Wednesday, September 29, 2010

12. हर दिन खुशियों का दिन



लो आ गया जश्न का एक सप्ताह 'जॉय ऑफ़ गिविंग वीक' (joy of giving week) जो 26 सितम्बर से 2 अक्टूबर तक दुनिया भर में मनाया जाएगा इस नए जश्न भरे सप्ताह के बारे में कोई जानकारी नहीं थी मुझे। हाँ, ये ज़रुर याद आया कि सितम्बर का तीसरा रविवार 'डॉटर्स डे' (daughters day) यानि बेटियों का दिन होता है। अच्छा है, अब पूरा एक सप्ताह ख़ुशी लेने और देने में बीतेगा हमारा पर इसके लिए कोई हंगामा क्यों नहीं? अरे...

मुझे याद है हर साल जब भी वेलेंटाइन डे, रोज़ डे, चाकलेट डे... आदि का एक सप्ताह आता है तो कुछ ख़ास सोच के लोगों द्वारा इसका बहिष्कार होता है और बार-बार चेतावनी भी कि ये हमारी संस्कृति को नष्ट करने के तरीके हैं, इससे हम पथभ्रष्ट हो रहे हैं आदि-आदि; अतः इस विदेशी संस्कृति को न अपनाएँ
 यहाँ बहिष्कार का मतलब सिर्फ वैचारिक विरोध से नहीं होता बल्कि इन विशेष दिनों को मनाने वालों को शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना भी दी जाती है क्योंकि इनके हिसाब से ये देश की परंपरा और संस्कृति का अपमान है अब वेलेंटाइन डे को ही लें, इसकी आड़ में वो पति पत्नी को भी नहीं बख्शते और जबरदस्ती राखी बँधवा कर रिश्तों का अपमान करते हैं 

हर साल यह भी कहा जाता है कि लोग वेलेंटाइन डे मनाते हैं लेकिन भगत सिंह या दूसरे क्रांतिकारियों या देश के शहीदों को क्यों नहीं याद करते? नेट और मोबाइल पर ऐसे संदेशों की भरमार होती है कई बार मैं इस बहस में पड़ चुकी हूँ लोग किसी भी बात को सही और सार्थक दिशा में क्यों नहीं सोचते? आज भी मैं यही सोच रही हूँ कि इस बार एक भी सन्देश न आया कि ये 'जॉय डे' क्यों मनाया जा रहा है? एक दिन नहीं बल्कि एक पूरा सप्ताह इसके नाम। आज भगत सिंह का जन्मदिन है फिर आज क्यों भूल गए ये तथाकथित देश प्रेमी? एक भी सन्देश नहीं न तो चेतावनी क्या सिर्फ इसलिए कि इसमें प्रेम शब्द शामिल नहीं है? पर ख़ुशी शब्द तो शामिल है न। लोगों को प्रेम देंगे और हमें प्रेम मिलेगा तभी खुश रह सकते हैं हम 

अब इस 'जॉय वीक' को कैसे मनाया जाए? परिवार के साथ मिलकर जैसे मन हो वैसे जश्न मनाएँ परिवार के साथ अपनी अनुभूतियाँ बाँटें और अन्य सदस्यों के मन के अनुरूप कोई योजना बनायें ताकि सभी प्रसन्न हों। परिवार के अलावा दोस्त और परिचित के साथ भी हम खुशियाँ बाँट सकते हैं और उनको ख़ुशी दे सकते हैं 

मेरी माँ दो दिन पहले ही मुझे 'पुत्री दिवस' (daughters day) की बधाई दी और मैंने अपनी बेटी को कल 'पुत्री दिवस' की बधाई दी। मैं एक माँ की बेटी हूँ और एक बेटी की माँ। दोनों रिश्ते समझती हूँ और कहीं न कहीं उनसे खुद को गहरे में जुड़ा महसूस करती हूँ मैं, मेरा बचपन और मेरी ज़िन्दगी इन तीनों को मिलाकर सम्पूर्ण 'मैं' हूँ, जिसमें मेरी माँ अपनी ख़ुशी ढूँढ़ती है। वैसे ही अब मैं अपनी बेटी में खुद को ढूँढने लगी हूँ 

