Monday, November 16, 2020
82. अधूरे सपनों की कसक - मेरा सपना
Thursday, November 5, 2020
81. राम चन्द्र वर्मा 'साहिल' जी द्वारा 'लम्हों का सफ़र' की समीक्षा
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साहिल जी और मैं |
'पगडंडी और आकाश', इसके भी अंश देखिएगा-
''पगडंडी पर तुम चल न सकोगे / उस पर पाँव-पाँव चलना होता है / और तुमने सिर्फ़ उड़ना जाना है।...
मैं सीख लूँगी / हथेली पर आसमान को उतारना / तुम अपनी माटी को जान लेना / और मैं उस माटी से बसा लूँगी एक नयी दुनिया / जहाँ पगडंडी और आकाश / कहीं दूर जाकर मिल जाते हों।''
''क्यों चले गए, तुम छोड़ के बाबा / देखो बाप बिन बेटी, कैसे जीती है / बूँद आँसू न बहे, तुमने इतने जतन से पाले थे / देखो आज अपनी बिटिया को, अपने आँसू पीती है।''
'वो अमरूद का पेड़', जहाँ लेखिका कदाचित स्वयं को खोज रही है-
''वह लड़की, खो गई है कहीं / बचपन भी गुम हो गया था कभी / उम्र से बहुत पहले, वक़्त ने उसे / बड़ा बना दिया था कभी / कहीं कोई निशानी नहीं उसकी / अब कहाँ ढूँढूँ उस नन्ही लड़की को?''
'इकन्नी-दुअन्नी और मैं चलन में नहीं', इस रचना में समय का बदलता रूप और उससे उपजी मानव-विवशताओं को शबनम जी ने किस प्रकार उकेरा है-
''वो गुल्लक फोड़ दी / जिसमें एक पैसे दो पैसे, मैं भरती थी / तीन पैसे और पाँच पैसे भी थे, थोड़े उसमें /... सोचती थी, ख़ूब सारे सपने खरीदूँगी इससे / इत्ते ढेर सारे पैसों में, तो ढेरों सपने मिल जाएँगे /...
अब क्या करूँ इन पैसों का?''
'उठो अभिमन्यु', इस कविता में कवयित्री ने अभिमन्यु के वीर-गति प्राप्त हो जाने पर गर्भवती अभिमन्यु-पत्नी 'उत्तरा' गर्भ में पल रहे शिशु को कैसी उत्साहवर्द्धक प्रेरणा दे रही है, इसका मार्मिक वर्णन इस पद्यांश में देखिए-
'नन्ही भिखारिन' में शबनम जी का संवेदनशील हृदय नन्ही भिखारिन से बात करते कैसे पीड़ा से रिसता है, देखिए-
'हँसी, ख़ुशी और ज़िन्दगी बेकार है पड़ी', ज़िन्दगी का क्या चित्रण किया गया है इस रचना में; कुछ पंक्तियाँ देखते चलें-
131- न्यू सूर्य किरण अपार्टमेंट्स
दिल्ली-110092
मोबाइल- 9968414848
Saturday, October 10, 2020
80. सुश्री संगीता गुप्ता एवं श्री अनिल पाराशर 'मासूम' की भावनाएँ 'लम्हों का सफ़र' को
मेरी पुस्तक 'लम्हों का सफ़र' का प्रकाशन वर्ष 2020, जनवरी माह में हुआ।सुश्री संगीता गुप्ता, आयकर विभाग में पूर्व मुख्य आयुक्त, प्रतिष्ठित कवयित्री और चित्रकार, ने मुझे सदैव छोटी बहन-सा स्नेह व सम्बल दिया है। उनकी चित्रकारी मेरी पुस्तक का आवरण चित्र है। उन्होंने भावपूर्ण शुभकामना सन्देश दिया, जो पुस्तक में प्रेषित है। इस शुभकामना सन्देश को मैं यहाँ प्रेषित कर रही हूँ।
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मैं और संगीता दी |
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अनिल जी, शानू जी और मैं |
Monday, September 14, 2020
79. मेरी हिन्दी, प्यारी हिन्दी
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था ''अखिल भारत के परस्पर व्यवहार के लिए ऐसी भाषा की आवश्यकता है, जिसे जनता का अधिकतम भाग पहले से ही जानता-समझता है, हिन्दी इस दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ है।'' ''हृदय की कोई भाषा नहीं है, हृदय-हृदय से बातचीत करता है और हिन्दी हृदय की भाषा है।''
