अंतरिक्ष जिसे अँग्रेज़ी में स्पेस (space) कहते हैं, मुझे सदैव बड़ा ही रहस्यमय लगता है। जब मैं छोटी थी तब अपनी माँ के साथ एक कॉन्फ्रेंस में कलकत्ता (कोलकाता) गई। वहाँ पहली बार तारामण्डल देखने गई। जब वहाँ गई तो दिन था और जैसे शो शुरू हुआ रात हो गई, रात की तरह चाँद-तारे उग गए। जैसे रात में नींद आती है, वैसे ही नींद आ गई और मैं कुर्सी पर सो गई। माँ ने मुझे उठाया और मैं देखने लगी कि आसमान में क्या सब हो रहा है। शो के बाद बाहर आई तो दिन ही था। मुझे समझ नहीं आया कि अभी तो रात थी, दिन कैसे हो गया।
बचपन में सोचती थी कि आकाश दिन में आसमानी और रात में चाँद-तारों से भरा अँधेरा क्यों हो जाता है। सूरज तो आसमान में रहता है फिर वहाँ अँधेरा कहाँ से आ जाता है। बचपन से ही एक कुतूहल मन में रहता था कि अंतरिक्ष कहाँ है, ब्रह्माण्ड कहाँ है, सूरज डूबकर कहाँ सोने चला जाता है, चाँद बड़ा-छोटा क्यों दिखता है और कभी-कभी कहाँ ग़ायब हो जाता है, आकाश कितना दूर है, वहाँ क्या-क्या होता है, वहाँ कौन-कौन रहता है, क्या मरने के बाद लोग आकाश में रहते हैं या तारा बन जाते हैं, क्या सच में वहाँ ईश्वर रहता है। समय और उम्र के साथ इन सवालों के जवाब थोड़े-थोड़े मुझे मिलते गए, लेकिन पूर्ण जवाब न मिल सका। आज भी मुझे अंतरिक्ष, ब्रह्माण्ड, सूरज, चाँद, तारा, ईश्वर जैसे विषय को जानना-समझना रुचिकर लगता है।
पृथ्वी के वायुमण्डल के बाहर का ख़ाली स्थान अथवा किसी दो ग्रहों के बीच का शून्य स्थान जिसका असीमित विस्तार है और जिसका क्षेत्र त्रि-आयामी है, अंतरिक्ष कहलाता है। इसमें लाखों आकाशगंगा (Galaxy), सभी ग्रह, उपग्रह, नक्षत्र, तारे, उल्कापिंड, मैग्नेटिक फील्ड, ब्लैक होल इत्यादि मौजूद है। अंतरिक्ष में न हवा है, न पानी, न गुरुत्वाकर्षण बल। यहाँ सूरज की रोशनी बिखर नहीं सकती है, इसलिए अँधेरा रहता है। अंतरिक्ष एक निर्वात (vacuum) है जहाँ किसी की आवाज़ नहीं सुन सकते। यहाँ ख़तरनाक रेडिएशन है।
वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष के ढेरों रहस्य खोज लिए, पर अभी भी बहुत से रहस्य ऐसे हैं जो खोजे न जा सके हैं। जिस तरह विज्ञान ने प्रगति की है, मुमकिन है अंतरिक्ष का हर रहस्य खोज लिया जाएगा। भारत तथा अन्य देशों के ढेरों मानव निर्मित उपग्रह यानी कृत्रिम उपग्रह (Satellite) अंतरिक्ष में स्थापित किए गए हैं, जिनसे लगातार अंतरिक्ष के अध्ययन और खोज किए जा रहे हैं। वर्ष 1957 में सोवियत यूनियन ने पहला कृत्रिम उपग्रह 'स्पुतनिक' अंतरिक्ष में स्थापित किया था। एक उपग्रह ट्रैकिंग वेबसाइट के अनुसार मई 2024 तक अंतरिक्ष में कुल सक्रिय उपग्रह क़रीब 9,900 हैं। वर्ष 2028 तक हर साल 990 उपग्रह प्रक्षेपित किए जाने का अनुमान है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 23 अगस्त, 2023 को चन्द्रमा पर चंद्रयान-3 विक्रम लैंडर को चन्द्रमा ध्रुवीय क्षेत्र पर सफलतापूर्वक उतारा था। इस उपलब्धि के कारण हर वर्ष 23 अगस्त को भारत सरकार द्वारा 'राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस' घोषित किया गया है। भारत का पहला स्वदेशी उपग्रह 'आर्यभट्ट' 19 अप्रैल 1975 को प्रक्षेपित किया गया, जिसे इसरो द्वारा बनाया गया था। इसरो के अनुसार वर्ष 2030 तक अंतरिक्ष में भारत का अपना अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित किया जाएगा, जो भारत के लिए बड़ी उपलब्धि होगी।
