Saturday, August 27, 2011

28. अन्ना-अनशन-आन्दोलन

अन्ना हजारे का आन्दोलन अंततः ख़त्म हो गयाI सरकार कितने वक़्त में जन लोकपाल को अमली-जामा पहनाएगी, यह अपने तय वक़्त पर हम सबके सामने आएगाI पर इतना तो निश्चित है कि इस आन्दोलन में जनता की भागीदारी ने ये साबित कर दिया कि आज पूरा देश जिस तरह भ्रष्टाचार से त्रस्त और आहत है, इससे नज़ात पाने के लिए हर मुमकिन रूप इख़्तियार किया जा सकता हैI अन्ना के समर्थन में तमाम विपक्षी पार्टियाँ, कई सामाजिक संगठन और देश की पूरी जनता हैI इस पर दो मत नहीं कि भ्रष्टाचार को किसी भी क़ीमत पर ख़त्म करना चाहिएI सरकार, आम जनता, ख़ास जनता या विपक्षी पार्टियाँ सभी चाहते हैं कि देश से भ्रष्टाचार दूर हो और हमने जिस आज़ाद प्रगतिशील भारत का सपना देखा है, वह पूरा होI  
 
अन्ना हजारे के अनशन को सभी अपने-अपने तरीक़े से देख रहे हैंI मक़सद तो यही है कि भ्रष्टाचार दूर हो; लेकिन सोचने वाली बात है कि क्या सिर्फ़ जन लोकपाल बिल से भ्रष्टाचार दूर हो जाएगा? अन्ना के अनशन के 10वें दिन मैं रामलीला मैदान गई यह देखने कि आम जनता पर इसका असर कैसा है और वे किस तरह इस आन्दोलन से ख़ुद को जोड़ते हैंI रामलीला मैदान में प्रवेश के लिए सामान्य जनता के लिए अलग पंक्तियाँ बनी थीI अपने पुत्र के साथ मैं एक पंक्ति में खड़ी हो गईI दूसरी पंक्ति जो साथ आगे बढ़ रही थी, कुछ लोग मेरी पंक्ति से निकलकर दौड़ते हुए दूसरी पंक्ति की क़तार में लग रहे थे; क्योंकि उन्हें लगा कि उसे पहले जाने दिया जाएगाI कुछ कार्यकर्ता उन लोगों को वहाँ से पकड़कर वापस उनकी पंक्ति में ला रहे थे, तब तक दूसरा दौड़ जा रहा थाI मज़ा आ रहा था देखकर; लेकिन मैं सोचने लगी कि जिस भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ यहाँ आन्दोलन हो रहा है, वहीं पहुँचने के लिए लोग अपना आचरण ग़लत कर रहे हैंI 'दिल्ली पुलिस' के नाम से प्रचलित ग़लत छवि को पुलिसवाले आज पूरी तरह साफ़ करने के मूड में दिख रहे थेI किसी के चेहरे पर कोई शिकन नहीं, कोई झुँझलाहट नहीं, आवाज़ में तल्ख़ी नहीं, मुस्कुराते हुए वे सुरक्षा के लिए तैनात थेI स्कूल ड्रेस पहने स्कूली बच्चे, छात्र, युवा, दफ़्तर से काम के बाद लौटने वाले कर्मचारी या अधिकारी, हर तबक़े और उम्र के पुरुष और महिलाएँ, मज़दूर, रेड लाईट पर भीख माँगने वाले आदि भीड़ में शामिल दिखेI कहीं अफ़रा-तफ़री नहीं, पर लोगों में आक्रोश बहुत अधिक थाI  
 
मैदान में प्रवेश करते ही बदबू का भभका नाक में घुसाI बारिश के पानी से जहाँ-तहाँ पानी लगा थाI अन्ना-रसोई का मुफ़्त भोजन वितरण की अलग पंक्ति जो ख़त्म नहीं हो रही थीI मैदान में खाने की प्लेट, पानी का ग्लास, केले का छिलका बिखरा पड़ा थाI एक तरफ़ सफ़ाई कर्मचारी साफ़ करने में भिड़े थे, तो दूसरी तरफ़ लोग खा-पीकर जहाँ-तहाँ गंदगी फैला रहे थेI
 
