Saturday, June 11, 2011

23. अन्ना और राम के देश में शर्मिला

 
भ्रष्टाचार और काला धन के मुद्दे पर समूचे देश में उथल-पुथल और बवाल मचा हुआ है जब अन्ना हजारे जंतर-मंतर पर अनशन पर बैठे, तो देश का हर नागरिक, कुछ सामाजिक और राजनितिक दल, अनेकों स्वयंसेवी संस्थाएँ, कई सामाजिक संगठन, बुद्धिजीवी, आम और ख़ास लोग एकजुट हो गए सरकार ने सभी माँगों को मान लिया और जन लोकपाल बिल बनाने पर सहमति के बाद उसपर क्रियान्वयन शुरू हो गया इस अनशन से कितनों की महत्वाकांक्षाओं को बल मिला और सरकार के ख़िलाफ़ एक मुहीम-सा चल पड़ा है आश्चर्य होता है, इसी देश की कोई एक महिला अकेले 11 साल से अनशन पर बैठी है और उसके साथ कोई नहीं बार-बार उसे जेल में डाला जाता है, उस पर आत्महत्या का आरोप लगाया गया, नाक में नली के द्वारा उसे जबरन भोज्य-पदार्थ दिया जा रहा है पिछले 11 साल से ये सिलसिला जारी है मुमकिन है देश के अधिकतर लोग इस महिला का नाम भी न जानते हों आम आदमी और मानवीयता के ख़िलाफ़ पिछले 53 साल से इस्तेमाल किए जा रहे भारतीय सशस्त्र सेना विशेषाधिकार अधिनियम 1958 को हटाए जाने को लेकर 11 सालों से भूख हड़ताल पर यह महिला बैठी है
 
11 सितम्बर, 1958 को भारतीय संसद ने सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून [आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर एक्ट (ए.एफ.एस.पी.ए.)] पारित किया शुरू में इसे 'सात बहनों' के नाम से विख्यात पूर्वोत्तर के सात राज्यों- असम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, नागालैंड, मिज़ोरम और त्रिपुरा में लागू किया गया वर्ष 1990 में इसे जम्मू कश्मीर में भी लागू कर दिया गया बेक़ाबू आन्तरिक सुरक्षा स्थिति को नियन्त्रित करने के लिए सरकार द्वारा सेना को यह विशेषाधिकार दिया गया, ताकि सुरक्षा के कड़े उपाय किए जा सकें इस कानून के तहत शक की बुनियाद पर बिना किसी वारंट के गिरफ़्तारी, गोली मारने या दूसरे तरीक़े से बल प्रयोग का अधिकार सुरक्षा बलों को है बिना इजाज़त किसी के भी घर में घुसकर तलाशी करने का अधिकार सेना को प्राप्त है परन्तु इस विशेषाधिकार का हनन वक़्त-वक़्त पर सेना द्वारा किया जाता रहा है और ये सभी राज्य इस कानून की पीड़ा का दंश विगत 53 साल से झेलते आ रहे हैं भारतीय संविधान के अनुच्छेद 355 की आड़ में पारित इस अमानवीय कानून के कारण सुरक्षा के नाम पर सेना को क्रूरता की सारी हदें पार करने का वैध सरकारी अधिकार मिल गया है इस कानून की आड़ में सेना के जवान खुलेआम क़त्ल और बलात्कार करते हैं  
 
वर्ष 1991 में असम में सैनिक कार्रवाई के दौरान शान्ति और सुरक्षा के नाम पर सैकड़ों निर्दोषों की हत्या कर दी गई बन्दूक़ के निशाने पर महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ वर्ष 1995 में कोहिमा में 'ऑपरेशन तलाशी' के दौरान जीप का टायर फटने से बौख़लाए सैनिकों ने बम हमले के अंदेशे के कारण अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी, जिसमें सात निर्दोष लोगों की मौत हुई और सात नाबालिगों सहित 22 लोग गम्भीर रूप से ज़ख़्मी हुए वर्ष 1995 में नमतिरम (मणिपुर) के पाँच गाँव में सैनिक कार्रवाई के दौरान कई महिलाओं से बलात्कार किया गया वर्ष 1997 में ओईनाम (मणिपुर) में सेना द्वरा जारी हिंसा का विरोध करने पर सैनिकों ने तीन महिलाओं के साथ बलात्कार कर 15 ग्रामीणों की हत्या कर दी और कई लोगों को बिजली के झटके देकर हमेशा के लिए विकलांग बना दिया  
 
