Friday, May 21, 2021

88. भारतीय मिट्टी की सोंधी महक से सुवासित 'प्रवासी मन' - डॉ. शिवजी श्रीवास्तव

मेरी दूसरी पुस्तक 'प्रवासी मन' का विमोचन 10 जनवरी 2021 को 'विश्व हिन्दी दिवस' के अवसर पर 'हिन्दी हाइकु' एवं 'शब्द सृष्टि' के संयुक्त तत्वाधान में गूगल मीट और फेसबुक पर आयोजित पहला ऑनलाइन अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन में हुआ।
'प्रवासी मन' के लिए आदरणीया डॉ. सुधा गुप्ता जी ने अपने स्नेहाशीष दिए थे, जिसे मैंने उनकी हस्तलिपि में पुस्तक में प्रेषित किया है। वे कंप्यूटर या मोबाइल पर नहीं लिखती हैं, वे कागज़ पर ही लिखती हैं। मेरी पुस्तक को पढ़कर उनकी प्रतिक्रिया, जो मेरे लिए अमूल्य धरोहर है; उन्होंने पत्र के माध्यम से दिए हैं, जिसे यहाँ प्रेषित कर रही हूँ।
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आदरणीय डॉ. शिवजी श्रीवास्तव जी ने बहुत मन से 'प्रवासी मन' की समीक्षा की है, जिसके लिए मैं उन्हें सादर धन्यवाद देती हूँ। उनके द्वारा की गई समीक्षा यहाँ प्रेषित कर रही हूँ। - जेन्नी शबनम 

   

भारतीय मिट्टी की सोंधी महक से सुवासित - 'प्रवासी मन'

                                - डॉ. शिवजी श्रीवास्तव

प्रवासी मन (हाइकु - संग्रह) : डॉ. जेन्नी शबनम, पृष्ठ : 120, मूल्य - 240 रुपये,प्रकाशक - अयन प्रकाशन, 1 / 20, महरौली, नई दिल्ली - 110030, संस्करण : 2021

   'प्रवासी मन' डॉ. जेन्नी शबनम का प्रथम हाइकु संग्रह है, जिसमें उनके 1060 हाइकु संकलित हैं। संग्रह का वैशिष्ट्य हाइकु की संख्या में नहीं अपितु उसके विषय-वैविध्य और गंभीर अभिव्यक्ति में है। डॉ.सुधा गुप्ता जी के हस्तलिखित शुभकामना संदेश एवं प्रसिद्ध साहित्यकार श्री रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' जी द्वारा लिखित भूमिका ने इसे और भी विशिष्ट बना दिया है। विषय की दृष्टि से 'प्रवासी मन' का फलक बहुत व्यापक है, उसमें प्रकृति एवं जीवन विविध रंगों के साथ उपस्थित हैं। संग्रह में विविध ऋतुएँ अपने विविध मनोहर या कठोर रूपों के साथ चित्रित हैं, तो कहीं प्रकृति के सहज, यथावत् चित्र हैं –

झुलसा तन / झुलस गई धरा / जो सूर्य जला।

कहीं प्रकृति, उद्दीपन, मानवीकरण, आलंकारिक, उपदेशक इत्यादि रूपों में दिखलाई देती है -