अन्ना के मंच की तरफ़ बढ़ने पर 25-26 वर्षीय छोटे कद का एक नवयुवक दिखा, जिसने दोनों हाथों से एक बड़ा-सा काग़ज़ पकड़ा थाI मैं नज़दीक गई तो रुककर पढ़ने लगीI उसमें लिखे का अर्थ था कि सोनिया गाँधी जैसा चाहती हैं मनमोहन सिंह वैसा ही करते हैं भाषा बहुत ही अभद्र लिखी हुई थीI बहुत उत्साहित और जोश में वह पूछने लगा ''आंटी कैसा लगा? मैंने लिखा है, बहुत दिमाग़ लगाया फिर लिखा है, सही है न?'' मैंने उससे पूछा कि आप क्या करते हैं? उसने बताया कि वह गंगा राम अस्पताल में डॉक्टर हैI उसने फिर पूछा ''आंटी बताइए न ठीक लिखा है मैंने?'' मैंने पूछा कि ऐसा क्यों लिखा है? उसने कहा ''आंटी आपको एक चुटकुला सुनाऊँ?'' मैंने मुस्कुराकर हाँ में सिर हिलायाI उसने सुनाया कि एक हिन्दू एक मुस्लिम और एक सिख मरने के बाद स्वर्ग गएI वहाँ सबसे पूछा गया कि तुमने क्या-क्या किया, ज़िन्दगी कैसी कटी, आराम था न? हिन्दू ने बताया कि उसने पूजा-पाठ किया, तीर्थ यात्रा की और आनन्द से ज़िन्दगी जियाI मुस्लिम ने कहा कि उसने नमाज़ पढ़ा, रोज़ा रखा, मक्का गया, वह ख़ुश है उसने अपनी ज़िन्दगी बहुत आराम से जियाI सिख बोला ''कैसा आराम? आपने कैसी ज़िन्दगी दी मुझे? मुझे टॉफी बना दिया, नीचे से भी मरोड़ा जाता है ऊपर से भीI'' मैं समझ नहीं पाई कि इसमें चुटकुला क्या हैI मैंने उससे पूछा कि इसका अर्थ क्या हुआI उसने कहा कि मनमोहन सिंह है न! वह दोनों हाथ नचा-नचाकर बताने लगा कि जैसे टॉफी को दोनों तरफ़ से मरोड़कर बंद करते हैं वैसे ही (अर्थात सरदारों के बाल और दाढ़ी)I आश्चर्य हुआ एक डॉक्टर की भाषा और सोच पर; ये कैसा आन्दोलन कर रहे जिसमें प्रधानमंत्री के बारे में ऐसी भाषाI

आगे बढ़ने पर भीड़ बढ़ती जा रही थीI एक व्यक्ति चुपचाप एक चार्ट पेपर लेकर खड़ा था और जो भी सामने से गुज़रता उधर घूमकर उसे पढ़ाताI लिखा था- ''सावधान सावधान, अभी अभी हमें पता चला है कि पाकिस्तान के दो सूअर हमारे देश के किसी नाले में घूस गए हैं, बचकर रहना I उनके नाम हैं कपिल सिब्बल मनीष तिवारीI'' मैं अवाक् होकर उसे देखने लगीI पर उसके चेहरे पर कोई भाव नहींI बड़ा अजीब लगा कि ये कैसी भाषा का प्रयोग कर रहे हैं, व्यक्तिगत टिप्पणी वह भी इतना घटियाI
आगे बढ़ने पर रामदेव बाबा का बड़ा-सा बैनर दिखा, जिसपर उन्होंने कहा है कि काला धन वापस आएगा तो हमारे देश को क्या-क्या लाभ होगाI बाबा का आकलन और अनुमान देखकर आश्चर्य हुआI उस बैनर की तस्वीर हमने ले ली; जब काला धन वापस आ जाएगा, तो याद रहेगा कि बाबा के अनुमान के मुताबिक़ क्या-क्या हो पाया और क्या नहींI

धीरे-धीरे भीड़ में घुसते गए हमI बहुत बुरा हाल थाI मीडिया के मंच तक भी नहीं पहुँच पाए कि लगा कि अब बेदम हो जाएँगेI एक तरफ़ अन्ना के मंच पर बिहार के भोजपुरी फ़िल्म अभिनेता व गायक मनोज तिवारी का देश भक्ति गीत गूँज रहा था, तो दूसरी तरफ़ कुछ लोग नारा लगा रहे थे- ''सोनिया जिसकी मम्मी है, वह सरकार निकम्मी है'', ''मनमोहन जिसका ताऊ है, वह सरकार बिकाऊ हैI''

