वो भी शायद रो पड़े वीरान काग़ज़ देखकर
मैंने उसको आख़िरी ख़त में लिखा कुछ भी नहीं।
डॉ. जेन्नी शबनम के कुछ इसी प्रकार के 105 ‘सन्नाटे के ख़त’ हैं, जो समय-समय पर चुप्पी के द्वारा लिखे गए हैं। वास्तविकता तो यह है कि हम जिससे प्रेम करते हैं, उसे सही समय पर अभिव्यक्त नहीं करते। जिसे घृणा करते हैं, सामाजिक दबाव में उसको कभी होंठों पर नहीं लाते। परिणाम होता है, जीवन को भार की तरह ढोते हुए चलते जाना।
ये ख़त मन के उस दराज़ में रखे थे, जिसे कभी खोलने का अवसर ही नहीं मिला। अब जी कड़ा करके पढ़ने का प्रयास किया; क्योंकि ये वे ख़त हैं, जो कभी भेजे ही नहीं गए। किसको भेजने थे? स्वयं को ही भेजने थे। अब तक जो अव्यक्त था, उसे ही तो कहना था। पूरा जीवन तो जन्म-मृत्यु, प्रेम घृणा, स्वप्न और यथार्थ के बीच अनुबन्ध करने और निभाने में ही चला गया-
एक अनुबन्ध है जन्म और मृत्यु के बीच
कभी साथ-साथ घटित न होना
एक अनुबन्ध है प्रेम और घृणा के बीच
कभी साथ-साथ फलित न होना
एक अनुबन्ध है स्वप्न और यथार्थ के बीच
कभी सम्पूर्ण सत्य न होना
जीवनभर कण्टकाकीर्ण मार्ग पर ही चलना पड़ता है; क्योंकि जिसे हमने अपना समझ लिया है, उसका अनुगमन करना था। मन की दुविधा व्यक्ति को अनिर्णय की स्थिति में लाकर खड़ा कर देती है, जिसके कारण सही मार्ग का चयन नहीं हो पाता, जबकि-
उस रास्ते पर दोबारा क्यों जाना
जहाँ पाँव में छाले पड़ें, सीने में शूल चुभें
बोझिल साँसें जाने कब रुकें।
निराश होकर हम आगे बढ़ने का मार्ग ही खो बैठते हैं। आधे-अधूरे सपने ही तो सब कुछ नहीं। सपनों से परे भी तो कुछ है। कवयित्री ने जीवन में एक अबुझ प्यास को जिया है। मन की यह प्यास किसी सागर, नदी या झील से नहीं बुझ सकती।
घर बनाने में और उसको सँभालने में ही हमारा सारा पुरुषार्थ चुक जाता है। इसी भ्रम में जीवन के सारे मधुर पल बीत जाते हैं-
शून्य को ईंट-गारे से घेर, घर बनाना
एक भ्रम ही तो है
बेजान दीवारों से घर नहीं, महज़ आशियाना बनता है
घरों को मकान बनते अक्सर देखा है
मकान का घर बनना, ख़्वाबों-सा लगता है।
इन 105 ख़तों में मन का सारा अन्तर्द्वन्द्व, अपने विभिन्न रूपों में अभिव्यक्त हुआ है। आशा है पाठक इन ख़तों को पढ़कर अन्तर्मन में महसूस करेंगे।
दीपावली: 31.10.2024 -रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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- जेन्नी शबनम (16.1.2025)
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4 comments:
बहुत ही सुन्दर समीक्षा...!
बहुत बहुत बधाई... 🌹🌹
अविस्मरणीय भाव संयोजन!
बहुत सुन्दर, सारगर्भित भूमिका, आदरणीय काम्बोज जी की भूमिका ने सन्नाटे के ख़त पढ़ने की जिज्ञासा बढ़ा दी, आपको एवं आदरणीय काम्बोज जी को बहुत बहुत बधाई
वाह!!!
लाजवाब भूमिका,
आ. रामेश्वर कम्बोज जी द्वारा लिखित भूमिका सन्नाटे के खत पढ़ने को लालायित करती है
बधाई एवं शुभकामनाएं ।
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