Friday, May 1, 2020

75. हम मेहनतकश इस दुनिया से जब अपना हिस्सा माँगेंगे

आज अंतरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस है हर साल यह दिन आता है और ऐसे चला जाता है जैसे रोज़ सुबह का उगता सूरज अपने नियत समय पर शाम क ढ़ल जाता है कहीं कोई सुगबुगाहट नहीं, कहीं कोई शोर नहीं, बदलाव के लिए पूरज़ोर आवाज़ नहीं मज़दूरों किसानों के लिए कहीं कोई इंतजाम नहीं, उनके जीने के लिए कोई सहूलियत नहीं यूँ सत्ता पर आसीन हर सरकार किसानों मजदूरों के लिए बड़ी-बड़ी बातें, बड़ी-बड़ी योजनाएँ, बड़ी-बड़ी घोषणाएँ करती है लेकिन धरातल पर कहीं कुछ नहीं होता है साम्यवादी और समाजवादी विचारधारा की पार्टियाँ किसानों मज़दूरों के हक़ के लिए शुरू से प्रतिबद्ध है और समय-समय पर इनके लिए सरकार से लड़ती रही है। लेकिन वह नारों से इतर मजदूरों की स्थिति बदलने में नाकाम रही है आज किसानों मजदूरों के हित के लिए जो भी सहूलियत है, भले बहुत कम सही, पर इनके ही बदौलत है।   

बचपन से फैज़ अहमद फैज़ का मशहूर गीत, जिसे सुन-सुनकर हम बड़े हुए हैं बरबस ही आज के दिन मुझे याद आ जाता है -

हम मेहनतकश जगवालों से जब अपना हिस्सा माँगेंगे  
इक खेत नहीं, इक देश नहीं, हम सारी दुनिया माँगेंगे 
वो सेठ व्यापारी रजवाड़े, दस लाख तो हम हैं दस करोड़ 
ये कब तक अमरीका से, जीने का सहारा माँगेंगे  

आज के दिवस पर 5 साल पुरानी एक घटना याद आ रही है। हम लोग घूमने के लिए लन्दन गए और वहाँ एक होटल में ठहरे थे बाथरूम का फ्लश ख़राब हो गया था, तो मैंने रिसेप्शन पर ठीक करवाने के लिए कह दिया कुछ मिनट ही बीते होंगे कि दरवाज़े की घंटी बजी, जाकर मैंने दरवाज़ा खोला सामने एक लंबा-सा नौजवान खड़ा था, जिसने शर्ट, पैंट, कोट, चमचमाता जूता और हाथ में दस्ताना पहना हुआ था उसने पूछा कि आपने रिसेप्शन पर कॉल किया था मैं बोली कि हाँ, कॉल किया था, बाथरूम का फ्लश खराब हो गया है, कृपया किसी को ठीक करने भेज दीजिए वह बोला ठीक है, एक मिनट में आया फिर वह एक बैग लेकर आया और बाथरूम ठीक करने लगा मैं हतप्रभ हो गई मैं तो उसे होटल का मेनेजर समझ रही थी उसे देखकर मैं सोचने लगी कि हमारे देश में अगर होता तो उसका वस्त्र कैसा होता शर्ट पैंट तो ठीक है परन्तु चमचमाता जूता और हाथ में दस्ताना, यह तो मैंने आज तक नहीं देखा मैं सोचने लगी हमारे देश में गंदे नाले की सफाई में हर साल कितने लोगों की मृत्यु हो जाती है हमारे यहाँ स्वीपर या सफाईकर्मियों को सबसे निम्न दर्ज़ा प्राप्त है। हमारी सरकार को इनकी सुरक्षा और सम्मान के लिए कड़े नियम बनाने होंगे अगर ये न हों तो हमारे लिए जीवन नामुमकिन हो जाएगा निश्चित ही सफाईकर्मियों का महत्व हम सभी को इस कोरोनाकाल में अच्छी तरह समझ आ गया है शायद अब इनके हालात में थोड़ा ही सही पर सुधार हो।   