इम्फाल से 10 किलोमीटर मालोम (मणिपुर) गाँव के बस स्टॉप पर बस के इंतिज़ार में खड़े 10 निहत्थे नागरिकों को उग्रवादी होने के सन्देह पर गोलियों से निर्ममतापूर्वक मार दिया गया मणिपुर के एक दैनिक अख़बार 'हुयेल लानपाऊ' की स्तम्भकार और गांधीवादी 35 वर्षीया इरोम शर्मिला 2 नवम्बर 2000 को इस क्रूर और अमानवीय कानून के विरोध में सत्याग्रह और आमरण अनशन पर अकेले बैठ गईं 6 नवम्बर 2000 को उन्हें 'आत्महत्या के प्रयास' के जुर्म में आई.पी.सी. की धारा 307 के तहत गिरफ़्तार किया गया और 20 नवम्बर 2000 को जबरन उनकी नाक में तरल पदार्थ डालने की कष्टदायक नली डाली गई पिछले 11 साल से उनका सत्याग्रह जारी है शर्मीला का कहना है कि जब तक भारत सरकार सेना के इस विशेषाधिकार कानून को पूर्णतः हटा नहीं लेती तब तक उनकी भूख हड़ताल जारी रहेगी  
 
शर्मिला की रिहाई के लिए तमाम विरोध और मानवाधिकारों के प्रदर्शन के बावजूद उन्हें नहीं छोड़ा गया कानून के मुताबिक़ अधिकतम एक साल के लिए ही जेल में रखा जा सकता है, इसलिए बार-बार शर्मिला को छोड़ा जाता है और फिर गिरफ़्तार कर लिया जाता है जवाहरलाल नेहरू अस्पताल, इम्फाल में शर्मिला क़ैद हैं, जहाँ उन्हें नली के द्वरा जबरन तरल भोज्य पदार्थ देकर जीवित रखा गया है; क्योंकि लाख कोशिशों के बावजूद शर्मिला अनशन न तोड़ने पर अडिग हैं शर्मिला कहती हैं ''मैं अपना अनशन नहीं तोड़ने जा रही, एक उद्देश्य के लिए मरने के लिए तैयार हूँ, जिसे मैं न्यायसंगत और सही समझती हूँ''
 
पिछले वर्ष मणिपुर की महिलाओं ने सैनिकों द्वारा बलात्कार और हिंसक कार्रवाइयों से त्रस्त होकर सेना के ख़िलाफ़ नग्न प्रदर्शन भी किया शर्मिला के समर्थन में कई महिला अधिकार संगठनों ने इम्फाल के जे.एन. अस्पताल के बाहर क्रमिक भूख हड़ताल शुरू कर दी है, यानी कि समूह बनाकर प्रतिदिन भूख हड़ताल करना शर्मिला के समर्थन में मणिपुर स्टेट कमीशन फॉर वूमेन, नेशनल कैम्पेन फॉर पीपुल्स राइट टू इंफॉरमेशन, नेशनल कैम्पेन फॉर दलित ह्यूमन राइट्स, एकता पीपुल्स यूनियन ऑफ़ ह्यूमन राइट्स, ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन, फोरम फॉर डेमोक्रेटिक इनिसिएटिव्स, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी-लेनिनवादी आदि शामिल हैं
 
शर्मिला के समर्थन में विदेशों की कई संस्थाएँ, जिनमें पूरी दुनिया के मानवाधिकार संगठनों और एन.आर.आई. फ्रेंड्स ऑफ़ साउथ एशिया, एन.आर.आई. फॉर ए सेक्युलर एंड हारमोनियस इंडिया, पाकिस्तान ऑर्गेनाइजेशंस, पीपुल्स डेवलपमेंट फाउंडेशन, इंडस वैली थियेटर ग्रुप, इंस्टिट्यूट फॉर पीस एंड सेक्युलर स्टडीज आदि शामिल हैं

