Saturday, September 8, 2018

61. पहचान


मेरा लेख एक बड़ी पत्रिका में ससम्मान प्रकाशित हुआ। मैंने मुग्ध भाव से पत्रिका के उस लेख के पन्ने पर हाथ फेरा, जैसे कोई माँ अपने नन्हे शिशु को दुलारती है। दो महीने पहले का चित्र मेरी आँखों के सामने घूम गया।   

जैसे ही मैंने अपना कम्प्यूटर खोल पासवर्ड टाइप किया उसने अपना कम्प्यूटर बंद किया और ग़ैर ज़रूरी बातें करनी शुरू कर दीं। मैंने कम्प्यूटर बंद कर दिया और उसकी बातें सुनने लगी कि उसने अपना कम्प्यूटर खोलकर कुछ लिखना शुरू कर दिया और बोलना बंद कर दिया।   

आधा घंटा बीत गया। मुझे लगा बातें ख़त्म हुईं। मैंने फिर कम्प्यूटर खोला और दूसरी पंक्ति लिखना शुरू ही किया कि उसने अपना कम्प्यूटर बंद कर दिया और इस तरह मुझे घूरने लगा, मानो मैं कम्प्यूटर पर अपने ब्वायफ्रेंड से चैट कर रही होऊँ। 

मैंने धीरे से कहा - ''मुझे एक पत्रिका के लिए एक लेख भेजना है।'' 
उसने व्यंग्य-भरी दृष्टि से मेरी तरफ ऐसे देखा मानो मुझ जैसे मंदबुद्धि को लिखना आएगा भला। 

उसने पूछा - ''टॉपिक क्या है?'' 

मैंने बता दिया तो उसने कहा - ''ठीक है, मैं लिख देता हूँ, तुम अपने नाम से भेज दो। यूँ ही कुछ भी लिखा नहीं जाता समझ हो तो ही लिखनी चाहिए।'' 

मैंने कहा - ''जब आप ही लिखेंगे, तो अपने नाम से भेज दीजिए।'' फिर मैंने कम्प्यूटर बंद कर दिया। 

रात्रि में मैंने लेख पूरा करके पत्रिका में भेज दिया था। 

पत्रिका अभी भी मेरी टेबल पर रखी है। क्या करूँ! दिखाऊँ उसे! मन ही मन कहा - ''कोई फ़ायदा नहीं!''

पत्रिका अभी भी मेरी टेबल पर रखी है। जब वह इसे देखेगा तो? ... सोचते ही मेरा आत्मविश्वास और भी बढ़ गया।    

- जेन्नी शबनम (8. 9. 2018)   

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28 comments:

yashoda Agrawal said...

शुभ प्रभात
आभार दीदी
एक अच्छा चिन्तन
सादर

radha tiwari( radhegopal) said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (10-09-2018) को "हिमाकत में निजामत है" (चर्चा अंक- 3090) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी

Madhu Rani said...

तुमने बहुत अच्छी समझ अपनाई, जेन्नी, अच्छा लिखा है, बधाई।

Harash Mahajan said...

अति सुंदर लेख । बधाई ।

कालीपद "प्रसाद" said...

समझ समझ की फेर , बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

कालीपद "प्रसाद" said...

बहुत सुन्दर लिखा आपने

Sadhana Vaid said...


काफी समझदारी से हैंडिल कर ली आपने सिचुएशन ! ऐसा अक्सर होता रहता है ! सुन्दर पोस्ट !

Sanjay Grover said...

समझने के लिए दोबारा पढ़ना पढ़ा। पर जब समझ में आया तो लगा कि दोबारा पढ़ा तो ठीक ही पढ़ा।
लिखती रहिए।

Udan Tashtari said...

मस्त कोलाज़!!

सुशील कुमार जोशी said...

ज्यादा समझदारी भी ठीक नहीं :) सुन्दर।

विकास नैनवाल said...

सुन्दर प्रस्तुति।आत्मविश्वास सबसे सबसे जरूरी है। कोई भरोसा करे न करे खुद पर खुद को भरोसा होना चाहिए।पत्रिका को छुपाना नहीं चाहिए था। आभार।

shashi purwar said...

sahi kiya jenny sarthak post hai . yah har kisi ko face karna padta hai , vakai logon ki samajh aur doosare ko kam aankne ki adat kab khatm hogi badhai

Prem Prakash said...

सुंदर। ...पर लेख आलमारी में नहीं बल्कि उन महानुभाव को भेंट करनी चाहिए थी ताकि उनके मन-बुद्धि की आलमारी खुले।

Maheshwari kaneri said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger yashoda Agrawal said...
शुभ प्रभात
आभार दीदी
एक अच्छा चिन्तन
सादर

September 9, 2018 at 6:46 AM Delete
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सराहना के लिए आपका बहुत आभार यशोदा जी.

डॉ. जेन्नी शबनम said...