स्त्रियों से बात करती मैं
वहाँ से हम वापस हो गए, क्योंकि अन्ना के मंच तक पहुँचना असंभव थाI पंडाल में एक जगह कुछ ग्रामीण महिलाएँ बैठी दिखीं और साथ में गेरुआ वस्त्र पहने दाढ़ी वाले दो बाबाI वे जन लोकपाल बिल और इस आन्दोलन को कितना समझती हैं, ये जानने के लिए मैं उनसे बातें करने लगीI वे सभी 'भारतीय किसान यूनियन' सतना, मध्य प्रदेश से थेI एक गेरुआधारी का नाम लालमन कुशवाहा हैI मैं जिनसे बात कर रही थी, उनका नाम शान्ति कुशवाहा हैI शान्ति ने बताया कि किसान यूनियन के नेता ईश्वरचंद्र त्रिपाठी के साथ वे सभी आए हैंI मैंने पूछा कि यहाँ क्या हो रहा है, आप क्या करने आई हैं? शान्ति ने बताया कि हमलोग अन्ना का साथ देने के लिए आए हैं, भ्रष्टाचार दूर करने के लिएI मैंने पूछा कि आपके गाँव में भ्रष्टाचार है? तो दूसरी महिला जो शान्ति के बग़ल में बैठी थी, उत्तेजित होकर कहने लगी ''कहाँ नहीं है भ्रष्टाचार? सबको घूस देना पड़ता है तब कोई काम होता है, कहाँ से लाएँ हम पैसा?'' शान्ति से मैंने पूछा कि क्या आपको कभी घूस देना पड़ा है? उसने कहा ''नहीं हम तो नहीं दिए हैं लेकिन मुखिया और थाना में और अस्पताल में पैसा देना होता है तभी कोई काम होता हैI'' मैंने पूछा कि आपको यहाँ कोई दिक्क़त? कब से आए हैं आपलोग? उसने बताया कि ''आजे सुबह ही आए हैं, खाना भी मिला है और कोई दिक्क़त नहीं है, जब ईश्वरचंद्र जी कहेंगे तभी हमलोग यहाँ से जाएँगेI'' बग़लवाली महिला अपना बैज और कार्ड दिखाने लगी जिसपर मेंबर भारतीय किसान यूनियन लिखा थाI मैंने कहा कि जन लोकपाल बिल क्या है आपको मालूम है? वह बोली ''हम नहीं जानते नेता जी जानते हैं, वही हमलोग को लाए हैं, उनके साथ ही हम आए हैं अन्ना का साथ देनेI'' सच भी है ये ग्रामीण महिलाएँ लोकपाल बिल क्या जाने, बस इतना जानती हैं कि अन्ना का साथ देंगे तो देश से भ्रष्टाचार दूर होगाI अन्ना-आन्दोलन को सक्रिय सहयोग देने के लिए शुभकामना देकर हम पंडाल से बाहर आएI पंडाल में एक जगह ''यादव वंश का इतिहास'' नामक किताब की बिक्री हो रही थी, जिसकी मात्र 3 प्रति बच गई थीI बग़ल में बड़ा-बड़ा पोस्टर उसके इतिहास को बताने के लिए लगा थाI

सामने दो युवक मुस्कुराते हुए अपना बैनर लिए खड़े थेI मुझे देखकर वे नज़दीक आएI किसी के भी आने से वे नज़दीक जा रहे थे, ताकि बैनर पढ़ा जा सकेI मैं पढ़कर स्तब्ध रह गई ''HIV से ज्यादा खतरनाक है कपिल सिबल (सिब्बल)I'' मेरे बेटे ने फोटो लिया, तो उन दोनों ने पूरे जोश में आकर फोटो खिंचवायाI 

आन्दोलनकर्ता के साथ ही मुफ़्त खाना खाने वालों की भीड़ वैसी ही बनी हुई थीI केला लेने के लिए अलग एक लम्बी क़तार थी, कुछ लोग उनमें से एक बार लेने के बाद खाकर वहीं छिलका फेंक, दोबारा पंक्ति में लग जा रहे थेI सच है भूख हो, तो किसी का भी ईमान भ्रष्ट हो जाता है और कोई मौक़ा चूकने नहीं देता, भले वह भ्रष्टाचार के विरुद्ध बोलता हो या फिर भ्रष्टाचार से त्रस्त होI बाहर निकलने वाले गेट पर एक पोस्टर टँगा था जिसमें लिखा था ''संसद का घेराव करो, जल्दी चलो, जय भारत माता की'', ''अन्ना भूखा है, कुत्ते पार्टी करते हैंI''