किसानों की ज़मीन लेकर बड़े उद्योगपतियों को उद्योग लगाने के लिए दी गई किसानों की खेती की ज़मीन सस्ते में लेकर उसपर मॉल बनाए जा रहे हैं, बड़ी-बड़ी अट्टालिकाएँ बनाई जा रही हैं यह तो तय है कि इन सबका निर्माण मज़दूर करता है, और उन्हीं के पास अपना सिर छिपाने के लिए छत नहीं होता है जिनकी खेती की ज़मीन ले ली गई, उनके भरण पोषण के लिए कोई निदान नहीं किया गया वे या तो पलायन कर जाते हैं या फिर किसी तरह उम्र काटने के लिए आसमान की तरफ हाथ उठाए दुआओं में ज़िन्दगी खपाते हैंकिसान का ऋण उनके जीवन का ऋण होता है, जिसे चुकाने में वे अपनी जान की बाज़ी लगा देते हैं परन्तु मौसम की मार, सरकार की बेरुखी और निरंकुशता किसानों को तोड़ देती है और वे कभी उससे बाहर नहीं आ पाते हैं    

इंसान की पाँच बुनियादी ज़रूरतें भोजन, वस्त्र, आवास, शिक्षा और स्वास्थ्य है, जिसके बिना एक सुसंस्कृत और विकसित देश की कल्पना संभव नहीं है परन्तु आज भी हमारे देश में इन विषयों पर सरकार का ध्यान नहीं जाता है सरकारी योजनाओं का फ़ायदा उच्च वर्ग और पूंजीपतियों को ही मिलता है आम लोग जिनमें निम्न वर्ग, आदिवासी, दलितो, किसान, मजदूर, असंगठित कामगार आदि को इसका कोई लाभ नहीं मिलता है    

छोटे शहरों और गाँव में आज भी अस्पताल नहीं है वहाँ आज भी ऐसे स्वास्थ्यकर्मी नहीं है, जो लोगों को स्वस्थ्य के प्रति जागरूक कर सकें। यहाँ का कोई निवासी बीमार हो तो छोटा ही सही कोई अस्पताल तो हो ताकि बिना इलाज़ वह मरें नहीं अगर किसी को कोई बड़ी बीमारी हो गई तो बड़े शहर जाकर इलाज़ कराना बहुत कठिन होता है। इसलिए उन पिछड़े इलाकों में इलाज़ के अभाव में मृत्यु बहुत ज्यादा होती है अस्पताल और प्रशिक्षित दाई न होने के कारण गाँव में आज भी अधिकांश बच्चों का जन्म घर में ही होता है, जिसे गाँव की अप्रशिक्षित दाई करवाती है जच्चा बच्चा राम भरोसे।   

गाँव हो या शहर (दिल्ली को छोड़कर) जहाँ भी सरकारी स्कूल है, वहाँ के शिक्षा का स्तर तो सभी को मालूम ही है सरकार से अनुदान मिलने पर भी भ्रष्टाचार का दीमक सब चट कर जाता है देश में दो तरह की शिक्षा पद्धति जब तक रहेगी, समाज के दोनों वर्गों की खाई कभी नहीं भरेगी पूरे देश में सिर्फ एक माध्यम से पढाई होनी चाहिए और अमीर हों या गरीब सभी की शिक्षा निःशुल्क एक साथ हो हमारे देश में जब हिन्दू-हिन्दू करने वाली सरकार बनी तो मुझे सिर्फ एक बात की उम्मीद थी, कि यह पार्टी जो खुद को भारतीय संस्कृति की अकेली पैरोकार मानती है, भारतीय परिधान और हिन्दी पर जोर देती है, तो शायद हिन्दी को हमारे देश की राष्ट्रभाषा ज़रूर बनाएगी पर ऐसा कुछ न हुआ, आज भी हम अंग्रेजी की गुलामी कर रहे हैं।   

जब से राम मंदिर प्रकरण शुरू हुआ है, देश का साम्प्रदायिक सौहार्द इस तरह बिगड़ गया है कि लोगों में आपसी प्रेम पनपना नामुमकिन है हर घटना को हिन्दू मुस्लिम के ही चश्मे से देखा जाता है यह हिन्दू मुस्लिम करवाने वाली तो राजनीतिक पार्टियाँ हैं, लेकिन करने वाले वे बेरोजगार और अशिक्षित हैं जिनके पास कोई काम नहीं या यूँ कहें कि कि इन्हें ऐसा करने के लिए पोषित किया जाता है और हर पार्टी में ऐसे लोगों का संगठित हूजुम है जो हर वक़्त हिन्दू मुसलमान करता रहता है जिनके पास पेट भरने के लिए नहीं वे लोग सहज इस अपराध में शामिल हो जाते हैं दंगा हो या आतंकवाद, इसके जड़ में अशिक्षा और बेरोजगारी ही हैजाति और साम्प्रदायिक आधार पर किसानों मजदूरों को बाँटने का काम करके वोट बैंक तैयार होता है और उनके द्वारा जन विरोधी कार्य करवाए जाते हैं।   

