Thursday, July 24, 2014

48. लोकार्पण - 'सर्वोदय ऑफ़ गांधी'

मेरे पिता की पुस्तक

18 जुलाई, 2014 को नेल्सन मंडेला की 96वीं जयन्ती के मौक़े पर मेरे पिता स्वर्गीय डॉ. के. एम. प्रसाद की पुस्तक 'सर्वोदया ऑफ़ गांधी' के नवीन संस्करण का लोकार्पण गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति, नई दिल्ली में हुआ। ग़ौरतलब है कि 18 जुलाई को मेरे पिता, जो भागलपुर विश्वविद्यालय में राजनीती शास्त्र विभाग में प्रोफ़ेसर थे, की 36वीं पुण्यतिथि थी। इस पुस्तक पर एक चर्चा राजेन्द्र भवन, नई दिल्ली में 19 जुलाई को रखी गई। पुस्तक को वाराणसी के भारती प्रकाशन ने प्रकाशित किया है।
पुस्तक लोकार्पण
गांधी दर्शन समिति में हुए कार्यक्रम के अवसर पर 'गांधी का सर्वोदय' और 'मंडेला का रंगभेद के ख़िलाफ़ आन्दोलन' विषय पर एक गोष्ठी का आयोजन किया गया। नेल्सन मंडेला को उनके रंगभेद के ख़िलाफ़ आन्दोलन के लिए याद किया गया और मेरे पिता की पुस्तक 'सर्वोदय ऑफ़ गांधी' का लोकार्पण किया गया, जिसे 30 वर्ष बाद पुनः प्रकाशित किया गया है। इस अवसर पर गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति की निदेशक सुश्री मणिमाला, खादी बोर्ड के अध्यक्ष श्री लक्ष्मी दास, प्रख्यात गांधीवादी श्री शिव कुमार मिश्र तथा मेरी माँ श्रीमती प्रतिभा सिन्हा, जो इंटर स्कूल की अवकाशप्राप्त प्राचार्या तथा समाज सेवी हैं, ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए। संगोष्ठी का संचालन डॉ. राजीव रंजन गिरि ने किया ।

संगोष्ठी को संबोधित करते हुए मणिमाला जी ने कहा ''मंडेला की जयन्ती पर प्रोफ़ेसर प्रसाद की पुस्तक का लोकार्पण बेहद सुखद है, एक मार्क्सवादी होने के बावजूद वे गांधीवादी बने रहे।'' उन्होंने यह भी कहा कि ''मज़बूरी का नाम गांधी कहा जाता है जबकि मज़बूती का नाम गांधी है। गांधी अगले एक हज़ार साल तक भी प्रासंगिक रहेंगे।'' 

श्री लक्ष्मीदास ने कहा ''अमर होने के लिए मरना ज़रूरी होता है।'' उन्होंने कहा कि इस पुस्तक से सर्वोदय साहित्य में एक और नाम जुड़ गया है। गांधी जी सदैव कहते थे कि ईश्वर ही सत्य है, परन्तु प्रोफ़ेसर गोरा जो बहुत बड़े नास्तिक थे, से इस विचार पर बहस और समझ के बाद गांधी जी ने कहा- सत्य ही इश्वर है।''  

श्री शिव कुमार मिश्र ने सर्वोदय के अर्थ को गांधीवाद और मार्क्सवाद से जोड़कर इसकी विशेषता की व्याख्या की। श्री मिश्र ने स्पष्ट कहा कि गांधीवाद और मार्क्सवाद का अन्तिम लक्ष्य एक है, बस रास्ते अलग हैं। 

अंत में श्रीमती प्रतिभा सिन्हा ने अपने जीवन के अनुभव को सभी से साझा किया। मेरे पिता के सिद्धांत, आदर्श तथा जीवन जीने के नियमों का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा ''मेरे पति ज़िन्दगी भर गांधी के आदर्शों पर चलने के लिए क़ुर्बानियाँ देते रहे। उनके आदर्शों के कारण न सिर्फ़ परिवार बल्कि समाज में भी उनकी आलोचना होती थी। ग़लत रीति-रिवाजों और परम्पराओं का सदैव उन्होंने परित्याग किया। वे जो बोलते थे, वही करते थे। अपनी और परिवार के सदस्यों की बड़ी-से-बड़ी बीमारी का इलाज प्राकृतिक चिकित्सा द्वारा करते थे। गांधी को उन्होंने न सिर्फ़ अपने जीवन में बल्कि अपने परिवार और अपने छात्रों में रचा बसा दिया था।''
अमिताभ सत्यम, दीपक पीटर गेब्रियल

