रोज़ की तरह आज भी बहुत ही अनमने मन से अख़बार पढ़ने बैठी। एक सरसरी नज़र से सब देख गई, नया कुछ तो होता नहीं। हर दिन अख़बार में एक-सी ख़बर - अमुक जगह ये घटना, वहाँ ये दुर्घटना, किसी की हत्या हुई, किसी ने आत्महत्या की, कहीं शहर बंद के दौरान कितनी संपत्ति नष्ट की गई तो विरोध में कितनी जानें गईं और जानें ली गईं, कहीं छात्र ने ख़ुदकुशी की तो कहीं छात्र के पास हथियार बरामद, प्रेम विवाह करने पर नव विवाहित की हत्या तो कहीं पुत्री का विवाह न कर पाने की वज़ह से पिता ने की आत्महत्या, भूख से मृत्यु तो कहीं शराब के सेवन से मृत्यु, अवैध सम्बन्धों से आहत पति ने पत्नी का ख़ून किया तो कहीं पत्नी ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर पति का क़त्ल किया, कहीं बलात्कार हुआ तो किसी ने दहेज के लिए अपनी पत्नी को जलाकर मार दिया, लावारिश जन्मजात कन्या कचरे पर पाई गई तो कहीं पुत्र के लिए पुत्री की बलि चढ़ाई गई, सड़क दुर्घटना में मौत तो अस्पताल में असंवेदनशीलता से मौत, सरकार की असफलता की कहानी तो कभी किसी प्रांत के असफल सरकार की बयान-बाज़ी, सत्ता का खेल तो विपक्षी पार्टियों का दोषारोपण, कहीं बारिश न होने से सूखे की आपदा तो कहीं बाढ़ से त्राहि। अजब ख़बर अजब तमाशा! अब क्या-क्या गिनाएँ?
रोज़ यह सब पढ़-पढ़कर, अख़बार पढ़ने से मेरा मन उचट गया है। लेकिन आदत है कि बिना एक नज़र डाले रहा भी नहीं जाता, भले रात के 12 बज जाएँ। घर में 4 अख़बार आता है, सबमें वही ख़बर। फिर भी आदत से पढ़ती हूँ मन से नहीं और रोज़ खिन्न मन से कहती हूँ कि आज से न पढूँगी और फिर दूसरे दिन...अख़बार...ख़बर...उचाट मन।
दूरदर्शन पर बेतुका सीरियल जिसका आम जीवन से कोई मतलब नहीं। समाचार भी ऐसा कि सुबह से शाम तक एक ही ख़बर बार-बार, जिससे आम जनता को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। अपनी जनता को दिखाने के लिए संसद में सांसदों का चिल्लाना या फिर नाटकबाज़ी। किसी बड़े नेता या अभिनेता की शादी या बीमारी का ज़िक्र देश की सबसे बड़ी ख़बर बन जाती है। कोई-कोई कार्यक्रम ऐसा कि ख़ौफ़ के बारे में बताने वाला ख़ुद ही ख़ौफ़नाक लगता है। प्रतयोगिता वाला कार्यक्रम जिसमें एक को विजयी होना है और अन्य को पराजित। विद्यालय में अगर बच्चा अपने वर्ग में एक स्थान नीचे आ जाता है, तो न सिर्फ़ बच्चा बल्कि उसके माता-पिता भी सहन नहीं कर सकते, और यहाँ तो सार्वजनिक रूप से उसकी पराजय दिखाई जाती है, जो एक साथ करोड़ों लोग देखते हैं। पराजित होने वाले की मनोदशा कैसी होती होगी उस समय। उफ़! अच्छा नहीं लगता मुझे कि कोई हारे या कोई जीते, महज़ मनोरंजन हो तो कोई बात है। छोड़ दिया मैंने दूरदर्शन का भी दर्शन करना।
समस्याएँ तो हम सभी गिना देते, लिख देते और दिखा देते; लेकिन इससे नज़ात पाने के लिए चिन्तन और सुझाव किसी के पास नहीं होता है। आख़िर देश और समाज में ऐसा क्यों हो रहा है? हमारी असंतुष्टि और असहनशीलता की कुछ तो वज़ह है। सभी बदहाल हैं फिर भी किसी तरह निबाह रहे, हर परिस्थिति में मन मारकर जी रहे। शायद समझौतों में जीने की आदत पड़ चुकी है या नई उम्मीद की किरण अस्त हो चुकी है। ख़तरे और जोख़िम के लिए हम में से कोई राज़ी नहीं, बने बनाए नियम पर चलने में सुविधा होती है। समूह के साथ चलने की आदत पड़ चुकी है हमें या हम उस भीड़ का हिस्सा बनते हैं जिसका मक़सद नव-निर्माण नहीं बल्कि सिर्फ़ विध्वंश है।
कभी-कभी सुखद बदलाव की गुंजाइश दिख जाती है, जब ताज़ा खबर में पाती हूँ कि किसी दुर्गम स्थान पर कोई सार्थक कार्य हो रहा है, ग्रामीण अंचल या फिर पिछड़े इलाके तक पहुँचकर कोई उनके लिए कुछ सोच रहा है। रोज़ इसी उम्मीद के साथ ताज़ा ख़बर पढ़ती हूँ कि शायद आज कोई सरोकार से जुड़ी ख़बर पढ़ने को मिले; मगर ऐसा होता नहीं। लेकिन यह तय है कि मेरी अख़बार पढ़ने की न आदत छूटेगी, न ताज़ा ख़बरों में कोई माक़ूल ख़बर होगी।
- जेन्नी शबनम (26.8.2010)
- जेन्नी शबनम (26.8.2010)
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10 comments:
Bilkul sahi kaha.....aaj ke akhbar aur patrikaayain, saath T.V. channels in sansankhej samacharon ko dekar apni jagah banane ki koshish main hain...
saarthak paDhne walon ki sankhya bhi kam ho rahi hai.....
aaj ke nav yuvak/yuvtiyan kin vishyon par charchaa kartae hain sochkar lagta hai sahitya, samaj aur sanskaar kis tarf rukh kar rahe hain.....Gambhirta ka abhav hai.......
आप की रचना 27 अगस्त, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपने सुझाव देकर हमें प्रोत्साहित करें.
http://charchamanch.blogspot.com
आभार
अनामिका
यही हाल है...बिल्कुल सही कहा. अच्छा आलेख.
आजकल के समाचार पत्रों के स्वामी और सम्वाददाता विद्वान कम और छँटे हुए ज्यादा हैं!
sahi kaha Jenny jee aapne..........!!
jab tak media News ko bhi TRP/no. of copeis ke liye bhagana nahi chhodega.........system aisa hi rahega........!!
सही कहा बंधू ..........
http://oshotheone.blogspot.com/
अच्छी पोस्ट ....प्रभावित किया आपने..।
हर किसी के सुबह की यही कहानी है...कोई तो खुश करने वाली घटना हो इस देश में..
sahi kaha di, aajkal kahbre kam, vayavsaye jayda he, har chennal par wahi sab jo dusre channeal par hot ahe
bas remote ke buttons dabate raho, raha paper, me to bas HT daily hi leta hun, aur bahut hi ehsaan karte hue uske panne palat kar, 5-10 mint me khatm karta hun, kya karu, hota hi nhi kuch,,, magar man nhi manta na ....
acchi prastuti
kya karen Jenny ji ! sach maine to TV dekhna band hi kar dia hai .
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