 
इरोम शर्मिला का अनशन निःसंदेह दुनिया का सबसे लम्बा चलने वाला अनशन है जहाँ दूसरे देश शर्मिला के साथ हैं, वहीं अपना देश न सिर्फ़ ख़ामोश है; बल्कि शर्मिला की प्रताड़ना और बढ़ा दी गई शारीरिक रूप से बेहद कमज़ोर शर्मिला, 11 साल की अनवरत तपस्या और पीड़ा को अकेली झेलती शर्मिला, आज भी बुलन्द हौसला रखती हैं मणिपुर की ये लौह-महिला अपने कर्त्तव्य और देश के लिए अपनी जान की परवाह किए बिना कहती हैं ''एक दिन ज़रूर आएगा जब ख़ुशियाँ लौटेंगी।'' वे कहती हैं ''यह मेरे अकेले की लड़ाई नहीं है, मेरा सत्याग्रह शान्ति, प्रेम और सत्य की स्थापना हेतु समूचे मणिपुर की जनता के लिए है"  
 
अहिंसात्मक आन्दोलन की ये परिणति आख़िर क्यों? क्यों हमारे देश की जनता अन्ना और बाबा के साथ खड़ी हो जाती है; लेकिन शर्मिला को जानती तक नहीं शर्मिला की लड़ाई सिर्फ़ उनके अपने लिए नहीं है, पूरे देश के लिए है, मानवता के लिए है, उन औरतों के लिए है जिन्हें जब-न-तब रौंदा जाता है, बलात्कार किया जाता है, उन लाचारों के लिए है जिनके अपनों को उनकी आँखों के सामने कानून की आड़ में बेरहमी से मार दिया जाता है, उन बेज़ुबानों के लिए है जो चुप रहने को मज़बूर हैं कोई भी कहीं भी सुरक्षित नहीं है, सेना जब चाहे किसी का क़त्ल कर दे या क्रूरता से स्त्रियों की इज़्ज़त लूट ले मानवाधिकार संगठन के लाख प्रयास के बाद भी नतीजा कुछ नहीं निकला; क्योंकि सेना जो भी करती है उसे कानूनन सही साबित कर देती है और उन्हें ऐसा करने का विशेषाधिकार मिला हुआ है बलात्कार तो वैसे भी साबित नहीं हो पाता है; क्योंकि उसके बाद कोई स्त्री आवाज़ उठाने का साहस नहीं रखती है पुरुषों को सन्देह के आधार पर जब चाहे क़ैद कर ले या फिर हत्या कर दे
क्रूरता और दमन की कहानी लिखने वाला कोई और नहीं हमारा देश है, जो आज से 53 साल पहले लिख दिया इसके लिए हमारी सरकार ज़िम्मेदार है, जो हर एक घटना को जानते हुए भी ख़ामोश है अन्ना हजारे और रामदेव बाबा के अनशन के साथ लाखों लोग शामिल हो गए; लेकिन शर्मिला के साथ इनमें से कोई नहीं आया क्या अन्ना या बाबा पूर्वोत्तर राज्यों के इस अमानवीय क्रूर कानून को नहीं जानते? भ्रष्टाचार और काला धन के लिए तो ये लोग अनशन पर बैठ गए और अवसरवादिता का लाभ उठा रहे; लेकिन इंसानियत की लड़ाई के लिए ये इतने सालों से ख़ामोश क्यों हैं? क्या जवाब दे सकेंगे सामजिक सेवक अन्ना हजारे या योग गुरु बाबा रामदेव? अन्ना हजारे की सोच है कि एकमात्र लोकपाल बिल के द्वारा भ्रष्टाचार दूर हो जाएगा, योग-गुरु-व्यवसायी बाबा रामदेव सोचते हैं कि विदेश में पड़ा काला धन आ जाने से हमारे देश की सभी समस्या सुलझ जाएगी, भ्रष्टाचार दूर हो जाएगा और देश प्रगति-उन्नति कर लेगा  
 