हमारी सभी आशाएँ मिट चुकी हैं। अँधेरा गहराता जा रहा है। फिर भी उम्मीद की एक किरण है जो कभी-कभी दिख जाती है। महीनों से कोरोना संकट से जूझ रहे प्रवासी कामगारों, श्रमिकों, मजदूरों, छात्रों और वे सब जो अपने-अपने घरों से दूर हैं; उनमें से कुछ के लिए सरकार द्वारा घर वापसी का प्रबंध किया गया है। आज एक ट्रेन रवाना हुई है, जिसमें काफी लोग, जो घर पहुँच पाने की उम्मीद छोड़ चुके थे, अपने-अपने घरों को जा रहे हैं; भले ही कोरोना से बचाव के लिए कुछ और जाँच किए जाएँगे। काफी देर से पर सरकार ने एक सही कदम उठाया है। इस देरी के कारण न जाने कितने लोगों की जान चली गई है। जिनके पास घर नहीं, पैसा नहीं, खाना नहीं वे कैसे गुजारा करते, कैसे व्यक्तिगत दूरी का पालन करते हुए खुद को कोरोना से बचाते? भय और आशंका के कारण कामगारों ने जान जोखिम में डाल कर, एक झोले में अपना पूरा घर समेटकर कितने-कितने किलोमीटर नंगे पाँव चल दिए। पर उनमें से बहुत कम ही अपने प्रांत या घर पहुँच पाए। किसी-किसी का भूख से दम निकला, तो किसी-किसी का शरीर इतनी लम्बी दूरी चलना सह नहीं पाया और काल-कवलित हो गया। अधिकांश तो लॉकडाउन तोड़ने के जुर्म में पुलिस से मार भी खाए और शेल्टर होम की शोभा बढ़ाने के लिए वहाँ ठहराए भी गए। कई मेहनतकश ने तो मुफ्त का रहना स्वीकार न किया और अपने हुनर का इस्तेमाल कर उस स्थान को रंग रोगन कर सुन्दर बना कर एक अच्छा उदाहरण पेश किया। आज के दिन बस यही कामना है कि जितने भी लोग घर से दूर अपने घर जाने की बाट जोह रहे हैं, सरकार उन्हें सुरक्षित तरीके से उनके घर पहुँचवा दे।   

मजदूर दिवस की शुभकामनाएँ!   

- जेन्नी शबनम (1. 5. 2020)   
____________________________________________ 

29 comments:

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर = RAJA Kumarendra Singh Sengar said...

मजदूरों की बात होते-होते अचानक से राम मंदिर उछल आया? उसके पहले सामाजिक सद्भाव सही था? उसके पहले मजदूरों की स्थिति सही थी?
हिन्दू-मुस्लिम तो आज़ादी के पहले से आरम्भ हो गया था, शायद जानकारी होगी आपको?
बहरहाल, एक अच्छे बिंदु से आरम्भ हुआ लेख का.. फिर लन्दन वाले मजदूर की स्थिति के बाद लगा कि शायद देश की किसी स्थिति में परिवर्तन करने जैसी कोई बात हो मगर.....
फिलहाल....

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

मजदूर दिवस को सार्थक करती सुन्दर प्रस्तुति।

संगीता पुरी said...

मैंने भी लिखा है कि कुल लाभ को जवाबदेह सभी कारकों, पूंजी, भूमि, व्यवस्था, श्रमिक और साहस के मध्य सामान बँटवारा हो ! पूंजीवाद में ही समाजवाद आ जायेगा !

अजय कुमार झा said...

हम सब जितनी चिंता इन मेहनत कश लोगों की कर लेते हैं कर पाते हैं पता नहीं सरकार और प्रशासन आखिर क्यूँ नहीं कर पाता . श्रमिक वर्ग में सबसे बुरी स्थिति महिलाओं और बच्चों की है | सार्थक चिंतन करती पोस्ट

Udan Tashtari said...