बाएँ- राजेश श्रीवास्तव, दीपक पीटर ग्रेबियल, प्रतिभा सिन्हा, आनन्द किशोर सहाय, बिमल प्रसाद, राजेंद्र भवन के सहकर्मी, टी.एन.चतुर्वेदी, जवाहर पाण्डेय
 
19 जुलाई 2014 को राजेन्द्र भवन में इस पुस्तक पर चर्चा की गई। राजेन्द्र भवन के अध्यक्ष श्री बिमल प्रसाद, आन्ध्र प्रदेश एवं कर्नाटक के भूतपूर्व राज्यपाल श्री टी.एन.चतुर्वेदी, एन.सी.इ.आर.टी. से श्री जवाहर पाण्डेय, पत्रकार श्री आनन्द किशोर सहाय ने पुस्तक और मेरे पिता की जीवनी पर चर्चा की।

इन दोनों अवसरों पर जिन गणमान्य लोगों ने शामिल होकर आयोजन को सफल बनाया, उन सभी का हार्दिक धन्यवाद।

- जेन्नी शबनम (24.7.2014)
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15 comments:

ashok andrey said...

आपने अपने स्वर्गीय पिता श्री की पुस्तक के लोकार्पण पर बहुत अच्छी रिपोर्टिंग की है जिसके माध्यम से उन्हें जानने में सुविधा हुई तथा गांधी जी व् नेल्सन मंडेला जी से तो मैं भी काफी प्रभावित हूँ.उन जैसे व्यक्तित्व सदियों में कभी
अवतरित होते हैं.मेरा दुर्भाग्य है कि मैं उस दिन तबयित खराब होने के कारण उपस्थित नहीं हो पाया था इसका दुःख रहेगा.
लेकिन इतनी सुन्दर रिपोर्टिंग के लिए मैं आपको बधाई देता हूँ.

Asha Joglekar said...

पुस्तक सर्वोदय ऑफ गांधी के लोकार्पण समारंभ के वृतांत के लिये आभार।

BLOGPRAHARI said...

आपका ब्लॉग देखकर अच्छा लगा. अंतरजाल पर हिंदी समृधि के लिए किया जा रहा आपका प्रयास सराहनीय है. कृपया अपने ब्लॉग को “ब्लॉगप्रहरी:एग्रीगेटर व हिंदी सोशल नेटवर्क” से जोड़ कर अधिक से अधिक पाठकों तक पहुचाएं. ब्लॉगप्रहरी भारत का सबसे आधुनिक और सम्पूर्ण ब्लॉग मंच है. ब्लॉगप्रहरी ब्लॉग डायरेक्टरी, माइक्रो ब्लॉग, सोशल नेटवर्क, ब्लॉग रैंकिंग, एग्रीगेटर और ब्लॉग से आमदनी की सुविधाओं के साथ एक
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Vatayan-UK said...

प्रिय जैन्नी,

कार्यक्रम की रिपोर्ट देखी, धन्यवाद. इस सुअवसर पर मैं उपस्थित न हो सकी, जिसका मुझे खेद है.

आपके लिए तो यह बड़े गर्व की बात है कि आपको ऐसे माता पिता मिले. दिल्ली आऊँगी तो माँ से ज़रूर मिलना चाहूंगी.

सस्नेह,

Divya Mathur FRSA
Vatayan Poetry on South Bank
Mobile : 07770775314

Udan Tashtari said...

आपके पिता स्वर्गीय डॉ.के.एम.प्रसाद की पुस्तक 'सर्वोदय ऑफ़ गाँधी' के नवीन संस्करण का लोकार्पण निश्चित ही एक यादगार और भावपूर्ण अनुभव रहा होगा.

नमन स्वीकारें.

बहुत अच्छा लगा रपट पढ़कर.

अज़ीज़ जौनपुरी said...

आपके स्वर्गीय पिताजी निःसंदेह एक प्रखर व्यक्तिव्य के एक धनी कीर्ति स्तम्भ थे उन्हें मेरा कोटि कोटि नमन |पूरी रिपोर्टिंग बेहद सुन्दर है |आप के ब्लॉग पर जाना और पढना बहुत अच्छा लगता है मगर समयाभाव के चलते मैं आपकी लेखनी की दाद में पीछे रह जाता हूँ

ऋता शेखर 'मधु' said...