मेरे जीवन में इतने ज्यादा उतार चढ़ाव आये कि ख़ुशी के ज्यादातर पल विस्मृत हो गए, जो पल दर्द दे गए वो ज्यादा याद रहते हैं मुझे ऐसा नहीं कि जीवन में कोई ख़ुशी नहीं मिली, ख़ुशी भी भरपूर मिली लेकिन शायद मानव स्वभाव है कि दुःख ज्यादा याद रहता है और ख़ुशी कम कोशिश तो यही होती है कि सभी खुश रहें, घर ही नहीं बल्कि मुझसे जुड़े सभी लोग खुश रहें और मैं भी इन सब में खुश रहूँ ऐसे में जब भी कोई ऐसा ख़ास दिन आता है तो मुझे बेहद ख़ुशी होती है, चाहे वो बाल दिवस, वेलेंटाइन डे, रोज डे, चाकलेट डे, मदर्स डे, फादर्स डे, फ्रेंडशिप डे, किसी का बर्थ डे, या फिर स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, या फिर ख़ास पर्व या त्योहार या कोई खास दिन को समर्पित एक दिन इसी बहाने इन ख़ास दिनों में मन में उमंग और उत्साह होता है, कुछ ख़ास करने का मन होता है या फिर किसी नए तरीके से मनाने की योजना बनाई जाती है

जद्दोज़हद से भरी ज़िन्दगी में कुछ नया पाने, देखने, सोचने की ऐसी कोई भी कोशिश जो मानवीय संबंधों को और भी ख़ूबसूरत बनाए खराब कैसे हो सकती है जब भी ऐसा कोई मौका आता है तब बच्चों का उत्साह देखते ही बनता है तरह-तरह की फ़रमाइश होती है, ख़ास दिन के लिए ख़ास कपड़े और तोहफ़ा हर बार जब भी कोई ख़ास दिन आता है तब मैं सोचती हूँ कि क्यों नहीं हर दिन को किसी खास दिन को समर्पित कर दिया जाए हर दिन खुशियों का, जश्न का और जीने का दिन हो

- जेन्नी शबनम (27. 9. 2010)

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7 comments:

Khare A said...

shaadar prastuti,
baise ye Day, aaj wo day, kal wo day
mujeh in sab days ki jaankari yahi milti he orkut par, lein mujhe aaj tak logic samjah nhi aaya, velentine day in sab me sabse jyada prachlit he, lekin log to isko bhi thok ke bhav me manate hain, pure 1 dozen flower lenge aur sabhi ko velentine day bolenge, jabki kah aye jata he, ki apne sabse priye ko ye flower dena chahiye, sab ghal-mel hain, dikhaba he, apun to ye jaante hain, seekha, :man-chnga to kathoti me ganga", mere hisab se ek "Santushti day" bhi manaya jana chahiye.

pragya said...

काश कि हम सभी खास दिनों को उसके सही मायनों में मनाते...

masoomshayer said...

aap ko apne vichar vyakt karane men maharat hasil hai
bahut sapshtr aur binaa bhatkaaw ke chaltee hai aap kee vani

rasaayan said...

Khushiyaan (tyoharoon....Western-Indian) maatra swayam ki kathore dukh bhari vaastviktaaon se thoDaa alag hone ka saaDhan hain...
prastuti bahut sunder...man ko chhu gayi....
dhanyavaad Bahin...

मुकेश कुमार सिन्हा said...

sahi kaha aapne.....har khas din ka ek alag mahatwa hota hai....aur agar uss jajbe se usse manaya jaye, to khushi ki ek tarang ko mahsus kiya ja sakta hai...:)

dhanyawad!! ek achchhhi post ke liye!!

prritiy----sneh said...

Aapke vicharon se poortaya sehmat hoon. jane kyu log kisi bhi din ka bahishkar kyun karte hain jabke sab din kisi n kisi bahane sneh-bhav ko hi badhane ka bahana maatr hain. logon ko khushiyan baantne ko har din manana chahiye aur is tarah sab aur khushiyan ho jayen to aur kya chahiye hum sabko.

sunder lekh ke liye abhinandan.

shubhkamnayen

shikha varshney said...

बहुत खूबसूरत बात कही है जेन्नी जी! अक्सर ऐसे अवसरों पर ये तर्क दिया जाता है कि इनके लिए १ खास दिन ही क्यों ..पूरा साल क्यों नहीं?..पर क्या यह व्यावहारिक रूप से संभव है ? तो क्यों न इन्हीं बहनों से छोटी छति खुशियाँ बटोर ली जाएँ ..मुझे तो ये दिवस बहुत पसंद हैं :)