क्या शर्मिला के बारे में जानकर किसी देशभक्त का ख़ून नहीं खौलता? अपने ही देश में अपनी ही चुनी हुई सरकार द्वारा ऐसा दमन, क्या प्रजातंत्र में ये जायज़ है? ये कैसा लोकतंत्र है, जिसमें कोई महिला 11 साल से इंसानियत के लिए संघर्ष कर रही है और हमारी जनता जो धर्म के नाम पर बवाल मचा देती है, चुप तमाशा देख रही है क्या शर्मिला का संघर्ष, अहिंसात्मक सत्याग्रह और अनशन हुक्मरानों को शर्मसार नहीं करता? क्या सिर्फ़ इसलिए कि इस राज्य की जनता कानून के कारण मज़बूर और लाचार है? क्या इसलिए कि शर्मिला एक स्त्री है? क्या ऐसे कानून पर अतिशीघ्र पाबन्दी नहीं लगनी चाहिए, जिससे आम जन-जीवन अपनी ज़िन्दगी चैन से जी सके? क्या शर्मिला को आम स्त्रियों की तरह जीने का हक़ नहीं? क्या शर्मिला को सपने देखने और जीने का हक़ नहीं?  
 
शर्मिला न जमानत चाहती हैं, न अपने लिए सरकार से रहम चाहती हैं, न अनशन तोड़ने को राज़ी हैं बस एक ही माँग कि सरकार इस काले कानून को बेशर्त ख़त्म करे उम्मीद और आशा के साथ शर्मिला अब भी अस्पताल में क़ैद हैं, जहाँ नाक में नली के द्वारा तरल पदार्थ दिया जा रहा है उम्मीद नहीं टूटती उनकी, तमाम यातनाओं को भोगते हुए भी कल के सुनहरे भविष्य के लिए संघर्षरत हैं, ताकि पूर्वोत्तर राज्यों में भी एक नई सुबह हो, जहाँ ज़िन्दगी को ज़िन्दगी की तरह आम इंसान जी सके

सलाम शर्मिला!
 
-जेन्नी शबनम (11.6.2011)
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Sunday, April 10, 2011

22. नाथनगर के अनाथ - 2 (अनाथालय भाग - 6)


श्री लखन लाल झा, जो 'रामानन्दी देवी हिन्दू अनाथालय' के अधीक्षक हैं, से बातें हो रही थीं तभी एक छोटा लड़का पापा-पापा कहते हुए आया और उनकी गोद में बैठ गया मैंने पूछा ''ये आपका बेटा है?'' लखन जी बड़े गर्व से कहते हैं ''मैडम, मैं यहाँ इन सब का पिता हूँ, सभी बच्चे मुझे पापा ही कहते हैं'' उन्होंने बताया कि यहाँ जो सेविका है उसे बच्चे माँ कहते हैं और ये परम्परा शुरू से है हम सभी के चेहरे पर संतोष की लहर-सी दौड़ गई मन ख़ुश हुआ कि यहाँ कोई बच्चा अनाथ नहीं है सभी बच्चों का नामकरण ये ख़ुद करते हैं और सभी के नाम के साथ 'भारती' लिख जाता है; क्योंकि ये सभी भारत की संतान हैं उन्होंने बताया कि यहाँ जो भी बच्चा आता है, उसके जाति या धर्म का पता नहीं होता जब जो मिल गया उसे हमलोग रख लेते हैं थाना में इतिल्ला कर आवश्यक कार्रवाई पूरी कर दी जाती है बच्चों की शिक्षा स्थानीय सरकारी स्कूल और कॉलेज में होती है बड़े होकर जबतक कुछ कमाने न लगें या विवाह न हो जाए तब तक वे यहीं रहते हैं

 
एक दिन मैं यों ही अनाथालय पहुँची, तो देखा कि कुछ महिलाएँ एकत्रित हैं  और एक स्त्री एक शिशु को गोद में लेकर प्यार कर रही है देखकर लगा कि ये बाहरी हैं, लेकिन प्यार करने के तरीक़े से लगा कि जैसे इनका अपना  बच्चा है जिज्ञासावश मैं उनके पास गई। पूछने पर पता चला कि वे पिछले चार महीने से दौड़ रही हैं, एक कन्या को गोद लेने के लिए अभी जिसे पसन्द किया है, सम्भावना है कि वह मिल जाए कानूनी कार्रवाई की लम्बी प्रक्रिया के कारण इससे पहले वाली बच्ची उन्हें न मिल सकी थी; क्योंकि बच्ची बड़ी हो गई और इन्हें बहुत छोटी कन्या चाहिए थी मैं अचम्भित हो गई आज जब सभी बालक चाहते हैं, पर ये सिर्फ़ कन्या! मन में कहीं एक गर्व-सा महसूस हुआ कि आज भी कुछ लोग हैं जो कन्या को इतना महत्व देते हैं, अन्यथा दुनिया इतनी भी बची न होती
 