अन्ना का अनशन भ्रष्टाचार के विरुद्ध है और हर बार वे हिंसा नहीं करने की गुज़ारिश करते हैंI इस आन्दोलन में शारीरिक हिंसा तो कहीं नहीं दिखी; परन्तु मानसिक और भाषाई हिंसा सभी जगह नज़र आ रही हैI सरकार की ग़लत नीतियाँ और उनके विरुद्ध आवाज़ उठाना हर नागरिक का अधिकार और कर्तव्य है; लेकिन व्यक्तिवादी गाली देना या अशिष्ट भाषा का प्रयोग करना कहीं से जायज़ नहींI निःसंदेह अन्ना के साथ पूरा देश है; क्योंकि भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ पूरा देश हैI परन्तु अन्ना को क्या पता कि उनके समर्थक उन्हीं के आन्दोलन के पंडाल में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाते हुए ख़ुद अपना आचरण भ्रष्ट कर रहे हैंI गांधी और अन्ना को एक कहने वाले कभी गांधी को पढ़ लें, तो शायद अहिंसा, अनशन और आन्दोलन का अर्थ समझ जाएँगेI

- जेन्नी शबनम (27.8.2011)
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8 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

अच्छा आलेख है।

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

जेन्नी जी ! हम बहुत ईमानदार, नीतिवान और चरित्रवान हैं .....किन्तु तभी तक ...जब तक कि अवसर नहीं मिलता. अवसर मिलते ही हम हैवान हो जाते हैं. भीड़ की मानसिकता यही है. ऐसे आदर्शवादी कम ही मिलेंगे जो अवसर मिलने पर भी अपने सिद्धांतों पर डटे रहते हैं ...इसे कहते हैं संस्कार. आज हम अपसंस्कृति के दौर से गुज़र रहे हैं. एक ओर पूरे देश में भ्रष्टाचार के विरोध में लोग उठकर खड़े हो रहे हैं, दूसरी ओर सरकारी कार्यालयों का हाल वही है ...अपरिवर्तित. ये कौन हैं जो भ्रष्टाचार का विरोध करते हैं ...? ये कौन हैं जो सरकारी कार्यालयों की भ्रष्ट परम्पराएं बनाए रखना चाहते हैं ? मतलब यह कि जब तक क़ानून हमारी फजीहत नहीं कर देगा तब तक हम रिश्वत लेते रहेंगे.
चलिए , आपके लिए एक प्रासंगिक गीत भेज रहा हूँ.

Khare A said...

NICE REPORTING FROM RAMLILA MAIDAAN!

ACHHA LAGA PADHNA AAPKE APNE STYLE ME!
AAPNE "AACHHAR AUR VICHAAR" SE UTPANN HONE WALE BHIRASHTACHAAR KI BAT KAHI!

डॉ. जेन्नी शबनम said...

bahut shukriya Roopchandra ji.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Kaushalendra ji,
mere is aalekh ko likhne ka maksad hin yahi hai ki hum sabhi awsarwaadita ka fayeda uthaate hain. jo log bhi wahaan Anna ke samarthan mein they wo sirf apna aakrosh vyakt kar rahe they, kyonki Anna ne baar baar nivedan kiya thaa shaantipurvak rahna hai koi hinsa nahin, atah shabd hinsa to aasaani se ki ja sakti thee, aur yahi wahan sabhi kar rahe they. bhrashtaachaar se kaun nahin aahat hai? kya jo wahan nahin shaamil hue wo peedit nahin? kisi bhi party ke log hon sabhi isase peedit hain. mumkin hai ki Anna ji ko stage ke pichhe aur stage se door hone waale kartuton ka pat ana ho, kyonki un tak koi pahunch nahin sakta thaa, itni kadi suraksha ki gai thee.
janlok paal bill kis tarah banega aur kaise kaamyaabi milegi, kuchh pata nahin.
bahut shukriya aapne apne vichar yaha preshit kiye.
bahut umdaa geet hai, yun hin likhte rahein, shubhkaamnaayen.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Gaurav bhai,
aachar-vichaar mein bhi ahinsa honi chaahiye. sirf Anna ke samarthan mein wahan bheed jama kar aur apna aakrosh vyakt karke kya dikhana? shabd hinsa jo Anna dekh nahin sakte kyonki un tak koi pahunch nahin sakta thaa. pura desh bhrashtachaar ke khilaaf hai, fir bhrashtaachar kaun kar raha? yahi to sawaal hai.
mera lekh tak aap aaye, shukriya.

मुकेश कुमार सिन्हा said...

agar anne ke saath jo the, wo hi sirf kah den ki ham bhrashtachar se dur rahenge to bhi iss desh ka thora kalyan to ho hi jayega...........

रविकर said...

आज आपका परिचय चर्चा मंच पर प्रस्तुत किया गया है |
एक साल की बिटिया रानी : चर्चा मंच 681
http://charchamanch.blogspot.com/