पतझर ने / छीन लिए लिबास / गाछ उदास

शैतान हवा / वृक्ष की हरीतिमा / ले गई उड़ा।

हार ही गईं / ठिठुरती हड्डियाँ / असह्य शीत।

      भारतीय संस्कृति में प्रकृति और उत्सव का घनिष्ट सम्बन्ध है। प्रत्येक ऋतु के अपने पर्व हैं, उन पर्वों के साथ ही परिवार एवं समाज के विविध रिश्ते जुड़े हैं। ये पर्व / उत्सव मानव मन को उल्लास अथवा वेदना की अनुभूति कराते हैं। जेन्नी जी ने प्रकृति और जीवन के इन सम्बन्धो को अत्यंत सघनता एवं सहजता से चित्रित किया है। दीपावली, होली, रक्षाबंधन, जन्माष्टमी जैसे सांस्कृतिक पर्वों के साथ ही स्वतन्त्रता दिवस, गाँधी जयन्ती जैसे राष्ट्रीय पर्वों के सुंदर चित्र भी 'प्रवासी मन' में विद्यमान हैं। प्रायः ये पर्व जहाँ स्वजनों के साथ होने पर आनन्द प्रदान करते हैं, वही उनके विछोह से अवसाद देने लगते हैं। यथा...रक्षा-बंधन का पर्व जहाँ बहनों के मन में उल्लास की सृष्टि करता है...

चुलबुली-सी / कुदकती बहना / राखी जो आई।

वहीं, जिनके भाई दूर हैं उन बहनों के मन में वेदना भर देता है - 

भैया विदेश / राखी किसको बाँधे / राह निहारे। 

ऐसी ही वेदना होली में भी प्रिय से दूर होने पर होती है - 

बैरन होली / क्यों पिया बिन आए / तीर चुभाए।

  शायद ही ऐसा कोई सांस्कृतिक उत्सव या परम्परा हो, जिस ओर जेन्नी जी की दृष्टि न गई हो। स्त्री के माथे की बिंदी सौभाग्य सूचक होती है, तीज का व्रत करने से सुहाग अखण्ड होता है, पति की आयु बढ़ती है जैसे लोक विश्वासों पर भी सुंदर हाइकु हैं। कवयित्री ने प्रेम, विरह, देश-प्रेम हिन्दी भाषा की स्थिति, भ्रष्टाचार, नारी की नियति, किसानों की व्यथा जैसे महत्त्वपूर्ण सामयिक विषयों पर भी प्रभावी हाइकु लिखे हैं। उनकी दृष्टि से कोई विषय अछूता नहीं रहा।

    कवयित्री को मनोविज्ञान का भी अच्छा ज्ञान है; अनेक रिश्तों / सम्बन्धों के मनोभावों को उन्होंने सूक्ष्मता से उभारा है। माँ की ममता, बहन का स्नेह, प्रिय का प्रेम, एकाकीपन के दंश जैसे तमाम मनोभावो के जीवन्त हाइकु के साथ ही उन्होंने जीवन की अनेक विडम्बनाओं के सशक्त चित्र अंकित किए हैं।  

    मानव जीवन की अनेक विडम्बनाओं में वृद्धावस्था सबसे बड़ी विडंबना है, उसके अपने अवसाद हैं, कष्ट हैं। उन कष्टों से जूझने की मनःस्थिति और मनोविज्ञान पर भी संग्रह में बेजोड़ हाइकु हैं, यथा - 

उम्र की साँझ / बेहद डरावनी / टूटती आस।

वृद्ध की कथा / कोई न सुने व्यथा / घर है भरा।

दवा की भीड़ / वृद्ध मन अकेला / टूटता नीड़।

वृद्धों की मनःस्थिति पर हिंदी में इतने सशक्त हाइकु शायद ही किसी और ने लिखे हों।  

      'प्रवासी मन' की भाषा में लाक्षणिकता एवं व्यंजना के साथ ही सजीव एवं प्रभावी बिम्ब देखने को मिलते हैं, यथा -

उम्र का चूल्हा / आजीवन सुलगा / अब बुझता।

धम्म से कूदा / अँखियाँ मटकाता / आम का जोड़ा

आम की टोली / झुरमुट में छुपी / गप्पें हाँकती।

भाषा में लोक जीवन एवं अन्य भाषा के प्रचलित शब्दों का प्रयोग भी सहजता से हुआ है -

फगुआ बुझा / रास्ता अगोरे बैठा / रंग ठिठका।

रंज औ ग़म / रंग में नहाकर/ भूले भरम।

  संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि कवयित्री की कविता की शैली अवश्य जापानी है, पर 'प्रवासी मन' भारतीय मिट्टी की सोंधी महक से सुवासित एवं रससिक्त है।

        

संपर्क : डॉ. शिवजी श्रीवास्तव

            2, विवेक विहार, मैनपुरी (उ.प्र.) - 205001.

