श्री शरतचन्द्र चटोपाध्याय |
श्री सुरेन्द्र नाथ गंगोपाध्याय |
विश्वविख्यात और प्रसिद्ध साहित्यकार शरतचन्द्र चटोपाध्याय का ननिहाल भागलपुर के मानिक सरकार चौक स्थित काली बाड़ी के पास है । वहाँ उन्होंने जीवन के वो पल बिताए जो उनके जीवन की आधारशिला है । मानिक सरकार चौक से एक रास्ता गंगा नदी के घाट तक जाता है । इस रास्ते में घाट से थोड़ा पहले काली बाड़ी है जहाँ शरतचन्द्र के मामा श्री सुरेन्द्रनाथ गांगुली ने जगधात्री पूजा शुरू की थी और आज भी उनके वंशज प्रतिवर्ष धूमधाम से करते हैं । उसके समीप ही वो मकान है, जहाँ शरतचन्द्र का बचपन बीता है । उस घर को देखने की ललक को मैं रोक न सकी और एक शाम चल पड़ी उस व्यक्तित्व के उन पलों को महसूस करने जहाँ उन्होंने कई साल बिताए थे और शिक्षा ग्रहण की थी । छोटे से दरवाजे से घुसते ही एक छोटी सी बैठक, बैठक के एक कोने में चार तस्वीर । दो छोटी और एक बड़ी तस्वीर शरतचन्द्र की, एक सुरेन्द्रनाथ गंगोपाध्याय (गांगुली) की । बैठक से लगा मकान का बरामदा, आँगन और रहने वाला कमरा है । बैठक में हमारा स्वागत किया शरतचन्द्र के मामा सुरेन्द्रनाथ गांगुली के पौत्र (पोता) श्री उज्ज्वल गांगुली ने, जो एक निजी विद्यालय में शिक्षक हैं । करीब 5-6 वर्षीय उनका एकमात्र पुत्र जो बहुत चंचल है, उनके साथ ही था, जिसे बहुत मज़ा आ रहा था अपने घर में किसी मेहमान को देख कर । मेरे विद्यालय के वरीय प्रधानाध्यापक श्री सत्यजीत सिंह की उज्ज्वल जी से बहुत अच्छी और गहरी मित्रता है । सत्यजीत जी ने हमारा परिचय उज्ज्वल जी से कराया और फिर चल पड़ा शरतचन्द्र से जुड़ी बातों का सिलसिला ।
उज्ज्वल जी का पुत्र और मैं |
श्री उज्ज्वल गांगुली और उनका पुत्र |
श्री शरतचन्द्र चटोपाध्याय |
खंडित हुक्का और पेन-स्टैंड/ऐश-ट्रे |
शरतचन्द्र के समय की कुर्सी |
शरतचन्द्र द्वारा निर्मित कागज़-कलम होल्डर |
शरतचन्द्र की चार निशानी |
शरतचन्द्र और सुरेन्द्रनाथ जी की तस्वीर के साथ मैं |
- जेन्नी शबनम (जनवरी 7, 2012)
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19 comments:
शरत की ज़िंदगी पर आधारित विष्णु प्रभाकर लिखित "आवारा मसीहा" यथानाम तथागुणा पुस्तक है. बेशक, प्रभाकर जी ने उस कृति के लिए कठोर परिश्रम किया है. भागलपुर दो बार गया पर व्यस्तता के कारण चाहकर भी काली बाड़ी नहीं जा सका. शरत का, अपनी किशोरावस्था से प्रशंसक रहा हूँ. मेरे ह्रदय को जितना शरत ने स्पर्श किया है उतना अभी तक कोई अन्य नहीं कर सका.
शरत पर लगाने वाले आरोपों की परवाह कभी शरत ने नहीं की ....उनके प्रशंसकों के लिए यह उनका एक सन्देश है कि उन्हें भी इसकी चिंता नहीं करनी चाहिए.