Blogger RADHA TIWARI said...
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (10-09-2018) को "हिमाकत में निजामत है" (चर्चा अंक- 3090) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी

September 9, 2018 at 12:39 PM Delete
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मेरी रचना को आपने चर्चा मंच पर साझा किया, बहुत बहुत शुक्रिया राधा जी.

डॉ. जेन्नी शबनम said...


Blogger Madhu Rani said...
तुमने बहुत अच्छी समझ अपनाई, जेन्नी, अच्छा लिखा है, बधाई।

September 9, 2018 at 1:08 PM Delete
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मधु, तुम्हें मेरी समझ अच्छी लगी शुक्रिया.

डॉ. जेन्नी शबनम said...


Blogger Harash Mahajan said...
अति सुंदर लेख । बधाई ।

September 9, 2018 at 3:51 PM Delete
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आपका बहुत बहुत धन्यवाद हर्ष जी.

डॉ. जेन्नी शबनम said...


Blogger कालीपद "प्रसाद" said...
समझ समझ की फेर , बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
September 9, 2018 at 7:18 PM Delete
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हार्दिक धन्यवाद कालीपद जी.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger कालीपद "प्रसाद" said...
बहुत सुन्दर लिखा आपने

September 9, 2018 at 7:21 PM Delete
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दोबारा प्रतिक्रिया के लिए हृदय से धन्यवाद.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger sadhana vaid said...

काफी समझदारी से हैंडिल कर ली आपने सिचुएशन ! ऐसा अक्सर होता रहता है ! सुन्दर पोस्ट !

September 9, 2018 at 10:47 PM Delete
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सिचुएशन को हैन्डिल करना स्त्रियाँ बचपन से ही सीख जाती हैं, आपने भी देखा ही होगा अक्सर. सादर आभार आपका.

डॉ. जेन्नी शबनम said...


Blogger Sanjay Grover said...
समझने के लिए दोबारा पढ़ना पढ़ा। पर जब समझ में आया तो लगा कि दोबारा पढ़ा तो ठीक ही पढ़ा।
लिखती रहिए।

September 10, 2018 at 2:18 AM Delete
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संजय जी, आपका दोबारा पढ़ना मेरी समझ के लिए सम्मान की बात है. हार्दिक धन्यवाद.

डॉ. जेन्नी शबनम said...


Blogger Udan Tashtari said...
मस्त कोलाज़!!

September 10, 2018 at 6:24 AM Delete
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हार्दिक धन्यवाद समीर जी.

डॉ. जेन्नी शबनम said...


Blogger सुशील कुमार जोशी said...
ज्यादा समझदारी भी ठीक नहीं :) सुन्दर।

September 10, 2018 at 8:46 AM Delete
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सही कहा आपने सुशील जी. होते हैं कुछ लोग जिन्हें लगता है कि बस एक वही काबिल हैं, बाकी सब बेकार.

डॉ. जेन्नी शबनम said...


Anonymous विकास नैनवाल said...
सुन्दर प्रस्तुति।आत्मविश्वास सबसे सबसे जरूरी है। कोई भरोसा करे न करे खुद पर खुद को भरोसा होना चाहिए।पत्रिका को छुपाना नहीं चाहिए था। आभार।

September 10, 2018 at 12:15 PM Delete
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विकास जी, सही कहा खुद पर भरोसा होना चाहिए. अब कहानी बदल गई, पत्रिका आलमीरा से मेज पर रख दी गई है. प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger shashi purwar said...
sahi kiya jenny sarthak post hai . yah har kisi ko face karna padta hai , vakai logon ki samajh aur doosare ko kam aankne ki adat kab khatm hogi badhai

September 10, 2018 at 12:58 PM Delete
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हाँ शशि जी. अधिकांश स्त्रियों की स्थिति ऐसी ही है. अधिकतर पति अपनी पत्नी को कभी भी अपनी समझ के बराबर नहीं समझता न ही उसके कार्य का सही मूल्यांकन करता है. यूँ अपवाद भी बहुत सारे हैं. धन्यवाद.

डॉ. जेन्नी शबनम said...


Blogger Prem Prakash said...
सुंदर। ...पर लेख आलमारी में नहीं बल्कि उन महानुभाव को भेंट करनी चाहिए थी ताकि उनके मन-बुद्धि की आलमारी खुले।

September 11, 2018 at 5:25 PM Delete
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सही कहा आपने. पत्रिका आलमीरा से अब मेज पर रख दी गई है. समझ और आत्मविश्वास है तो फिर अपनी पहचान और काबिलियत को छिपाना क्या. सार्थक प्रतिक्रया के लिए धन्यवाद प्रेम प्रकाश जी.

डॉ. जेन्नी शबनम said...


Blogger Maheshwari kaneri said...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

September 14, 2018 at 7:37 AM Delete
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बहुत बहुत आभार माहेश्वरी जी.