            Email : shivji.sri@gmail.com

            तिथि - 18. 2. 2021 

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24 comments:

  1. हृदयस्पर्शी रचनाकर्म एवं उसी के अनुरूप समीक्षा।

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  2. मेरी समीक्षा को ब्लॉग पर स्थान देने के लिये हार्दिक आभार।एक बार पुनः बधाई।

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  3. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (22-05-2021 ) को 'कोई रोटियों से खेलने चला है' (चर्चा अंक 4073) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  4. उम्र की साँझ / बेहद डरावनी / टूटती आस।

    वृद्ध की कथा / कोई न सुने व्यथा / घर है भरा।

    दवा की भीड़ / वृद्ध मन अकेला / टूटता नीड़।
    सत प्रतिशत सत्य है
    दिल को छू लेने वाला लेख

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  5. सुंदर समीक्षा, बहुत बहुत बधाई इस प्रथम संकलन 'प्रवासी मन' के लिए

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  6. वृद्ध की कथा / कोई न सुने व्यथा / घर है भरा।

    दवा की भीड़ / वृद्ध मन अकेला / टूटता नीड़।

    निःशब्द करते हाइकु ... संवेदनशील और भावपूर्ण लेखन कि उत्कृष्ट समीक्षा।
    बधाई सहित अनंत शुभकामनाएं

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  7. बेहद ही उम्दा संग्रह और उतनी ही अच्छी समीक्षा के लिए आप दोनों को बधाई।
    आपके हाइकु मुझे बहुत अच्छे लगे विशेषकर ये वाला-
    धम्म से कूदा/अँखियाँ मटकाता/आम का जोड़ा।
    शायद ऐसे ही किसी हाइकु के लिए विद्वान बाशो ने कहा होगा-
    जिसने अपने जीवन मे एक हाइकु लिख लिया वह हाइकु कार हो गया।
    पुनः बधाई।

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  8. Ram Chandra Verma
    Sat, 22 May, 09:52 (1 day ago)
    to me

    डॉ. जेन्नी शबनम जी के हाइकू-संग्रह प्रवासी मन से मुत्आलिक डॉ. सुधा गुप्ता और डॉ शिवजी श्रीवास्तव जैसे साहित्य मनीषियों द्वारा लिखी समीक्षा पर शबनम जी ने मुझ नाचीज़ को अपनी प्रतिक्रिया देने को कहा है।हालाँकि मैं ख़ुद को इस लायक नहीं समझता फिर भी उनका मन रखते हुए यही कहूंगा कि दोनों साहित्यकारों ने बहुत सुन्दर अंदाज़ में और दिलकश अल्फ़ाज़ में जिस तरह अपनी बात कही है, अप्रतिम और अद्भुत है। डॉ. सुधा जी ने चाहे बहुत ही संक्षित रूप में कहा है लेकिन उतने में ही बहुत कुछ कह दिया है।डॉ. शिवजी नै जिस तरह अपनी बात को विस्तृत रूप दिया है, यह पुस्तक बिल्कुल उसकी ह़कदार है।
    वैसे तो संग्रह का एक एक हाइकु अपने आप में ज़िन्दगी का एक एक पहलू लिये हुए है जिस पर व्यापक चर्चा की जा सकती है और की जानी चाहिये भी।डॉ. साहब ने नीचे लिखे जिन हाइकुओं को उद्धृत किया हैं सभी अद्भुत हैं;

    हार ही गईं/ठिठुरती हड्डियाँ/ असह्य शीत
    पतझर ने/छीन लिए लिबास/गाछ उदास
    बैरन होली/क्यों पिया बिन आए/तीर चुभाए
    उम्र का चूल्हा/आजीवन सुलगा/अब बुझता

    और फिर जिस तरह से इनके बारे में जो जो कहा, बहुत ही सटीक और हृदयस्पर्शी है।

    मेरा इन दोनों मनीषियों को नमन और उनका हार्दिक आभार।शबनम जी को मुबारकबाद और दिली दुआएँ।