अंतरिक्ष में उपग्रह के ज़रिए परिवहन, संचार, सार्वजनिक सुरक्षा, रक्षा, सरहद की सुरक्षा, शिक्षा, पर्यावरण, स्वास्थ्य व चिकित्सा, वैज्ञानिक व प्रौद्योगिकी अनुसंधान व विकास, अंतरिक्ष विज्ञान, सूचना प्रोद्योगिकी, पृथ्वी अवलोकन, टेलीविजन प्रसारण, मौसम का अनुमान, जलवायु परिवर्तन आदि का काम होता है। टेलीमेडिसिन और टेली-हेल्थ के क्षेत्र में भी उपग्रह से बड़ा योगदान मिलता है। आपदा प्रबंधन और उसके निदान में अंतरिक्ष प्रोद्योगिकी का महत्त्वपूर्ण योगदान है। मोबाइल सेवा, इंटरनेट कनेक्टिविटी, वित्तीय लेन-देन भी उपग्रह पर निर्भर है। यह न हो तो हम न फ़ोन कर सकेंगे, न टेक्सट भेज सकेंगे और न इंटरनेट का उपयोग कर सकेंगे। ये उपग्रह पृथ्वी की कक्षा में परिक्रमा कर सभी कार्यों का निष्पादन और संचालन की व्यवस्था करते हैं, साथ ही अंतरिक्ष के रहस्यों का पता करते हैं।
अंतरिक्ष से जुड़े कार्य में लाखों लोग कार्यरत हैं। घर बैठे हम जो चाहें जान सकते हैं। विज्ञान और तकनीक की प्रगति में अंतरिक्ष उद्योग बहुत सहायक है। आज हम इसके बिना जीवन की कल्पना नहीं कर सकते हैं। अंतरिक्ष से जुड़े कार्य हमारे जीवन को सहूलियत, सुविधा और ज्ञान देते हैं, साथ ही हमारे अन्धविश्वास को दूर कर रहे हैं। जिस ब्रह्माण्ड को ईश्वर का स्थान माना जाता था, वहाँ का सारा रहस्य लगभग ज्ञात हो चुका है। संसार, ब्रह्माण्ड, अंतरिक्ष, ग्रह, नक्षत्र इत्यादि का विस्तृत रूप से तथ्यपूर्ण व तर्कपूर्ण ज्ञान प्राप्त हो चुका है। हमारे ढेरों अंधविश्वास को भी विज्ञान और तकनीक ने नकार दिया है।
अंतरिक्ष-उद्योग में अंतरिक्ष-पर्यटन-उद्योग लगातार बढ़ रहा है। अंतरिक्ष पर जाना बेहद ख़र्चीला है, फिर भी लोग अंतरिक्ष-यात्रा का अनुभव लेने जाते हैं। यह यात्रा आम लोगों के लिए सहज सुलभ नहीं है। अंतरिक्ष-यात्रा के लिए विशेष प्रकार का प्रशिक्षण लेना होता है; क्योंकि वहाँ सामान्य जीवन नहीं होता, न सामान्य तरीके से रह सकते हैं। भविष्य में इस उद्योग के विस्तार की प्रबल संभावना है; क्योंकि हर देश इस क्षेत्र में सर्वोपरि बनना चाहता है।
अंतरिक्ष-उद्योग लगातार बढ़ रहा है, जिसके कारण अंतरिक्ष में उपग्रहों की बाढ़-सी आ गई है। नासा के अनुसार करीब 8400 टन कचरा अंतरिक्ष में है, जो लगातार पृथ्वी की कक्षा में घूम रहा है। अगर एक भी टुकड़ा पृथ्वी पर गिरा तो भारी तबाही कर सकता है। उपग्रह प्रक्षेपित करने के लिए जो रॉकेट वहाँ गए उसके अंश, फ्यूल टैंक, बोल्ट्स, बैटरी, लॉन्चिंग से जुड़े हार्डवेयर आदि अंतरिक्ष में कचरा के रूप में जमा हैं। अंतरिक्ष में कचरा कम हो इसके लिए अन्य देशों की तरह इसरो भी लगातार अध्ययन कर रहा है।
अंतरिक्ष के कार्यों से जहाँ दुनिया ने इतनी प्रगति और खोज कर ली है, वहीं इसके नुक़सान भी बहुत अधिक हैं। लगातार सभी देशों में होड़ लगी है कि अंतरिक्ष में कौन कितना ज़्यादा उपग्रह प्रक्षेपण कर अपना वर्चस्व दिखा सकता है। इसके कारण अंतरिक्ष में उपग्रहों की भीड़ बढ़ती जा रही है। प्रतिस्पर्धा और श्रेष्ठता साबित करने के लिए हर देश अंतरिक्ष में अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहता है। जिसके पास जितना ज़्यादा उपग्रह होगा उसके पास उतनी ज़्यादा शक्ति होगी। कोई भी देश मनमानी करके कभी भी कहीं भी विनाश ला सकता है और इससे समस्त मानवता ही नहीं, बल्कि पूरी पृथ्वी के नष्ट होने का ख़तरा पैदा हो गया है।