मेरी बेटी के जन्मदिन पर मैंने यहाँ भोज का आयोजन किया था बच्चों के साथ पहुँची, तो क़रीब 20 साल का एक लड़का तेज़ी से आया और इशारे से अभिवादन किया उसके एक हाथ में बड़ा-सा एल्बम और दूसरे हाथ में एक स्मृति-चिन्ह था एल्बम ज़बरदस्ती मेरे हाथ में पकड़ा दिया और वह स्मृति चिन्ह भी मैं भौंचक! समझ हीं नहीं आया कि वह कौन है और क्यों दे रहा है पूछने पर बस मुस्कुराता रहा, मुँह से कुछ बोल नहीं रहा था मुझे असमंजस में देख वह बिना कुछ बोले एल्बम खोलकर तस्वीर दिखाने लगा मैं आश्चर्यचकित! राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से पुरस्कार लेते हुए तस्वीरें थीं मेरे मित्र ने बाद में बताया कि यह उदय भारती है, जो बचपन से यहीं पला है और वह मूक-बधिर है उसे स्काउट के लिए राष्ट्रपति से पुरस्कार मिला है मैं बहुत ख़ुश हुई उसे शब्दों द्वारा बधाई दी वह समझ नहीं पाया कि मैं क्या बोली या शायद मेरी बात समझ गया हो, वह बस मुस्कुराता रहा और गर्व से सभी को एल्बम और स्मृति-चिन्ह दिखाता रहा सच! प्रतिभा के सामने जीवन की कठिनाइयों को नतमस्तक होते देखा  
 
अनाथालय में रँगाई-पुताई चल रही थी पता चला कि सुषमा का विवाह राजकुमार शर्मा से हो रहा है, जो स्थानीय एयरटेल की कम्पनी में काम करता है और उसके माता-पिता की इच्छा से हो रहा है सुषमा चहकती-सी सामने आई और पूछने पर लजा गई शादी में निमंत्रण भी आया पर जा नहीं सकी; क्योंकि मैं दिल्ली आ चुकी थी अपने सहयोगी से उपहारस्वरूप कुछ धनराशि भेज दी, ताकि अपनी पसन्द और ज़रूरत से जो चाहे वह ले ले वर्ष 1955 से 2011 तक 30 लड़कियों का विवाह अनाथालय द्वारा किया जा चुका है 

 
अनाथालय के एक कर्मचारी ने बताया कि अनाथालय के ठीक सामने गुरुकुल, जो एक सरकारी स्कूल है, के गेट पर आज एक छोटी बच्ची मिली है बच्ची की उम्र कुछ महीने की है देखरेख करने वाली आया उसे गोद में लेकर बैठी थी बहुत प्यारी बच्ची थी आश्चर्य होता है कैसे कोई लावारिस छोड़ जाता है अपनी संतान हाँ! इतना सुकून ज़रूर मिला कि कम-से-कम यह जीवित है और सुरक्षित यहाँ पहुँच गई है।

कई बार मैं इस अनाथालय में आई हूँ कभी होली के मौक़े पर तो कभी बच्चों के जन्मदिन के अवसर पर मन में अक्सर सोचती थी कि ऐसा क्या किया जाए जो सिर्फ़ सुस्वादू भोजन या वस्त्र-वितरण से बढ़कर हो घर में विचार-विमर्श कर यह फ़ैसला लिया गया कि क्यों न इनकी शिक्षा का उत्तम प्रबंध किया जाए, ताकि इनमें से कुछ का भविष्य ज़्यादा सुरक्षित हो इस अनाथालय के सचिव अशोक मेहरा जी यह जानकार बहुत ख़ुश हुए और आनन-फानन में सब तय हो गया