    राम चन्द्र वर्मा 'साहिल'
    9968414848

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  9. बहुत सुंदर समीक्षा अनेक बधाइयां आप दोनों को💐💐

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  10. एक सुन्दर संग्रह की सार्थक समीक्षा...आप दोनों को बहुत बधाई |

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  11. हाइकु विधा को सभी नहीं साध पाते। आपने साधा है, यह कोई सामान्य बात नहीं। पुस्तक निश्चय ही पठनीय एवं हाइकु के रसिकों हेतु उपहार सदृश होगी। समीक्षा भी उत्तम है। आपको हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं जेन्नी जी।

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  12. 1 – 12 of 12

    Blogger सहज साहित्य said...

    हृदयस्पर्शी रचनाकर्म एवं उसी के अनुरूप समीक्षा।

    May 22, 2021 at 12:56 AM Delete
    _________________________________

    आपका हृदय तल से आभार काम्बोज भाई. सादर.

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  13. Blogger शिवजी श्रीवास्तव said...

    मेरी समीक्षा को ब्लॉग पर स्थान देने के लिये हार्दिक आभार।एक बार पुनः बधाई।

    May 22, 2021 at 8:05 AM Delete
    __________________________________________

    मेरी पुस्तक की सार्थक और सराहनीय समीक्षा के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीय शिवजी श्रीवास्तव जी. आभार आपका.

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  14. Blogger Ravindra Singh Yadav said...

    नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (22-05-2021 ) को 'कोई रोटियों से खेलने चला है' (चर्चा अंक 4073) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

    May 22, 2021 at 10:27 PM Delete
    _____________________________________________________

    मेरे ब्लॉग के लिंक को साझा करने के लिए धन्यवाद रवीन्द्र सिंह जी.

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  15. Blogger शिवम् कुमार पाण्डेय said...

    बढ़िया प्रस्तुति।

    May 22, 2021 at 11:44 PM Delete
    _________________________________

    धन्यवाद शिवम् कुमार जी.

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  16. Blogger Manisha Goswami said...

    उम्र की साँझ / बेहद डरावनी / टूटती आस।

    वृद्ध की कथा / कोई न सुने व्यथा / घर है भरा।

    दवा की भीड़ / वृद्ध मन अकेला / टूटता नीड़।
    सत प्रतिशत सत्य है
    दिल को छू लेने वाला लेख

    May 23, 2021 at 9:21 AM Delete
    __________________________________________

    बहुत धन्यवाद मनीषा गोस्वामी जी.

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  17. Blogger Anita said...

    सुंदर समीक्षा, बहुत बहुत बधाई इस प्रथम संकलन 'प्रवासी मन' के लिए

    May 23, 2021 at 10:07 AM Delete
    _______________________________________

    बहुत धन्यवाद अनिता जी.

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  18. Blogger सदा said...

    वृद्ध की कथा / कोई न सुने व्यथा / घर है भरा।

    दवा की भीड़ / वृद्ध मन अकेला / टूटता नीड़।

    निःशब्द करते हाइकु ... संवेदनशील और भावपूर्ण लेखन कि उत्कृष्ट समीक्षा।
    बधाई सहित अनंत शुभकामनाएं

    May 23, 2021 at 10:29 AM Delete
    ________________________________________________

    बहुत धन्यवाद सीमा जी.

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  19. Blogger Ramesh Kumar Soni said...

    बेहद ही उम्दा संग्रह और उतनी ही अच्छी समीक्षा के लिए आप दोनों को बधाई।
    आपके हाइकु मुझे बहुत अच्छे लगे विशेषकर ये वाला-
    धम्म से कूदा/अँखियाँ मटकाता/आम का जोड़ा।
    शायद ऐसे ही किसी हाइकु के लिए विद्वान बाशो ने कहा होगा-
    जिसने अपने जीवन मे एक हाइकु लिख लिया वह हाइकु कार हो गया।
    पुनः बधाई।

    May 23, 2021 at 4:01 PM Delete
    _________________________________________________

    बाशो के कथनानुसार तो मैं हाइकुकार हो गई लेकिन, अभी इस दिशा में बहुत सीखना शेष है. सराहना के लिए बहुत धयवाद रमेश सोनी जी.