भारत की आज़ादी और गांधी जी के इंतकाल के कई दशक बीत गए; लेकिन आज भी हिन्दी को न सम्मान मिल सका, न बापू की बात को महत्त्व दिया गया। हिन्दी पर, हिन्दी भाषियों तथा देश पर जैसे एक मेहरबानी की गई और हिन्दी को राजभाषा बना दिया गया। बापू ने कहा था ''राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूँगा है।'' सचमुच हमारा राष्ट्र गूँगा हो गया है, कहीं से पुर-ज़ोर आवाज़ नहीं आती कि हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाई जाए। दुनिया के सभी देशों की अपनी-अपनी राष्ट्रभाषा है; लेकिन भारत ही ऐसा देश है जिसके पास अनेकों भाषाएँ हैं लेकिन राष्ट्रभाषा नहीं है। जबकि भारत में सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषा हिन्दी है।
काफ़ी साल पहले की बात है, मैं अपनी पाँच वर्षीया बेटी के साथ ट्रेन से भागलपुर जा रही थी। ट्रेन में एक युवा दंपती अपने तीन-साढ़े तीन साल के बेटे के साथ सामने की बर्थ पर बैठे थे, जिनका पहनावा काफ़ी आधुनिक था। वे अपने घर पटना जा रहे थे। बच्चा मेरी बेटी के साथ ख़ूब खेल रहा था। दोनों बच्चे बिस्किट खाना चाहते थे। मेरी बेटी ने मुझसे कहा ''माँ हाथ धुला दो, बिस्किट खाएँगे।'' मैंने कहा ''ठीक है चप्पल पहन लो, चलो।'' सामने वाली स्त्री बेटे से बोली ''फर्स्ट वाश योर हैंड्स, देन आई विल गिव यू बिस्किट्स।'' वह बच्चा अपना दोनों हाथ दिखाकर बोला ''मम्मा, माई हैंड्स नो डर्टी।'' उस स्त्री ने अपने पति से अंग्रेज़ी में कहा कि वह बेटे का हाथ धुला दे। दोनों बच्चे बिस्किट खा रहे थे। हाथ का बिस्किट ख़त्म होने पर उस बच्चे ने अपनी माँ से और भी बिस्किट माँगा, कहा कि ''मम्मा गिव बिस्किट।'' माँ ने अंग्रेज़ी में बच्चे से कहा कि पहले प्रॉपर्ली बोलो ''गिव मी सम मोर बिस्किट्स।'' बच्चा किसी तरह बोल पाया फिर उसे बिस्किट मिला।
मैं यह सब देख रही थी। मुझे बड़ा अजीब लगा कि इतने छोटे बच्चे को प्रॉपर्ली अंग्रेज़ी बोलने के लिए अभी से दबाव दिया जा रहा है। मैंने कहा कि अभी यह इतना छोटा है, कैसे इतनी जल्दी सही-सही बोल पाएगा? उस स्त्री ने कहा कि अभी से अगर नहीं बोलेगा, तो दिल्ली के प्रतिष्ठित स्कूल में एडमिशन के लिए इंटरव्यू में कैसे बोलेगा; इसलिए वे लोग हर वक़्त अंग्रेज़ी में बात करते हैं। बातचीत से जब उन्हें पता चला कि मैं दिल्ली में रहती हूँ और मैंने पी-एच.डी. किया हुआ है, तो उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ कि मैं अपनी बेटी से हिन्दी में बात करती हूँ और बेटी भी अच्छी हिन्दी बोलती है। मैं सोचने लगी कि क्या उस माता-पिता का दोष है, जो बच्चे के एडमिशन के लिए अभी से बच्चे पर अंग्रेज़ी बोलने का दबाव डाल रहे हैं, या दोष हमारी शिक्षा व्यवस्था का है, जिस कारण अभिभावक प्रतिष्ठित अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूल में पढ़ाने के लिए बच्चे के जन्म के समय से ही मानसिक तनाव झेलते हैं।
Wednesday, July 1, 2020
78. श्री रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' द्वारा 'लम्हों का सफ़र' की समीक्षात्मक भूमिका
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मैं और श्री रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' |
Sunday, June 14, 2020
77. सुशांत अब सदा के लिए शांत हो गया है
Friday, June 5, 2020
76. बेज़ुबानों की हत्या
महात्मा गांधी ने कहा था कि व्यक्ति अगर हिंसक है, तो वह पशु के समान है। यों लगता है जैसे मानव पशु बन चुका है और पशु मानव से अधिक सभ्य है। यदि पशुओं को चोट न पहुँचाया जाए, तो वे कुछ नहीं करते हैं। पशुओं में न लोभ है, न द्वेष, न ईर्ष्या, न प्रतिकार का भाव, न मान-सम्मान-अपमान की भावना। प्रकृति के साथ प्रकृति के बीच सहज जीवन ही पशु की मूल प्रवृत्ति है। परन्तु मनुष्य अपनी प्रकृति के बिल्कुल विपरीत हो चुका है। मनुष्य की मनुष्यता समाप्त हो चुकी है। मनुष्य में क्रूरता, पाश्विकता, अधर्म, क्रोध, आक्रोश, निर्दयता का गुण भरता जा रहा है। वह पतित, दुराग्रही, पाखण्डी, असहिष्णु, पाषाण-हृदयी हो गया है। वह हिंसक ही नहीं क्रूर हिंसक और बर्बर बन चुका है।