नर्सरी से लेकर कक्षा दो तक के बच्चों का चयन किया गया; क्योंकि बड़ी कक्षा के छात्र का हिन्दी से अँगरेज़ी माध्यम में पढ़ना मुश्किल है कोमल भारती और रानी भारती 'नर्सरी', मोनी भारती और आकाश भारती 'प्रेप', लाल भारती 'कक्षा-1', रोशनी भारती और अभिषेक भारती 'कक्षा-2', यानी कूल सात बच्चों का मेरी संस्था 'संकल्प' द्वरा डी.पी.एस.भागलपुर में सत्र 2011-2012 में नामांकन कराया गया नामांकन शुल्क, वार्षिक शुल्क, अन्य शुल्क के साथ पुस्तक एवं अन्य शिक्षण सामाग्री, स्कूल ड्रेस, मध्यान्ह भोजन, परिवहन आदि का ख़र्च 'संकल्प' के माध्यम से डी.पी,एस,भागलपुर द्वारा किया गया 
उम्मीद है ये बच्चे समाज के आम बच्चों की तरह शिक्षा ग्रहणकर उच्च पद हासिल करेंगे ये स्वयं को अनाथ या स्वयं को किसी से कमतर नहीं आँकेंगे इन बच्चों को जब पहले दिन एक सादे समारोह में बुलाकर कुर्सी पर बिठाकर स्कूल ड्रेस और पुस्तक का वितरण किया गया, इन बच्चों की ख़ुशी और उत्साह का ठिकाना नहीं था थोड़ी झिझक भी थी उनमें पर ख़ास होने का एहसास उनके चेहरे से दिख रहा था बिना बताए ये बच्चे सभी का पाँव छूकर आशीर्वाद ले रहे थे सभी को तो नहीं पर कुछ को तो हम अच्छी ज़िन्दगी दे सकते हैं उम्मीद और आशा इनके साथ है, ये अब अनाथ नहीं हैं, यों पहले भी नहीं थे; क्योंकि अनाथालय में इनकी माँ और पापा हैं, जो शायद उतना ही प्रेम करते हैं जितना इनके सगे माँ-बाप करते।  
 
समाप्त! 
 
-जेन्नी शबनम (10.4.2011)
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Monday, April 4, 2011

21. नाथनगर के अनाथ (अनाथालय भाग - 5)


वे दो छोटी लड़कियाँ बड़ी-बड़ी आँखों से मुझे एक-टक देख रही थीं शरीर बिल्कुल शांत जैसे कि मृतप्राय, सिर्फ़ आँखें ही जीवित; लेकिन वह भी स्थिर, मानो पथरा गई हों जाने क्या था उन ख़ामोश नज़रों में कि मेरी नसों में अजीब-सी सिहरन दौड़ गई, मानो जीवित लाश देख लिया हो मैंने मेरा सिर चकराने लगा और मैंने जल्दी से दरवाज़े को पकड़ लिया मेरे मित्र भी घबरा गए कि अचानक क्या हो गया मुझे वे लोग जल्दी से मुझे लेकर बाहर निकले और मुझे सामने कुर्सी पर बिठाया फ़रवरी 2010 के होली के समय की यह घटना है, लेकिन मैं उस ठण्ड के दिन में भी पसीने-पसीने हो गई मेरी आँखें जैसे उन्हीं दोनों पर ठहर गई थीं, या उनकी आँखें मेरा पीछा कर रही थीं, और मैं चारो तरफ़ अजीब-सी भयभीत होकर देखने लगी मैं होश खो चुकी थी, घबराहट इतनी होने लगी कि एक शब्द भी बोल न पाई, महज़ इशारा कर सकी कि मैं ठीक हूँ  
 