मजदूर दिवस की शुभकामनाएँ!

अरुण चन्द्र रॉय said...

बहुत बढ़िया लेख। आपने मजदूरों के बहाने सामाजिक आर्थिक परिदृश्य की विवेचना कर डाली। शुभकामनाए आपको।

Divik Ramesh said...

बहुत अच्छा विश्लेषणात्मक लेख। सहमत हूँ। बधाई।

Sudershan Ratnakar said...

आज मज़दूरों की क्या स्थिति है सभी जानते है।

ंसरकार कोई भी हो उनके सुधार की कोई गुंजाइश नहीं दिखती।एक महाक्रति की आवश्यकता है। जागरूक होने की और नज़रिया बदलने की।
अच्छा आलेख।

Jyoti khare said...

मजदूरों के संदर्भ में लिखा बहुत अच्छा आलेख
बधाई

Kishor se milen said...

हम जब तक मज़दूरों को उनके आसपास रोज़गार न दे पाए तब तक उनसे संबंधित अनेक बातें बेमानी होंगी

YOUR HINDI QUOTES said...

I am really happy to say it’s an interesting post to read APJ Abdul Kalam Quotes in Hindi this is a really awesome and i hope in future you will share information like this with us

डॉ. जेन्नी शबनम said...



Blogger राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर = RAJA Kumarendra Singh Sengar said...

मजदूरों की बात होते-होते अचानक से राम मंदिर उछल आया? उसके पहले सामाजिक सद्भाव सही था? उसके पहले मजदूरों की स्थिति सही थी?
हिन्दू-मुस्लिम तो आज़ादी के पहले से आरम्भ हो गया था, शायद जानकारी होगी आपको?
बहरहाल, एक अच्छे बिंदु से आरम्भ हुआ लेख का.. फिर लन्दन वाले मजदूर की स्थिति के बाद लगा कि शायद देश की किसी स्थिति में परिवर्तन करने जैसी कोई बात हो मगर.....
फिलहाल....

May 2, 2020 at 12:43 AM Delete
___________________________________________

कुमारेन्द्र जी,

देश की किसी स्थिति में परिवर्तन कर सकें, इतनी योग्यता तो मुझमें नहीं. पर किसान मजदूर की स्थिति देखकर मन द्रवित ज़रूर हो जाता है. हिन्दू मुस्लिम तो आज़ादी के बहुत पहले से ही यहाँ हो रहा है, तभी तो अंग्रजी शासन यहाँ हुआ. राम मंदिर के मुद्दे से भागलपुर में 1989 में दंगा हुआ, और ये दंगाई हमारे आसपास के अशिक्षित युवा कामगार थे. पहले भी कामगारों की स्थिति अच्छी नहीं थी, परन्तु राम मंदिर से मजदूरों की स्थिति अच्छी तो न हो जायेगी. सामाजिक सद्भाव जहाँ है वहाँ पहले भी था अब भी है, परन्तु दंगा ने बहुत कुछ बदल दिया. जिससे भागलपुर आजतक उबर नहीं पाया है.
बहरहाल आपने बहुत अच्छी प्रतिक्रिया दी, इसके लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

मजदूर दिवस को सार्थक करती सुन्दर प्रस्तुति।

May 2, 2020 at 9:06 AM Delete
___________________________________________

आपका बहुत धन्यवाद शास्त्री जी.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger संगीता पुरी said...

मैंने भी लिखा है कि कुल लाभ को जवाबदेह सभी कारकों, पूंजी, भूमि, व्यवस्था, श्रमिक और साहस के मध्य सामान बँटवारा हो ! पूंजीवाद में ही समाजवाद आ जायेगा !

May 3, 2020 at 12:14 AM Delete
__________________________________________

बिल्कुल सही कहा आपने, तभी समाजवाद आएगा. सार्थक प्रतिक्रिया के लिए बहुत धन्यवाद.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger अजय कुमार झा said...

हम सब जितनी चिंता इन मेहनत कश लोगों की कर लेते हैं कर पाते हैं पता नहीं सरकार और प्रशासन आखिर क्यूँ नहीं कर पाता . श्रमिक वर्ग में सबसे बुरी स्थिति महिलाओं और बच्चों की है | सार्थक चिंतन करती पोस्ट

May 3, 2020 at 7:20 PM Delete
_______________________________________

सही कह रहे हैं आप. पता नहीं क्यों सरकार और प्रशासन को यह सब क्यों नहीं दिखता, जबकि कुछ मीडिया बेहतरीन काम कर रही है. सार्थक टिप्पणी के लिए बहुत धन्यवाद अजय जी.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger Udan Tashtari said...