अंतरिक्ष में जितना ज़्यादा उपग्रह स्थापित किया जाएगा उतना ही ज़्यादा कचरा जमा होगा। ज़्यादा उपग्रह होने से अंतरिक्ष-मलबा और कार्बन उत्सर्जन जैसी चुनौती उत्पन्न हो गई है। उपग्रह और अंतरिक्ष-कचरा के बीच टकराव होने का ख़तरा पैदा हो गया है। अंतरिक्ष में जाने वाला हर रॉकेट काला कार्बन, नाइट्रोजन ऑक्साइड, क्लोरीन, छोड़ता है जिससे पृथ्वी पर ग्लोबल वार्मिंग और अन्य पर्यावरणीय समस्या पैदा हो रही है। अंतरिक्ष उड़ान की गतिविधि ज़्यादा बढ़ने से ओजोन परत को नुक़सान हो रहा है। रॉकेट के कारण वायुमण्डलीय प्रदूषण हो रहा है। अन्तरिक्ष में लम्बे समय तक रहने से मनुष्य की हड्डियाँ और मांसपेशियाँ कमज़ोर हो जाती हैं, विशेषकर पैरों और पीठ के निचले हिस्से की।
किसी भी युद्ध की दशा में अब अंतरिक्ष-युद्ध होगा। आज हर देश की तमाम सेवाएँ उपग्रह के ज़रिए ही होती हैं। दुश्मन देश के उपग्रह को नष्टकर उस देश के रक्षा, वित्त, स्वास्थ्य, शिक्षा, संचार, परिवहन जैसे आधारीय संरचना को ठप्प कर सकते हैं। ऐसे में दुश्मन देश सक्षम होते हुए भी हार जाएगा। उपग्रह के नष्ट होने से ज़मीन पर चल रहे युद्ध पर बहुत बड़ा असर होगा। अंतरिक्ष में मौजूद उपग्रह युद्ध में इस्तेमाल होने वाले हथियारों और सैनिकों को जी.पी.एस. (Global Positioning System) से दिशा-निर्देश देना, दुश्मन की गतिविधियों पर निगरानी करना, कमांड और कंट्रोल देना आदि करते है। अगर ऐसे उपग्रह नष्ट कर दिए जाएँ तो परिणाम का अंदाज़ा हम लगा सकते हैं। इतिहास में पहले अंतरिक्ष युद्ध का उदहारण है जब 31 अक्टूबर 2023 को इज़रायल-हमास युद्ध में इज़रायल पर यमनी मिसाइल हमले के दौरान इज़राइल ने अपने एरो 2 मिसाइल रक्षा प्रणाली द्वारा हौथी बैलिस्टिक मिसाइल को रोक दिया था।
विज्ञान की प्रगति ने एक तरफ़ अंतरिक्ष तक हमारी पहुँच बना दी है तो दूसरी तरफ़ ख़ौफ़ का ऐसा अनदेखा साया पूरी पृथ्वी ही नहीं ब्रह्माण्ड पर मँडरा रहा है, जिसमें संसार के विनाश का हर उपाय मौजूद है। कौन देश किस तरह से हमला करेगा, इसका अंदाज़ा भी नहीं लगाया जा सकता है। उपग्रह पर हमला कर किसी भी देश की व्यवस्था को सहज रूप से नष्ट किया जा सकता है। यदि ये उपग्रह नष्ट हुए तो हमारा जीवन पूर्णतः ध्वस्त हो जाएगा। अतः मानवता के लाभ-हानि पर विचार कर अंतरिक्ष क्षेत्र पर राज करने का विचार त्यागकर सिर्फ़ प्रगति के लिए नियंत्रित एवं संयमित होकर अंतरिक्ष का उपयोग किया जाना आवश्यक है।
- जेन्नी शबनम (25.7.2024)
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3 comments:
आपकी लफ़्ज़ियात रवां दवां हैं मा'नीख़ेज़ तहरीर में लहरों की सी रवानी है जो पढ़ने वाले के ज़हन पर एक अलग कैफ़ीयत का एहसास करवाती है
बुनियाद ज़हीन
बहुत जानकारीपूर्ण लेख.
बालमन की सहज जिज्ञासा से उत्पन्न प्रश्नों से अंतरिक्ष के रहस्य टटोलते हुए नई नई खोजों की जानकारी और विकास के साथ भविष्य के संभावित खतरों की ओर आगाह करता ज्ञानवर्धक आलेख ।इस विषय पर लगातार लिखने की आवश्यकता है। हार्दिक बधाई।
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