यह नाथनगर का अनाथालय है, जहाँ दोनों बच्ची कुछ दिन पूर्व लाई गई थी, कोई इन्हें भागलपुर रेलवे स्टेशन की पटरियों पर फेंक गया था दोनों लड़कियाँ लगभग तीन-चार साल की हैं, लेकिन अवस्था के मुताबिक़ महज़ दो साल की लग रही थीं जब ये लाई गईं, तो बिल्कुल मरणासन्न अवस्था में थीं, जाने कब से भूखी थीं कि रो भी नहीं पा रही थीं इन्हें देखकर मैं सोचने लगी कि अगर उस दिन कोई न देखता तो ये दोनों आज यहाँ नहीं होतीं; बल्कि इनका शरीर ट्रेन से कटा हुआ वहाँ पड़ा होता उफ़! ये सब दिमाग़ में इतनी तेज़ी से आया और साथ ही उस दृश्य की कल्पना कि ये दोनों वहाँ ट्रेन से कटी पड़ी होतीं, मेरा दिमाग़ी संतुलन बिगड़ गया था सोचती रही कि कैसे कोई माँ नौ महीने कोख में रखकर और तीन-चार साल परवरिश कर यों मरने के लिए छोड़ गई आख़िर क्या मज़बूरी रही होगी? अगर ये दोनों मर जातीं, तो उसकी माँ पर क्या बीतती? हो सकता है दूर के किसी गाँव से उसकी माँ से छुपाकर बच्ची को यहाँ लाकर मरने के लिए कोई रख गया हो अगर मार देना नहीं चाहा होता, तो किसी मन्दिर, अस्पताल या सार्वजनिक जगह रख गया होता, जहाँ वे सुरक्षित होतीं? यों पटरी के पास छोड़ दिया, ताकि रात के अँधेरे में कोई ट्रेन इन्हें ख़त्म कर दे शायद इनकी तक़दीर से ट्रेन लेट थी, सो सुबह तक कोई ट्रेन नहीं गुज़री उस पटरी से, अन्यथा… सोचकर देह सिहर जाता है ओह!

'हिन्दू अनाथालय', नाथनगर, भागलपुर की स्थापना श्री कैलाश बिहारी लाल (एम.पी.) ने वर्ष 1925 में की थी पहले इसका नाम 'हिन्दू अनाथालय' था वर्ष 1930 में भागलपुर के देशभक्त नेता श्री दीपनारायण सिंह ने अपनी स्वर्गीय पत्नी श्रीमती रामानन्दी देवी की स्मृति में अनाथालय को 250 रुपए प्रतिमाह चंदास्वरूप देने का स्थायी प्रबंध किया, इस कारण इसका नाम परिवर्तित कर 'रामानन्दी देवी हिन्दू अनाथालय' कर दिया गया चंदे की ये राशि आज भी नियमित रूप से उनके स्थायी कोष से अनाथालय को मिल रही है अब तक यहाँ पर 2200 बच्चों का भरण-पोषण और शिक्षा का प्रबंध हो चुका है यहाँ से शिक्षित होकर छात्र सेना, वकालत, अध्यापन तथा अन्य नौकरी में जा चुके हैं यहाँ कम्प्यूटर, गौशाला और खेती का भी प्रशिक्षण दिया जाता है अब तक यहाँ से 30 लड़कियों की शादी की जा चुकी है नौकरी और विवाह के उपरान्त इसे अपना घर मानकर ये सभी कभी-कभी आते रहते हैं पूर्वी बिहार की यह एकमात्र लाइसेंस प्राप्त संस्था है, जो बच्चों को गोद देने के लिए अधिकृत है अबतक 20 बच्चों को निःसंतान दंपती को गोद दिया जा चुका है
अभी यहाँ के सचिव श्री अशोक मेहरा हैं तथा अधीक्षक श्री लखन लाल झा हैं ऑफ़िस स्टाफ श्री दिवाकर चौधरी और प्रीतम जी हैं। यहाँ चार सेविका और तीन रसोइया हैं यहाँ सभी उम्र के 55 लड़के-लड़कियाँ हैं, जिनमें 10 बच्चे स्थानीय कॉलेज में पढ़ रहे हैं, 35 बच्चे स्कूल जाते हैं तथा 10 बच्चे बहुत छोटे हैं सभी बच्चों का लालन-पालन, भोजन, शिक्षा, आवास, वस्त्र, चिकित्सा इत्यादि की व्यवस्था अनाथालय करता है अनाथालय के पास छह बीघा कृषि योग्य भूमि है, जहाँ सब्ज़ी उपजाई जाती है परिसर में गौशाला है ताकि बच्चों को शुद्ध दूध मुहैया कराया जा सके अनाथालय की अपनी ज़मीन है और पूरा मकान साफ़-सुथरा पक्के का है, सिर्फ़ खाना जहाँ पकता है उसकी छत फूस की है यह अनाथालय एक ट्रस्ट के माध्यम से चलता है और इसे कोई सरकारी मदद नहीं मिलती है, धन का एकमात्र स्रोत चंदा है  
जारी... 
 
-जेन्नी शबनम (4.4.2011)
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