मजदूर दिवस की शुभकामनाएँ!

May 3, 2020 at 7:46 PM Delete
_________________________________

आपको भी बहुत शुभकामनाएँ समीर जी. आभार.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger अरुण चन्द्र रॉय said...

बहुत बढ़िया लेख। आपने मजदूरों के बहाने सामाजिक आर्थिक परिदृश्य की विवेचना कर डाली। शुभकामनाए आपको।

May 3, 2020 at 11:10 PM Delete
_______________________________________________

सार्थक प्रतिक्रिया के लिए बहुत धन्यवाद अरुण जी.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger Divik Ramesh said...

बहुत अच्छा विश्लेषणात्मक लेख। सहमत हूँ। बधाई।

May 4, 2020 at 7:36 AM Delete
__________________________________


मेरे विचार को आपकी सहमति मिली, दिल से धन्यवाद दिविक रमेश जी.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger Sudershan Ratnakar said...

आज मज़दूरों की क्या स्थिति है सभी जानते है।

ंसरकार कोई भी हो उनके सुधार की कोई गुंजाइश नहीं दिखती।एक महाक्रति की आवश्यकता है। जागरूक होने की और नज़रिया बदलने की।
अच्छा आलेख।

May 4, 2020 at 11:02 AM Delete
________________________________________

बिल्कुल सही कहा आपने, एक महाक्रान्ति की ज़रुरत है. शायद तभी स्थिति बदलेगी. सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार रत्नाकर जी.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger Jyoti khare said...

मजदूरों के संदर्भ में लिखा बहुत अच्छा आलेख
बधाई

May 9, 2020 at 4:36 PM Delete
____________________________________

आपका बहुत आभार ज्योति खरे जी.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger Kishor se milen said...

हम जब तक मज़दूरों को उनके आसपास रोज़गार न दे पाए तब तक उनसे संबंधित अनेक बातें बेमानी होंगी

May 9, 2020 at 10:16 PM Delete
__________________________________________

बिल्कुल सही कहा आपने किशोर जी. मजदूरों को उनके आसपास ही रोज़गार मिल जाता तो पलायन की स्थिति नहीं आती. आज जिस तरह मजदूरों को घर वापसी के कारण संघर्ष करना पड़ रहा है, वह भी न होता. सार्थक टिप्पणी के लिए धन्यवाद.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Anonymous YOUR HINDI QUOTES said...

I am really happy to say it’s an interesting post to read APJ Abdul Kalam Quotes in Hindi this is a really awesome and i hope in future you will share information like this with us

May 18, 2020 at 10:48 AM Delete
_______________________________________

आपका धन्यवाद.

Jyoti Singh said...

आपके ब्लॉग पर जाकर रचना पढ़ तो लेती हूं ,टिप्पणी करने की जगह नही नजर आती है ,ऐसा क्यों है ?

Jyoti Singh said...

विचार करने लायक है ,बढ़िया आलेख ,

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger Jyoti Singh said...

आपके ब्लॉग पर जाकर रचना पढ़ तो लेती हूं ,टिप्पणी करने की जगह नही नजर आती है ,ऐसा क्यों है ?

May 25, 2020 at 4:35 PM Delete
________________________________________

Blogger Jyoti Singh said...

विचार करने लायक है ,बढ़िया आलेख ,

May 25, 2020 at 4:41 PM Delete
_______________________________________

प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद ज्योति जी.

whatsquotes.in said...

Great Stuff Man, I Really Like You Article Keep doing Good Work also visit Sandeep Maheshwari Biography In Hindi!

whatsquotes.in said...

Nice Article, I Really Like You Article Keep doing Good Work also visit Gain Lean Mass.

Simran Sharma said...

Wow this is aweosme and detailed post. Thank you so much for sharing this valuable post with us.life quotes telugu

raj biswas said...


Your article is really addictive. Keep posting. keep sharing the knowledge. I love to read your articles. Thank you for sharing this article with us. This article will make a good reference for me. Thanks a lot. It is appreciated.
english short english stories