आए दिन कोई-न-कोई घटना ऐसी हो जाती है कि मन व्याकुल हो उठता है। केरल में गर्भवती हथिनी को अनानास में विस्फोटक रखकर खिला दिया गया, जिससे उसकी मौत हो गई। यानी कि उसकी हत्या कर दी गई। लोगों का कहना है कि खेतों को जंगली सूअर से बचाव के लिए इस तरह मारने की विधि अपनाई जाती है। क्या जंगली सूअर जीवित प्राणी नहीं हैं, जिन्हें इतने दर्दनाक तरीक़े से मारा जाता है? अगर हथिनी आबादी वाले क्षेत्र में आ गई थी, तो वन विभाग को पता कैसे न चला? वन विभाग की लापरवाही और आदमी की हिंसक प्रवृत्ति के कारण हथिनी को ऐसी मौत मिली। मनुष्य इतना क्रूर और आतातयी क्यों हो जाता है बेज़ुबानों के साथ? चाहे वह निरीह पशु हो या निर्बल इंसान।
केवल इस हथिनी की बात नहीं है। ऐसे हज़ारों मामले हैं जब बेज़ुबान जीव-जन्तुओं और पशु-पक्षियों के साथ क्रूरता हुई है और लगातार होती रहती है। हाथी-दाँत के कारोबारी बड़ी संख्या में हाथियों के साथ क्रूरता करते हैं। चमड़ा का व्यवसाय करने वाले उससे सम्बन्धित पशुओं को तड़पा-तड़पाकर मारते हैं। गाय, बैल, भैंस को मारकर खाया जाता है और निर्यात भी किया जाता है। सूअर की हत्या बेहद क्रूरता से की जाती है। बकरी और मुर्गा की तो गिनती ही नहीं है कि हर दिन कितने मारे जाते हैं। कहीं झटका देकर काटते हैं, तो कहीं ज़बह करके मारते हैं।
मात्र अपने स्वाद के लिए इन पशुओं की हत्या की जाती है। कुछ मन्दिरों में बलि के नाम पर पशुओं की हत्या होती है, तो बक़रीद पर बकरियों को क्रूरता से मारा जाता है। होली में बकरी का मांस खाना जैसे परम्परा बन चुकी है। मछली को पानी से निकालकर पटक-पटककर मारते हैं या जीवित ही उसका पकवान बनाते हैं। मछली की हत्या कर उसे खाना कैसे शुभ हो सकता है? यह सब प्रथा और परम्परा के नाम पर होता है और सदियों से हो रहा है। किसी जानवर को मारकर कैसे कोई स्वाद ले सकता है? कैसे किसी जीव की हत्या कर जश्न या त्योहार मनाया जा सकता है? यह असंवेदनशीलता है और क्रूरता का चरमोत्कर्ष है।
अक्सर मैं सोचती हूँ कि जिन लोगों ने कुत्ता, बिल्ली, गाय, तोता या कोई भी पशु-पक्षी को पालतू बनाया है और उसे ख़ूब प्यार-दुलार देते हैं, वे अन्य जानवरों को कैसे मारकर खाते हैं? किसी जानवर को मारकर उसका मांस अपने पालतू जानवर को खिलाना क्या संवेदनहीनता नहीं है? अन्य दूसरे जानवरों की पीड़ा उन्हें महसूस क्यों नहीं होती है? अपने पसन्द और स्वाद के अनुसार जानवरों को पालना और मारना, यह कैसी सोच है, कैसी मानसिकता और परम्परा है?
गर्भिणी हथिनी को लेकर ख़ूब राजनीति हो रही है। निःसन्देह यह मामला बेहद दर्दनाक और अफ़सोसनाक है। परन्तु जैसे हथिनी को लेकर लोगों का आक्रोश है अन्य जानवरों के लिए क्यों नहीं? पशुओं के अधिकार को लेकर आवाज़ उठाने वाले संस्थान, सभी पशुओं के लिए क्यों नहीं आवाज़ उठाते हैं? सभी पशुओं-पक्षियों को मनुष्य की तरह ही जीने का अधिकार है। जंगली जानवर हों या पालतू, सभी को उनकी प्रकृति के अनुरूप जीवन और सुरक्षा मिलनी चाहिए। सभी जंगलों के चारों तरफ़ काफ़ी ऊँचा बाड़ बना दिया जाए, तो इन जंगली जानवरों से आघात की संभावना ही न हो। ये बेख़ौफ़ और आज़ाद अपने जंगल में अपनी प्रकृति के साथ रहेंगे। न जानवरों से किसी को भय न जानवरों को मनुष्य का ख़ौफ़।
अपने से कमज़ोर और ग़ैरों के प्रति दया और करुणा जबतक मनुष्य में नहीं जागेगी, तब तक ऐसे ही निरपराध जानवरों और मनुष्यों की हत्या होती रहेगी। चाहे वह मॉब लिंचिंग में किसी आदमी की हत्या हो या किसी स्त्री का उसके स्त्री होने के कारण हत्या हो। चाहे वह गर्भिणी हथिनी की हत्या हो या बकरी या मुर्गे की हत्या हो। ऐसे हर हत्या को गुनाह मानना होगा और हर गुनाहगार को दण्डित करना होगा।