शरत वास्तव में मसीहा थे ...उनकी सोच और लेखनी मसीहाई थी ......लोगों की दृष्टि में वह मसीहा 'आवारा' रहा होगा ........तो ऐसा आवारापन भी बुरा क्या. उनका आवारापन खुद मेरे भी अन्दर गहरे तक उतरा हुआ है. कभी बाहर जाता हूँ तो पत्नी डरती है- पता नहीं वापस घर आऊँगा भी या नहीं ... घर में शरत साहित्य भरा पडा है. पत्नी भी पढ़ती है.....और मेरे लिए डरती है. कभी पटना और मुंगेर में गंगा के किनारे घाट पर घंटों अकेले बैठे रहना मेरा प्रिय कार्य हुआ करता था. मैंने घोषित कर दिया है कि सेवानिवृत्ति के बाद मुझे कोई आवारा होने से नहीं रोक सकेगा.............
जीनी जी ! मेरे प्रिय लेखक शरत के दुर्लभ चित्रों के लिए आपका आभार ....
जेन्नी जी आपने बहुत खोजपूर्ण एवं आत्मीय जानकारी दी है । आपका यह संस्मरण एकदम शरत् जी से जोड़ देता है । हारदिक बधाई !
शरत् चन्द्र जी के बारे में इतनी विस्तृत जानकारी देने के लिए आभार!
जहाँ तक मुझे स्मरण है...शरत की उपयोग की हुयी इन चारो वस्तुओं के चित्र देने में प्रभाकर जी चूक गए थे .....आप उसमें बाज़ी मार ले गयीं जीनी जी ! इन दुर्लभ चित्रों के साथ कुछ और दुर्लभ जानकारी जुटा सकें और .......एक और आलेख शरत पर लिख सकें तो साहित्य जगत पर यह उपकार होगा आपका. विशेषकर बंगाल में प्लेग के समय शरत की भूमिका संबंधी कुछ दुर्लभ जानकारी ....
एक बात बताऊँ आपको, शरत के नाम के साथ "आवारापन" विशेषण जुड़ने से इस विशेषण को जो सम्मान मिला है वह दुर्लभ है .....गोया राम ने अहिल्या की मूर्ति को तार दिया हो ....कुछ ऐसा ही ...
जेन्नी जी ! क्या कहूँ अजीब सा महसूस कर रही हूँ. आपने जिस जीवन्तता से शरत चन्द्र को यहाँ हम तक पहुँचाया है.महसूस होता है कि हम भी वहीँ आपके साथ ही भागलपुर की उन गलियों में घूम रहे हैं.
बहुत आभार आपका.शरत चन्द्र मेरे पसंदीदा रचनाकारों में हैं.आपकी यह पोस्ट दुर्लभ है और साहित्य का अनुपम दस्तावेज.
शरत के समय में उनकी गलियों से गुज़ारना रोमांचकारी रहा. सुगढ़ और सहज लेखन के लिए बधाई.आप इधर बड़े अच्छे काम कर रही हैं.
पढ़ा.जैसे साथ साथ चल रही थी.....देख रही थी.शरत चंद्र -साहित्य खूब पढ़ा और उनकी रचनाओं पर बना हर सीरियल मैंने देखा.
नही जानती किसी की किसी भी बात की परवाह ना करने का (विशेषतः कोई मेरे लिए कुछ बोले तो) भाव कब मेरी आदत बन गया.ईश्वर और खुद से डरने के सिवा किसी से डरना सीखा ही नही.परवाह की तो उनकी जिनकी लाडली थी.क्या यह शरत के साहित्य का असर था.आज सोच रही हूँ इससे पहले कभी सोचा ही नही.
.........यह एक लेखक की लेखनी का असर ही होता है जो कब हमारे दिल और दिमाग पर अपना असर छोड़ जाता है हमे पता ही नही चलता.
वो चरित्रहीन थे......आवारा थे .....जो भी थे.