गा़धी जी के आदर्श हमें भी बहुत आकर्षित करते हैं|हमारे घर का माहौल भी गाँधीवादी था| हमारे दादाजी एवं पिताजी की विचारधारा गाँधीवाद से प्रभावित थी| आपकी रिपोर्ट बहुत अच्छी है|पुस्तक के पुनः लोकार्पण के लिए बहुत बधाई !!

Unknown said...

आपके पूज्य पिताजी की पुस्तक के लोकार्पण का समाचार जानकार बहुत प्रसन्नता हुई. इसके लिए आपको साधुवाद.
हालांकि मैं गाँधी से बहुत से विचारों में मतभेद रखता हूँ, लेकिन उनके अर्थव्यवस्था सम्बन्धी, सर्वोदय सम्बन्धी और प्राकृतिक चिकित्सा सम्बन्धी विचारों का बहुत प्रशंसक हूँ. मैं स्वयं भी अपनी और दूसरों की प्राकृतिक चिकित्सा ही करता हूँ और सदा स्वस्थ रहता हूँ.
विजय कुमार सिंघल

Unknown said...

बहुत अच्छी रिपोर्ट! गाँधी को जितना पढ़ता हूँ उतना ही विस्मित होता हूँ. वे अपने आप में एक संस्था थे.गाँधी पर लगातार अध्ययन और शोध की आवश्यकता है. उनकी विचारधारा पर अमल करने की भी.
आपका हार्दिक अभिनन्दन!

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

अच्छी टिप्पणी तो तब कर सकूँगा जब पुस्तक का पारायण कर लूँ । किंतु जीनी जीजी ( मेरी एड्रेस बुक में आपका नाम यही लिखा है ) आपकी इस रिपोर्टिंग से पता लगा कि आपके पिताजी "मार्क्सवादी होते हुये भी गाँधीवादी बने रहे" । आपके ब्रह्मलीन पिताजी के व्यक्तित्व का यह एक रोचक पक्ष है जो मेरे लिए आकर्षक है । भौतिकवादी मार्क्स और अभौतिकवादी गाँधी के विचारों को एक साथ जीना सरल नहीं है । किसी समय स्वयं मैंने भी मार्क्सवाद से होते हुये गाँधीवादी चिंतन की ओर अपनी विचार यात्रा प्रारम्भ की थी । मुझे जानने वाले अभी तक यह तय नहीं कर पाये कि मुझे मार्क्सवादी कहा जाय या गाँधीवादी ? वे मुझे कभी इनका समर्थक पाते हैं तो कभी विरोधी । ख़ैर ! "सर्वोदय ऑफ़ गाँधी" का अवलोकन मेरे लिए रुचिकर और आवश्यक होगा ...... । जून में दिल्ली गया था, आपसे मिलने की इच्छा थी ...पर समयाभाव के कारण मिल नहीं सका । सोचता हूँ अगली बार कुछ निश्चित करना पड़ेगा ।

मन के - मनके said...

अपने पूज्य पिताश्री की पुस्तक’सवोदय ओफ गांधी’
के लोकार्पण पर आपके द्वारा दी जानकारी के लिये
आभार.
साथ ही पूज्य पिताश्री के जीवन से बहुत कुछ लेने के लिये भी जनमानस को प्रेणना मिलेेगी,ऐसा मेरा मानना है

तिलक राज कपूर said...

महात्‍मा गॉंधी की सोच एक शाश्‍वत सत्‍य का स्‍थान रखती है और मैं आश्‍वस्‍त हूँ कि यह पुस्‍तक आज भी उतनी ही प्रासंगिक होगी जितनी प्रथम प्रकाशन के समय थी।
आपने पुत्री धर्म को निबाहते हुए इस पुस्‍तक से ब्‍लॉग के माध्‍यम से परिचय कराया वह सराहनीय है।

कविता रावत said...

पुस्तक के प्रकाशन की बहुत सुन्दर रिपोर्ट ..
हार्दिक बधाई!

Rs Diwraya said...

आपका आभार
अपन ब्लॉग को सफर अपना मेँ जोङकर अधिक से अधिक लौगो तक पँहुचाऐ
http://rsdiwraya.blogspot.com/2014/09/blog-post_4.html
यहाँ पधार कर टिप्पणी मेँ लिँक छोङे।

डॉ. जेन्नी शबनम said...

मेरे पिता की पुस्तक को आप सभी की शुभकामनाएँ मिली, यह मेरा सौभाग्य है. ह्रदय से आप सभी का आभार!