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  20. Ram Chandra Verma
    Sat, 22 May, 09:52 (1 day ago)
    to me

    डॉ. जेन्नी शबनम जी के हाइकू-संग्रह प्रवासी मन से मुत्आलिक डॉ. सुधा गुप्ता और डॉ शिवजी श्रीवास्तव जैसे साहित्य मनीषियों द्वारा लिखी समीक्षा पर शबनम जी ने मुझ नाचीज़ को अपनी प्रतिक्रिया देने को कहा है।हालाँकि मैं ख़ुद को इस लायक नहीं समझता फिर भी उनका मन रखते हुए यही कहूंगा कि दोनों साहित्यकारों ने बहुत सुन्दर अंदाज़ में और दिलकश अल्फ़ाज़ में जिस तरह अपनी बात कही है, अप्रतिम और अद्भुत है। डॉ. सुधा जी ने चाहे बहुत ही संक्षित रूप में कहा है लेकिन उतने में ही बहुत कुछ कह दिया है।डॉ. शिवजी नै जिस तरह अपनी बात को विस्तृत रूप दिया है, यह पुस्तक बिल्कुल उसकी ह़कदार है।
    वैसे तो संग्रह का एक एक हाइकु अपने आप में ज़िन्दगी का एक एक पहलू लिये हुए है जिस पर व्यापक चर्चा की जा सकती है और की जानी चाहिये भी।डॉ. साहब ने नीचे लिखे जिन हाइकुओं को उद्धृत किया हैं सभी अद्भुत हैं;

    हार ही गईं/ठिठुरती हड्डियाँ/ असह्य शीत
    पतझर ने/छीन लिए लिबास/गाछ उदास
    बैरन होली/क्यों पिया बिन आए/तीर चुभाए
    उम्र का चूल्हा/आजीवन सुलगा/अब बुझता

    और फिर जिस तरह से इनके बारे में जो जो कहा, बहुत ही सटीक और हृदयस्पर्शी है।

    मेरा इन दोनों मनीषियों को नमन और उनका हार्दिक आभार।शबनम जी को मुबारकबाद और दिली दुआएँ।

    राम चन्द्र वर्मा 'साहिल'
    9968414848

    May 23, 2021 at 8:51 PM Delete
    _______________________________________________

    आदरणीय साहिल जी, मेरी लेखनी को सदैव आपकी सराहना मिलती है, यह मेरा सौभाग्य है. आपका बहुत बहुत धन्यवाद. सादर.

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  21. Blogger कल्पना मनोरमा said...

    बहुत सुंदर समीक्षा अनेक बधाइयां आप दोनों को💐💐

    June 1, 2021 at 9:23 PM Delete
    ______________________________________________

    बहुत बहुत शुक्रिया कल्पना मनोरमा जी.

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  22. Blogger प्रियंका गुप्ता said...

    एक सुन्दर संग्रह की सार्थक समीक्षा...आप दोनों को बहुत बधाई |

    June 17, 2021 at 7:02 PM Delete
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    बहुत बहुत शुक्रिया प्रियंका जी.

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  23. Blogger जितेन्द्र माथुर said...

    हाइकु विधा को सभी नहीं साध पाते। आपने साधा है, यह कोई सामान्य बात नहीं। पुस्तक निश्चय ही पठनीय एवं हाइकु के रसिकों हेतु उपहार सदृश होगी। समीक्षा भी उत्तम है। आपको हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं जेन्नी जी।

    June 26, 2021 at 12:46 PM Delete
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    पूरी तरह साध पाना तो संभव नहीं, हाँ, प्रयत्नरत हूँ कि अच्छा लिख सकूँ. शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद जितेन्द्र जी.

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