थे एक बेहद संवेदनशील इंसान विद्रोही और ईमानदार भी,अपनी रचनाओं मे उन्होंने ना अतिरेक का सहारा लिया ना आदर्शों कि स्थापना करनी चाहि. सहजता से उन्होंने अपने ईर्द गिर्द फैली घटनाओं को समेट लिया.उनकी सच्चाई ...उनकी ईमानदारी को उनके बाद ही सही यह सम्मान मिलना ही था.
.........................उन्हें पढ़ती हूँ उनकी रचनाओं मे .उन्हें महसूस कर रही हूँ भागलपुर की गलियों .और हर जगह आपके साथ,मेरे साथ.
वो होते तो शायद हमारी खूब पटती.
उफ़! क्या लिखती हो ! मुझे बहा ले जाती हो.दुष्ट हो! सच्ची.:)
गर्व है तुम पे..
शरत चन्द्र से सम्बद्ध कुछ भी पढना सौभाग्य है और अब ये चित्रण.....वे सच एक व्यक्तित्व थे स्वयं में.....उस घर, गली और कलमदान से परिचय करने के लिए धन्यवाद् ...
:) jenny di, jo bhi likhte ho aap bahut dil se likhte ho... bahut behtareen jaankari... Sharatchandra jee ke baare me:)
aisa laga ki sharat ji ke saath hamne bhi kuch pal kaate.... kahin koi banavat nahi... kuch sachhae pal hamne bhi guzare aapke saath..kuch aisa laga...dhanyawaad..
thanks
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आपके इस ब्लॉग पर बहुत देरी से आ पाया.परन्तु,
न आता तो आपकी लेखनी की चमत्कारी प्रस्तुति से वंचित रह जाता.बहुत ही सुन्दर,रोचक,भावपूर्ण.
धाराप्रवाह और जानकारीपूर्ण प्रस्तुति है आपकी.शरत जी के जीवन से रूबरू होने का मौका मिला.आपकी उत्कृष्ट भावनाओं और दक्ष लेखन ने उन्हें जीवंत ही
कर दिया है.
बहुत बहुत हार्दिक आभार जेन्नी जी.
Vijay ji ki pratikriya mail se praapt hui...
Vijay Kumar Sappatti vksappatti@gmail.com
Jan 7
to me
जेन्नी जी
ये अजब संजोग है कि आजकल मैं शरद जी की "अंतिम परिचय " पढ़ रहा हूं और उनकी सारी किताबे अपनी लाईब्ररी से निकाल कर फिर से पढने की चाह में अलग रखी है . आज ही शरद की दो किताबे बिंदु का बेटा और छोटा भाई ,फ्लिप्कार्ट से मंगाई है . और मेल देखा तो आपका ये मेल था.
उस महान लेखक के लिये मेरे पास ऐसा कोई शब्द नहीं है कि जो उनी तारीफ कर सके.
धन्यवाद.
विजय
बधाई स्वीकार करे.
बेहतरीन लेख जी,
बेहतरीन
आपने बहुत कुछ ऐसा लिखा/दिखाया जो आवारा मसीहा में भी नहीं मिलता..
साधुवाद.
@कौशलेन्द्र जी
@काम्बोज भाई
@रूपचन्द्र जी
@शिखा जी
@शहरोज़ साहब
@इंदु जी
@राजेश
@अरविन्द भाई
@मुकेश
@अनिता जी
@कवि कुलवंत जी
@पियूष जी
@राकेश जी
@विजय जी
@दीपक बाबा जी
मेरे इस लेख को आप सभी की प्रशंसा और सराहना मिली, ह्रदय से आभार. मेरी लेखनी को आपकी प्रतिक्रया का सदैव इंतज़ार रहेगा. धन्यवाद.
जेन्नी जी!
मैँ 'आवारा मसीहा' पढ़ रहा हूँ पर कुछ ऐसी बातेँ आपने इस लेख मेँ बताई हैँ जो 'आवारा मसीहा' मे भी देखने को नही मिला ।
Just Great Jenny...
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