन, इंडस वैली थियेटर ग्रुप, इंस्टिट्यूट फॉर पीस एंड सेक्युलर स्टडीज आदि शामिल हैं|

इरोम शर्मिला का ये अनशन निःसंदेह दुनिया का सबसे लंबा चलने वाला अनशन है| जहाँ दूसरे देश शर्मिला के साथ हैं वहीं अपना देश न सिर्फ ख़ामोश है बल्कि शर्मिला की प्रताड़ना और बढ़ गई है| शारीरिक रूप से बेहद कमज़ोर शर्मिला, 11 साल की अनवरत तपस्या और पीड़ा को अकेली झेलती शर्मिला, आज भी बुलंद हौसला रखती है| मणिपुर की ये लौह महिला अपने कर्त्तव्य और देश केलिए अपनी जान की परवाह किये बिना कहती है कि एक दिन ज़रूर आएगा जब खुशियाँ लौटेगी| वो कहती है ''ये मेरे अकेले की लड़ाई नहीं है, मेरा सत्याग्रह शान्ति, प्रेम और सत्य की स्थापना हेतु समूचे मणिपुर की जनता केलिए है"|

अहिंसात्मक आन्दोलन की ये परिणति आख़िर क्यों? क्यों हमारे देश की जनता अन्ना और बाबा के साथ खड़ी हो जाती है लेकिन शर्मिला को जानती तक नहीं| शर्मिला की लड़ाई सिर्फ उसके अपने लिए नहीं है, पूरे देश केलिए है, मानवता केलिए है, उन औरतों के लिए है जिन्हें जब न तब रौंदा जाता है बलात्कार किया जाता है, उन लाचारों के लिए है जिनके अपनों को उनकी आँखों के सामने कानून की आड़ में बेरहमी से मार कर दिया जाता है, उन बेजुबानों केलिए है जो चुप रहने को मजबूर हैं| कोई भी कहीं भी सुरक्षित नहीं है, सेना जब चाहे किसी क़त्ल कर दे या क्रूरता से औरतों की इज्जत लूट ले| मानवाधिकार संगठन के लाख़ प्रयास के बाद भी नतीजा कुछ नहीं निकला क्योंकि सेना जो भी कुछ करती है वो कानूनन सही साबित कर देती है क्योंकि उन्हें ऐसा करने का विशेषाधिकार मिला हुआ है| बलात्कार तो वैसे भी साबित नहीं हो पाता क्योंकि उसके बाद कोई स्त्री आवाज़ उठाने का साहस नहीं रखती, और पुरुषों को संदेह के आधार पर जब चाहे कैद कर ले या फिर ह्त्या कर दे|

क्रूरता और दमन की कहानी लिखने वाला कोई और नहीं हमारा देश है, जो आज से 53 साल पहले लिख दिया| हमारी सरकार जिम्मेवार है इसके लिए जो हर एक घटना को जानते हुए भी ख़ामोश है| अन्ना हजारे और रामदेव बाबा के अनशन के साथ लाखों लोग शामिल हो गए, लेकिन शर्मिला के साथ इनमें से कोई नहीं आया| क्या अन्ना या बाबा पूर्वोत्तर राज्यों के इस अमानवीय क्रूर कानून को नहीं जानते? भ्रष्टाचार और काला धन केलिए तो ये लोग अनशन पर बैठ गए और अवसरवादिता का लाभ उठा रहे, लेकिन इंसानियत की लड़ाई के लिए ये ख़ामोश क्यों हैं इतने सालों से? क्या जवाब दे सकेंगे सामजिक सेवक अन्ना हजारे या योग गुरु बाबा रामदेव? वो अन्ना हजारे जिनकी सोच है कि एक मात्र लोकपाल बिल के द्वारा भ्रष्टाचार दूर हो जाएगा, और वो योग गुरु-व्यवसायी बाबा रामदेव जो सोचते हैं कि विदेश में पड़ा काला धन आ जाने से हमारे देश की सभी समस्या सुलझ जायेगी, भ्रष्टाचार दूर हो जाएगा और देश प्रगति-उन्नति कर लेगा|

क्या शर्मिला के बारे में जानकार किसी देशभक्त का का खून नहीं खौलता? अपने हीं देश में अपनी हीं चुनी हुई सरकार द्वारा ऐसा दमन, क्या प्रजातंत्र में ये जायज़ है? ये कैसा लोक तंत्र है जिसमें कोई महिला 11 साल से इंसानियत केलिए संघर्ष कर रही है और हमारी जनता जो धर्म के नाम पर बवाल मचा देती है चुप तमाशा देख रही है? क्या शर्मिला का संघर्ष, अहिंसात्मक सत्याग्रह और अनशन हुक्मरानों को शर्मसार नहीं करता? क्या सिर्फ इसलिए कि इस राज्य की जनता कानून के कारण मजबूर और लाचार है? क्या इसलिए कि शर्मिला एक स्त्री है? क्या ऐसे कानून पर अतिशीघ्र पाबंदी नहीं लगनी चाहिए, जिससे आम जन जीवन अपनी ज़िन्दगी चैन से जी सके? क्या शर्मिला को आम औरतों की तरह जीने का हक नहीं? क्या शर्मिला को सपने देखने और जीने का हक नहीं?

शर्मिला न जमानत चाहती है, न अपने लिए सरकार से रहम चाहती है, न अनशन तोड़ने को राजी है| बस एक हीं मांग है कि सरकार इस काले कानून को बेशर्त ख़त्म करे| उम्मीद और आशा के साथ शर्मिला अब भी अस्पताल में कैद है जहाँ नाक में नली के द्वारा तरल पदार्थ दिया जा रहा है| उम्मीद नहीं टूटती उसकी, तमाम यातनाओं को भोगते हुए भी कल के सुनहरे भविष्य केलिए संघर्षरत है ताकि पूर्वोत्तर राज्यों में भी एक नयी सुबह हो जहाँ ज़िन्दगी को ज़िन्दगी की तरह आम इंसान जी सके|



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